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तिल का ताड़ बनाने वाला मीडिया

by
Feb 29, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 29 Feb 2016 14:59:03

चौथा स्तम्भ

कांग्रेस जिस 'ब्रांड राहुल' को बार-बार ''रीलॉन्च करके भी नहीं बेच पाई, अब उसे स्थापित करने की जिम्मेदारी लगता है, मीडिया पर है। इंडिया टुडे ने अपना ताजा अंक देश के इस सबसे हास्यास्पद राजनेता को समर्पित कर दिया। इंडिया टुडे ही नहीं, कई दूसरे चैनलों, अखबारों और पत्रिकाओं को देखकर यही बात लगती है।

यह तब हो रहा है जब कांग्रेस के युवराज ने जेएनयू में देशद्रोही नारे लगाने वालों के साथ खड़े होकर अपने राजनैतिक करियर की सबसे बड़ी भूल की है। राहुल ही नहीं, मीडिया के कई मठाधीश भी जेएनयू मामले में देश का मूड समझने में बुरी तरह नाकाम रहे। 'भारत की बर्बादी' और 'भारत के टुकड़े' होने के नारों को सुनकर जब पूरा देश व्यथित और क्रोधित था, तो ये मठाधीश इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहे थे।

जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया गया तो नवभारत टाइम्स ने हेडलाइन दी: 'गुरु की फांसी का विरोध करने पर जेल'। मानो किसी ने भारत की बर्बादी के नारे सुने ही न हों। सामान्य लोग और पूर्वसैनिक बड़ी तादाद में जेएनयू की घटना पर नाराजगी जता रहे थे, लेकिन 2-3 चैनलों को छोड़कर किसी ने उनकी बात को सामने लाने की जरूरत नहीं समझी। आजतक, एबीपी न्यूज, एनडीटीवी चैनलों पर सारा जोर देशद्रोहियों के महिमामंडन और उनके परिवारों की कहानी दिखाने पर रहा।

कांग्रेस प्रायोजित प्रोपेगैंडा तंत्र ने भी काम जारी रखा। एक फर्जी वीडियो आया, जिसमें दावा किया गया कि 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे दरअसल विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने लगाए। इसे चैनल पर दिखाने में फंसने का डर था, लिहाजा एबीपी न्यूज के एक एंकर ने इसे ट्विटर पर जारी किया, जिसके बाद बाकायदा साजिश के तहत इसे फैलाया गया। क्या चैनल को अपने एंकर की इस हरकत का संज्ञान नहीं लेना चाहिए?

पटियाला हाउस कोर्ट में वकीलों के हंगामे को मीडिया ने सारे मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए इस्तेमाल किया। कुछ तथाकथित बड़े पत्रकारों ने मार्च निकाला। आपस में एक दूसरे के साथ खीसें निपोरते हुए सेल्फी खिंचवाई और घर चले आए। उन्हें लगा कि जनता बेवकूफ बन जाएगी। लेकिन जब टीआरपी के आंकड़ों में देशद्रोही नारों का साथ न देने वाले चैनलों की लोकप्रियता बढ़ती दिखी तो इनके सब्र का बांध टूट गया। अचानक इन्हें पूरी दुनिया काली नजर आने लगी। कॉर्पोरेट्स के लिए दलाली करते पकड़े जा चुके एक चैनल ने तो एक घंटे के लिए टीवी स्क्रीन ही काला कर लिया। यह सोशल मीडिया की ताकत है कि लोगों ने इस पाखंड को भी जल्द ही तार-तार कर दिया। इन संपादकों को तब बेचैनी महसूस नहीं हुई थी जब मुंबई के आजाद मैदान में पत्रकारों पर हमले के वक्त किसी चैनल ने नीचे की पट्टी में भी खबर नहीं चलाई थी।

मीडिया के मठाधीश अभिव्यक्ति की आजादी के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं, इसकी एक और मिसाल बिहार से सामने आई। यहां राष्ट्रीय जनता दल के एक विधायक पर एक नाबालिग से बलात्कार का आरोप लगा। पीडि़त बच्ची दलित है, लेकिन इस जानकारी को सिरे से गायब कर दिया गया। इस बात की पुष्टि तो नहीं की जा सकती, लेकिन ऐसा सुनने में आया है कि खुद लालू यादव ने कई संपादकों और पत्रकारों को फोन करके पीडि़त के दलित जाति का होने की बात छिपाने को कहा। जिस तरह से यह खबर दबाई गई, उससे इस बात का शक पुख्ता होता है।

दिल्ली में केजरीवाल सरकार का एक साल पूरा होने पर हर अखबार ने 3-4 दिन तक 2-2 पेज के खबरनुमा विज्ञापन छापे। एक बड़े समाचार समूह के पत्रकार ने सोशल मीडिया पर खुलकर लिखा कि उससे सकारात्मक खबरें लिखने को कहा गया है, वरना सरकारी विज्ञापन नहीं मिलेंगे। यह बात उन संपादकों के कानों तक नहीं पहुंची, जो मीडिया की स्वतंत्रता की मशाल लेकर मार्च करने निकले थे।

चैनल और अखबार ही नहीं, सरकार के खिलाफ झूठे प्रचार का एक और मोर्चा खोल रखा है समाचार एजेंसी पीटीआई ने। बीते 10-15 दिन में एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से कई ऐसी फर्जी खबरें 'प्लांट' कीं, जिन्हें चैनलों और अखबारों ने खूब जगह दी। एक खबर जारी हुई कि गृह मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि कन्हैया के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। पर जब यह खबर झूठी साबित हुई तो किसी ने इस बात पर खेद जताने की भी जरूरत नहीं समझी।

उधर हरियाणा में बड़े पैमाने पर हिंसा में कांग्रेस पार्टी का हाथ होने के पक्के संकेत मिल रहे हैं। लेकिन यह खबर भी मुख्यधारा मीडिया की प्राथमिकताओं में नहीं है। कुछ ऐसा ही हाल केरल में संघ के स्वयंसेवक सुजीत की खबर के साथ हुआ। यह एक राजनीतिक हत्या थी। आरोपी वामपंथी दलों के कार्यकर्ता हैं। अखलाक की मौत पर एक महीने तक पूरे देश को बदनाम करने वाले मीडिया ने सुजीत की निर्मम हत्या को पूरी तरह दबा दिया।

भाजपा के खिलाफ हर छोटी-मोटी खबर को तिल का ताड़ बनाने वाले मीडिया का व्यवहार चौंकाने वाला है। संतोष की बात यह है कि मुख्यधारा मीडिया का यह भ्रम तेजी से टूट रहा है कि उसके छिपाने से लोगों को सच्चाई का पता नहीं चल पाएगा।

   – नारद

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