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अंक संदर्भ- 20 दिसम्बर, 2015
आवरण कथा 'कुनबे पर देशहित कुर्बान' से एक बात जरूर स्पष्ट होती है कि कांग्रेस को देश से कोई मतलब नहीं है। अदालत ने सोनिया और राहुल को हेराल्ड केस में हाजिर होने को कहा तो कांग्रेस ने इसी बात की आड़ लेते हुए सदन को बाधित किया। कांग्रेस इसे विधायिका बनाम न्यायपालिका का रंग दे रही है, जो बिल्कुल गलत है। न्यायालय ने अगर हाजिर होने को कहा है तो राहुल और सोनिया को न्यायालय का सम्मान करते हुए हाजिर होना चाहिए था। लेकिन उन्हें हाजिर कहां होना था, उन्हें तो इसके पीछे राजनीति करनी थी। यह सच है कि हेराल्ड मामला कांग्रेस के गले की फंास बनता जा रहा है। परेशान कांग्रेस इसी आड़ में राजनीतिक सद्भावना बटोरने का झूठा प्रयास कर रही है।
—राममोहन चन्द्रवंशी, टिमरनी, हरदा (म.प्र.)
ङ्म नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर की गई न्यायालय की कार्यवाही को लेकर कांग्रेस द्वारा संसद में हंगामा और सदन के बाहर भी आन्दोलन न केवल संकीर्ण मानसिकता का परिचय देता है बल्कि कानून-न्यायालय एवं देश का अपमान करता है। यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि शर्मनाक भी है। अगर राहुल और सोनिया हेराल्ड मामले में निर्द्रोष हैं तो न्यायालय में उसे सिद्ध करें, संसद को बाधित करने की क्या आवश्यकता थी?
—आकाश तोमर, फरीदाबाद (हरियाणा)
ङ्म नेशनल हेराल्ड मामला उन राजनीतिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए सबक है, जो संस्थाओं की आड़ में गड़बड़झाला करते हैं। आज देश में कुकुरमुत्ते की तरह स्वयंसेवी संगठन पनपे हुए हैं। इसमें कुछ को छोड़ दें तो अधिकतर स्वार्थ या फिर किसी खास उद्देश्य को सिद्ध करने का काम कर रहे हैं। इनके माध्यम से ही कन्वर्जन के लिए पैसा आता है । इसलिए इन सभी पर नकेल कसने की जरूरत है।
—डॉ. टी.एस.पाल, संभल (उ.प्र.)
ङ्म कांग्रेस संसद बाधित करके यह समझती है कि उसके ऐसा करने से देश की जनता उनके कारनामों को भूल जायेगी। सदन न चलने का खामियाजा आम आदमी को उठाना पड़ता है। कांग्रेस को याद रखना चाहिए उसके ऐसे ही कायोंर् के चलते उसे देश की जनता ने उसे मुट्ठीभर लोकसभा सीटें दी थीं। कांग्रेस को इस बात पर चिंतन करना चाहिए। जनता ने संसद में हुए पूरे व्यवधान को अच्छी प्रकार से देखा। अगर ऐसा ही रहा तो कांग्रेस की हालत आने वाले समय में और खराब होने वाली है।
—मूलचंद अग्रवाल, कोरबा (छ.ग.)
