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सन् 1971 के युद्ध के वे दिन, जब पाकिस्तान के साथ लड़ाई छिड़ चुकी थी। अम्बाला में पूरी गड़गड़ाहट के साथ टैंक छावनियों से निकलकर जी़ टी़ रोड पर उतर चुके थे और बढ़ रहे थे सीमा क्षेत्र की ओर जहां घात लगाकर बैठे दुश्मन को कड़ा जवाब देना था। सेना के वाहन सैनिकों और रसद को लेकर उधर ही दिन-रात जा रहे थे। छावनी के पास रहने वाले लोगों के लिए यह आम नजारा था। प्रशासन ने जनता को हाई अलर्ट पर रखा हुआ था। बत्ती जलाना, आग जलाना, धुआं करना सख्त मना था। इससे कभी भी दुश्मन को आपके ठिकाने की खबर हो सकती थी और दुश्मन के हवाई जहाज पूरे शहर पर कहर बरपा सकते थे। रह-रह कर हवाई पट्टी से आती जहाजों के उड़ने और उतरने की आवाजें हर कान में दहशत सी घोल देती थीं। रेडियो पर लोगों के कान जंग के समाचार जानने के लिए लगे रहते थे। ऐसे में युवाओं का युद्धभूमि में जाकर दुश्मन के दांत खट्टे करने के लिए मन मचलने लगता। परन्तु ऐसा सौभाग्य हर किसी के भाग्य में नहीं होता। इस बीच युद्धभूमि से लगातार सैनिकों के हताहत होने की खबरें आने लगीं। सेना को भारी मात्रा में रक्त की आवश्यकता हुई। जो घायल सैनिकों को चढ़ाकर उनकी रक्षा की जा सके। ऐसे में कॉलेजों, कार्यालयों, गुरुद्वारों, मन्दिरों तथा बाजारों में रक्तदान शिविर लगने लगे। आम जनता को रक्तदान का महत्व पता लगने लगा। इन हालातों ने कई युवाओं को प्रेरित किया जो अपने सैनिकों के लिए रक्त जुटाने के मिशन में लग गए। मिशन ऐसा जिसने कम से कम एक युवा की तो सदा के लिए जिन्दगी बदल दी। उस समय का वह युवा था राजेन्द्र गर्ग। अम्बाला शहर निवासी राजेन्द्र गर्ग ने छावनी क्षेत्र के निकट रहने के कारण युद्ध के दिनों की उस दहशत तथा माहौल को महसूस किया। भारतीय वायुसेना में भर्ती होने की चाहत रखने वाले राजेन्द्र गर्ग अपने इस मिशन में तो सफल नहीं हो पाए परन्तु सैनिकों के लिए 1971 के युद्ध के दिनों में कॉलेज में किए गए रक्तदान ने तो जैसे उन्हें जीवन का ध्येय ही प्रदान कर दिया।
जीवन में पहली बार किए गए उस रक्तदान ने उन्हें प्रेरित किया कि वे रक्त जुटाने के इस मिशन में लगकर भी देश तथा समाज की कुछ सेवा कर सकते हैं। तभी से रक्त की कमी से किसी व्यक्ति की जान न जाए, इस उद्देश्य को सामने रखकर राजेन्द्र गर्ग हर तीन मास के बाद चंडीगढ़ पी. जी़ आई. जाकर रक्तदान करने लगे। इस प्रकार वे वर्ष में चार बार रक्तदान करते। परन्तु मरीजों के लिए रक्त की कमी को उन्होंने अपनी आंखों से देखा था, इसी कारण उनके मन को चैन नहीं प्राप्त होता। एक कदम आगे जाकर राजेन्द्र गर्ग ने रक्त की कमी से जूझ रहे इन लोगों की परेशानी आम जनता को बतानी प्रारंभ की तथा लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने का कार्य आरम्भ किया। उनके इस अभियान में लोगों को रक्तदान के प्रति फैली भ्रांतियों को दूर करना तथा खून की कमी से मरने वाले लोगों के दर्द से लोगों को अवगत करवाना शामिल था। राजेन्द्र जी ने पाया कि कम पढ़े-लिखे वर्ग में रक्तदान को लेकर कुछ झिझक तो है ही वहीं अभिजात्य वर्ग के अनेक लोग भी इस महादान से बचते हैं।
अत: राजेन्द्र गर्ग ने एक संस्था बना कर अपने आसपास के क्षेत्र के युवाओं तथा पढ़े-लिखे वर्ग के लोगों को इस समाजसेवा के कार्य में बढ़-चढ़ कर आगे लाने व रक्तदान करवाने का कार्य आरम्भ किया। इतने वषार्ें तक चलाए गए इस अभियान का यह प्रभाव रहा कि धीरे-धीरे लोग इस अभियान से जुड़ते चले गए और एक पूरी पीढ़ी परेशानियों से घिरे मरीजों की रक्षा के लिए आगे आ गई।
रक्त प्रदान के लिए अलख जगाने के कार्य को करने के साथ ही राजेन्द्र गर्ग ने अपने नियमित रक्तदान के अभियान को भी निरंतर जारी रखा। परिणामस्वरूप आज राजेन्द्र गर्ग का नाम हरियाणा के सर्वाधिक रक्तदाताओं की सूची में प्रथम स्थान पर है। इसी प्रकार वे भारत के सर्वाधिक पूर्ण रक्तदाताओें की श्रेणी में भी शीर्ष दस व्यक्तियों में प्रथम स्थान पर हैं। राजेन्द्र गर्ग अब तक 169 बार रक्तदान कर चुके हैं। रक्तदान कर समाज सेवा के क्षेत्र में अग्रिम भूमिका निभाने के लिए राजेन्द्र गर्ग को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय हीरो के सम्मान से नवाजा गया है। विभिन्न प्रदेशों के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों से सम्मानित हो चुके राजेन्द्र जी 200 से अधिक पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
रक्तदान के इस महायज्ञ में उनका योगदान किसी भी प्रकार से कम न हो इसी कारण उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को भी विवाह पूर्व ही इस महादान के विषय में समझाया। परिणाम यह रहा कि अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका सुचेता गर्ग भी अपने पति के इस अभियान में शामिल हो गईं। जैसे-जैसे इन दोनों का परिवार बढ़ता चला गया परिवार का प्रत्येक सदस्य इस यज्ञ में आहुति देने के लिए आगे आ गया। आज स्थिति यह है कि राजेन्द्र व सुचेता गर्ग के पुत्र, पुत्री व पुत्रवधू सहित परिवार के अन्य सदस्य भी इस पुण्यकर्म में शामिल हैं। अपनी संस्था के माध्यम से तथा अन्य कई संस्थाओं के सहयोग से राजेन्द्र गर्ग वर्ष में कई बार रक्तदान शिविरों का आयोजन करते हैं। कई रोगियों की जान राजेन्द्र गर्ग द्वारा ऐन मौके पर उपलब्ध करवाए गए रक्त के कारण बच पाई है। भारत विकास परिषद सहित कई संस्थाओं से जुड़े राजेन्द्र गर्ग आज युवाओं तथा भावी पीढ़ी के लिए एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
अभिनव
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