संस्कार-संगठन की शाला शाखा
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संस्कार-संगठन की शाला शाखा

by
Jul 4, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jul 2015 11:39:24

अंक संदर्भ : 14 जून, 2015
आवरण कथा 'सुख की शाखा' से स्पष्ट होता है कि शाखा सिर्फ व्यायाम या खेलने मात्र की विषयवस्तु नहीं है बल्कि यहां खेलने के साथ-साथ व्यक्ति निर्माण का कार्य होता है। इसी कारण समाज के लोग संघ की ओर खिंचे चले आते हैं। संघ स्थान एक ऐसा क्षेत्र है, जहां कोई भेदभाव, छुआछूत, अमीर-गरीब, बड़ा-छोटा नहीं। अगर यहां पर किसी का कोई परिचय होता है तो वह सिर्फ और सिर्फ स्वयंसेवक होता है।  शायद ही विश्व में ऐसा कोई संगठन हो जहां इस प्रकार की कार्यपद्धति प्रचलित हो। सामाजिक मेल-मिलाप, चर्चा-परिचर्चा, एक-दूसरे का सुख-दु:ख बांटने जैसी अनेक चीजों की चिंता सिर्फ और सिर्फ शाखा में होती है। आज के युवाओं के भागमभाग वाले जीवन में शाखा लोगों के चेहरे पर प्रसन्नता ला   सकती है।
—देशबंधु
उत्तम नगर (दिल्ली)
ङ्म संपादकीय में बड़े सरल शब्दों में शाखा को समझाने का प्रयास किया गया है। वास्तव में संघ निर्माता ने शाखा के रूप में ऐसी पद्धति विकसित की जो पूरी तरह वैज्ञानिक है। विज्ञान में जिस प्रकार सिद्धान्त के प्रयोग द्वारा सिद्ध किया जाता है। बिल्कुल उसी तरह राष्ट्र निर्माण हेतु व्यक्ति निर्माण की प्रयोगशाला है शाखा। पता ही नहीं चलता कि कैसे संघ स्थान पर जाते-जाते जीवन परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। कब देशभक्ति के संस्कार गहरे अंदर पैठ जाते हैं। शाखा के इस कमाल को बिना शाखा जाए नहीं समझा जा सकता। कमरे में बैठ कलम घिसने वाले लोगों को यह बात बिना जाए समझ में नहीं आने वाली। जो शाखा या संघ की बुराई बिना जाने कर रहे हैं उन्हें शाखा में एक बार अवश्य जाना चाहिए।
 —गोविन्द राम अग्रवाल,
लखनऊ (उ.प्र.)
ङ्म विश्वभर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चर्चा अनेक रूपों में होती रहती है। कभी उसके सामाजिक कार्यों को लेकर तो कभी उसके स्वयंसेवकों के कारण। लेकिन जिस संघ की चर्चा सामान्य रूप में होती है उसके पीछे शाखा नाम की कार्यशाला है, जहां स्वयंसेवकों का निर्माण होता है। इसी कार्यशाला से निकलकर स्वयंसेवक समाज सेवा का कार्य करता है। वर्तमान में देश की परंपरा और भारतीयता को जानने की महती आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए शाखा एक अच्छा माध्यम है क्योंकि यहां व्यक्ति को गढ़ा जाता है और गढ़ने के बाद उसमें कूट-कूट कर भारतीयता का बोध कराया जाता है।
—छैल बिहारी, छाता, मथुरा (उ.प्र.)
