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दोस्ती के बढ़ते कदम
18 सितंबर, 2016
आवरण कथा 'पूरब में भारत उदय' से यह बात स्पष्ट है कि भारत ने दशकों से चली आ रही अपनी विदेश नीति में परिवर्तन कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन यात्रा के ठीक पहले वियतनाम जाकर विश्व जगत को अपने रुख से परिचित कराया है। वियतनाम यात्रा दोनों देशों के लिए अति महत्वपूर्ण है। कुछ समय पहले वियतनाम के साथ संबंधों में जो दूरी आई, उसे भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी मित्रता से पाट दिया।
—दिनेश राठौर, पन्ना (म.प्र.)
ङ्म भारत की बदलती विदेश नीति के चलते ही आज दुनिया में उसकी प्रशंसा हो रही है। पहले की सरकारों ने विदेशी नीति को देश के हिसाब से न रखकर अपने स्वार्थों के हिसाब से रखा। इसका परिणाम यह हुआ कि हमारे जिन देशों के साथ संबंध अच्छे थे, उनके साथ भी संबंधों में उतनी मधुरता नहीं रही। लेकिन अब ऐसा नहीं है। भारत ने अपनी विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन किया है।
—अनुज जायसवाल, कानपुर (उ.प्र.)
ङ्म एक बड़ी अच्छी कहावत है-जैसे को तैसा। अगर आपके साथ कोई अच्छा व्यवहार करता है तो आप उसके साथ अच्छा व्यवहार करें और खराब व्यवहार करता है तो खराब व्यवहार करें। भारत आज उसी राह पर है। वह बखूबी समझने लगा है कि कौन देश हमारे हितकारी हैं और कौन भितरघाती। प्रधानमंत्री की वियतनाम यात्रा को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
—अश्वनी जागड़ा, रोहतक(हरियाणा)
मिली महत्वपूर्ण जानकारी
रपट 'दामोदर की दीवानी दुनिया(18 सितंबर, 2016)' अत्यंत अच्छी लगी। आज विश्व के अनेक देशों में श्रीगणेश की पूजा होती है। रिपोर्ट पढ़कर बहुत ही ज्ञानवर्धक
जानकारी मिली।
—नैना रस्तोगी, भोपाल (म.प्र.)
हकीकत को झुठलाते अलगाववादी
रपट 'डर के मारे नहीं खोले दरवाजे (18 सितंबर, 2016)' से यह बात जाहिर होती है कि हुर्रियत के नेताओं ने जान-बूझकर बातचीत नहीं की। क्योंकि अगर वे बातचीत करते तो समाधान के स्तर पर पहुंचते और कश्मीर में जो हालात उपजे हैं, उसे शांत कराने के लिए उन्हें आगे आना पड़ता। लेकिन वे भलीभांति जानते हैं कि अब बाजी हुर्रियत के हाथों से फिसल चुकी है और उनके बातचीत करते ही यह असलियत सामने आ जाती।
—नरेश कोर्रराम, नारायणपुर (छत्तीसगढ़)
ङ्म हाल ही में कश्मीर में जो कुछ हुआ और आज हो रहा है, वह तथाकथित सेकुलरों द्वारा की गई तुष्टीकरण की नीति का परिणाम है। अगर पाकिस्तान और उसके पालतू अलगाववादियों को उन्हीं की जुबान में उत्तर दिया गया होता तो आज घाटी अशांत न होती। क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता करना ही ठीक होता है। भारत के लोग सदैव से सहिष्णुता का परिचय देते रहे हैं लेकिन दुष्टों ने इसका फायदा उठाया। भारत का इतिहास ऐसी भूलों और गलतियों से भरा पड़ा है। इसलिए अब भी हमारे लिए सुधरने का समय है। देर आयद, दुरुस्त आए।
—अनूप चंद्र, नासिक (महा.)
ङ्म वर्षों से कश्मीर पर रुदन कर रहे अलगाववादियों को कम से कम इस बार उनकी भाषा में अच्छा जवाब मिला है। सेना ने इस बार उनके द्वारा जो अशांति फैलाई जा रही थी, उस पर कड़ी कार्रवाई करके उन्हें बता दिया है कि बहुत हो चुका और भारत इसे और सहन करने वाला नहीं है। शायद अलगाववादियों और पत्थरबाजों को इसका अंदाज नहीं था कि सेना ऐसी कड़ी कार्रवाई भी कर सकती है। सेना को इसके लिए विशेष रूप से धन्यवाद।
—रानू खन्ना, नोएडा(उ.प्र.)
ङ्म कश्मीर के आज के हालात के लिए पिछली सरकारें काफी हद तक दोषी हैं। क्योंकि उन्होंने इन अलगाववादियों और पत्थरबाजों को खुली छूट दी। इनके सारे पापों पर राज्य और केन्द्र की कांगे्रस सरकार ने पर्दा डालने में कोई कसर नहीं रखी। परिणाम यह हुआ कि यहां आतंकवादियों के हौसले बुंलन्द हुए और घाटी को ये जितना अशांत कर सकते थे, इन्होंने किया। हालांकि इस बार केंद्र सरकार ने इन पर कड़ी कार्रवाई की है लेकिन इससे भी अधिक कड़ी कार्रवाई की जरूरत आज है। क्योंकि अब यह रोग कैंसर बन चुका है, जिसका संर्जरी के बिना इलाज ही नहीं है।
—दया वर्धनी, सिकंदराबाद(तेलंगाना)
ङ्म 'रस्सी जल गई पर बल नहीं गया।' कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी का आज कुछ यही हाल है। वे उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं लेकिन अभी भी देश को अशांत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उन्हें बातचीत के जरिए एक सुनहरा अवसर मिला था, वे अपनी गलती सुधार कर देश के साथ सहयोग कर सकते थे लेकिन उन्होंने यह अवसर खो दिया। असल में वे झूठी शान में जिंदगी जी रहे हैं। लेकिन कब तक भोलेभाले कश्मीरी युवाओं को बरगलाएंगे?
