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शऽऽऽ श…कोई है!

by
Nov 28, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Nov 2016 15:15:15

 

सीमा पार आतंकी अड्डों और सीमा के भीतर कालेधन- इन दो सर्जिकल स्ट्राइकों के बाद भारत पर साइबर हमले का खतरा गहराता जा रहा है। कालाधन आतंकियों की खाद पानी रहा है। इसलिए अब युद्ध सीमा पर नहीं बल्कि घरों के अंदर लड़े जा रहे हैं जो कई बार हथियारबंद युद्धों से ज्यादा खतरनाक और नुकसान पहुंचाने वाले साबित होते हैं। राष्ट्र की सुरक्षा के साथ ही व्यक्ति की निजता की चिंता करने का समय

 

 

अजय विद्युत

 

भारत की चुनौती इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि हम अशांत पड़ोसियों से घिरे हैं और पाकिस्तान व चीन में साइबर हैकिंग उनकी सेना का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि साइबर हमले की जद में पूरी दुनिया है लेकिन हमें अपनी साइबर सुरक्षा को और चाक-चौबंद करने की जरूरत है। चूंकि ये हमले विदेश से होते हैं इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद के बिना इन्हें रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा। महाशक्ति अमेरिका तक चीनी साइबर हमलों का शिकार हो चुका है। साइबर जासूसी या साइबर हमले एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। साइबर हमले में संवेदनशील जानकारियों वाली महत्वपूर्ण वेबसाइटें हैक कर उन्हें क्षति पहुंचाई जाती है और जानकारी चुराई जाती है। वहीं साइबर जासूसी में महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की केवल जानकारी चुराई जाती है।

भारत की खुफिया सूचनाओं तक पहुंच बनाने के लिए चीनी हैकरों की पूरी फौज तैनात की गई है। जानकार बताते हैं कि चीन सॉफ्टवेयर और आईटी सामानों के साथ मालवेयर भी भेजता है। यह एक प्रकार का सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जिसे हैकर्स कंप्यूटर से पर्सनल डाटा चोरी करने के लिए डिजाइन करते हैं। मालवेयर आपकी निजी फाइलों तक पहुंचकर उन्हें दूसरी किसी डिवाइस में ट्रांसफर कर सकता है। इसके जरिए हैकर्स आपकी सूचनाएं, फोटो, वीडियो, बैंक या अकाउंट से जुड़ी जानकारी चुरा सकते हैं। एनटीआरओ की रिपोर्ट बताती है कि चीन हमारे प्रतिष्ठानों की सबसे ज्यादा साइबर जासूसी कराता है और गृह मंत्रालय की मानें तो ज्यादातर साइबर हमले प्रधानमंत्री कार्यालय, विदेश मंत्रालय और डीआरडीओ जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विभागों पर किए जाते हैं जो कभी-कभी कामयाब भी हो जाते हैं। आतंकवाद के जरिए छद्म युद्ध लड़ रहे पाकिस्तान ने भी हमारे खिलाफ साइबर युद्ध छेड़ रखा है और वह अब तक पांच सौ से ज्यादा भारतीय वेबसाइटों को हैक कर चुका है। यहां तक कि उसने बाकायदा भारत को विखंडित करने की हिमाकत भी की है। ध्यान दें कि 2013 में असम दंगों के दौरान साइबर जगत में अनर्गल प्रचार के कारण पूर्वोत्तर के लोग बेंगलुरु को भागने लगे थे। बाद में साइबर विशेषज्ञों ने पता लगाया कि भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए इन खबरों को पाकिस्तान चलवा रहा था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साइबर 'वारफेयर' को रक्तविहीन युद्ध बताया है और अब भारत इससे निबटने की तैयारियों में जी-जान से जुटा है। पहले की सरकारों ने साइबर सुरक्षा पर खास ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण इस क्षेत्र में हम काफी कमजोर रहे हैं। भारत में हर साल कोई चार करोड़ से ज्यादा साइबर अपराध होते हैं। पिछले कुछ वर्षांे में सरकार ने इसे रोकने के लिए आईटी एक्ट, साइबर लॉ और साइबर सिक्यूरिटी पॉलिसी जैसे कानूनों को मजबूत बनाकर दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन हमलों से हम दो तरीकों से निबट सकते हैं। दुश्मन जाने-पहचाने हैं। रक्षात्मक के साथ साथ हमें उन पर 'काउंटर अटैक' भी करने होंगे। देश की सुरक्षा व महत्वपूर्ण जानकारियों से जुड़ी सामग्री को बचाने के लिए हमें 'एथिकल हैकरों' की बड़ी संख्या में जरूरत है। देश में जनता व्यापक पैमाने पर इंटरनेट का तो उपयोग करती है लेकिन उसके खतरों के प्रति पर्याप्त सचेत नहीं है, उसे जागरूक करना होगा। आगे के क्रम में हम जानेंगे कि साइबर नोटबंदी के बाद कैसे हम नकदी पर निर्भरता कम कर ई पेमेंट और ई वॉलेट के जरिए अधिक सुरक्षा और आसानी से भुगतान कर सकते हैं। इंटरनेट ने कैसे हमारी निजता की सीमा में पैठ बना ली है। सोशल साइटों पर हमारी निजता ज्यादा जरूरी है या देश की सुरक्षा और इन तमाम खतरों से हम कैसे सुरक्षित रह सकते हैं।

