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खुलासे की समय सीमा सितंबर में बीत जाने के बाद आय के अघोषित अम्बारों पर 'मुद्रा परिवर्तन' की कुल्हाड़ी के प्रहार से खलबली जरूर है मगर ज्यादा दर्द उन्हें, जिन्होंने अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई। एकाएक आए इस आर्थिक भूकंप से कई राजनीतिक चूलें हिल गई हैं। काले धन पर निर्णायक कार्रवाई के बाद कुनबा पार्टियों की कराहें बता रही हैं कि चोट गहरी है और दर्द तीखा।
मधुकर मिश्र
सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यों है, गीतकार शहरयार की लिखी ये पंक्तियां उन तमाम लोगों के चेहरे की हकीकत बताने के लिए काफी हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मास्टर स्ट्रोक के चलते हलकान हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद वे अपना हाले दिल बयां नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल, मामला दिल का नहीं, बल्कि उस बिल का है, जिसमें उन्होंने लाखों-करोड़ों का काला धन छुपा रखा था और रातों-रात वह बेमोल हो गया। इन सबसे इतर, बेफिक्र अंदाज में, इधर-उधर डोलने वालों की भी कमी नहीं है, जिन्हें न कभी खोने की चिंता थी और न ही पाने की आस है। 500 और 1000 रुपए की पाबंदी के बाद देश की राजधानी के जनपथ पर महिलाओं के कपड़े बेचने वाले संतोष कुमार की आज उतनी भी बिक्री नहीं हुई जितनी कि वे बचत कर लिया करते थे। बावजूद इसके उनके माथे पर शिकन तक नहीं है और उन्हें पूरा भरोसा है कि चंद ही रोज में सब कुछ पटरी पर लौट आएगा। कुछेक दिक्कतों के बावजूद जमीन से लेकर आसमान तक में सफर करने वाले लोग भी प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए इस कदम का समर्थन करते नजर आ रहे हैं। समाज के कमजोर तबके में भी हाय-तौबा की बजाए संतोष और खुशी के भाव नजर आ रहे हैं। इसे लेकर सोशल मीडिया में एक जुमला भी तेजी से सक्रिय हो रहा है-गरीब तो रोज ही कल की चिंता में सोता है, आज अमीरों की बारी है।
एक आम आदमी भले ही मुद्रा परिवर्तन को लेकर ज्यादा परेशान होता नजर न आए लेकिन राजनीतिक हल्कों में यह मुद्दा जंगल की आग की तरह फैल गया है। बड़ी-बड़ी पार्टियों के सूरमाओं के हाथ -पैर थरथरा रहे हैं। उनसे कहीं ज्यादा जिनकी बेटियों की शादी में चंद रोज बाकी रह गए हैं। कारण चुनाव करीब हैं और कार्यकर्ता की गाड़ी में पेट्रोल भराने से लेकर, झंडे, बैनर, पंडाल, प्लेन और पार्टी का टिकट तक इसी काली कमाई से जो खरीदे जाने थे। चुनावी जंग इसी काले धन के सहारे तो लड़ी जानी थी। कुल मिलाकर चुनाव के दौरान जो काम हजारों पर्यवेक्षक नहीं कर सकते थे, उसे एक झटके में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिखाया। निश्चित तौर पर उनके इस कदम से गैर तो गैर उनके अपने भी प्रभावित होंगे लेकिन उन्होंने इसकी जरा भी चिंता नहीं की। यदि करते तो शायद पूर्व सरकारों की तरह मुद्रा परिवर्तन का ख्वाब महज ख्वाब बन कर रह जाता।
