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लातूर शहर को माजरा नदी से पानी मिलता है, लेकिन कई वर्ष से अच्छी बारिश नहीं होने के कारण यह नदी सूख चुकी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी संस्था 'जनकल्याण समिति' के साथ मिलकर अनेक राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता इस नदी की सफाई कर रहे हैं
प्रमोद कुमार
इन दिनों देश में 10 राज्य सूखे की चपेट में हैं। करोड़ों लोग बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। इस संकट से लोगों को निजात दिलाने के लिए सरकारी एजेंसियां लगी हैं, लेकिन उनकी भी सीमाएं और विवशताएं हैं। वहीं लातूर शहर के लोगों ने खुद ही जल संकट से बाहर निकलने की पहल की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी संस्था 'जनकल्याण समिति' की पहल पर लोगों ने माजरा नदी को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए लोगों ने अभी तक पांच करोड़ रुपए का चंदा दिया है। इस पूरी परियोजना की लागत तकरीबन 7.58 करोड़ आंकी गई है जबकि सरकारी एजेंसियां कह रही हैं कि इसमें लगभग 80 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यहां सबसे खास बात यह है कि इस काम में विभन्नि सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन, शक्षिण संस्थान, व्यापार मंडल और विभन्नि दलों से संबंध रखने वाले नेता भी रुचि दिखा रहे हैं। इस काम के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हाथ मिलाया है। संघ के वरष्ठि कार्यकर्ता और लातूर विवेकानंद अस्पताल के संस्थापक डॉ. अशोक कुकड़े इस परियोजना के लिए बनाई गई समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं, जबकि सचिव की जम्मिेदारी आर्ट ऑफ लिविंग के मकरंद जाधव को दी गई है।
दक्षिणी मराठवाड़ा ऐसा क्षेत्र है, जहां बारिश कम होती है। पिछले तीन साल से बारिश बहुत ही कम हुई है। आंकड़ों के अनुसार यहां जितनी बारिश होती है, उसकी 40 फीसद ही बीते तीन वर्ष में हुई है। जनकल्याण समिति के अरुण डंके कहते हैं, ''जल संकट की जो स्थिति यहां पर हुई उसका एक कारण तो है बारिश का कम होना, दूसरा है पानी के उपयोग को लेकर जानकारी का अभाव और तीसरा फसल उगाने का तरीका।'' वे कहते हैं, ''इस साल खरीफ की फसल तो लगाई गई, लेकिन बारिश कम होने से पैदावार बहुत कम रही, जबकि रबी की फसल की बुआई ही नहीं हुई और यदि कहीं थोड़ी-बहुत बुआई हुई तो वहां पैदावार न के बराबर हुई। फसल नहीं हुई तो जानवरों के लिए चारा नहीं भी बचा।'' उन्होंने बताया कि जानवर भूखे हैं, पूरे प्रदेश में पानी की कल्लित है। महाराष्ट्र सरकार ने करीब 20,000 गांवों को सूखाग्रस्त घोषित किया है। इनमें से मराठवाड़ा क्षेत्र के 10,000 हजार गांव हैं। इसके बाद विदर्भ का एक जिला और पश्चिमी महाराष्ट्र के चार जिले हैं। ऐसे कुल 12 जिले सूखे से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं। मराठवाड़ा के अंदर सभी गांवों में पानी का अभाव है।
दक्षिणी मराठावाड़ा के लातूर क्षेत्र के तीन जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यहां एक बूंद भी पानी नहीं बचा है। नदियां, तालाब सब सूखे हैं। पीने के पानी की सबसे ज्यादा समस्या है। यहां न तो फसल उग पा रही है और न ही जानवरों के चारे का इंतजाम हो पा रहा है। फिर भी जहां पर पानी के स्रोत बचे हुए हैं, उन्हें अधिगृहित कर सरकार लोगों को पानी मुहैया करा रही है। लेकिन सरकार से लेकर लोगों तक सभी को पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। डंके कहते हैं, ''सूखे के कारण लातूर की पांच लाख की आबादी में से एक लाख आबादी वस्थिापित हुई है। इसमें 50,000 मजदूर और 50,000 वद्यिार्थी हैं। शक्षिा का गढ़ होने के कारण यहां जिलाधिकारी ने तय किया था कि 15 मार्च से 15 जून के बीच न किसी तरह की कक्षाएं चलेंगी और न ही कोई परीक्षा होगी। मजदूरों के जाने से काम अस्त-व्यस्त है। महापालिका को मजदूर नहीं मिल रहे हैं। महापालिका प्रत्येक परिवार को हर सप्ताह 200 लीटर पानी दे रही है। रेल से पानी पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए रेल मंत्री