 

'बैंक में जमा धन जितना ही सुरक्षित है ई-वॉलेट'

 

ई-बैंकिंग, ई-पेमेंट, ई-वॉलेट की तकनीक नकद लेनदेन के बजाय ज्यादा सुदृढ़ और कुशल है। लेनदेन में आसानी बढ़ेगी। लेकिन साधारण नागरिकों को तकनीकी की जानकारी पर जोर देना होगा और साइबर सुरक्षा को और सुदृढ़ करना होगा।

 

ए.के. भट्टाचार्य   संपादकीय निदेशक बिजनेस स्टैंडर्ड

 

 

नोटबंदी के बाद पैसे की तात्कालिक समस्या तो है। लेकिन ई-मनी या ई-वॉलेट ने उसका एक कारगर विकल्प दिया है। इसमें आपका पैसा ठीक उसी तरह से सुरक्षित है जैसे बैंकों में जमा धन या आपके हाथ में नकदी का होना। सुरक्षा की दृष्टि से इनमें कोई अंतर नहीं है। और सुविधा यह है कि यह कैशलेस (नकदी विहीन) है। आपको जगह-जगह खरीदारी या दूसरे भुगतानों के लिए रुपये साथ नहीं ले जाने पड़ते। अगर आपका बैंक अकाउंट है, डेबिट या क्रेडिट कार्ड है तो उससे आप सीधे इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट में पैसा हस्तांतरण कर सकते हैं और ई-भुगतान के जरिए अपनी जरूरत का सामान ले सकते हैं। मान लीजिए, आप परचून की दुकान पर जाते हैं। वहां कुछ सामान खरीदते हैं। अगर आपके पास पेटीएम या ऐसी ही किसी कंपनी का वॉलेट है तो आप उससे सामान की कीमत चुका सकते हैं। आपको नकदी की आवश्यकता नहीं है।

जिसके पास अत्याधुनिक फोन हंै और उसके पास अगर जनधन योजना से एक बैंक खाता भी होगा तो वह अपने खाते से ई वॉलेट में पैसे हस्तांतरण कर सकता है और फिर वॉलेट से अपना भुगतान कर सकता है। लेकिन अभी भी कई लोग हैं जिनके पास अत्याधुनिक फोन रखने की सामर्थ्य नहीं है। कईयों के पास बैंक खाता भी नहीं है। मान लीजिए, अभी हमारी तीस करोड़ जनसंख्या मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल करती है। तो यही लोग ई-भुगतान या ई-वॉलेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि देश में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या करीब सौ करोड़ है। अगर हम कैशलेस इकोनमी (नकदी विहीन अर्थव्यवस्था) की बात करें, ई-कॉमर्स और ई-वॉलेट की बात करें तो फीचर फोन इस्तेमाल कर रहे ये सत्तर करोड़ लोग उसका लाभ तभी ले पाएंगे जब उनके पास स्मार्टफोन होगा।

कुछ लोगों के मन में ई-कॉमर्स या ई-वॉलेट में धन की सुरक्षा को लेकर आशंकाएं हैं। कुछ समय पहले बैंकों से गुप्त जानकारियां चोरी हुईं थीं। एटीएम से कुछ लोगों के पैसे चोरी हो गए थे। उस मामले में एक वेंडर की असतर्कता से लोगों के पैसे विदेशों में चले गए थे। मुझे लगता है कि हमारे देश में बैंकिंग और 'फाइनेंशियल रेगुलेशन' खराब नहीं है पर उसे और भी सुदृढ़ और अच्छा होना है और इसके लिए साइबर सुरक्षा की बहुत सख्त जरूरत है। साइबर हमले से महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों से गुप्त जानकारियां चोरी हो सकती है, इसकी आज के समय बहुत ही आशंका रहती है। इसलिए इसकी निगरानी के साथ ही साइबर नियम-कानून अच्छे होने चाहिए।

एक बात और ई-बैंकिंग, ई-पेमेंट, ई-वॉलेट की तकनीक नकद लेनदेन के बजाय ज्यादा सुदृढ़ और। कुशल है। इससे उत्पादकता लाभ बहुत ज्यादा होगा और लेनदेन में आसानी बढ़ेगी। लेकिन इसके लिए दो काम करने होंगे। पहला, साधारण नागरिकों को तकनीकी की जानकारी पर जोर देना। दूसरा, साइबर सुरक्षा को और भी सुदृढ़ करना। अगर इन दो मोर्चांे पर हम ठीक से काम नहीं कर पाए तो ई-भुगतान व्यवस्था की तमाम अच्छाइयों का हम पूरा उपयोग नहीं कर पाएंगे। हालांकि साधारण लोगों में तकनीकी जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकार का डिजिटल इंडिया कार्यक्रम काफी जोरशोर से चल रहा है।

(अजय विद्युत से बातचीत पर आधारित)

 

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