मोदी के के दांव से धराशायी हुए विरोधी दलों के नेता भले ही इस कदम का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हों लेकिन आम लोगों की तकलीफों को ढाल बनाते हुए अब दबे स्वर से मुद्दा बनाने की जुगत लगानी शुरू कर दी है। वे इसे आपातकाल और तानाशाही तक करार दे रहे हैं। जबकि कुछ लोग तो इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय तक चले गए हैं। इस पूरी कवायद पर जब हम नजर डालते हैं तो जेहन में सवाल आता है कि क्या वाकई कालेधन का राजनीति से कोई रिश्ता है? दरअसल, काला धन फलता-फूलता ही इसीलिए क्योंकि इसे राजनीतिक प्रश्रय मिलता है। राजनीतिक प्रश्रय इसलिए मिलता है क्योंकि कालेधन में उसको हिस्सेदारी मिलती है। ऐसे में यदि काला धन रखने वाले प्रभावित हो रहे हैं तो कहीं न कहीं इसे राजनीतिक प्रश्रय देने वाले भी प्रभावित हो रहे हैं। अब चूंकि काला धन रखने वाले सीधे अदालत जा नहीं सकते हैं क्योंकि वह जाएंगे तो पकडे़ जाएंगे। वहीं राजनीति में जिन लोगों के पास इस तरह का अघोषित धन है और जिनको लगता है कि उन पर हाथ डालना कठिन होगा वे न्यायालय जाने को तैयार हो गए हैं लेकिन अहम बात यह है कि मुद्रा परिवर्तन एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूरी दुनियाभर में अपनाई जाती है, इसलिए इसमें कोई बाधा आएगी, ऐसा लगता नहीं। मद्रास उच्च न्यायालय ने ऐसी ही एक याचिका को खारिज करते हुए बड़े नोटों की वापसी को देशहित में बताया है। हकीकत तो यह है कि देश के भीतर काले धन के सहारे या फिर या नकली मुद्रा के सहारे जी रहे लोग व देश रातोंरात बर्बाद हो गए। एक आंकलन के अनुसार पाकिस्तान हर साल भारत में आतंक को बढ़ावा देने और भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिए 70 करोड़ रुपए के नकली नोट भेजता है। बहरहाल, नए नोट में सुरक्षा को लेकर जो मापदंड अपनाए गए हैं उसे लेकर सरकार पूरी तरह से आश्वस्त है। ऐसे में नई मुद्रा की नकल कर पाना अब शायद संभव नहीं होगा।
इस बीच कालेधन और बडे़ नोट को लेकर लोगों के बीच कुछ भ्रम की स्थिति नजर आती है। लोग आश्चर्यचकित हैं कि एक तरफ तो सरकार 1,000 और 500 रुपए के नोट बंद कर रही है और दूसरी तरफ 2,000 रुपए के नोट बाजार में उतार रही है। दरअसल, कालाधन और बड़े नोट में संबंध तो है लेकिन चोली-दामन वाला नहीं है। मसलन यदि किसी के पास सौ करोड़ रुपए की नकदी पड़ी हुई है तो इसका मतलब नहीं कि वह काला धन है। बिग बाजार की चेन पर यदि नजर डालें तो पूरे दिनभर में उसकी 100 करोड़ रुपए की बिक्री होती है। यहां पर औसतन आदमी 500 से 1000 नोट तो खर्च ही करता है।जहां कहीं भी बड़ा लेनदेन होता है, वहां पर मुद्रा ढोने की समस्या खड़ी हो जाती है ऐसे में बाजार में 2,000 रुपए के नोट का होना जरूरी है। वहीं 1,000 रुपए के नोट को हटाने के पीछेसबसे बड़ा कारण बाजार में बड़ी संख्या में नकली नोट का आ जाना था। पाकिस्तान और बांग्लादेश में 1,000 रुपए का नोट 200 रुपए में मिल रहा था। ऐसे में उसे निरस्त करना बहुत जरूरी हो गया था। नए नोटों को बाजार में उतारने का फैसला जल्दबाजी में लिया गया हो, ऐसा भी नहीं है। इसकी प्रक्रिया कई महीनों से चल रही थी। गोपनीयता भंग न हो इसके लिए आरबीआई के सिर्फ दो अधिकारियों को ही इसमें शामिल किया गया था।
