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गत दिनों दिल्ली में यमुना तट तीन दिन के लिए एक तीर्थ-सा बन गया था। इस तीर्थ में दुनिया भर के उन लोगों ने हिस्सा लिया, जो संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानते हैं, इस धरा पर शांति चाहते हैं, भाईचारा पर बल देते हैं, इस ब्रह्मांड में मनुष्यों के निवास के एकमात्र स्थान—इस पृथ्वी—को सभी तरह की समस्याओं से मुक्त करना चाहते हैं, और जिन्हें विश्वास है कि दुनिया के विभिन्न देशों की कला-संस्कृति में समाहित सामंजस्य, शांति और समन्वय के सूत्रों के माध्यम से संघर्षों से त्रस्त इस दुनिया को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
ये लोग आर्ट ऑफ लीविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर के आह्वान पर 11-13 मार्च तक आयोजित विश्व सांस्कृतिक महोत्सव में भाग लेने आए थे। इसका आयोजन आर्ट ऑफ लिविंग के 35 वर्ष पूरे होने पर किया गया था। इससे पहले 2011 में 30 वर्ष पूरे होने पर बर्लिन (जर्मनी) के आस्विज में विश्व सांस्कृतिक महोत्सव हुआ था। यह वही जगह है, जहां हिटलर ने यहूदियों को यातनाएं दी थीं।
दिल्ली में आयोजित महोत्सव के पहले दिन 11 मार्च को दोपहर के बाद से ही महोत्सव स्थल की ओर जाने वाली सड़कें वाहनों से जाम हो गईं। जो लोग निजी वाहनों से जा रहे थे, वे घंटों जाम में फंसे रहे। 10 मिनट का रास्ता तय करने में उन्हें डेढ़ घंटे से भी ज्यादा समय लगा। जो लोग सार्वजनिक वाहन से जा रहे थे, वे वाहन छोड़कर पैदल चलने लगे। इसी बीच अचानक मौसम खराब हो गया। अपराह्न करीब 3 बजे बारिश शुरू हुई, जो रुक-रुक कर सवा चार बजे तक होती रही। चूंकि नदी का किनारा था इसलिए सारे रास्ते कच्चे थे। बारिश के बाद कार्यक्रम स्थल तक जाने वाली सारी पगडंडियां और सड़कें कीचड़ से पट गईं। लेकिन इस महोत्सव के प्रति लोगों में ऐसी अगाध श्रद्धा थी कि वे उन्हीं कीचड़ भरे रास्तों पर चल पड़े। लोग एक हाथ में महोत्सव का निमंत्रण कार्ड पकड़े हुए थे, तो दूसरे हाथ से कपड़े संभाल रहे थे। जिन महिलाओं के साथ छोटे-छोटे बच्चे थे, उनके लिए यह रास्ता ज्यादा चुनौती भरा था। फिर भी वे पीछे लौटने के लिए तैयार नहीं थीं। गोद में बच्चा, कंधे पर पर्स और कपड़ों को संभालती ये महिलाएं धीरे-धीरे आगे बढ़ती रहीं। रास्ते में गुड़गांव से आई रेणु पाठक मिलीं। इतनी जहमत उठाकर महोत्सव में क्यों जा रही हैं? इस पर उन्होंने कहा, ''आर्ट ऑफ लिविंग और श्री श्री रविशंकर के प्रति ऐसी श्रद्धा है कि कोई भी बाधा उनके कार्यक्रमों में जाने से रोक नहीं पाती।''
लोग संभल-संभलकर चल रहे थे। बच्चे और अधिक आयु के लोग एक-दूसरे का सहारा लेकर आगे बढ़ रहे थे, लेकिन फिसलन ऐसी थी कि अनेक लोग संभल नहीं पाए और गिर पड़े। उनके कपड़े कीचड़ से सन गए। इसके बावजूद इन लोगों ने हार नहीं मानी और 4-5 किलोमीटर तक पैदल चलकर कार्यक्रम स्थल तक पहुंचे।
