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राष्ट्रपति भवन पिछले दिनों विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार (इनोवेशन) करने वाले उद्यमियों के कारण आकर्षण का केन्द्र बना। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा शुुरू किए गए 'इनोवेशन स्कॉलर इन-रेजीडेंस प्रोग्राम' के तीसरे बैच के सात सदस्य 12 से 26 मार्च तक राष्ट्रपति भवन में बतौर मेहमान बनकर रहे
राहुल शर्मा
हाथों से अक्षम व्यक्ति भी क्या कभी किताब के पन्ने पलट सकता है, यह सुनकर कुछ अजीब-सा लगता है, लेकिन राष्ट्रपति भवन में असम से आए और हमेशा कुछ नया सोचने वाले स्वप्निल तालुकदार ने इस सपने को सच कर दिखाया है। स्वप्निल बताते हैं, '' मैंने 11वीं कक्षा में पढ़ाई करने के दौरान ही 'फुट ऑपरेटिड मैन्युअल पेज टर्निंग मशीन' तैयार की। मुझे स्कूल में विज्ञान की प्रदर्शनी में एक परियोजना तैयार करनी थी। मैं चाहता था कि कुछ अलग हटकर करूं, इसी प्रेरणा को ध्यान में रखकर यह शुरुआत की।'' इसकी मदद से हाथ में चोट लगने पर या हाथों से अक्षम व्यक्ति भी पांवों की मदद से किताब के पन्ने आसानी से पलट सकता है। स्वप्निल के पिता स्टेट बैंक में प्रबंधक हैं, माता गृहिणी और एक छोटी बहन है।
गुजरात के अमृत लाल बावनदास अग्रावत ने कुएं से बाल्टी में पानी भरने वाली महिलाओं की मदद के लिए रस्सी पर स्टॉपर पुली और बैलगाड़ी में डंपर की तर्ज पर ट्रॉली लगाने के सपने को सच कर दिखाया है जिसका ग्रामीण क्षेत्र में लोग भरपूर लाभ उठा रहे हैं। वे मात्र चौथी कक्षा पास हैं। बचपन में खेतों की जुताई के दौरान उन्होंने बैलों की गर्दन पर घाव देखे तो प्रण कर लिया कि ऐसी मशीन तैयार करनी है जिससे बैलों का कष्ट कुछ कम हो सके। काफी मंथन करने के बाद उन्होंने एक ट्रॉली तैयार की, जो कि बैलगाड़ी में गाड़ी की जगह जुड़ जाती है और डंपर की तर्ज पर उसमें लदा माल हाथ से हैंडल घुमाने पर ट्रॉली से जमीन पर डाला जाता है। यह ट्रॉली करीब 600 किलोग्राम वजन उठा सकती है। अमृत बताते हैं, ''मैंने बैलों के साथ उपयोग होने वाले करीब 15 प्रकार के साधन तैयार किए हैं।'' ग्रामीण क्षेत्रों में कुएं से पानी ढोने वाली महिलाओं के हाथ से पानी भरी बाल्टी को कुएं में गिरने के दर्द को समझते हुए उन्होंने मात्र 15 दिनों के भीतर एक स्टॉपर पुली तैयार की जिसके तीन अलग-अलग मॉडल हैं जिनकी कीमत 300 से 1,200 रुपए तक है। इसकी मदद से कुएं से पानी खींचने वाला व्यक्ति कभी भी थकान होने पर स्टॉपर पुली का प्रयोग कर सकता है। इससे पानी से भरी बाल्टी वापस कुएं में नहीं गिरेगी। गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 1,000 स्टॉपर पुली लग चुकी हैं।
जम्मू-कश्मीर के मुश्ताक अहमद डार ने बिजली के खंभों पर चढ़ने वाला उपकरण बनाकर सीढ़ी लगाकर खंभे पर चढ़ने का झंझट ही खत्म कर दिया, उन्होंने साथ ही अखरोट तोड़ने की मशीन भी तैयार की है। नौवीं कक्षा तक पढ़े मुश्ताक बताते हैं, '' मैंने जम्मू-कश्मीर में आए दिन बरसात के दिनों में बिजली के खंभों पर सीढ़ी लगाकर काम करते लोगांे को गिरते देखा तो इस समस्या को दूर करने के लिए 'पोल क्लिंबिंग डिवाइस' तैयार कर दिया।'' इस उपकरण का प्रयोग 12 वर्ष से बड़ी आयु वाले कर सकते हैं, जो 130 किलोग्राम तक का वजन उठा सकता है।