वित्त मंत्री अरुण जेटली के अनुसार देश की बड़ी अर्थव्यवस्था को देखते हुए 2,000 रुपए का नोट लाना जरूरी हो गया था। उनका कहना है कि मोरारजी देसाई के समय अर्थव्यवस्था में दो प्रतिशत ही बड़े नोट थे लेकिन अब 86 प्रतिशत है। ऐसे में उठाया गया यह कदम अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा। विपक्षी दलों द्वारा जताए जाए रहे विरोध पर वित्त मंत्री कहते हैं कि एक तरफ पूरी जनता है तो दूसरी तरफ चंद नेता हैं। आम जनता तो सरकार के फैसले का विरोध नहीं कर रही है लेकिन विरोध करने वाले अपनी कलई जरूर खोल रहे हैं। उधर मुद्रा परिवर्तन को मुद्दा बनाते हुए तृणमूल कांग्रेस ने राज्यसभा में एक नोटिस दिया है। वह नोटबंदी के मुद्दे पर बहस चाहती है। विदित हो कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसका पहले ही विरोध करते हुए सरकार से इस निर्णय को वापस लेने की अपील कर रही हैं। राज्यसभा के बारे में तो कहा नहीं जा सकता है लेकिन इतना जरूर तय है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन को लेकर यह एक अहम मुद्दा बनेगा। दरअसल, कालेधन पर नकेल कसने के लिए मुद्रा परिवर्तन का कदम निश्चित रूप से आम लोगों की जिंदगी पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा और पार्टी के उस वादे को पूरा करने में मददगार साबित होगा जिसमें उसने जनता के पैसे को जनता के काम में आने की बात कही थी।
मुद्रा परिवर्तन के फैसले पर मिल रहे भारी जनसमर्थन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को धन्यवाद देते हुए कहा कि, मैं भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाकर दम लूंगा। इसके लिए प्रतिबद्ध हूं। सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की कोशिश में लगातार जुटी हुई है। प्रधानमंत्री के बयान से स्पष्ट है कि वे मुद्रा परिवर्तन के बाद कालेधन पर नकेल कसने को लेकर भविष्य में और सख्त कदम उठा सकते हैं। इस बीच सरकार सभी धार्मिक न्यासों पर कड़ी नजर रख रही है। दरअसल, मुद्रा परिवर्तन के बाद अचानक से नए खाते खुलवाने वालों की संख्या बढ़ गई है और लोग अपने कालेधन को सफेद करने के लिए धार्मिक संस्थानों और न्यास आदि की तरफ रुख करने लगे हैं। आयकर विभाग की टीम ने ऐसे संभावित स्थानों पर छापेमारी भी शुरू कर दी है।
नोटबंदी के सियासी संग्राम के बीच कई ऐसे भी बयान आ रहे हैं जो आम लोगों को राहत पहुंचाने वाले हैं। सरकार ने जहां 11 नवंबर की आधी रात तक लोगों के लिए पूरे देश में टोल टैक्स फ्री कर दिया वहीं शिरडी साईं मंदिर समिति ने 500 और 100 रुपए के संकट को देखते हुए दो दिनों के लिए सभी भक्तों के लिए खाना, नाश्ता आदि मुफ्त में उपलब्ध कराने का ऐलान किया। जिन लोगों के घरों में वैवाहिक कार्यक्रम है, उन्हें सहूलियत देते हुए बाबा रामदेव ने कहा कि ऐसे लोग 500-1000 रुपए के साथ पंतजलिके स्टोर से सामान खरीद सकते हैं। मुद्रा परिवर्तन की इस आपाधापी के बीच खबर यह भीहै कि सरकार जल्द ही बाजार में 1,000 रुपए का नोट दोबारा उतारेगी।वित्त सचिव शक्तिकांत दास के अनुसार कुछ ही महीनों के भीतर नए रंग और नए आकार के साथ 1000 रुपए का नोट आ जाएगा। हालांकि लोग परेशान न हों और नए नोट पाने को लेकर किसी भी प्रकार अफरा-तफरी का माहौल न बने इसके लिए बैंकों ने अपने कार्यकाल का समय बढ़ा दिया है और छुट्टी के दिन भी काम करेंगे।साथ ही जो लोग सीमा के तहत रकम जमा करेंगे उनसे कोई पूछताछ भी नहीं की जाएगी।बहरहाल, कालेधन के खिलाफ छेड़ी गई इस जंग में अभी कई पड़ाव आने बाकी हैं।ऐसे में जब देश के निवासी सरकार के साथ सहयोग करेंगे तो निश्चित रूप से उसके सकारात्मक और दूरगामी परिणाम निकलेंगे।
सांसत में जान, चले सियासी बान
विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मोदी का ये कदम अघोषित आर्थिक इमरजेंसी की तरह है। — मायावती, बसपा नेता