शाम के पांच बजते-बजते करीब तीन लाख लोग वहां जमा हो गए। महोत्सव के इतने विरोध के बावजूद बड़ी संख्या में लोगों के यहां आने से आयोजकों का हौसला बढ़ा। इनमें ज्यादातर ऐसे लोग थे, जिन्हें अपने पैरों से एक धूल-कण का चिपकना भी अपनी शान के खिलाफ लगता है। इन लोगों ने न कीचड़ की परवाह की और न ही बरसात की और कार्यक्रम स्थल पर लगाई गई गीली कुर्सियों पर बैठ गए। कुछ ही देर में वहां बिछाई गई सभी 2,90,000 कुर्सियां भर गईं, लेकिन लोगों का आना नहीं थमा। जहां भी पैर रखने भर की जगह मिली, वहीं जम गए। जन सैलाब देखकर व्यवस्था में लगे कार्यकर्ता और पुलिस वाले अधिक सक्रिय हो गए। लोगों को संभालना उनके लिए बड़ी मुसीबत बना। जगह-जगह खड़े लोगों को निर्देश दिए गए कि वे चलते रहें, कहीं ठहरें नहीं। उधर विशाल मंच पर भारतीय परिधान में सुसज्जित 1,050 वैदिक पंडित भी पधारे। आते ही उन्होंने गणेश वंदना शुरू की। वंदना की ध्वनि कानों तक पहुंचते ही लोग अपनी थकान और परेशानियों को भूलकर शांत हो गए। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, श्री श्री रविशंकर मंच पर पधारे। उनके साथ अनेक विदेशी नेता और कई मत-पंथों के प्रतिनिधि भी थे। इनमें प्रमुख थे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रुदू, नेपाल के उप प्रधानमंत्री कमल थापा, फिलीपींस के राष्ट्रपति वेनजुनो एक्युनो तृतीय, कोलंबिया के राष्ट्रपति जुआन मेनुएल और राज्यसभा के उप सभापति पी.जे. कुरियन।
गणेश वंदना के बाद वैदिक मंत्रोच्चारण शुरू हुआ। इसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने दीप जलाकर महोत्सव का औपचारिक उद्घाटन किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा, ''विश्व को केवल आर्थिक हितों से ही नहीं जोड़ा जा सकता है, बल्कि मानवीय मूल्यों से भी जोड़ा जा सकता है। भारत के पास वह सांस्कृतिक विरासत और अधिष्ठान है, जिसकी तलाश दुनिया को है। हम दुनिया की इन आवश्यकताओं को कुछ न कुछ मात्रा में, किसी न किसी रूप में परिपूर्ण कर सकते हैं, लेकिन यह तब हो सकता है जब हमें हमारी इस महान विरासत पर गर्व हो, अभिमान हो।''
श्री श्री रविशंकर ने कहा, ''भारत की प्राचीन धारणा है कि पूरा विश्व एक परिवार है। महोत्सव के माध्यम से भारत की इसी विशेषता को दुनिया के कोने-कोने तक ले जाना है।'' उद्घाटन के बाद अर्जेंटीना की विश्वप्रसिद्ध गायिका पैट्रीशिया सोशा ने 'श्रीराम जय राम, जय जय राम' की ऐसी धुन बिखेरी कि लोग जहां खड़े थे, वहीं झूमने लगे। मत-पंथ की सारी दीवारें टूट गईं, देशों की सीमाएं मिट गईं..। स्वदेशी-विदेशी, हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, बच्चे-बूढ़े हर किसी के मुंह से श्रीराम शब्द का ही उच्चार हो रहा था।
इसके बाद भारतीय और विदेशी कलाकारों ने मिलकर नौ संगीत रचनाओं को प्रस्तुत किया। 60 तरह के वाद्य यंत्र बजाए गए, जिनमें प्रमुख थे तबला, ट्रम्पेट, हारमोनियम, बांसुरी, ढोल, बीन आदि। 1,700 कलाकारों ने कथक नृत्य और इतने ही कलाकारों ने भरतनाट्यम प्रस्तुत किया। 1,500 कलाकारों ने सामूहिक रूप से मोहिनीअट्टम और कथकली नृत्य प्रस्तुत किया। ये कलाकार भारत के कोने-कोने से आए थे। ये सभी करीब तीन महीने से अपने-अपने घर पर अभ्यास कर रहे थे। महोत्सव से एक दिन पहले मंच पर सभी कलाकारों ने पूर्वाभ्यास भी किया। उद्घाटन समारोह में विदेशी कलाकारों ने भी अपनी कला से सबका मन मोह लिया। अर्जेंटीना, बुल्गारिया, अफ्रीका, जापान, लिथुआनिया, ब्राजील, रूस, थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों के कलाकारों ने भगवान शिव, भगवान श्रीराम और देवी की स्तुति कर भारतीयों को चकित कर दिया। बुल्गारिया के 500 कलाकारों ने होरो नृत्य, 650 अफ्रीकी ढोलवादकों ने अफ्रीकी धुन और 300 थाई नर्तकों ने ऐसा रंग जमाया कि पता ही नहीं चला कब रात के 10 बज गए!