इसके साथ ही मुश्ताक ने अखरोट के ऊपर के हरे छिलके को हटाने की मशीन भी तैयार की है। जम्मू-कश्मीर में कई लोगों का पूरा परिवार अखरोट से छिलका हटाने में जुटा रहता है जिससे उन्हें त्वचा संबंधी रोग भी हो जाता है। यह मशीन एक घंटे में 130 से 150 किलोग्राम अखरोट से छिलका हटा सकती है। नई मशीन से लोगों को काफी राहत मिली है जिसका मूल्य करीब 25,000 रुपए रखा गया है। इसके साथ ही उन्होंने अखरोट का छिलका तोड़ने वाली मशीन भी तैयार की है जिसकी मदद से आसानी से अखरोट को तोड़कर उससे गूदा निकाला जा सकता है, वरना छिलके से गूदा निकालना आसान नहीं होता।
मिजोरम के एल. बी. राल्ते ने साथी एल. साइलो के साथ मिलकर बांस से अगरबत्ती की डंडी बनाने की मशीन बनाकर दाव या चाकू से बांस काटकर आजीविका चलाने वालों पर हर समय मंडराने वाले खतरे को कम कर दिया। बी. ए. पास राल्ते कहते हैं, ''उत्तर-पूर्व में बांस निर्मित सामग्री काफी मात्रा में तैयार की जाती है, ऐसे में बांस को चाकू या दूसरे औजार से काटते समय ग्रामीण कारीगर को चोट पहंुचने की आशंका बनी रहती है। इसी को ध्यान में रखकर मैंने 'बैंम्बू स्पिलंट मेकिंग मशीन' तैयार की जिसकी कीमत करीब 5,000 रुपए रखी है।'' अभी तक 2,500 मशीनों की बिक्री हो चुकी है। 3.5 किलोग्राम वजन वाली यह मशीन एक घंटे में बांस को काटकर 5,000 डंडी तैयार कर सकती है। इसके अलावा वे सुपारी का छिलका काटने की मशीन भी बना चुके हैं। इससे पूर्व वे एक गैर सरकारी संगठन से भी जुड़े रहे थे। राल्ते को एनआईएफ की ओर से 2013 में पुरस्कृत भी किया गया था।
कर्नाटक के जी. के. रत्नाकर ने 'मोडिफाइड हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी टरबाइन' बनाकर अंधेरे में डूबे गांवों को रोशनी से जगमगा दिया। रत्नाकर कहते हैं, '' कर्नाटक और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति की समस्या काफी रहती थी। इसी को ध्यान में रखकर मैंने पानी से बिजली तैयार करने का निर्णय किया और करीब 1997 में पहली बार टरबाइन का निर्माण किया।'' अभी तक उनकी 360 से अधिक टरबाइन बिक चुकी हैं। उनकी दो से 25 किलोवाट की टरबाइन दक्षिण कन्नड़, कोड़ागु, हासन और चिकमंगलूर जिले में लग चुकी हैं। वे 20 गांवों के 254 घरों में रोशनी पहंुचा चुके हैं। बीएसएनएल और दक्षिण कन्नड़ के मंदिरों में भी लगाई गई हैं। इनका नवाचार 24 घंटे बिजली उपलब्ध करवाने में कारगर है। बाजार में एक किलोवाट टरबाइन जनरेटर की कीमत करीब 75,000 रुपए है।
आंध्र प्रदेश निवासी सी. मलेशम ने हाथों से तैयार होने वाली सिल्क की पोचमपल्ली साड़ी के लिए 'आसू मेकिंग मशीन' तैयार की है। मात्र छठी कक्षा तक पढ़ने वाले मलेशम कहते हैं, ''मैंने बचपन से माता और परिवार की अन्य महिलाआंे को यार्न (सांचे) पर पोचमपल्ली साड़ी का धागा तैयार करते समय उन्हें होने वाली पीड़ा का एहसास किया था। महिलाओं को इस काम में कमर दर्द और असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता है।'' करीब डेढ़ दिन में जाकर एक साड़ी में लगने वाले धागे की बुनाई की प्रक्रिया पूरी हो पाती है और उसके बाद रंगाई-कढ़ाई का काम बाकी रह जाता है। तेलंगाना के नलगोंडा और वारंगल जिले में सबसे अधिक पोचमपल्ली साड़ी का काम होता है। इसे ध्यान में रखकर उन्होंने 'आसू मेकिंग मशीन' तैयार की है। इसकी कीमत करीब 25,000 रुपए है। इस मशीन पर ऑपरेटर की जरूरत नहीं होती, सिर्फ धागा लगाना होता है। एक दिन में आठ साड़ी के लिए धागा बुनाई का काम पूरा हो जाता है। मलेशम इस नवाचार का पेटेंट भी करवा चुके हैं। मलेशम को 2009 में एनआईएफ की ओर से राष्ट्रपति द्वारा और 2016 में प्रधानमंत्री के हाथों अमेजिंग पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मूल रूप से आंध्र प्रदेश की अनुराधा पाल ने दो अन्य साथियों की मदद से 'मेडिकल डाइग्नोस्टिक टेस्ट' की रिपोर्ट मात्र चार घंटे में देने वाली 'राइट बायोटिक : द फास्टेस्ट एंटी बायोटिक फाइंडर मशीन' तैयार की है।
हैदराबाद में बिट्स पिलानी से पीएचडी कर रहीं 31 वर्षीया अनुराधा कहती हैं, ''अभी तक 'यूरिनल इन्फेक्शन टेस्ट' की रिपोर्ट आने में दो से तीन दिन का समय लगता है और मरीज को उसके बदले 800 से 1,200 रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं। इस नई मशीन से जांच करवाने पर रिपोर्ट चार घंटे में ही मिल सकेगी और जांच मात्र 350 रुपए में हो जाएगी।'' यह मशीन कम वजन की और कहीं भी लेकर जाने में सुविधाजनक है और इसके लिए लैब टेक्नीशियन की जरूरत भी नहीं है। विशेषकर आशा वर्कर भी इसका आसानी से प्रयोग कर सकेंगी।
ऐसे हुई शुरुआत
11 दिसंबर, 2013 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने जन्मदिवस पर 'इनोवेशन स्कॉलर इन-रेजीडेंस प्रोग्राम' की घोषणा की जिसके बाद से 2014 से यह परम्परा शुरू हो गई। इस योजना का उद्देश्य नवाचार करने वाले ग्रामीण और जमीनी नवाचारियों को एक ही मंच पर लाकर उनकी हरसंभव मदद करना है। उनके नवाचार को उच्च तकनीक से लैस करने के साथ-साथ बाजार में बिकने योग्य भी बनाने पर जोर दिया जाता है। इस कड़ी में नवाचारियों के साथ राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान (एनआईएफ) का पूरा सहयोग रहता है, जो कि देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नवाचार करने वाले की खोज कर उनके नवाचार को विकसित कर आर्थिक रूप से उनकी मदद करते हैं। इससे नवाचार करने वाले न केवल खुद की आर्थिक स्थिति को मजबूत करते हैं, बल्कि दूसरे लोगों को रोजगार देने में भी सक्षम हो जाते हैं।
क्या है मेहमान नवाचारी को चुनने की प्रक्रिया
राष्ट्रपति की सचिव अमिता पॉल के नेतृत्व में गठित सात सदस्यीय समिति राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट पर प्राप्त हुए सभी आवेदनों पर विचार कर अंतिम सूची तैयार करती है। नवाचारियों का चयन होने पर एनआईएफ की देखरेख में राष्ट्रपति भवन में हर वर्ष करीब दो सप्ताह उन्हें अतिथि के रूप में रखा जाता है। 2014 में पांच, 2015 में 10 और 2016 में सात नवाचारियों को राष्ट्रपति भवन में बतौर मेहमान रखा गया। राष्ट्रपति भवन से लौट चुके ये सभी सदस्य एनआईएफ के संपर्क में बने रहेंगे और समय-समय पर उनकी हरसंभव मदद की जाएगी।
एनआईएफ को केन्द्र सरकार की ओर से 2015-16 में 12 करोड़ रुपए का बजट प्राप्त हुआ था। देश के 575 से अधिक जिलों में एनआईएफ का संपर्क बना हुआ है और 746 नवाचारियों के पेटेंट जमा करवाए जा चुके हैं जिनमें से 39 पेटेंट भारत में, जबकि पांच अमेरिका में जमा हो चुके हैं।