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)
ङ्म आज पाकिस्तान जो कश्मीर में आतंक फैलाकर भारत को अशांत कर रहा है की करतूत को पूरा विश्व जान रहा है। हर देश पाकिस्तान को अब टेड़ी नजर से देखने लगा है। उसे आतंकी राष्ट्र घोषित करने की मुहिम चल पड़ी है। अब ज्यादा दिन तक पाकिस्तान का यह चेहरा छिपने वाला नहीं है। जल्द ही उसके आतंकी चेहरे को पूरा विश्व देखेगा।
—जमालपुरकर गंगाधर, श्रीनीलकंठनगर (तेलंगाना)
ङ्म अभी कुछ दिन पहले सैन्य ठिकाने पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें देश ने 18 जवानों को खो दिया। लेकिन इस सबके बावजूद सेकुलर नेता राजनीति करने से नहीं चूक रहे। कश्मीर में ऐसे ही नेता पैलेट गन का विरोध कर रहे हैं। सरकार अगर पत्थरमारों पर कोई कड़ी कार्रवाई करती है तो इनके पेट में दर्द होने लगता है। असल में ये लोग सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करने के चक्कर में रहते हैं। जहां उनका स्वार्थ सिद्ध होता है वे उसी धारा के साथ चल देते हैं। दुर्भाग्य, ये लोग अपने बयानों से किसी न किसी प्रकार अलगाववादियों का सहयोग करते हैं।
—ललित शंकर, मेरठ (उ.प्र.)
सराहनीय कार्य
रपट 'बाढ़ग्रस्त बिहार में राहत का मरहम' (18 सितबंर, 2016) 'पढ़कर ह्दय पसीज गया। अपनी जन्मभूमि से किसे लगाव नहीं होता। हम अपने परिवार के साथ दिल्ली में चैन से हैं, बाकी हमारे परिजन बिहार में बाढ़ की चपेट में परेशान। कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है लेकिन इस बार तो गंगा तथा फाल्गु नदी ने भी कहर बरपाया। बाढ़ पीडि़तों को मदद के नाम पर राज्य सरकार ने सिर्फ खानापूर्ति की। उसके इस कार्य की जितनी भी निंदा की जाए कम ही है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने और पीडि़तों की दिल खोलकर मदद की।
—सरिता राठौर, अंबेडकर नगर (दिल्ली)
राहुल की खीज
राहुल गांधी अपने हर भाषण में कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने अपने पूंजीपति मित्रों के एक लाख दस हजार करोड़ के बैंक लोन माफ किये हैं। लेकिन शायद राहुल यह बात भूल गए कि ये ऋण किस अवधि में दिए गए थे? यह तमाम राशि संप्रग सरकार (2004-14) के समय बांटी गई थी। बैंक लोन देते समय पर्याप्त मूल्य की संपत्ति गिरवी रखता है। किन्तु मां-बेटे के शासन में सारे नियम-कायदे ताक पर रख दिए जाते रहे। विजय माल्या को 9 हजार करोड़ रुपये केवल 2 हजार करोड़ की संपत्ति बंधक रखकर दे दिए गए। इसीलिए आज प्रवर्तन निदेशालय को उसकी गैर बंधक संपत्ति जब्त करनी पड़ रही है। कांग्रेस के कुकर्मों को भाजपा ठीक कर रही है। राहुल को असल में यह शिकवा है कि उनके चाटुकारों को सीधे-सीधे ऋणमुक्ति क्यों नहीं मिली?
—अजय मित्तल, मेरठ (उ.प्र.)
बंद हो हिंसा का दौर
रपट 'राजनीतिक रंग, खूनी लाल' केरल में माकपा के गुंडों द्वारा संघ के स्वयंसेवकों और अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं पर होती हिंसा की घटनाओं को सामने लाती हैं। माक्सवादियों के इन हिंसक कृत्यों ने देश को आक्रोशित होने पर मजबूर कर दिया है। राज्य में आए दिन होती हिंसा की घटनाओं पर अब सरकार को कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी ही चाहिए। क्योंकि पानी सिर के ऊपर से हो चला है।
—शंकर नारायण, विकासपुरी (नई दिल्ली)
भूल-सुधार
पाञ्चजन्य के गत अंक (9 अक्तूबर) में पृष्ठ 22 पर राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिकाओं के चित्र प्रकाशित हुए हैं। समिति की तृतीय संचालिका उषाताई चाटी का चित्र गलत छपा है। पृष्ठ 30-31 पर समिति की प्रमुख संचालिका रहीं प्रमिला ताई मेढ़े का लेख भी प्रकाशित हुआ है। इसमें कुछ त्रुटियां हैं। लेख की अंतिम पंक्तियों को कृपया संशोधित रूप में इस प्रकार पढ़ें-'हम इस कार्य के उपकरण मात्र हैं। ऐसे में अच्छा है कि हम जैसे पुराने उपकरणों की जगह कुछ नए लोग आएं और नवीन उत्साह एवं समर्पण के साथ इस यात्रा को आगे बढ़ाएं।' सही चित्र और पूर्ण संशोधित आलेख पाञ्चजन्य की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
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