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केरल में मार्क्सवादियों का दोगलापन साफ तौर पर देखा जा सकता है। कुछ वक्त पहले जीशा का बलात्कार करके बर्बर हत्या की गई। हम जांच दल के नाते वहां गए थे, उसकी सहमी मां और बहन से मिले। जीशा की हत्या में शक की सुई सीधी स्थानीय विधायक पर है, लेकिन कोई पड़ोसी डर के मारे कुछ नहीं बोला। जीशा दलित वर्ग से थी, लेकिन दलितों की बात करने वाले और हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित की आत्महत्या के बाद 'दलित अत्याचार' का शोर मचाने वाले कम्युनिस्टों ने जीशा पर होंठ क्यों सिले हुए हैं? पुलिस जीशा की हत्या को आत्महत्या का मामला कहकर दबाने का प्रयास कर रही है। विक्टोरिया कॉलेज की पूर्व प्रधानाचार्या टी.एन. सरसू ने मार्क्सवादियों के सामने हथियार नहीं डाले तो उन्हें प्रताडि़त किया गया, जबकि वही मार्क्सवादी 'महिलाओं पर अत्याचार' के खिलाफ शोर मचाते हैं। श्रुति मोल को प्रताडि़त किया गया, उसकी शादी टूट गई, उसने आत्महत्या का प्रयास किया और आखिरी पत्र में प्रताडि़त करने वाले एसएफआइ तत्वों के नाम दिए। वह हारी नहीं, लड़ती रही। माकपा अफजल, याकूब जैसे आतंकियों और कश्मीर के पत्थरबाजों के मानवाधिकारों की बात करती है, पर सदानंदन मास्टर जैसों के मानवाधिकार उन्हें नजर नहीं आते। अभी फरवरी में माता-पिता के सामने संघ स्वयंसेवक सुजित की हत्या की गई, उसके कोई मानवाधिकार नहीं थे क्या? प. बंगाल में एक मां को इन मार्क्सवादियों ने उसके बेटे के खून में सने चावल खाने को मजबूर किया। वक्त आ गया है कि माकपा के हिंसाचार को केरल से बाहर सबके सामने लाया जाए। अमेरिकी चैनल एबीसी न्यूज ने माकपा की हिंसा को अपनी 'प्लांड अटैक' शृंखला में पांचवां स्थान दिया है। – मोनिका अरोड़ा, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय
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