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पूसा द्वारा विकसित की गई किसी भी नई किस्म की फसल को व्यापक पैमाने पर उगाने के लिए आइएआरआइ के बिजनेस एवं प्लानिंग डिपार्टमेंट की तरफ से लाइसेंस दिया जाता है। इसके तहत कुछ सिक्योरिटी जमा कराई जाती है। साथ ही फसल उगाने के बाद जितना बीज बेचा जाता है उसकी कुछ प्रतिशत रॉयल्टी तय होती है। किसी भी नई फसल के प्रचार के लिए लाइसेंस देने का कारण यह होता है कि क्योंकि संस्थान द्वारा जो फसल विकसित की जाती है उसके बीजों की मात्रा उतनी नहीं होती कि सभी किसानों तक उनकी पहुंच हो सके। एक बार खेती की शुरुआत होने पर जैसे-जैसे फसल की जानकारी किसानों को मिलती है वे उसे उगाने लगते हैं। इसके बाद बीज बाजार में उपलब्ध होने लगता है। जहां से किसानों को आसानी से बीज मिल जाता है। ——डॉ. डीके यादव आइएआरआइ पूसा
नागौर, मोगा, जबलपुर के सैकड़ों किसानों की मुट्ठी में सरसों की एक नई किस्म का बीज है। इस सरसों की बुआई से उनकी आय में तो बढ़ोतरी होगी ही साथ ही लोगों की सेहत भी सुधरेगी। ये दावा है पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का। दरअसल लोगों को गुणवत्तापूर्ण खाद्य तेल उपलब्ध कराने के लिए पूसा ने सरसों की एक नई किस्म विकसित की है जो अन्य खाद्य तेलों के मुकाबले बेहतर है।
भारत की लगभग दो तिहाई से ज्यादा आबादी खाने के तेल के लिए सरसों के तेल का इस्तेमाल करती है। विभिन्न खाद्य तेलों में मौजूद फैटी एसिड के चलते हृदय व धमनी संबंधित रोगों के होने की संभावना काफी ज्यादा होती है इसलिए डॉक्टर खाने में तेल के कम इस्तेमाल या फिर ऐसा तेल इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं जिसमें फैटी एसिड कम हो। इन सब बातों को देखते हुए पूसा ने सरसों की इस नई किस्म को विकसित किया है। सरसों की यह किस्म किसानों के लिए भी फायदे का सौदा है। मोटे दाने की यह सरसों दूसरी किस्मों के मुकाबले प्रति एकड़ में ज्यादा पैदा होगी।
विश्व में वनस्पति तेलों के स्रोत के रूप सोयाबीन व ताड़ के तेल के बाद तीसरी प्रमुख फसल सरसों है। खाद्य तेलों में सरसों का तेल भारत में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। एशिया में सरसों के कुल उत्पादन में भारत का योगदान 40 प्रतिशत से ज्यादा है। तिलहन उत्पादन में सोयाबीन के बाद सरसों का दूसरा स्थान है। तिलहन में लगभग 24 प्रतिशत हिस्सेदारी सरसों की होती है। उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों जैसे बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि में खाने में सबसे ज्यादा इस्तेमाल सरसों के तेल का ही किया जाता है। हाल ही में पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने सरसों की नई किस्म विकसित की है। इस सरसों का तेल सरसों की दूसरी किस्म के तेल से काफी बेहतर व गुणवत्ता युक्त है। संस्थान ने इसका नाम पीएम30 (पूसा सरसों 30) रखा है। पूसा द्वारा विकसित की गई यह सरसों की 30वीं किस्म है। इससे पहले पूसा द्वारा सरसों की 29 किस्में विकसित की जा चुकी हैं।
सरसों के तेल में प्रोटीन व खनिज पदार्थ काफी मात्रा में होते हैं जो सेहत के लिए भी अच्छे होते हैं, लेकिन इसमें कुछ पदार्थ ऐसे भी होते हैं जो सेहत के लिए ठीक नहीं होते। इन्हें फैटी एसिड (वसा अम्ल) कहा जाता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के ग्रेस्ट्रोएंट्रोलॉजी डिपार्टमेंट के अध्ययन के अनुसार दूसरे तेलों के मुकाबले सरसों के तेल में असंतृप्त वसा (अनसेचुरेटिड फैट) की मात्रा अधिक होती है जबकि संतृप्त वसा (सेचुरेटिड फैट) की मात्रा कम होती है। संतृप्त वसा के ज्यादा इस्तेमाल से रक्त धमनियां संकुचित हो जाती हैं जिससे हृदय संबंधी बीमारीयां होने की संभावना रहती है इसलिए खाद्य तेलों में सरसों के तेल का इस्तेमाल करना ज्यादा फायदेमंद होता है।
