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वेद प्रकाश शर्मा
प्रेरणा
लेखन से ख्याति पाने की चाहत
उद्देश्य
आस-पास की घटनाओं से समाज को रू-ब-रू कराना
जीवन का अहम मोड़
गरीबी से मुक्ति पाने के लिए उपन्यास लिखना शुरू किया।
ज्ञानऔर धन के प्र्रति दृष्टि
सामाजिक समस्याओं को पेश करना जिसमें अश्लीलता व फूहड़ता सिरे से गायब
ज्ञानऔर धन के प्र्रति दृष्टि
सामाजिक समस्याओं को पेश करना जिसमें अश्लीलता व फूहड़ता सिरे से गायब
पाठकों की रुचि को भांपने में उनका कोई सानी नहीं है। ठेठ हिन्दी पट्टी का यह उपन्यासकार लोकप्रियता के मामले में बड़े-बड़ों पर भारी
अजय विद्युत
वेद प्रकाश शर्मा हिंदी के लोकप्रिय रोमांचक शैली के उपन्यासकार हैं। उन्होंने सस्ते और लोकप्रिय उपन्यासों की रचना की है। 'वर्दी वाला गुंडा' शर्मा का सफलतम उपन्यास है जिसकी अबतक लगभग आठ करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं। भारत में लोकप्रिय उपन्यासों की दुनिया में इसे 'क्लासिक' का दर्जा प्राप्त है। 176 उपन्यास लिख चुके वेद प्रकाश शर्मा टीवी सीरियल की निर्माता एकता कपूर की कंपनी में कथानक सलाहकार हैं। उनकी रचनात्मकता से प्रभावित होकर सामाजिक मुद्दों पर फिल्म बनाने वाले आमिर खान ने भी हाल ही में उनसे मुलाकात कर एक फिल्म पर काम करने का फैसला किया। फिल्म जगत में वेद प्रकाश नया नाम नहीं हैं। उनके उपन्यासों पर तीन फिल्में और एक सीरियल बन चुका है।
उनके उपन्यासकार बनने की कहानी काफी रोचक है। उन्होंने अपना पहला उपन्यास सौ रुपए के पारिश्रमिक पर इसके इरादे से छपने के लिए दिया कि चलो फोटो और नाम तो छपेगा। उपन्यास छपा, लेकिन वेद प्रकाश कांबोज के नाम से। मेरठ में पढ़ाई-लिखाई करने के बाद एक उपन्यासकार के रूप में करियर शुरू करने वाले वेद प्रकाश ने 1995 में तुलसी पॉकेट बुक्स के नाम से पब्लिशिंग हाउस खोला।
वेद प्रकाश एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी प्राकृतिक-अप्राकृतिक मौत हो गई। परेशानियों के दौर से गुजर रहे वेद प्रकाश के बड़े भाई की भी 1962 में मौत हो गई और उसी साल भीषण बारिश में किराए का मकान भी टूट गया। फिर गैंगरीन की वजह से पिता की टांग काटनी पड़ी। घर में कोई कमाने वाला
नहीं था।
घर की सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई। इस दौरान उनके मामा ने मां से कहा कि लड़कों को हलवाई की दुकान पर भेज थे चार पैसे कमाकर लाएंगे तो घर चलेगा। मां अनपढ़ थीं, पर उन्होंने अपने भाई को यह कहते हुए भगा दिया, ''मेरे बच्चे हैं, मैं देखूंगी। मैं काम करूंगी और बच्चे पढ़ेंगे।'' आज भी मां के संघर्ष को याद करते हुए वेद प्रकाश की आंखें भर आती हैं।
उन्होंने एक किस्सा याद करते हुए कहा, 'एक बार किसी ने मुझसे पूछा था कि आपको हर बार अपने उपन्यास के लिए टॉपिक कहां से मिलते हैं। यह सवाल शायद इसलिए उठा था क्योंकि कि मेरे उपन्यास के टॉपिक लीक से हटकर और एकदम नए
होते हैं।
मैं इस बाबत यह कहना चाहूंगा, टॉपिक चाहे उपन्यास का हो या फिल्म का, हमारे आस-पास घटनाओं के रूप में बिखरे पड़े होते हैं। जरूरत होती है उन्हें समझने और संवारने की। मैं यही करता हूं। मैं अपने आसपास निगाहें टिकाए रखता हूं, वहीं से मुझे टॉपिक मिल जाते हैं।''
उन्होंने आगे कहा, ''मुझे पाठकों के ढेरों पत्र मिलते हैं। कई पाठक मुझे विषय भी सुझा देते हैं। संभव है, कुछ पाठकों को मेरे किसी उपन्यास में अपने विचारों की झलक भी मिली जाती हो।''
वेद प्रकाश शर्मा के पाठकों में मेरठ के डीएम रहे नवदीप रिणवा भी हैं। नवदीप ने कहा, 'उन्होंने अपने उपन्यासों से हमें रोमांचित किया है। फूहड़पन और अश्लीलता का इस्तेमाल नहीं किया है, जिसके कारण बड़े-बूढ़े नॉवेल पढ़ने से मना
करते थे।'' ल्ल
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