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आवरण कथा ‘पढ़ाई का पहाड़ा’ निजी स्कूलों और सरकारी स्कूलों के बीच फंसी शिक्षा व्यवस्था का सही चेहरा सामने रखती है। पढ़ाई को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय ने सबकी आंखें खोल दी हैं। यह आज का कठोर सत्य है कि सरकारी स्कूलों में केवल निर्धन परिवारों के ही बच्चे पढ़ते हैं। यहां तक कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक भी अपने बच्चों को महंगे निजी स्कूलों में शिक्षा दिलवाने को प्राथमिकता देते हैं। सभी का तर्क होता है कि जमाने के अनुसार वे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। वास्तव में ऐसी ही नकारात्मक सोच के कारण सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। न्यायालय के इस फैसले को लागू करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को कठोर कदम उठाने होंगे। तभी सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधरेगा।
—कृष्ण वोहरा
मोहल्ला जेल ग्राउंड, सिरसा (हरियाणा)
शिक्षा में आज जो स्थिति है उसका कारण देश में चलने वाली दोहरी शिक्षा पद्धति है। शिक्षा का मूल सिद्धांत चरित्र का निर्माण करना होता है। कहा गया है कि यदि धन खो जाए तो कुछ नहीं खोया। स्वास्थ्य खो जाए तो कुछ खो गया लेकिन यदि ज्ञान खो जाए तो सब कुछ खो जाता है। आज विद्यालयों में मूल्यपरक शिक्षा नहीं दी जा रही है। पहले जब गुरुकुल शिक्षा पद्धति थी तो बच्चों को मूल्यपरक शिक्षा दी जाती थी। सभी गुरुकुल में रहकर शिक्षण प्राप्त करते थे। आज शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बदल चुकी है। शिक्षा एक कारोबार बन चुकी है। हम आज तक अंग्रेजों की बनाई नीतियों का ही पालन कर रहे हैं। जो भी रचनाएं इस अंक में प्रस्तुत की गई हैं। शिक्षा नीति का निर्धारण करने वालों को उनका गहनता से अध्ययन करना चाहिए ताकि जब वे नीतियां बनाएं तो कहीं भी किसी तरह की कोई चूक न होने पाए।
—लक्ष्मी चंद
गांव बांधड़ा, तहसील कसौली,
जिला सोलन (हि.प्र.)
आवरण कथा से शिक्षा पद्धति की खामियां उजागर हुई हैं। आजादी के इतने वर्षों बाद भी शिक्षा में जो आमूल चूल परिवर्तन होना चाहिए था, वह नहीं हो पाया है। ग्रामीण अंचलों में आज भी शिक्षा का पूरी तरह से प्रसार नहीं हुआ है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। जिन बच्चों के अभिभावक आर्थिक तौर पर सक्षम हैं वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में शिक्षा दिलवा लेते हैं, लेकिन ग्रामीण अंचलों में जहां गरीबी है वहां के नौनिहालों को स्तरीय शिक्षा नहीं मिल पाती और वे जिंदगी की दौड़ में पीछे रह जाते हैं। सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा का स्तर सुधरे, विशेषकर प्राथमिक शिक्षा का। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाने जरूरी हैं। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
—महेंद्र स्थापक
करेली, जिला नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश
शिक्षा का स्तर तभी सुधर सकता है जब देश में सभी को एक समान शिक्षा के मौके मिले। इसके लिए जरूरी है कि सरकार इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को तत्काल प्रभाव से स्कूलों में लागू करवाए। कहने को तो निजी स्कूलों में ‘ईडब्ल्यूएस कोटे’ के तहत आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए कुछ सीटें आरक्षित होती हैं, लेकिन क्या वास्तव में इन सीटों का लाभ ऐसे लोगों को मिल पाता है? नहीं। इन सीटों पर भी उन्हें दाखिला नहीं मिल पाता। दरअसल खामियां हमारी शिक्षा नीति में ही हैं। शिक्षा आज एक व्यवसाय बन चुकी है। फिर चाहे बात स्कूली शिक्षा की हो या फिर उच्च शिक्षा की, हमें पूरी शिक्षा व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करने की जरूरत है ताकि हर तबके के छात्रों को शिक्षा में बराबर मौका मिल सके।
—अनुज वशिष्ठ, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
हमारी पूर्ववर्ती सरकारों ने यदि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए सोचा होता तो आज ऐसी स्थिति नहीं होती। आजादी के इतने वर्षों बाद आज यदि सरकारी स्कूलों को देखा जाए तो उनकी स्थिति दयनीय है। राजधानी दिल्ली तक में बहुत से ऐसे स्कूल हैं जिनमें छात्रों के लिए बैठने तक की जगह ही नहीं है। शिक्षा का स्तर भी तभी सुधर सकता है जबकि विद्यालयों में मूलभूत सुविधाएं हों। शिक्षा नीति बनाने वाले लोगों को चाहिए कि वे ऐसी शिक्षा नीतियां बनाएं जिससे हर तबके के बच्चों को एक समान शिक्षा मिल सके। देश के बच्चों को यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी तभी देश भी तरक्की कर पाएग, क्योंकि छात्र ही देश का वर्तमान और भविष्य होते हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला सराहनीय है। केंद्र और राज्य सरकारों को इसे गंभीरता से लेते हुए शिक्षा का स्तर सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
—गौरव अरोड़ा, जिला बिजनौर (उ.प्र.)
असंतुलित आबादी राष्ट्र के लिए घातक
भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मुसलमानों की आबादी हिंदुओं के मुकाबले तेजी से बढ़ रही है। ‘गिरावट से चढ़ी त्योरियां’ शीर्षक से प्रकाशित लेख से स्पष्ट है कि समाज में एक दशक के भीतर ऐसा जनसांख्यिक असंतुलन राजनीतिक, आर्थिक और समाजिक दृष्टि से भी प्रभाव डालता है। मुसलमानों की आबादी बढ़ने का एक बड़ा कारण है उनकी विस्तारवादी सोच है। यदि आबादी का असंतुलन नहीं सुधरा तो आने वाले कुछ वर्षों में भारत भी इराक और अफगानिस्तान जैसा हो जाएगा और इसके अत्यंत गंभीर परिणाम हमें भुगतने पड़ेंगे। संतुलित आबादी के संदर्भ में सभी को गंभीर रूप से सोचने की आवश्यकता है।
—आचार्य श्रुति भास्कर
वेद मंदिर, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
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