जबसे बड़े नोट बंद होने का ऐलान हुआ है तबसे (बसपा) प्रत्याशियों को बुलाकर पैसे लौटाए जा रहे हैं। अखिलेश यादव, मुख्यमंत्री, उप्र
मायावती को नोटों की मालाओं को छिपाने में परेशानी हो रही है, इसलिए प्रधानमंत्री के फैसले की आलोचना कर रही हैं।
— उमा भारती, केंद्रीय मंत्री
यह पोखरण से बड़ा परीक्षण है
अर्थव्यवस्था को काले धन के कैंसर से मुक्त कराने के लिए सरकार के अभियान को कोई सर्जिकल स्ट्राइक तो कोई अर्थ जगत का पोखरण परीक्षण बता रहा है लेकिन अर्थशास्त्री इसका आकलन उससे भी कहीं ज्यादा कर रहे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था का कायांतरण होना सुनिश्चित है
डॉ. अवनीश मिश्र
रतीय अर्थव्यवस्था का तकरीबन 20 प्रतिशत धन नकद रूप में लोगों के पास अघोषित रूप से जमा है। कुछ लोग इसे 50 प्रतिशत तक भी बताते हैं। संपत्ति सौदों में सबसे ज्यादा काला धन जमा है, यह बात तो जगजाहिर थी लेकिन हाल ही में कालेधन पर बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि शिक्षण से जुड़े संस्थान बहुत बड़ी मात्रा में काले धन को खपाने का जरिया बनते जा रहे हैं। ऐसे में इस अघोषित धन को मुख्य धारा में कैसे लाया जाए यह यक्ष प्रश्न था? इसके लिए भारत सरकार ने चरणबद्ध तरीके से कई उपाय किए। मसलन, जनधन योजना के तहत प्रत्येक व्यक्ति के बैंक खाते खुलवा दिए गए। सरकार की तरफ से अघोषित कालेधन को घोषित करके लोगों को मुख्य धारा में शामिल होने का मौका दिया गया लेकिन जब इससे भी बात नहीं बनी तो उन्होंने जिस मुद्रा में (रु. 500- रु.1000) सबसे ज्यादा काला धन था, उसे निरस्त कर दिया। मोदी सरकार द्वारा उठाए गए इस एक कदम ने नेताओं, अधिकारियों और बिल्डर्स आदि के पास जमा काले धन को एक झटके में रद्दी बना दिया।
कोई इसे अर्थजगत का सर्जिकल स्ट्राइक तो कोई इसे पोखरण परीक्षण बता रहा है लेकिन यह पोखरण परीक्षण से कहीं बड़ी चीज है। निश्चित रूप से पोखरण परीक्षण से हमारी सामरिक ताकत बढ़ी थी और शायद उसका भविष्य में कुछ इस्तेमाल करने की नौबत भी आए लेकिन यह ऐतिहासिक फैसला खेत में काम करने वाले किसान से लेकर प्रधानमंत्री तक को प्रभावित करता है। मुझे पूरा यकीन है कि प्रधानमंत्री मोदी इसे ढंग से लागू कराते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था का कायांतरण कराने में कामयाब होंगे। सरकार के द्वारा काले धन को मुख्य धारा में लाने के लिए जो योजनाएं बनाई गईं, उसमें यदि सबसे ज्यादा पैसा आया तो मोदी सरकार की कोशिशों से आया है। इसका सीधा मतलब है कि जिन लोगों ने भी पैसा घोषित किया है, उसे कहीं न कहीं सरकार के सख्त कदम उठाए जाने की भनक थी? उसे इस बात का अहसास हो गया होगा कि अब कुछ ऐसा होने जा रहा है कि जो अभूतपूर्व है। आयकर विभाग की वेबसाइट पर यह संकेत था कि समय रहते काला धन रखने वाले लोग चेत जाएं नहीं तो यह टाइम बम की तरह फट जाएगा। ऐसा हुआ भी। पहला टाइम बम इस रूप में फटा कि आपका सारा काला धन बेकार हो गया। दूसरा टाइम बम उन पर फटेगा जो अपने इस धन को सफेद करने की कोशिश करेंगे। आयकर विभाग को निश्चित रूप से उन पर नजर रखने को कहा गया होगा। ऐसा नहीं है कि कालेधन को सफेद में तब्दील करने के लिए लोग रास्ता नहीं खोजेंगे। अब ये लोग काले धन को सफेद करने के लिए तमाम धार्मिक संस्थानों का रुख करेंगे। गौरतलब है कि मंदिर-मस्जिद आदि को मिला चंदा, दान आदि अघोषित होता है। ऐसे में सरकार को यहां पर नाकेबंदी करनी होगी ताकि कालेधन इकट्ठा करने वाले लोगों के लिए ये जगह ऐशगाह न बन पाए।
