कलाम की सूरत, कमाल की सोच
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कलाम की सूरत, कमाल की सोच

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Oct 18, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Oct 2016 10:38:22

लखनऊ के बाल गोविंद की शक्ल पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम से मेल खाती है। सुखद संयोग यह कि वे डॉ. कलाम के मुरीद हैं और उनकी शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं  

विवेक त्रिपाठी

भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आज हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनके हमशक्ल बाल गोविंद उनके सपनों को जिन्दा रखने का बीड़ा उठाए हुए हैं। उत्तर प्रदेश, लखनऊ के पुराना हैदरगंज के रहने वाले बाल गोविंद रस्तोगी की शक्ल पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से मेल खाती है। रस्तोगी अपनी शक्ल को दैवीय कृपा मानते और और कहते हैं,''मेरी शक्ल जिस महान व्यक्ति से मिलती है तो मेरा कर्तव्य बनता है कि कम से कम उनकी दी शिक्षा को आगे बढ़ाऊं और समाजसेवा का काम करूं। इसीलिए मैं उनकी प्रेरणा से गरीब बच्चों को शिक्षा देने का काम करता हूं।''
बाल गोविन्द का जीवन बहुत संघषार्े से भरा रहा है। 12 साल के थे, तभी पिताजी का देहांत हो गया। पिता के देहान्त के बाद उन्हें डर था कि यह अगर यह पढ़े नहीं तो गलत रास्ते पर चले जाएंगे। खूब मन लगाकर पढ़ाई की और हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहे। यह अपने पढ़ाई की लोकप्रियता के बदौलत बिना पैसे खर्च किए राजधानी के विद्यांत पीजी कालेज से छात्रसंघ के उपाध्यक्ष भी बने। इसके बाद 1973 में राजधानी के योगेश्वर इंटर कालेज में बतौर प्रधान लिपिक नौकरी की। वर्ष 2003 में सेवानिवृत्त हुए और वर्ष 2013 में जब अधिवक्ता बेटे की बीमारी से मृत्यु हुई तो उसकी कमी को पूरा करने के लिए अपने आप को पूरी तरह स्कूल कार्य में व्यस्त कर लिया।
कलाम की प्रेरणा कर रही है काम
बाल गोविंद कहते हैं,''डॉ. कलाम से पहली मुलाकात जनवरी, 2005  में हुई थी। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह थे और डॉ. कलाम बख्शी का तालाब स्थित रूदई गांव आए थे। जब मैं डॉ.कलाम से मिलने आगे बढ़ा तो अधिकारियों ने रोक दिया। इस पर मैंने उनसे कहा कि देश के प्रथम नागरिक से देश का आखिरी नागरिक मिलना चाहता है। इसके बाद कलाम ने खुद मुझे बुलाया और कहा आपको देखकर लगता है कि जैसे हम-आप कुंभ में बिछड़े हुए भाई हैं जो अब जाकर मिले हैं। उनकी यह बात मुझे हमेशा याद रहेगी।''
वे आगे बताते हैं,''उस दो मिनट की मुलाकात से वे मुझसे प्रभावित हुए और उन्होंने मुझे राष्ट्रपति भवन आने का न्यौता दिया। 29 जनवरी 2005 में मैं राष्ट्रपति भवन गया और मेरी 4 घण्टे तक कलाम साहब से बातचीत हुई। उस समय उन पर बाल कल्याण के कई मुददों पर बात हुई। वह एकटक मेरी बातों को सुनते गए। उन्होंने कहा कि आपको एक गाड़ी देता हूं, इससे पूरे देश में घूमकर शिक्षा की अलख जगाइए। पर मैंने गाड़ी लेने से मना कर दिया। लेकिन उनके शिक्षा क्षेत्र में काम करने के मंत्र को साकार करने में जुटा हुआ हूं। डॉ. कलाम ने मंत्र दिया था कि शिक्षक की पूंजी उसके शिष्य होते हैं, उसी पर मैं चल रहा हूं।''
गरीब बच्चों को शिक्षित करना है उद्देश्य
बेटे की मौत के बाद बल्लभ मेमोरियल हॉस्टल एंड डे बोडिंर्ग मिलिट्री स्कूल में गोविंद पूरी तरह से रम गए और ज्यादातर समय बच्चों को पढ़ाने में ही लगाते हैं। इस समय स्कूल में 125 गरीब बच्चे हैं। हम उनसे कोई भी फीश नहीं लेते। बस उनसे लगातार स्कूल आने की अपील करते हैं। जिससे यह शिक्षा की ज्योति लगातार जलती रहे। वे बताते हैं कि छुट्टी के समय बच्चों के साथ मिलकर वंचित समाज की बस्तियों में बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रचार-प्रसार भी करता हूं।
कलाम सेना जगा रही साक्षरता की अलख
बाल गोविंद रस्तोगी ने शिक्षा का प्रचार करने के लिए बच्चों की एक कलाम सेना बनाई है। ये नन्हीं बटालियन के बच्चे सेना के जवान की तरह ड्रेस और एक छोटी बंदूक कंधे पर टांगे रहते हैं।  
पेंशन से उठाते बच्चों का खर्च
बाल गोविन्द इन सब बच्चों की पढ़ाई का खर्च अपनी पेंशन से उठा रहे हैं। कभी-कभी कुछ बच्चों के माता पिता अपनी इच्छानुसार पैसेे भी दे देते हैं, लेकिन किसी के लिए कोई तय फीस नहीं है।  
सेना के जवानों को सलाम
गोविन्द कहते हैं कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम हमारे आदर्श हैं। मैं उनकी ही शिक्षा को मूर्तरूप देने में लगा हुआ हूं। देश के भावी सेना के नन्हें सूपतों को प्रशिक्षित कर रहा हूं। मेरी इच्छा है कि ज्यादातर बच्चे सेना में जाकर अपने देश का नाम रोशन करें। 

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