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डॉ. चन्दन मित्रा
राजनीति में मेरा प्रवेश उन दिनों हुआ जब श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन की रिपोर्टिंग करते-करते एक विचारधारा विशेष के प्रति मेरा झुकाव हुआ और मैं बाद में उसी विचारधारा से जुड़ गया। अब तो उसी में रमा हूं। एक पत्रकार के नाते राजनीति को अरसे से देखता रहा हूं, समझता रहा हूं। अब मैं खुद राजनीति का अंग हो गया हूं। मैं अपने अनुभव के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि राजनीति से कोई अच्छी नीति हो ही नहीं सकती है।
पूरा समाज जीवन इसी नीति के ईद-गिर्द घूमता है। लेकिन दुर्भाग्यवश आजकल लोग राजनीति और राजनेता को लेकर अच्छी धारणा नहीं रखते। इसकी वजह है राजनीति का दुरुपयोग। कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए राजनीति का इतना दुरुपयोग किया है कि राजनेता और राजनीति बदनाम हो गई है। यही वजह है कि एक आम आदमी भी हर बात के लिए राजनीति को दोषी ठहरा देता है। राजनेताओं को अपने आचरण और आदर्शों से इस धारणा को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि एक पत्रकार के तौर पर किसी विषय पर आपके जो विचार होते हैं, क्या वही विचार एक नेता के रूप में होते हैं? मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मैं एक अखबार का संपादक हूं। संपादकीय और अखबार में प्रकाशित होने वाले लेखों में मैं अपनी विचारधारा को अहमियत देता हूं, लेकिन खबरों में विचारधारा को नहीं थोपता हूं। खबरें जैसी होती हैं उसी रूप में प्रकाशित होती हैं।
यूं तो मैं अपनी पार्टी के 90 प्रतिशत विचारों से कभी असहमत नहीं होता हूं, लेकिन कभी कोई मतभिन्नता होने पर
पार्टी के अंदर राय-मशविरा करके
ही कुछ लिखता हूं। एक अनुशासित कार्यकर्ता होने के नाते इसका ध्यान तो रखना ही पड़ता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अपने पत्रकारीय धर्म से समझौता करता हूं।
एक पत्रकार के नाते मैं वर्षों से संसद जाता रहा हूं, रिपोर्टिंग करता रहा हूं। उन दिनों संसद में बड़े-बड़े नेताओं को भाषण देते हुए नजदीक से देखता था। अब मैं खुद उस संसद में अपने विचार रखता हूं, जहां पहले पत्रकार के नाते रिपोर्टिंग के लिए जाता था, यह मेरे लिए गर्व की बात है।
(लेखक द पायनियर के संपादक और भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं)
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