मुद्रा परिवर्तन की प्रकिया से आम आदमी को छोटी-मोटी दिक्कतें आ सकती हैं। एक-दो दिन वह इन रुपयों का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा लेकिन जिन लोगों के पास घोषित संपत्ति है, उन्हें जरा भी दिक्कत नहीं होगी। यदि उनके पास 10 लाख रुपए नकद पड़े है तो कुछ दिनों बाद वे बैंक जाएंगे और 10 लाख रुपए के नए नोट लेकर आ जाएंगे, क्योंकि उन्होंने सरकार को बता रखा है कि हम 70 लाख का काम करते हैं, जिसमें से 10 लाख रुपए नकद उनके पास उपलब्ध रहता है। उस पर भी हम टैक्स जमा करते हैं। लेकिन यदि हम 10 लाख रुपए कमाते हैं और 70 लाख रुपए लेकर बैंक जाएंगे तो वह पकड़ में आ जाएगा। इन लोगों के लिए भी सरकार ने एक मौका दिया, जिसका फायदा उन्होंने नहीं उठाया। मुद्रा परिवर्तन के चलते भले ही थोड़ी-बहुत दिक्कतें उठानी पड़े लेकिन मुख्य धारा में सारा पैसा आ जाने से अर्थव्यवस्था में उछाल भी आता है। मोदी सरकार से पहले भी एक कमेटी ने मुद्रा परिवर्तन की संस्तुति की थी। पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम के समय यह तय भी हुआ था कि विमुद्रीकरण किया जाएगा, लेकिन यह बात लीक हो गई थी, जबकि मोदी सरकार ने इसे चुपचाप अंजाम दे दिया। इससे पूर्व सरकार ने 2005 से पूर्व के 500 नोट को बंद करने का निर्णय लिया था। उसकी भी तारीख लगातार सरकार बढ़ाए जा रही थी लेकिन इस बार कुछ ही घंटों के भीतर ही इन नोटों को बंद करने का निर्णय लिया गया।
सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के कई सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगेे। सबसे पहले तो रिश्वत पर रोक लगेगी। जब रातों-रात आपका अघोषित धन रद्दी में तब्दील हो गया तो रिश्वत के लिए धन कहां से लाएंगे? दूसरा यदि वे इस कालेधन को घोषित करते हैं तो यह पैसा मुख्य धारा में आ जाएगा। तीसरी बात यह कि भारत सरकार की टैक्स से मिलने आय में बढ़ोतरी होगी। चौथी सबसे बड़ी बात कि अब जन-धन योजना के सभी खाते अच्छी तरह से काम करना शुरू कर देंगे। अब फसल बेचकर लाने वाला किसान और मजदूरी करके कमाने वाली महिला अपना पैसा बैंक के खाते में रखेगी। अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में इतना सारा धन आने से भारत की जीडीपी 20 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। मान लीजिए विकास दर आज आठ प्रतिशत है तो आने वाले दो वर्षों में सब कुछ ठीक-ठाक चलने पर इसमें दो प्रतिशत का इजाफा देखने को मिल सकता है।
अमेरिका में किसी भी व्यक्ति को एक आधारकार्ड की तरह नागरिकता नंबर दिया जाता है, उसकी मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि उसके कितने बच्चे हैं? बैंक के खाते में कितना पैसा है? संपत्ति कितनी है? उसी तरह से भारत का आर्थिक सिस्टम भी पूरी तरह से पारदर्शी हो जाएगा। मसलन, चांदनी चौक के एक गल्ला व्यापारी को देखने पर आपको यही लगेगा कि वह बामुश्किल 10 से 15 हजार रुपए कमाता होगा लेकिन जब आप उसके घर में जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि उसके पास करोड़ों रुपए हैं। 