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लगता है कि बिहार में जंगलराज की पुनर्वापसी हो गई है। ऐसा कोई दिन नहीं बीत रहा है जब राज्य में हत्या, अपहरण, बैंक डकैती, बस डकैती, रेल डकैती, बलात्कार जैसी घटनाएं न होती हों। सामान से लदे ट्रकों का भी अपहरण होने लगा है। अपराधी कहीं भी और किसी भी समय किसी ट्रक का अपहरण कर लेते हैं और चालक और सहायक को मारकर उस पर लदे सामान कहीं बेच देते हैं। इससे व्यापार जगत को नुकसान हो रहा है और व्यापारी दहशत में हैं। बिहार के हालात फिर नब्बे के दशक जैसे होने लगे हैं। भागलपुर में रहने वाले वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहे सुरेन्द्र घोष कहते हैं, 'लोकसभा चुनाव-2014 में मिली करारी हार के बाद ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद एक-दूसरे के करीब आने लगे थे। उसी समय अपराधियों को लगने लगा था कि अब कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता और वे लोग फिर से सक्रिय होने लगे थे। अब जब यह घोषणा हो गई है कि जदयू और राजद दोनों दल मिलकर विधानसभा चुनाव लडे़ंगे तो सबसे अधिक खुश असामाजिक तत्व हो रहे हैं। अपराधियों के हौसले बुलन्द हो गए हैं और शान्ति पसन्द लोग दहशत में जीने लगे हैं। भागलपुर अपराध का केन्द्र बनता जा रहा है और आम लोगों का राह चलना मुश्किल हो गया है।'
हाल ही में जहानाबाद में महिला को निर्वस्त्र करके पीटा गया। पटना की मंडियों में फिर हत्याओं का दौर चालू हो गया है। पटना में चोरी, डकैती और हत्या की अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। 18 जुलाई को बोरिंग रोड स्थित नजराना ज्वेलर का शटर तोड़कर चोरों ने 40 लाख रुपए की संपत्ति पर हाथ फेर लिया। बलात्कार की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। मई के अन्तिम सप्ताह में नवगछिया (भागलपुर) में बी़ पी़ सी़ एल. के ठेकेदार प्रकाश कोले की हत्या अपहरण के बाद कर दी गई थी। लोगों का कहना है कि नवगछिया अपराधियों का गढ़ बन चुका है। नवगछिया में पदस्थापित एक शिक्षक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि नवगछिया स्टेशन पर रुकने वाली किसी अच्छी रेलगाड़ी से उतरने वाले लोगों पर अपराधियों की नजर रहती है।
धर्म जागरण, बिहार प्रदेश के उपाध्यक्ष रामलखन सिंह कहते हैं, '2005 में बिहार के लोगों ने लालू के 'जंगलराज' से त्रस्त होकर भाजपा और जदयू को समर्थन दिया था और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे। लालू राज की समाप्ति के साथ ही अपराधियों का मनोबल टूट गया था। लोगों में जो भय था वह दूर हो गया था। लोग कभी भी और कहीं भी बेखौफ आने-जाने लगे थे। अच्छा माहौल बन गया था, पर नीतीश कुमार ने अपनी महत्वाकांक्षा के कारण भाजपा का साथ छोड़ दिया। उसके बाद से बिहार में अपराधियों ने एक बार फिर से सिर उठाना शुरू कर दिया था। अब बिहार की सत्ता शरणागत नीतीश कुमार का उपयोग कर लालू प्रसाद चलाने लगे हैं। लालू राज का मतलब क्या होता है, यह पूरी दुनिया एक बार फिर से देखने लगी है।' विवेकानन्द केन्द्र, कन्याकुमारी की बिहार शाखा के प्रान्त सम्पर्क प्रमुख डॉ़ विजय वर्मा भी कहते हैं, 'बिहार में अपराधियों और अपराधों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। नीतीश और लालू की दोस्ती ने अपराधियों के मन में यह बात घर कर दी है कि अब सत्ता और शासन में उनके लोग बैठ गए हैं। अब उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकता।' समाजसेवी अभय वर्मन कहते हैं, 'बिहार एक बार फिर जंगलराज की ओर बढ़ रहा है। लोग 1990 से 2005 के कालखण्ड को याद करके सिहर उठते हैं। लालू-राबड़ी के उन 15 वषार्ें के राज में बिहार देश-विदेश में बदनाम हो गया था। अपराधियों का राज कायम हो गया था। राजधानी पटना में भी शाम ढलते ही लोग अपने-अपने घरों में दुबक जाते थे। रात की किसी रेलगाड़ी से पटना जंक्शन उतरने वाले अपने रिश्तेदारों को लोग सलाह देते थे कि स्टेशन से बाहर मत निकलना, सुबह होने के बाद ही बाहर आना। लोगों में ऐसा डर पैदा हो गया था। अब फिर उसी तरह के हालात बनते जा रहे हैं।' जयलालगढ़ (पूर्णिया) निवासी सतीश कुमार मांदीवाल का कहना है, 'बिहार में हर तरह के अपराध बढ़ने लगे हैं। छोटे-छोटे कस्बों में भी दिनदहाड़े डकैती होने लगी है। ऐसा लगता है कि अपराधियों में कानून का कोई डर नहीं रह गया है।' मोतीहारी के ब्रजेश श्रीवास्तव कहते हैं, ' लोगों में यह धारणा बन गई है कि अपराधियों को खुलेआम पुलिस और प्रशासन का संरक्षण मिल रहा है। कुछ ईमानदार पुलिस अधिकारी अपराधियों को पकड़ने की कोशिश करते हैं, तो उनका रातोंरात तबादला कर दिया जाता है। इसलिए अपराधी बेलगाम होते जा रहे हैं। बढ़ते अपराधों से लालू-राबड़ी का कुशासन याद आने लगा है।'