एनआईएफ के निदेशक डॉ. विपिन कुमार बताते हैं ''एनआईएफ द्वारा देश के किसी भी राज्य से पत्र व्यवहार करने वाले नवाचारी को उसी की भाषा में पत्र का जवाब दिया जाता है।'' एनआईएफ से जुड़े 100 से अधिक नवाचारियों का सालाना कारोबार लाखों में जबकि 35 नवाचारियों का कारोबार करोड़ों तक पहंुच चुका है। वे बताते हैं कि देश के किसी भी राज्य में रहने वाला कोई नवाचारी अपना नवाचार सीधे एनआईएफ को भेज सकता है या वेबसाइट ल्ल्रा.ङ्म१ॅ.्रल्ल पर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकता हैं। राष्ट्रपति द्वारा नवाचारी को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से शुरू की गई इस योजना के सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं, इससे दूर-देहात में आए दिन छोटे जुगाड़ तैयार करने वाले युवाओं की प्रगति का रास्ता भी सरल होता दिखाई दे रहा है।
अमरुत लाल, 71 वर्ष, गुजरात
इन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की मदद के लिए ऐसी ट्रॉली बनाई है जिसे बैलगाड़ी की तर्ज पर बैल खींच सकें। इसमें लगे हैंडल की मदद से किसान ट्रॉली को आसानी से ऊपर उठा सकते हैं जिससे उसमें भरा माल उपयुक्त स्थान पर उतारने में मदद मिलती है। कुएं से रस्सी खींचकर बाल्टी में पानी भरने वाली महिलाओं की मदद के लिए इन्होंने स्टॉपर पुली तैयार की है। जिसकी बाजार में खूब मांग है -सी. मलेशम, 44 वर्ष, तेलंगाना
सी. मलेशम ने पोचमपल्ली में साड़ी के लिए 'आसू मेकिंग मशीन' तैयार की है। मशीन के बिना यार्न पर साड़ी का धागा तैयार करने में एक महिला को कई हजार बार हाथ से धागा पिरोना होता था और इस काम में एक से दो दिन लग जाते थे। तेलंगाना के नालगोंडा और वारंगल जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार की महिलाएं इसी कार्य से अपना जीवनयापन करती हैं। अभी तक उनकी 700 से अधिक मशीनें बिक चुकी हैं।
अनुराधा पाल, 31 वर्ष, आंध्र प्रदेश
हैदराबाद से पीएच. डी. करने वाली अनुराधा ने चार घंटे में रिपोर्ट देने वाली 'राइट बायोटिक : द फास्टेस्ट एंटी बायोटिक फाइंडर मशीन' तैयार की है। वे महिलाओं की मेडिकल डाइगनोस्टिक टेस्ट की रिपोर्ट देरी से मिलने पर संक्रमण काफी बढ़ने को लेकर चिंतित थीं। इस मशीन को बाजार में उतारने के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। 2017 की शुरुआत में यह मशीन बाजार में उपलब्ध हो सकेगी।
एल. बी. राल्ते, 49 वर्ष, मिजोरम
राल्ते उत्तर-पूर्व में बांस निर्मित वस्तुओं को तैयार करने वाले लोगों का दर्द जानते थे। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 'बैंम्बू स्पिलंट मेकिंग मशीन' तैयार की। उन्होंने बांस निर्मित वस्तुओं को सरलता से तैयार करने की मशीन बनाकर श्रमिकों का संकट दूर कर दिया है, वरना बांस काटने के दौरान श्रमिकों को खतरा बना रहता था। इससे न केवल समय की बचत हुई है, बल्कि लोगों को रोजगार भी मिलने लगा है।
जी. के. रत्नाकर, 59 वर्ष, कर्नाटक
रत्नाकर ने 'मोडिफाइड हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी टरबाइन' तैयार कर बिजली से अछूते गांवों को भी जगमगा दिया। एक टरबाइन से एक दिन में 18,000 किलोवाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। इस योजना का लाभ न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी किया जा सकता है। सड़कों पर लगी स्ट्रीट लाइट भी इससे जलाई जा सकती हैं। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में भी यह कारगर है।
मुश्ताक अहमद डार, 34 वर्ष, जम्मू
