उत्तर बंगाल/कराहते चाय बागान - चाय मजदूरों पर चर्चा ममता को नहीं सुहाती
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उत्तर बंगाल/कराहते चाय बागान – चाय मजदूरों पर चर्चा ममता को नहीं सुहाती

by
Feb 15, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 Feb 2016 12:53:37

उत्तर बंगाल में चाय बागान मजदूरों के हालात इस हद तक दयनीय हो चले हैं कि बदहाली के चलते बहुत से तो अपना रोजगार गवां चुके हैं तो कितने ही ऐसे हैं जो हताशा में डूबकर आत्महत्या कर चुके हैं। परिस्थिति की विकटकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन पिछले दिनों खुद सिलिगुड़ी गईं और राज्य सरकार तथा दूसरे संबंधित पक्षों के साथ इस मुद्दे पर गहन बातचीत की। लेकिन उस चर्चा से बहुत ज्यादा कुछ हासिल इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि केन्द्रीय मंत्री को हारकर राज्य की ममता सराकर को ही 'त्वरित कार्रवाई' करने के लिए कहना पड़ा। हालांकि डंकन्स उद्योग के स्वामी जी. पी. गोयनका ने हालांकि यह तो कहा कि समस्या को ''जल्दी ही सुलझा'' लिया जाएगा लेकिन वार्ताओं के कई दौर इससे ज्यादा 'ठोस' कुछ नहीं दे पाए। डंकन्स उद्योग के तिराई-डुअर्स दार्जिलिंग पहाड़ और उत्तरी दिनाजपुर सहित इलाके में 16 बदहाल चाय बागान हैं। श्रीमती सीतारमन की मानें तो कई मजदूर बेरोजगार हो चुके हैं जबकि ''बागान मजदूरों के साथ मेरी बातचीत में साफ झलका था कि वे काम करना चाहते हैं''। चाय बागान प्रबंधन को सता रहा आर्थिक संकट का डर पिछले दो महीनों में गहरा गया है, जहां कई हताश मजदूरों ने आत्महत्या जैसा कदम तक उठाया है। एक मोटे अनुमान के अनुसार  करीब 65 लोग कुपोषण अथवा आत्मत्यिा
की भेंट चढ़ चुके हैं।
ऊहापोह में फंसी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वैसे भी 2016 में होने वाले विधानसभा चुनावों में बहुत ज्यादा उलझी हुई हैं। शायद इसीलिए उन्होंने अनमना रुख दिखाते हुए कह दिया कि चाय बागान क्षेत्रों में होने वाली सभी आत्महत्याओं को बागान के मजदूरों से नहीं जोड़ा जा सकता है।
इस पर बाकी लोग सहमत नहीं हैं। दार्जिलिंग जिला वैधानिक सहायता फोरम ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में 8 दिसम्बर, 2015 को जनहित याचिका दायर करके मांग की कि चाय बागान मजदूरों की मौतों को रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए खासकर डंकन्स के स्वामित्व वाले बागान मजदूरों पर। दूसरी ओर, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा समर्थित दार्जिलिंग तराई डुअर्स बागान मजदूर संघ ने एलकेमिस्ट समूह के तहत कॉलेज  घाटी और पेशोक के चाय बगानो के प्रबंधन  के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ने की भी घोषणा कर दी है। छोटी काश्त के चाय बागान मालिकों और चाय उत्पादकों ने भी इस संकट के चलते कमर कस ली है और खुद को फिर से संगठित करने की कोशिश शुरू कर दी है। कुछ प्रभावित इलाकों में चाय मजदूरों ने खुद से 'आत्म प्रशासित' चाय फैक्टरियां चलाने के शुरुआती कदम उठाये हैं। मैनागुड़ी इलाके में जलपाईगुड़ी जिले के चाय बागान मजदूरों ने कम से कम 10 छोटी चाय फैक्टरियां चलाने का खाका तैयार कर लिया है। लेकिन जैसा कहा जाता है, रास्ता अभी लंबा है। जलपाईगुड़ी लघु चाय मजदूर संघ के अध्यक्ष विजय गोपाल चक्रवर्ती की मानें तो, बागानों को चलाने और प्रस्तावित फैक्टरी को खड़ा करने का कदम क्रान्तिकारी है क्योंकि लंबे समय से हताश मजदूर बहुत हद तक चाय एजेंटों और बड़ी कंपनियों की 'दया' पर ही निर्भर रहे हैं। मैनागुड़ी ख्ंाड में स्थानीय चाय की खेती करने वाले जीवन्त प्रधान कहते हैं, ''कई बार तो मन में आया कि चाय उपजाने को छोड़कर अपनी जमीन पर कोई और फसल उगालें। लेकिन आज के बदलाव दिखता है वे अपनी जमीन की असली ताकत यानी चाय बागानी को बनाए रखना चाहता हैं। अगर यह कोशिश अपेक्षित नतीजे देती है तो उसका काफी असर पड़ेगा।''
स्थानीय चाय उत्पादकों के कई समूह जमीन हासिल कर रहे हैं और अपनी खुद की मालिक-कर्मचारी संचालित सहकारी चाय फैक्टरियां लगाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में तो 25 लाख रूपये लगाकर 400 हेक्टेअर जमीन हासिल की जा चुकी है जहां खुद चाय उत्पादक चाय उगाएंगे और छोटी फैक्ट्री भी चलाएंगे। मैनागुड़ी खंड में कामयाबी की कुछ कहानियां सुनाई देनी लगी हैं। ये लोग कहते हैं, ''पानबाड़ी इलाके में 2012 में ऐसी ही एक ईकाई लगाई गई थी जो देश में पहली चाय उत्पादकों द्वारा संचालित अपनी तरह की फैक्टरी थी। कोशिश कामयाब रही थी। इसके बाद हमने ब्रह्मपुर मंे एक और फैक्टरी लगाई। दोनों फैक्टरियां अच्छी चल रही हैं।''