ङ्म वर्ष 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर के मोहिते के बाड़े में छोटे-छोटे बच्चों को लेकर शुरू किया गया संघ कार्य आज विशाल वट वृक्ष के रूप में संपूर्ण विश्व के सम्मुख है। आज देश में हजारों स्थानों पर शाखा के जरिये व्यक्ति निर्माण का कार्य चल रहा है तो वहीं करोड़ों लोगों की इसमें सहभागिता है। संघ की प्रमुख शक्ति उसकी शाखा है और यही शाखा मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाने वाली सीढ़ी है। नित्यप्रति शाखा में आने से केवल शारीरिक शक्ति ही नहीं बढ़ती बल्कि मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ती है। शाखा स्वयंसेवकों के आन्तरिक गुणों को विकसित करके उन्हें राष्ट्र पे्रम से ओतप्रोत कराती है।
—कृष्ण वोहरा
 जेल मैदान, सिरसा (हरियाणा)
ङ्म सुख की शाखा लेख देश-विदेश के लाखों पाठकों और स्वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य करेगा। वैसे संघ वनवासी कल्याण आश्रम और अन्य सेवा प्रकल्पों के माध्यम से वनवासी और मुख्यधारा से कटे क्षेत्रों के समुदाय के लिए हरसंभव मदद करने का प्रयास करता रहता है। जिसके परिणाम भी हम सभी समय-समय पर देखते हैं कि पूर्वोत्तर सहित झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि के मुख्यधारा से कटे क्षेत्रों में वनवासी लोगों का कन्वर्जन रुका हुआ है। लेकिन कुछ समय से मध्य प्रदेश मिशनरियों के निशाने पर है। यहां के वनवासी क्षेत्रों में इनका कार्य तेजी से बढ़ रहा है। भोले-भाले लोगों को वे आसानी से बरगलाते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करके चलते बनते हैं। इसलिए इन क्षेत्रों पर नजर रखने की महती आवश्यकता है।
—उदय कमल मिश्र, सीधी (म.प्र.)
ङ्म शाखा ही वह जड़ है जिसके बल पर  राष्ट्र सेवा का विराट वृक्ष संघ लहरा रहा है। जातिवाद, ऊंच-नीच को हटाने का जो पाठ शाखा से मिलता है अफसोस है कि उसी पाठ के विपरीत संघ की आलोचना करते सेकुलर नहीं थकते हैं। लेकिन कुछ भी हो देश शाखा और संघ के बारे में जानने के लिए लालायित है। समाज जानना चाहता है कि आखिर शाखा में ऐसा क्या सिखाया जाता है कि यहां से निकलने के बाद बालक, युवा, प्रौढ़ सामान्य व्यक्ति नहीं रहता बल्कि वह भारतीयता से पूर्ण हो जाता है। उसे अपनी परंपरा और देश से प्रेम हो जाता है। उसके लिए देश से बढ़कर कुछ भी नहीं रहता। ऐसी है संघ की शाखा।
—हरिओम जोशी, भिण्ड (म.प्र.)
सोच बदलो, देश बदलेगा !
देश के प्रधानमंत्री ने भारत को स्वच्छ रखने के लिए स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम की शुरुआत की। देश के अधिकतर स्थानों पर इस कार्यक्रम का असर भी दिखा। यह कार्यक्रम बड़ी सोच के साथ शुरू किया गया था। लेकिन कुछ संकुचित मानसिकता के लोगों ने इस कार्यक्रम के विषय में भ्रामकता फैलाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। वैसे भारत स्वच्छ होगा इससे सिर्फ प्रधानमंत्री को ही सुखद महसूस नहीं होगा बल्कि यह हम सभी के लिए गौरव की बात होगी। क्योंकि स्वच्छता का विषय समाज से जुड़ा है। वैसे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम सोच में बदलाव का है और हम सभी को कोशिश करनी चाहिए कि ऐसे सामाजिक कार्यकमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें और उन्हें सफल बनाए।
—दीपक शर्मा
 लाखेनगर चौक, रायपु