इन्होंने बिजली के खंभों पर चढ़ने वाले उपकरण, अखरोट का हरा छिलका हटाने और अखरोट तोड़ने वाली मशीन तैयार कर जम्मू-कश्मीर के लोगों को काफी राहत पहंुचाई है। इन मशीनों की मदद से अखरोट का छिलका खराब नहीं होता और उसे तोड़ने में ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ती। एनआईएफ की ओर से उन्हें आर्थिक मदद भी दी गई है और उनकी मशीनें बिकनी शुरू हो गई हैं।
'इनोवेशन स्कॉलर इन-रेजीडेंस प्रोग्राम और एनआईएफ ने किया सपना साकार
राष्ट्रपति भवन में 2014 में आयोजित पहले बैच के सदस्य धर्मवीर कम्बोज कभी पुरानी दल्लिी में रक्शिा चलाते थे और उन्होंने जब 'मल्टी प्रोसेसिंग मशीन' से तैयार गुलाब जल और एलोवीरा का जूस बेचना शुरू किया तो एनआईएफ ने उन्हंे आर्थिक मदद देने के साथ-साथ विभन्नि मंचों पर पहंुचाकर आज उद्यमी बनवा दिया। धर्मवीर बताते हैं, ''आज मेरा सालाना कारोबार 70 से 75 लाख रुपए तक पहंुच चुका है।'' उनके करीब 30 से अधिक उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं और उनके द्वारा बनाई गई मशीन की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। उन्हें आज विदेशों से भी उसके ऑर्डर मिल रहे हैं। एनआईएफ ने समय-समय पर उन्हें आर्थिक सहायता दी और केन्या भी भेजा। पिछले वर्ष अक्तूबर माह में दल्लिी में आयोजित अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन में भी धर्मवीर की स्टॉल लगवाई गई जिस ओर जम्बिावे के राष्ट्राध्यक्ष एक मशीन खरीदकर ले गए। हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित कृषि उन्नति मेले में हरियाणा उद्यान विभाग की ओर से मशीन और उत्पादों की दल्लिी में प्रदर्शनी लगवाई गई वहां उनकी मशीन को खूब सराहा गया।
2015 में राष्ट्रपति भवन में मेहमान बने उद्यमी शांतनु पाठक द्वारा तैयार 'केयर मदर' एक मोबाइल एप्लीकेशन है जिसमें एक हेल्थ किट भी है। इस एप की मदद से शहर में बैठे डॉक्टर दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं की रिपोर्ट आसानी से देख सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उचित सलाह भी दे सकते हैं। इस एप की मदद से आज करीब 2,000 गर्भवती महिलाओं का रिकॉर्ड एप पर अपलोड किया जा चुका है जिसमें से करीब 40 फीसद महिलाएं सकुशल बच्चों को जन्म दे चुकी हैं। शांतनु बताते हैं,'' मैंने अपने तीन अन्य साथियों के साथ मिलकर 2014 में यह एप तैयार किया था जिस पर उस समय करीब 35,000 रुपए का खर्च आया था। हमारा उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं की चिंताजनक स्थिति में सुधार लाना था। उसके बाद एनआईएफ के संपर्क में आने से मेरा 2015 के ''इनोवेशन स्कॉलर इन-रेजीडेंस प्रोग्राम' में चयन हो गया।'' राष्ट्रपति भवन में रहने के दौरान उनका विभन्नि एजेंसियों से संपर्क हुआ। इसी कारण उत्तर प्रदेश और बिहार में 'वर्ल्ड हेल्थ पॉर्टनर' और यूनिसेफ के साथ साझा काम करने का अवसर मिला। अभी पायलट प्रोजेक्ट यूएन हेबीटैट के तहत मुंबई के गोवंडी मानखुर्द इलाके में एक वर्ष में 700 गर्भवती महिलाओं की रिपोर्ट तैयार करने का कार्य मिला है। इनका औरंगाबाद, हैदराबाद और मुंबई की विभन्नि बस्तियों में कार्य चल रहा है। करीब 20 अस्पतालों के डॉक्टर 'केयर मदर' से जुड़ चुके हैं, जो कि गर्भवती महिलाओं की रिपोर्ट एप पर अपलोड कर मरीज पर पूरी निगरानी रखते हैं।
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