उत्तर दिनाजपुर लघु चाय उत्पादक संगठन के महासचिव देवाशीष पाल ने जलपाईगड़ी जिले में इस कदम का स्वागत किया है और कहा है कि दूसरे क्षेत्रों में भी इस तरीके की कोशिशें की जानी चाहिए।
दीदी अक्सर अपना आपा खो देती हैं। एक बार सिलीगुड़ी के दौरे में आत्महत्याओं के बारे में सवाल पूछे जाने पर वे बुरी तरह नाराज हो गई थीं। लेकिन इससे स्थानीय पत्रकार और अधिकारी खास हैरान नहीं हुए। बौखलाई दीदी ने पत्रकारों को हड़काया कि असली तस्वीर पेश की जानी चाहिए। इसके बाद दीदी ने राजनीति की खुराक पिलाते हुए अपना जाना पहचाना दोषारोपण वाला खेल खेला।
दीदी ने पूर्व वाम मोर्चा सरकार की भर्त्सना की और कहा कि उसने छोटे चाय उत्पादकों औगर चाय बागान मजदूरों के लिए 'कुछ नहीं किया'। वे बोलीं, ''दूसरी तरफ हमें देखिये। हमने चाय बागान मजदूरों के लिए 100 करोड़ रुपये का एक बड़ा कार्यक्रम घोषित किया है।'' लेकिन सचाई यह है कि, दीदी की सरकार ने भी जमीनी स्तर पर कुछ खास काम नहीं किया है।
मिसाल के लिए जमीन पर निजी पट्टा खत्म करने वाला बांदापानी चाय बागान नियंत्रण 2014 में राज्य सरकार को सौंपा गया था फिर भी चार साल से बंद चाय बागान आज भी शुरू नहीं हो पाए हैं। ममता के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी-कांग्रेस, माकपा, भाजपा, गोरखा मोर्चा और इन दलों से संबद्ध मजदूर संघ भी कहते हैं कि तृणमूल के राज में हालात बदतर हो
गए हैं। गोरखा मोर्चा से संबद्ध हिमालयन प्लान्टेशन वर्कर्स ने अब धमकी दी है कि मार्च तक वे अपना आन्दोलन तेज कर देंगे। वे दार्जिलिंग के जिलाधिकारी अनुराग श्रीवास्तव से मिलकर मांग कर चुके हैं कि वे पानीघटा और सिलीगुड़ी के पास कुर्सियांग उप प्रखंडों में बंद पड़े चाय बागानों के मामले में दखल दें। मजदूर संगठन ने उनसे मांग की है कि वे बंद पड़े चाय बागानों के मालिकों से जमीनें लेकर मजदूरों में बांट दें। हालांकि प्रशासन ने
इस बात को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया है कि बागानी की जमीन इस तरह से बांटी नहीं जा सकती।
31 दिसंबर, 2015 को सिलीगुड़ी के महापौर और एक स्थानीय मार्क्सवादी नेता अशोक भट्टाचार्य ने घोषणा कि वाम मोर्चे के 23 पार्षद और एक निर्दलीय दिसंबर के अपने निजी भत्तों में से चाय मजदूरों की मदद करेंगे। उन्होंने ममता शासन के उस उत्तर बंग मेले पर 50 करोड़ रुपये खर्च करने पर तीखा कटाक्ष किया, जिसके तहत इलाके के तमाम युवा क्लबों को 2-2 करोड़ रुपये दिये जाने थे।  उन्होंने कहा, ''मुख्यमंत्री और राज्य सरकार को इसके बजाय चाय मजदूरों के साथ खड़े होना चाहिए था। '' लेकिन अफसोस की बात है कि निराश चाय मजदूरों और छोटे चाय उत्पादकों के लिए कहीं से राहत की किरण दिखाई नहीं दे रही है। बिमला छेत्री नामक एक बागान मजदूर कातर स्वर में कहती हैं, ''अकाले मृत्यूर तालिका बेरे चौलेछे…''(हताश लोगों की मौतों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही है।)
कभी देश में कमाऊ उद्योग माने जाने वाले उत्तर बंगाल के चाय बागानों में आज भूख और बदहाली का वातावरण पसरा है। कुपोषण के चलते बड़ी तादाद में चाय बागान मजदूर बेमौत मारे जा रहे हैं।    – नीरेन्द्र देव

दर्द, मृत्यु और याचिकाएं
17 जनवरी,2016 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के दखल पर डंकन्स चाय बागान के स्वामित्व वाले गुंगरामपुर चाय बागान में एक लोक अदालत बैठाई गई।   इसने 25 मजदूरों की याचिकाओं को सुना और प्रबंधनक को कर्मचारी निधि, ग्रेच्युटी और पेंशन के संबंध में अनिमितताओं को दूर करने के लिए 3 महीने का समय दिया।
दिसंबर,2015 तक 65 चाय मजदूर आत्महत्या कर चुके थे।
मई,2015 से कभी उत्तर बंगाल के चाय उद्योगों में सबसे बड़ी मानी जाने वाली डंकन्स चाय फैक्टरी बंद पड़ी है।
डुअर्स चाय बागान कामगार संघ के कई कामगार कहते हैं कि उनको फरवरी,2015 से वेतन नहीं दिया गया है।
केन्द्र मामले में दखल देने की कोशिश कर रहा है। केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन ने तमाम पक्षों और राज्य सरकार के साथ बैठकें की हैं। ये बैठकें सिलीगुड़ी और गुवाहाटी में हुई हैं।

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