10 साल बाद आप इंकम टैक्स रिटर्न से आप किसी भी व्यक्ति की आय का सही अंदाजा लगा सकेंगे। साथ ही जब प्रत्येक नागरिक की प्रति व्यक्ति आय का पता चल जाएगा तो देश की वास्तविक अर्थव्यस्था का आंकलन किया जा सकेगा। इससे विश्व में भारत का प्रभुत्व बढ़ जाएगा। डिजिटल इकॉनोमी की दिशा में भी सकरात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे क्योंकि भारत सरकार ने बड़ी धनराशि को संभालने के लिए सुनियोजित तरीके से वीजा और मास्टरकार्ड से अलग एक रुपे सिस्टम विकसित किया है। साथ ही एक नया इंडियन पेमेंट गेटवे विकसित किया। आइएमपीएस के जरिए आप दिन या रात कभी भी पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं। सरकार ने इस तकनीक को सभी बैंकों पर लागू कर दिया। साथ ही बैंकों की तमाम शाखाओं को कोर बैंकिंग सिस्टम के तहत ला दिया ताकि आप आसानी से इंटरनेट ट्रांजेक्शन कर सकें। इस बीच भारत सरकार ने ई-कॉमर्स को भी बढ़ावा दिया। विमुद्रीकरण से मुद्रा सिकुड़ती है। कहने का तात्पर्य यदि मुद्रा का प्रसार 10 लाख का था तो उसमें से पांच लाख अघोषित काला धन के लापता हो जाने के बाद सिर्फ पांच लाख रुपए ही रह जाएंगे और खरीददारी भी इसी मुद्रा से होगी। यानी मांग कम हो गई और आपूर्ति ज्यादा बढ़ गई। ऐसे में महंगाई भी कम होगी।
भले ही विपक्षी दल मुद्रा परिवर्तन की प्रक्रिया को आम लोगों के लिए अव्यहारिक साबित करने की कोशिश कर रहे हों लेकिन क्या प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस यह बताने का कष्ट करेगी कि वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के समय में जब ऐसी ही बात चली, जिसे केवल नीचे तक फैल जाने की वजह से नहीं लागू किया जा सका था, यदि वे लागू कर देते तो क्या यही आरोप तब भी लगाते। जबकि स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि एक हजार का नोट बांग्लादेश और पाकिस्तान में महज 200 रुपए में मिल रहा था। ऐसे में उसे निरस्त करना बहुत जरूरी था। बहरहाल, मोदी सरकार द्वारा की गई इस निर्णायक कार्रवाई का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश के चुनाव में देखने को मिलेगा। गौरतलब है कि चुनाव में एक साल बाकी रहते ही सभी राजनीतिक पार्टियां पैसा कमाने में जुट जाती हैं। निश्चित तौर पर यह पैसा चेक की बजाए नकद ही जुटता रहा है लेकिन अब उसका कोई मतलब नहीं रहा। दूसरा पार्टियां जब पैसा खर्च करती थी तो नकद करती थीं, उस पर भी लगाम लगी। तीसरा जनता को रिश्वत के रूप में धन बांटने वाली परंपरा पर भी नकेल कस गई। कहा जाता है कि सबसे अधिक धन सत्तारूढ़ दल के पास होता है, ऐसे में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी को बहुत बड़ा सदमा लगेगा। वहीं आमजन के बीच भाजपा की छवि मजबूत होगी क्योंकि उसने 2014 में किए गए काले धन पर नियंत्रण के वादे को पूरा करके दिखा दिया है। (लेखक जाने-माने अर्थशास्त्री और मनी मिश्रा सेक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक हैं)
जो चूके सो गए
गोपाल कृष्ण अग्रवाल
देश के भीतर एक समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही थी। उसके अंदर संप्रग सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के द्वारा जो धन अर्जित किया गया था वह विभिन्न माध्यमों से खप रहा था। जिसे ठिकाने लगाना बहुत जरूरी हो गया था। काला धन जो कि राजनेताओं, बिल्डरों और बड़े व्यवसायियों के पास जमा हो रखा था उससे कई तरह की समस्याएं सामने आ रही थीं। मकानों के दाम आसमान छू रहे थे। ऐसे में एक आम आदमी के घर खरीदने का सपना महज