आइएआरआइ के बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख डॉ. डीके यादव बताते हैं कि सेहत के लिहाज से इरुसिक एसिड की मात्रा तेल में दो प्रतिशत से कम होनी चाहिए। यदि दूसरे खाद्य तेलों की बात करें तो ताड़, मंूगफली व कपास के बीजों से निकलने वाले तेल में भी 20 प्रतिशत से ज्यादा संतृप्त वसा (सेच्युरेटिड फैट) होता है जो सेहत के लिए ठीक नहीं होता। इरुसिक एसिड के ज्यादा इस्तेमाल से हृदय रोगों के होने की संभावना बनी रहती है।
इसी को देखते हुए पूसा में सरसों की इस तरह की किस्म बनाने के लिए लंबे समय से शोधकार्य किया जा रहा था जो सेहत के लिहाज से हर पैमाने पर खरी उतरे। पूसा द्वारा विकसित की गई इस किस्म में सेहत के लिहाज से दो प्रतिशत से भी कम इरुसिक एसिड है। इससे पहले भी पूसा द्वारा कम इरुसिक एसिड वाली किस्मों का विकास किया गया है, लेकिन इस बार जो किस्म विकसित की गई है वह सरसों की अन्य किस्मों के मुकाबले सबसे बेहतर है।
इस शोध से जुड़े डॉ. नवीन सिंह बताते हैं कि इसकी पैदावार भी दूसरी सरसों के मुकाबले ज्यादा है। भारत में उगाए जाने वाली सरसों की दूसरी किस्मों के मुकाबले इसके दाने का आकार बड़ा है। इसके अलावा यह सरसों की पहली किस्म है जिसके दानों में तेल की मात्रा 37.7 प्रतिशत है। सरसों की बाकी किस्मों के मुकाबले यह पककर जल्दी तैयार होती है। बुआई से लेकर कटाई तक पीएम 30 का समय 137 दिनों का है जबकि सरसों की दूसरी किस्म 142 से 148 दिनों तक में तैयार होती हैं। एक हेक्टेयर में पीएम 30 की 21 से 22 क्विंटल की पैदावार होती है जबकि दूसरी सरसों की पैदावार 18 से 20 क्विंटल तक होती है। आइएआरआइ के बिजनेस एवं प्लानिंग डिपार्टमेंट ने सरसों की नई किस्म बडे़ पैमाने पर उगाने के लिए देश भर में फिलहाल पांच उत्पादकों को लाइसेंस दिया है।
ऐसे ही एक बडे़ उत्पादक पंजाब के मोगा जिले में रहने वाले जीत सिंह वालिया ने पीएम-30 को व्यापक पैमाने पर उगाने के लिए करार किया है। उन्होंने मोगा जिले में किसानों के साथ इस सरसों को उगाने के लिए समझौता किया है जिसके तहत ये किसान सरसों की नई किस्म की खेती कर रहे हैं। इस इलाके में करीब 120 एकड़ में पीएम30 सरसों उगाई जा रही है। वालिया बताते हैं कि बाजार में सरसों का प्रति क्विंटल जो भी भाव होगा उस पर वे किसानों को 300 रु. प्रति क्विंटल अतिरिक्त देंगे। वे किसानों के साथ मिलकर इस आधार पर सरसों को उगा रहे हैं। किसानों को सारा बीज उन्होंने अपने खर्च पर उपलब्ध कराया है।
राजस्थान में उदयपुर निवासी भागीरथ चौधरी ने भी पीएम-30 उगाने के लिए करार किया है। इसके तहत पूसा की तरफ से उन्हें पीएम-30 सरसों का बीज उपलब्ध कराया गया। इसका इस्तेमाल वे राजस्थान के नागौर जिले में और मध्यप्रदेश के जबलपुर में व्यापक पैमाने पर फसल लेने के लिए कर रहे हैं। लगभग 150 एकड़ में उन्होंने किसानों के साथ समझौता कर पीएम-30 की बुआई की है। चौधरी बताते हैं कि उनकी योजना लाइफ गार्ड नाम से पीएम-30 का तेल बाजार में लाने की है। वे दूसरी बार पीएम-30 की खेती कर रहे हैं। पिछले वर्ष जब बाजार में सरसों का भाव 3,700 रुपए प्रति क्विंटल था तो उन्होंने किसानों को 4,000 रू. का भाव दिया था। पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष उन्होंने ज्यादा बड़े पैमाने पर पीएम-30 की खेती की है।
पीएम 30 की एक और खूबी है जो न केवल किसानों, बल्कि उपभोक्ताओं को भी लुभाएगी। इसमें असंतृप्त वसा (अनसेचुरेटिड फैट) की मात्रा लगभग 70 प्रतिशत होती है जो जैतून के तेल के बराबर है। इस वजह से इसके तेल की भंडारण क्षमता भी बेहतर है। और यह सबको मालूम है कि जैतून के तेल और सरसों तेल कीमत में कितना
अंतर है। जैतून का तेल 1,000 रू. से 1,200 रू. प्रतिकिलो तक है, वहीं सरसों का तेल 80 से 90 रू. प्रतिकिलो तक मिल जाता है। सरसों के तेल के मुकाबले अन्य खाद्य तेलों की कीमत भी काफी अधिक है। इस लिहाज भी सरसों के तेल का इस्तेमाल महंगा नहीं पड़ता। देश के सामान्य हैसियत के लोग अब जेब और सेहत दोनों के प्रति निश्िंचत होकर सरसों की नई किस्म से बने तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं जो जल्द ही सबको उपलब्ध होगा।
आदित्य भारद्वाज
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