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केरल में एक बार फिर माकपाई हिंसा में सत्ता की शह पर उबाल आ गया है। माकपाइयों ने फिर से एक भाजपा कार्यकर्ता को अपनी बर्बरता का शिकार बनाया है। पिनरई विजयन की माकपा सरकार के तले पुलिस के हाथ बंधे हैं तो अपराधी तत्वों को खुली छूट मिली हुई है संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने की
केरल से कुमार मोहन चलम
आज केरल में मार्क्सवादियों की सरकार है और ऐसे माहौल में प्रदेश में रा़ स्व़ संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमलों में तेजी आना स्वाभाविक माना जा रहा है। कारण यह है कि जो पिनरई विजयन आज मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं, वे पोलित ब्यूरो के सदस्य के नाते खुद कई बार अपने कैडरों को संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसक हमले तेज करने का आदेश देते देखे गए हैं। प्रदेश के ज्यादातर नागरिकों की जबान पर एक ही सवाल है— क्या माकपा केरल को भी पश्चिम बंगाल की तरह रक्तरंजित करना चाहती है? हालांकि यह सवाल अपने में पूरी तरह ठीक नहीं है, इस मायने में कि केरल तो कब से माकपाइयों की हिंसक राजनीति झेलता आ रहा है। अपने वैचारिक विरोधियों को तालिबानी बर्बरता के साथ रास्ते से हटाने में उन्होंने क्रूरता की सारी हदें पार की दी हैं।
इसकी मिसाल एक बार फिर सामने आई है। अक्तूबर को भाजपा के युवा कार्यकर्ता रमित की माकपा के लोगों द्वारा नृशंस हत्या कर दी गयी। मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के विधानसभा क्षेत्र पिनरई में ही एक पेट्रोल पंप के निकट रमित पर धारदार हथियारों से हमला किया गया। बुरी तरह घायल रमित ने अस्पताल ले जाते समय रास्ते में दम तोड़ दिया। उसी रात कोझीकोड में भी एक भाजपा कार्यकर्ता की दुकान में जमकर तोड़फोड़ की गई। इधर रमित की बर्बर हत्या से आक्रोशित स्थानीय लोगों ने विरोध जुलूस निकाला।
भाजपा ने 13 अक्तूबर को केरल बंद का आह्वान किया था जिसे हर ओर स्वत:स्फूर्त समर्थन मिला। सभी बाजार और प्रतिष्ठान बंद रहे। प्रदेश में हिंसा न भड़के, इसके लिए पुलिस की जबरदस्त नाकाबंदी की गई थी।
उल्लेखनीय है कि रमित के पिता उत्तमन संघ के कार्यकर्ता थे। उनकी भी 22 मई, 2002 को ऐसी ही बर्बरता के साथ बस से बाहर खींचकर कथित माकपा तत्वों द्वारा हत्या कर दी गयी थी।
कहा जा रहा है कि दो दिन पूर्व कुथुपरंबु के स्थानीय माकपा कमेटी सदस्य 52 वर्षीय मोहनन की हत्या का बदला लेेने के लिए रमित की जान ली गई है।
समाचार पत्रों के अनुसार केरल में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला का कहना है कि कुछ दिन पूर्व माकपा के राज्य सचिव कोडियरी बालाकृष्णन का यह कथन-'हम बदला लेंगे' सत्य साबित होता दिख रहा है।
वडक्करा से सांसद मुल्लापल्ली रामचंद्रन का कहना है कि मुख्यमंत्री पिनरई विजयन स्वयं अपने क्षेत्र में शांति स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। वे राज्य के अब तक के सबसे कमजोर गृह मंत्री साबित हुए हैं ।
लोग इसलिए भयभीत और आशंकित भी हैं क्योंकि वे राज्य में माकपा की हिंसक राजनीति से पूरी तरह अवगत हैं। देश में अपनी गिरती साख और बिखरते कुनबे को बचाने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल में सत्ता से पूरी तरह बेदखल हो जाने के बाद वे केरल तथा त्रिपुरा में पांव जमाने के लिए कोई भी खतरनाक साजिश रच सकते हैं। केरल में भाजपा और संघ की बढ़ती ताकत से माकपा तथा जिहादी ताकतों में खलबली है।
माकपा अपनी हिंसक गतिविधियों से एक तीर से दो शिकार करना चाहती है। उसका मकसद है संघ और भाजपा को कमजोर करना तथा मुसलमानों का समर्थन प्राप्त करना।