का बहुत-बहुत आभार, लेकिन 25 लाख लीटर पानी पांच लाख की आबादी के लिए नाकाफी साबित हो रहा है।'' वे आगे कहते हैं, ''200 लीटर पानी से एक परिवार सप्ताहभर कैसे गुजारा करता होगा, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है। '' सीधी बात है कि मांग के लिहाज से पानी बहुत कम है। सूखे से निपटने के लिए जनकल्याण समिति महाराष्ट्र के कार्यकर्ता 11 जिलों में काम कर रहे हैं। जिन तीन जिलों में बहुत ज्यादा समस्या है वहां पर जानवरों के लिए छह चारा डिपो चालू कर दिए गए हैं और छह जल्दी ही चालू किए जाएंगे। माजरा नदी हमारे लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। उस पर दो बांध हैं जहां से लातूर को पानी भेजा जाता है। नदी पर 40 किलोमीटर दूरी पर एक बांध है, जहां से खेती के लिए पानी लिया जाता है। पीने के पानी के लिए वहां से भी पाइप लाइन आती है, लेकिन अब तीनों जगहों पर पानी सूख गया है। नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 3 मीटर गहराई, 80 मीटर चौड़ाई और 18 किलोमीटर लंबाई तक रेती हटाकर नदी की सफाई करेंगे। इससे वहां पर पानी का संचयन बढ़ेगा। वहां से पानी मिलेगा, जो लातूर की 70 प्रतिशत जरूरत को पूरा करेगा। उन्होंने बताया कि जब इस योजना के बारे में सोचा गया था तो इसका बजट 7.58 करोड़ रुपए रखा गया था। इस पर काम करने के लिए बैठक हुई जिसमें लातूर शहर की सभी संस्थाएं शामिल हुईं। सभी ने चिंतन किया और 'सार्वजनिक जलयुक्त लातूर व्यस्थापन समिति' बनाई गई। समिति में कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष विलासराव के करीबी रहे त्रयंबक दास झवर, बुजुर्ग समाजवादी नेता मनोहर गोमारे, एवं चीनी मिलों के मालिक बीबी ठोमरे सहित 11 लोग हैं।
जब समिति बनाई गई तो लातूर के सभी लोगों से अपील की गई कि वे नदी के पुनर्जीवन के लिए चंदा दें। वर्ष प्रतिपदा के दिन जब इस काम का उद्घाटन हुआ तो उसी दिन कई लोगों ने चंदा देने की घोषणा की। वह राशि दो करोड़ के करीब पहंुच गई। इसमें से 50 प्रतिशत राशि आ चुकी है। ये सब देखकर जिलाधिकारी ने भी हमें सहयोग दिया। तीन अधिकारी हमारे साथ काम कर रहे हैं। हमें उनकी तरफ से एक मशीन भी दी गई है। अब सुनने में आया है कि मुख्यमंत्री निधि से भी बहुत बड़ी राशि मंजूर हो गई है, लेकिन हमारी समिति का यह नर्णिय है कि जहां तक संभव हो, हम सरकार से मदद नहीं लेंगे। हम जनता से ही यह राशि लेंगे और उसमें से यह काम चलाएंगे। डंके का कहना है कि लातूर के अंदर जितनी शक्षिण संस्थाएं हैं, जितने संगठन हैं सब आगे आकर चंदा दे रहे हैं। हमें मशीनें चाहिए, इसके लिए हम केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडे़कर से मिले हैं। हमारा काम शुरू हो गया है। हमारे काम की खूब सराहना हो रही है। अभी तक पांच किलोमीटर का काम पूरा हुआ है। फल्मि जगत से भी इस अभियान में कुछ लोग जुड़े हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख का गांव भी लातूर में ही पड़ता है। उनके बेटे और फल्मि अभिनेता रितेश देशमुख ने 25 लाख रुपए दिए हैं। उन्होंने इस अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनना भी कबूल किया है। बड़े बेटे अमित देशमुख, जो कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं, ने भी 75 लाख रुपए की राशि देने की बात कही है। उन्होंने 25 लाख रुपए दे भी दिए हैं। कांगे्रसी होते हुए भी वे हमारे साथ जुड़े और हमारे काम की बहुत प्रशंसा कर रहे हैं। महाराष्ट्र के मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय, मंत्री पंकजा मुंडे, श्री श्री रविशंकर, देवगिरी प्रांत संघचालक दादा पंवार, पश्चिमी क्षेत्र सहक्षेत्र प्रचारक विजय राव पुराणिक, रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख सुहास राव हिरेमठ, रा.स्व.संघ जनकल्याण समिति महाराष्ट्र के संगठन सचिव शरण खाडिलकर ने भी नदी के उस हस्सिे का दौरा किया जहां काम चल रहा है और इसकी प्रशंसा की। अगले 40 से 50 दिनों में मानसून शुरू होने से पहले काम को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
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