झूठी बुनियाद
लेख 'महाराणा प्रताप और झूठी बुनियाद पर खड़ा अकबर' अकबर की कलई खोलता है और उसके वास्तविक चरित्र को उजागर करता है। महान देशभक्त शूरवीर महाराणा प्रताप से अकबर की तुलना कदापि नहीं की जा सकती। महाराणा प्रताप देश के गौरव रूप में हैं तो अकबर हिन्दुओं के मानमर्दन और मानबिन्दुओं को नष्ट करने वाले आततायी के रूप में। अकबर इस्लाम का प्रसारक था जबकि महाराणा प्रताप ने कभी भी भारतमाता की आन-बान-शान में कमी नहीं होने दी। स्वयं पता नहीं कितनी विपत्तियों को सहा, यहां तक कि सीमित सैन्य शक्ति के बल पर अकबर को नाकों चने चबाने पर बाध्य कर दिया, लेकिन मुगल शासक से समझौता              नहीं किया।
—शारदा पाण्डेय
 भरद्वाजपुरम्, प्रयाग (उ.प्र.)
योग पर सबका साथ
कुछ सेकुलर और मुस्लिम मौलाना घिसी-पिटी बातों को लेकर योग का विरोध कर रहे थे। यानी कुछ लोगों की आदत होती है कि कितना भी अच्छा कार्य करो हम विरोध तो करेंगे ही। लेकिन फिर भी कुछ मुस्लिम योग के पक्ष में आए, वह स्वागत योग्य है।
—प्रदीप सिंह राठौर
 पनकी, कानपुर (उ.प्र.)
               मिली नागरिकता
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने पाकिस्तान से आए 158 हिन्दुओं को भारतीय नागरिकता प्रदान कर बहुत ही अच्छा कार्य किया है। विभाजन के समय जो हिन्दू पाकिस्तान में रह गए थे तब से उन पर पता नहीं कितने जुल्म ढाए गए और आज भी जारी हैं। आए दिन पाकिस्तान से हिन्दुओं की हृदयविदारक समाचार प्राप्त होते रहते हैं। इन्हीं सब चीजों से तंग आकर पाकिस्तान से हिन्दू भारत के लिए पलायन कर रहे हैं। विभाजन के समय राजनीति यह थी कि पाकिस्तान का भूभाग मुसलमानों के लिए और हिन्दुस्थान का भूभाग हिन्दुओं के लिए। इसलिए हमारा कानून ऐसा होना चाहिए कि कोई भी आहत हिंदू परदेश से भारत आए तो नागरिकता देने में कोताही नहीं होनी चाहिए।
—डॉ. रमेशचन्द्र नागपाल
  गाजियाबाद (उ.प्र.)
रास्ता भटकी पत्रकारिता
लेख 'सवालों के घेरे में मीडिया' ने एक तरीके से नकाब उतारकर फेंका है। वैसे पत्रकारिता एक मिशन है। लेकिन यह मिशन आज भटककर व्यवसाय का रूप ले चुका है या यूं कहें कि पत्रकारिता अपने रास्ते से ही भटक चुकी है। इसलिए जरूरत है मीडिया फिर से अपने रास्ते आए, क्योंकि मीडिया समाज का आईना होता है।
—राधाकृष्ण वर्मा
फरीदाबाद (हरियाणा)
खोटी सोच
देश के विरोधी दलों के पास वर्तमान में कोई मुद्दा नहीं रह गया है। उनके पास सिर्फ एक ही मुद्दा है- प्रधानमंत्री और उनकी सरकार का अंध विरोध। चाहे भूमि अधिग्रहण बिल हो, प्रधानमंत्री का विदेश दौरा हो या फिर अन्य, सभी चीजें उनके निशाने पर रहती हैं। शायद वे सोचते हैं कि प्रधानमंत्री को देश में ही बैठे रहना चाहिए, विदेशों से कोई संपर्क नहीं रखना चाहिए। सेकुलरों को मोदी सरकार में कुछ अच्छा दिखाई ही नहीं देता, सब बुरा ही बुरा दिखाई देता है। हद तो इस बात की है कि जनता के सीधे वोटों द्वारा निर्वाचित लोकसभा सदस्य यदि जनहित में कोई बिल पास कर देते हैं तो उच्च सदन के सदस्य जिसमें मात्र राज्यों के प्रतिनिधि हैं और विरोधी दलों को बहुमत है। अपने दम पर सिर्फ इसलिए अड़ंगे लगा देते हैं कि सरकार को किसी अच्छे कार्य का श्रेय न मिल जाये।
—अरुण मित्र, रामनगर (दिल्ली)