इसके बाद लोगों को घर वापस जाने की चिंता सताने लगी। उनकी चिंता जायज थी। उन्हें फिर से उन्हीं कीचड़ भरे रास्तों को पैदल ही तय करना था, वह भी रात में। हालांकि पूरे रास्ते में रोशनी की अच्छी व्यवस्था थी। उन्हें बताया गया कि मयूर विहार की ओर जाएंगे तो सबसे कम चलना पड़ेगा- करीब 4 किलोमीटर। अभी कुछ मिनट ही पैदल चले थे कि लोग बदबू के मारे नाक-मुंह सिकोड़ने लगे। एक-दूसरे से पूछने लगे कि यह बदबू कहां से आ रही है? उनमें से किसी ने कहा कि आगे यमुना नदी है। स्वयंसेवकों ने यमुना की सफाई की थी, इसलिए दुर्गंध थोड़ी कम हो रही थी। साथ चल रहे गाजियाबाद के पवन चतुर्वेदी कहने लगे,''इस महोत्सव के शुरू होने से पहले तो अनेक लोग चिल्ला रहे थे कि इससे यमुना प्रदूषित होगी और पर्यावरण को नुक्सान होगा। क्या वे लोग इसी यमुना की बात कर रहे थे? उनके रहते हुए यमुना का यह हाल है।'' महोत्सव के दूसरे दिन 12 मार्च को सुबह कामकाज में नैतिकता विषय पर एक संगोष्ठी हुई। होटल लीला (आनंद विहार) में आयोजित इस गोष्ठी में नेपाल के प्रसिद्ध उद्योगपति विनोद कुमार चौधरी, केन्द्रीय मंत्री नीतिन गडकरी, मैक्सिको के सांसद मरमिडो रायस पीटर, श्रीलंका की पूर्व मंत्री दामिनी लक्ष्मण, श्रीलंका के संस्कृति मंत्री रविन्द्र समरवीरा, फिलीपींस की महारानी सहित अनेक देशों के कुल 2,390 प्रतिनिधि शामिल हुए। इसका उद्देश्य था कारोबारी जगत और अध्यात्म जगत के बीच सामंजस्य बढ़ाना और इसके जरिए मानव कल्याण के कार्यों को गति देना। शाम को फिर से रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर शुरू हुआ, जो देर रात तक चला। इस अवसर पर भारतीय संस्कृति, भारतीय जीवन-मूल्यों और विरासत को संगीत और नृत्य के जरिए दिखाया गया। महोत्सव के अंतिम दिन 13 मार्च को सबसे पहले सर्वधर्म सम्मेलन हुआ। इसमें विभिन्न मत-पंथों के शीर्ष धार्मिक नेताओं और गुरुओं ने भाग लिया। इसमें अरब के अनेक देशों के मजहबी नेताओं और पोप के प्रतिनिधि की उपस्थिति चर्चा में रही।
समापन समारोह की सबसे आकर्षक प्रस्तुति रही 'कॉस्मिक रिदम'। इसमें अध्यात्म, योग और ध्यान की प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। इन्हीं तीनों विधाओं से जुड़े 4,600 कलाकारों ने 30 नृत्य प्रस्तुत किए। पाकिस्तानी सूफी नर्तकों ने यह बताने की कोशिश की कि यह दुनिया मानव को एक साथ रहने को प्रेरित करती है। यही इस महोत्सव का उद्देश्य था। -अरुण कुमार सिंह साथ में निशांत आजाद
महोत्सव की विशेषताएं
– उद्घाटन समारोह को दुनिया के 56 देशों के 12,000 शहरों में दिखाने का खास इंतजाम किया गया। श्री श्री के चैनल 'आनंदम' टीवी, श्रद्धा टीवी, एमएच-वन जैसे चैनलों ने तो पूरे कार्यक्रम को लाइव दिखाया। इसमें इंटरनेट का भी जमकर इस्तेमाल किया गया।
– महोत्सव के लिए दुनिया का सबसे विशाल मंच बनाया गया था। सात एकड़ जमीन पर बने इस मंच निर्माण से पर्यावरण को कोई नुक्सान न हो, इसका ख्याल रखा गया। इसके निर्माण में कंक्रीट और सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया और न ही कोई गड्ढा खोदा गया। पूरा मंच लोहे के स्तंभों से बना था। हर स्तंभ के नीचे लोहे की पटरी लगाई गई थी और उन्हीं पर उन्हें टिकाया गया था। मंच पर एक साथ 18,000 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। मंच का सबसे ऊपरी हिस्सा अतिथियों के लिए आरक्षित था। मंच के सबसे ऊपर महोत्सव में भाग लेने वाले देशों के झंडे लगाए गए थे।
– मंच के सामने बीच के हिस्से में विदेशी मेहमानों एवं बाएं और दाएं अन्य लोगों को इस तरह बैठाया गया कि पीछे बैठे लोगों को मंचीय कार्यक्रम देखने में कोई असुविधा न हो। इसके साथ ही समारोह स्थल पर जगह-जगह टीवी स्क्रीन लगाए गए थे।
– महोत्सव के लिए दुनिया के 56 देशों की सरकारों ने अपने प्रतिनिधि या शुभकामना संदेश भेजे।
– बाहर से आए कलाकारों और अतिथियों को ठहराने और खिलाने-पिलाने का इंतजाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक लाख से अधिक परिवारों ने किया।
– महोत्सव की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए 10,000 प्रशिक्षित स्वयंसेवकों को लगाया गया था। इन स्वयंसेवकों ने 11 मार्च की रात को 10 एकड़ में फैले कार्यक्रम स्थल से बरसाती पानी को निकाला। तभी दूसरे दिन का महोत्सव हो पाया।
– महोत्सव के लिए किसी सरकारी एजेंसी से बिजली नहीं ली गई। इसके लिए जगह-जगह जनरेटर लगाए गए थे।
– महोत्सव की सुरक्षा के लिए कुल 10,000 सुरक्षाकर्मी लगाए गए थे। इनमें दिल्ली पुलिस, एनएसजी, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, राजस्थान पुलिस और सीआईएसएफ के जवान और अधिकारी थे।
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