ङ्म कांग्रेस पार्टी ने नेशनल हेराल्ड घोटाले को लेकर जिस प्रकार संसद को बाधित किया उससे न केवल संसद की गरिमा धूमिल हुई बल्कि जनता ने कांग्रेस और उसके नेताओं की कथनी-करनी को पहचाना है। न्यायालय ने अगर उनको किसी विषय के लिए पेश होने के लिए कहा था तो उन्हें स्वेच्छा से पेश हो जाना चाहिए था और अपने तर्क न्यायालय के सामने रखने चाहिए थे। उसमें किसी भी प्रकार का शोर करने और संसद बाधित करने की क्या जरूरत थी। कांग्रेस देश की पुरानी पार्टी है। उनके नेता इससे पहले न्यायालय में पेश होते रहे हैं। लेकिन इस बार राहुल-सोनिया ने इसे एक राजनीतिक ड्रामे में तब्दील कर दिया और इसके बहाने राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की। लेकिन जनता उनके इन हथकंडों को बखूवी जानती और इनके बहकावे में नहीं आने वाली।
—कजोड़ राम नागर, दक्षिणपुरी (नई दिल्ली)
मानवता सर्वोपरि
देश ने देखा कि कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने चेन्नै में बाढ़ के समय मानवता की सेवा की। हर व्यक्ति तक राहत कैसे पहुंचे इसलिए स्वयंसेवकों ने रातदिन एक करके पीडि़त लोगों के दु:ख हरने का काम किया। अब क्या सेकुुलरों को दिखाई नहीं दिया? क्या इस आपदा में स्वयंसेवकों ने किसी मजहब को ध्यान में रखा ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सदैव से मानवता और राष्ट्र सर्वोपरि की बात करता रहा है। लेकिन फिर भी कुछ लोग जानबूझकर संघ को बदनाम करने का कुचक्र रचते रहते हैं।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
बढ़ता खतरा
जहां पर भी मुसलमानों आबादी ज्यादा होने लगती है वहां सुख-शान्ति खत्म होने लगता है। दंगे, लड़ाई, देश विरोधी गतिविधियां, धार्मिक स्थलों पर आघात पहुंचाना और साथ ही कन्वर्जन यहां आम बात हो जाती है। भारत के कुछ राज्य आज इसी बढ़ती जनसंख्या से परेशान हैं। यहां लगातर मुस्लिम जनसंख्या में बढ़ोतरी हो रही है। हाल ही में कई राज्यों में इनके द्वारा मचाया गया उत्पात इस बात का उदाहरण है।
—आनंद मोहन भटनागर
लखनऊ (उ. प्र.)
पूर्वाग्रहग्रस्त मीडिया
कुछ समाचार चैनल और समाचार पत्र जिनका काम सिर्फ एक है पूर्वाग्रह से हरेक चीज को देखना और कुतर्कों के साथ घिसी-पिटी, नकारात्मक एवं दुराग्रही सामग्री प्रस्तुत करना। ऐसा नहीं है कि देश की जनता इनके कारनामों से परिचित नहीं है।
—दया प्रकाश
सर्राफ, नई अनाज मंडी, हिसार (हरियाणा)
समझ में आया महत्व
रपट 'उम्मीद नई जलवायु की' सिर्फ एक बात की ओर इशारा करती है कि अगर प्रकृतिक का दोहन करना बंद कर दिया जाये तो सहजता से जलवायु में सुधार आ सकता है। विश्व को आज पर्यावरण का महत्व समझ में आने लगा है। अब इसकी अनदेखी और नहीं की जा सकती।
—हरिहर सिंह चौहान
जंबरी बाग नसिया, इन्दौर (म.प्र.)