 

अच्छे दिन भला और कैसे?
पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव के समय एक नारा काफी चर्चा में रहा-अच्छे दिन आएंगे। मीडिया ने भी इस लाइन को खूब प्रचारित किया और जनता ने भी इसे हाथोंहाथ लिया। बहुत हद तक चुनाव में इसका असर भी रहा और लोगों में एक आशा भी जगी। लेकिन वर्तमान में विपक्ष इसी नारे को जुमला बताकर सत्ता पक्ष से सवालों की बौछार करके घेरने का प्रयास कर रहा है। विपक्ष इसकी आड़ में बचकानी हरकत करने से भी बाज नहीं आ रहा है। अगर कहीं रेलगाड़ी लेट हो गई, कहीं प्राकृतिक आपदा आ गई, कहीं वर्षा ज्यादा हो गई, कोई दुर्घटना हो गई या फिर अन्य कोई समस्या आने पर वह कहता है कि अच्छे दिन तो दूर अब जनता के बुरे दिन आ गए हैं। अब विपक्ष और खासकर कांग्रेस पार्टी के उन नेताओं को कौन समझाए जो चुनाव के बाद से खीझ खाए बैठे हैं और उन्हें किसी भी तरह वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार को घेरना है और जनता को बरगलाना है। जबकि इसी विषय पर प्रधानमंत्री ने यह कहकर उचित उत्तर दिया था कि अच्छे दिन तो आ ही गए हैं। उन्होंने नीतियों में सुधार, कार्य पद्धति में पारदर्शिता और सुशासन की ओर इशारा किया था। लेकिन शायद कांग्रेस के नेताओं और सेकुलर जमात में शामिल अन्य दलों को यह सभी चीजें दिखाई ही नहीं देतीं या फिर वह देखना ही नहीं चाहते! इन्हीं कारणों के चलते देश की जनता ने कांग्रेस का केन्द्र से ही पत्ता साफ नहीं किया बल्कि कई राज्यों से सफाया कर दिया। कारण स्पष्ट था कि उसकी कार्य पद्धति। अपने दस वर्ष के शासनकाल में उसने देश के खजाने को दोनों हाथों से लुटाया और घोटाले पर घोटाले किए। कोई भी ऐसा मंत्रालय नहीं था जहां से भ्रष्टाचार की खबरें न आती रही हों। देश ने कांग्रेस के इसी कार्य को निशाने पर लिया और लोकसभा चुनाव में दिखा दिया कि जनता सर्वोच्च है। खैर कांग्रेस सहित सेकुलर दलों का काम ही है देशवासियों को बरगलाना और अपना स्वार्थ सिद्ध करना। गरीबी हटाओ की रट लगाने वाली पार्टी की हालत 'खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे' वाली रह  गई है।
                             — हिम्मत जोशी    
अरुणोदय, लक्ष्मीनगर, नागपुर-22(महाराष्ट्र)  
मर रहे भूखे-प्यासे

डबल मुसीबत में फंसा, अबकी पाकिस्तान
एक तरफ गरमी बहुत, और उधर रमजान।
और उधर रमजान, मर रहे भूखे-प्यासे
खेती-मजदूरी में पिसे गरीब उदासे।
कह 'प्रशांत' गिनती हजार से ऊपर आयी
रोजों ने अबकी है ऐसी आफत ढायी॥   
-प्रशान्त

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