सपना ही बनकर रह गया था। फिर सोने में बहुत ज्यादा निवेश हो रहा था और उसका आयात किया जा रहा था। इसके भी पीछे काला धन काम कर रहा था। इन सभी विषयों को सुलझाने और आर्थिक व्यवस्था को नियंत्रण में रखने के लिए इस काले धन को नष्ट करके नई मुद्रा को बाजार में लाया जाए ऐसा निर्णय लिया गया। कालेधन और भ्रष्टाचार पर जब एसआईटी का गठन हुआ था तो सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ निर्णय लिए। इसके बाद बेनामी संपत्ति को रोकने के लिए बिल लाया गया। साथ ही इंकम डिस्क्लोजर स्कीम के तहत लोगों को एक अंतिम मौका दिया गया ताकि जिनके पास काला धन है वह इसका खुलासा करके कर अदा करते हुए अपने धन को सफेद कर सके। इसके बाद भी जो सामने नहीं आया वह पूरी तरह से अवैध धन था। उसके लिए कुछ इसी तरह के सख्त कदम उठाने की जरूरत थी, जिसे मोदी जी ने उठाया।
यदि किसी के पास सफेद धन है और उसने वैध तरीके से कमाया है तो उसे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। वह उसे बैंक में डालकर प्रयोग में ला सकता है। लेकिन अगर काला धन है तो कोई उसके पास रास्ता नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से भविष्य में सुखद परिणाम सामने आएंगे। वहीं जिन लोगों ने काले धन को छुपाए रखा और सरकार की बात नहीं मानी, उनके लिए यह आत्मघाती कदम साबित होगा।
मुद्रा परिवर्तन की प्रक्रिया को लेकर विपक्ष तमाम तरह के सवाल उठा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि उसके आरोपों में तनिक भी दम नहीं है। वे पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और वे येन-केन-प्रकारेण अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। यूपीए के शासनकाल में कांग्रेस के अधिकतर नेता भ्रष्टाचार में लिप्त थे। उन्होंने देश को जमकर लूटा, इसमें कोई दो राय नहीं है। इन्हीं लोगों के पास अत्यधिक मात्रा में काला धन है। चाहे आप मायावती को लें या फिर समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव और उनके परिजनों के बीच चल रहे झगड़े को लें, सब पैसे की ही लड़ाई है। लालू यादव पूरे जीवनभर भ्रष्टाचार में लिप्त रहे। इन्होंने काले धन के रूप में अकूत संपत्ति इकट्ठी कर रखी है। ऐसे में यदि ये लोग मोदी सरकार के फैसले पर सवाल उठाएं तो सहज ही समझा जा सकता है कि ये आलोचना क्यों कर रहे हैं और एक आम आदमी को इससे कोई दिक्कत क्यों नहीं है।
कुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि इस निर्णय को लागू करने से पहले लोगों को कुछ समय दिया जाना चाहिए था। अगर सरकार समय देती तो काला धन रखने वाले कोई न कोई रास्ता खोज लेते और जिस उदद्ेश्य के लिए यह कदम उठाया गया था, उसके कोई मायने नहीं रह जाता। लेकिन इसके विपरीत सरकार ने ऐसे लोगों का रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया।
(लेखक जाने-माने अर्थ विशेषज्ञ है)
कामवाली बाई मालिक से – ये रहे आपके पैसे जो आपने छह महीने में पगार दी है, सब ब्लैक हो गए हैं, व्हाइट कराके मेरे जनधन खाते में डाल देना।
नर्स डॉक्टर से – मोदी जी भी कमाल हैं, अस्पताल में छूट दे दी। उन्हें पता था कि आज रात कई लोगों को अस्पताल जाना पड़ सकता है।
मोदी जी सच में राम राज्य वाली फीलिंग करवा दी। जेल खोल दो आतंकवादी भागते नहीं। तिजोरी खोल दो चोरी होती नहीं।
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