यहां माकपा की हिंसक राजनीति को कांग्रेस भी करीब से जानती है। माकपा से कांग्रेस में गए चन्द्रशेखर नामक नेता की एक माकपा नेता के इशारे पर हत्या कर दी गयी थी। बाद में न्यायालय ने उस नेता को सजा भी सुनाई थी।
केरल में गत विधानसभा चुनावों के बाद माकपा के झंडे तले पिनरई विजयन सरकार के आते ही पिछले लगभग चार महीने में कन्नूर में 6 राजनीतिक हत्याएं हो चुकी हैं।
पिनरई विजयन के गृह क्षेत्र में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हुए हमले गहन चिंता का विषय हैं। इनसे राजनीति बदले की भावना झलकती है। कन्नूर जिले के पिनरई गांव में भाजपा कार्यकर्ता रमित की हत्या वेदनादायक है। मैं शोकाकुल परिजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं।
—अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा
पिनरई विजयन स्वयं अपने विधानसभा क्षेत्र तक में हिंसा रोक नहीं पा रहे हैं। माकपा किसी विरोधी विचारधारा को नहीं देख सकती। अत: वह निदार्ेष लोगों का खून बहाकर अपने को बचाना चाहती है। इसके प्रति माकपा के वरिष्ठ नेताओं में गुप्त सहमति है ।
— कुम्मन राजशेखरन, केरल प्रदेश भाजपाध्यक्ष
माकपा ने दशकों से एक झूठ फैला रखा है। वह खुलेआम कहती है कि वह 'एक समुदाय विशेष को संघ से बचा रही है'। लेेकिन तथ्यों के अनुसार, कन्नूर में अब तक हुईं करीब 300 राजनीतिक हत्याओं में मात्र 20 मुस्लिम समुदाय से थे जबकि बाकी सारे हिन्दू। उनमें भी इझावा समुदाय के लोग अधिक हैं।
कुछ दिन पहले देवासम बोर्ड मंत्री कडगम सुरेंद्रन ने आरोप लगाया था कि 'हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन' मंदिरों में हथियार संग्रह कर रहे हैं। सरकार ने मंदिर परिसर में शाखाओं पर भी रोक लगाए जाने की बात कही थी। इसी से साफ हो जाता है कि वे संघ और भाजपा को अपना निशाना बनाते आ रहे हैं।
भाजपा के कन्नूर जिलाध्यक्ष सत्यप्रकाश का आरोप है कि ''कुछ पुलिस अधिकारियों को छोड़कर ज्यादातर पुलिसकर्मी माकपा के हाथों की कठपुतलियां बने हुए हैं। पुलिस के होते हुए भी हमारे कार्यकर्ताओं पर हमले रोज की घटना बन गयी है।'' कुल मिलाकर पुलिस की स्थिति बहुत विचित्र है। यह सूचना मिलने के बाद भी, कि माकपा कार्यकर्ता की हत्या के बाद में भाजपा कार्यकर्ताओं पर कोई बड़ा हमला हो सकता है, वह कुछ नहीं कर पाई। समाचार के अनुसार कन्नूर के डीआईजी दिनेन्द्र कश्यप ने पत्रकारों से यह भी कहा कि ''पुलिस असहाय है क्योंकि संघर्ष दो शक्तिशाली दलों के बीच है अत: हम कुछ नहीं कर पा रहे।'' भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं के घरों और कार्यस्थलों पर पिछले एक वर्ष में सैकड़ों हमले हुए हैं जिसमें 10 कार्यकर्ता तो अपने अंग गंवा चुके हैं।
कन्नूर की जनता से बात करो तो वह दबी जबान में बताती है कि माकपा के हमले अभी और तेज होंगे। ऐसे में कहीं से भी किसी तरह की शांति की पहल दिखाई नहीं दे रही है।
पिनरई विजयन ने भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व पर आरोप लगाया है कि ''उसकी शह पर ही राज्य मेें एकता भंग की जा रही है। भाजपा और संघ हिंसा फैला रहे हैं। लेकिन माकपा बहुत शक्तिशाली है, वह इस नीति को सफल नहीं होने देगी।'' रमित की हत्या के विरोध में केरल में आम हड़ताल को सफल न होने देने के लिए सरकार पूरी तरह तैयार थी। लेकिन इसे जनता का भारी समर्थन मिला। रमित की हत्या के बाद आक्रोश से भरे लोग और दुकानों के बंद शटर बहुत कह रहे हैं। यदि माकपा इस जनाक्रोश को अनसुना करती है तो राजनैतिक हिंसा और प्रतिकार के विस्फोटक शासन के लिए आत्मघाती साबित होंगे
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