पुरस्कृत पत्र
सुनियोजित षड्यंत्र
इस देश के कुछ मुसलमान अभिनेता जो इसी देश में पैदा हुए और हिन्दू समाज के स्नेहभाव के दम पर ही सिनेमा जगत के सिरमौर बने हुए हैं। करोड़ों रुपये कमाने वाले ऐसे अभिनेताओं को अचानक इस देश में असुरक्षा महसूस होने लगी और देश छोड़ने की बात करने लगे। ऐसा क्या हुआ जो इन्हें यहां पर असहिष्णुता नजर आने लगी? असल में यह एक सुनियोजित चाल थी। और इसी चाल ने देश में जानबूझकर असहिष्णुता का माहौल बनाया। वहीं इस पर राहुल बाबा भी खूब जोरआजमाइश करते दिखे। उन्होंने भी असहिष्णु लोगों की हां में हां मिलाई और देश को दिग्भ्रमित किया। जो लोग असहिष्णुता की आड़ लेकर सड़क से लेकर संसद तक बाधित कर रहे थे उन्हें कभी निर्दोष कारसेवकों की याद क्यों नहीं आई जिन्हें गोधरा में ट्रेन के अंदर जलाया गया था? तब इस पर उन्होंने क्यों विरोध नहीं किया? उस समय इनकी मानवता कहां चली गई थी? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनके उत्तर ऐसे लोगों को देने चाहिए जो आज असहिष्णुता पर हंगामा कर रहे हैं।
रही बात हिन्दुस्थान की सहिष्णुता पर प्रश्न चिह्न लगाने की तो उन्हें जानना चाहिए कि अगर हिन्दू और हिन्दुस्थान सहिष्णु न होता तो भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद भी भारत में रह रहे मुसलमानों की जनसंख्या 3 करोड़ से बढ़कर 25 करोड़ से ज्यादा न हुई होती। यह हिन्दू समाज की रग-रग में बसी सहिष्णुता ही तो है कि सोमनाथ और अयोध्या के राम मंदिर को तोड़े जाने के बाद से लेकर नालंदा के बहुमूल्य पुस्तकालय को जलाने, मोपला तथा चटगांव की घटना, पाकिस्तान के विभाजन के बाद सीमा पार से आती गाडि़यों में हिन्दुओं की लाशों से लेकर और आज भी बंगलादेश सहित अन्य देशों में आए दिन होते हिन्दुओं पर अत्याचार और जुल्म के बाद भी हिन्दू शान्त रहकर सब सहन करता रहता है। ऐसे ही पता नहीं कितने उदाहरण हैं। इसलिए हिन्दू और हिन्दुस्थान को सहिष्णुता को किसी के सामने सिद्ध करने की कोई जरूरत नहीं है।
—हेमन्त कुमार भगत
मंुगरौड़ा चौक, जमालपुर,
मुंगेर (बिहार)
छिड़ी जुबानी जंग
लालू औ नीतीश में, छिड़ी जुबानी जंग
बेबस जनता हो रही, लेकिन भारी तंग।
लेकिन भारी तंग, घूमते खुले मवाली
मानो उनके लिए आ गयी है खुशहाली।
कह 'प्रशांत' असली सत्ता है लालू जी पर
सीधे-साधे लोग कांपते फिरते थर-थर ॥
—प्रशांत
विशेष आग्रह
कृतज्ञ देश एकात्म मानवदर्शन के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी मना रहा है, इसे सुयोग ही कहा जाना चाहिए कि उनके 100वें जन्मदिवस पर दीनदयाल जी के संपूर्ण वाङ्मय का विमोचन भी प्रस्तावित है। एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान इसकी तैयारियां कर रहा है।
प्रतिष्ठान के अध्यक्ष तथा एकात्म मानवदर्शन के अनुभवी तथा आग्रही अध्येता डॉ. महेश चंद्र शर्मा बरसों से इस साधना में लगे हैं, इस साधना का ही परिणाम है कि इसके 15 खंडों का संकलन हो चुका है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक व सरकार्यवाह सहित कई महानुभाव इसकी भूमिका आदि लिख रहे हैं। पूरी संपादकीय टोली का प्रयास है कि पंडित जी की लिखी तथा बोली कोई सामग्री इसमें से छूट न जाए। इसलिए सभी सुधी पाठकों से निवेदन है कि अगर उनके पास पंडित दीनदयाल उपाध्याय की लिखी कोई चिट्ठी, पत्रक, नोट, उनका कोई भाषण, बौद्धिक वर्ग के नोट, उनका कोई फोटो, वीडियो, आदि उपलब्ध हों अथवा उन्हें इनकी प्राप्ति का कोई अन्य स्रोत ज्ञात हो तो कृपया इस पते पर भेजने का कष्ट करें, पता है- भारत प्रकाशन (दिल्ली) लिमिटेड, संस्कृति भवन, 2322, लक्ष्मी नारायण गली, पहाड़गंज, नई दिल्ली- 10055
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