पटना के एक दुकानदार मनोज (नाम बदला हुआ) ने बताया, 'लालू-राबड़ी के राज में मां जब तक शाम को अपने लाडलों को नहीं देख लेती थी तब तक उसे चैन की नींद नहीं आती थी। फिरौती, लूटपाट, बलात्कार, अपहरण आम दिन की दिनचर्या हो गई थी। शान्ति पसन्द लोग बिहार छोड़ रहे थे। बिहार में वही बचा था जिसे बाहर जाने का कोई अवसर नहीं था। परंतु 2005 के बाद जब प्रदेश में राजग(जदयू-भाजपा) की सरकार बनी तो धीरे-धीरे आम जन चैन की सांस लेने लगा। 2010 के बाद जदयू ने भाजपा से किनारा करना शुरू किया तब से परिस्थितियां लचर होती चली गईं और आज बिहार फिर नब्बे के दशक के मुहाने पर खड़ा है।'
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की सियासी यारी की चर्चा इन दिनों सबकी जुबान पर है। कल तक ये दोनों एक-दूसरे को बिहार के लिए खतरा बताते थे, लेकिन परिस्थितियों ने ऐसी करवट बदली कि अब वे एक-दूसरे को बिहार के विकास का पूरक बता रहे हैं। बिहार की जनता जानती है कि आखिर क्या विवशता है कि दोनों आज एक साथ हैं? बिहार की जनता ने जिस प्रचंड बहुमत से नीतीश को राज्य की कमान सौंपी थी उसका एकमात्र कारण उनका 'जंगलराज' की समाप्ति का दावा था। बिहार में 'जंगलराज' और लालू एक-दूसरे के पर्याय बन गए थे। नीतीश कुमार ने 'जंगलराज' और अपने 'बड़े भाई' को कोस कर ही सत्ता प्राप्त की थी, परंतु लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली जबर्दस्त सफलता से उनके तोते उड़े हुए हैं। सिद्धांत के लिए समझौता न करने की दुहाई देने वाले नीतीश कुमार ने आखिरकार अपनी असलियत बता दी। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं, 'नीतीश और लालू मिलकर राज्य में 'जंगलराज' लौटाना चाहते हैं। इस पूरे प्रकरण में नीतीश बेनकाब हो गए हैं। सालभर पहले उन्होंने जनादेश के साथ विश्वासघात कर भाजपा से सत्रह साल पुराना गठबंधन तोड़ा और अब लालू प्रसाद के साथ मिलकर राज्य में 'जंगलराज' लौटाना चाहते हैं।' श्री मोदी की बात का ही समर्थन करते हुए केन्द्रीय मंत्री और कभी लालू प्रसाद के सबसे विश्वस्त सहयोगी रहे रामकृपाल यादव कहते हैं, 'लालू प्रसाद और नीतीश कुमार अपनी अंतिम पारी खेल रहे हैं। मुद्दा-विहीन लालू प्रसाद परिवारवाद पर मंडलवाद की चादर लपेटकर राजनीति करना चाहते हैं, लेकिन अब यह नहीं चलने वाला। भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाकर इन तथाकथित 'मंडलवादियों' के वोट बैंक पर हमेशा के लिए ताला लगा दिया है।'
लालू प्रसाद पर आरोप लगते रहे हैं कि वे जातिगत राजनीति करते हैं, परिवारवाद को बढ़ावा देते हैं तथा सत्ता के लिए किसी भी सीमा तक गिर सकते हैं। आम चर्चा है कि बिहार में अपनी सत्ता बचाने के लिए उन्होंने गुंडों का सहारा लिया था। राज्य की विधि-व्यवस्था चौपट हो गई थी। पुलिस के छोटे अधिकारियों तक का तबादला मुख्यमंत्री आवास से ही तय होता था। यह भी कहा जाता है कि फिरौती की कुछ घटनाओं का लेन-देन मुख्यमंत्री आवास में ही निश्चित हुआ था। पटना के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने जब अपनी धमकी एवं कार की चोरी की बात लालू प्रसाद को बताई तो उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में ही उस चिकित्सक महोदय से 'समझौता' करने की सलाह दी थी। बिहार की सड़कों पर लड़कियों को उठा लेना सामान्य बात थी। आज भी लोग शिल्पी गौतम हत्याकांड को नहीं भूले हैं। निदार्ेष छात्रों की हत्या पीट-पीटकर हो जाती थी। कोई सुरक्षित नहीं था।
2005 में बिहार की जनता ने काफी उम्मीद से भाजदा-जदयू गठबंधन को अपना समर्थन दिया। राजग-एक के कार्यकाल में दोनों दल जदयू और भाजपा बिहार के बदलाव को कटिबद्ध दिखे, 2010 के बाद परिस्थितियां बदलीं। 2010 के चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय में एक पत्रकार ने सवाल पूछा था कि – प्रचंड बहुमत से आदमी में अहंकार आ जाता है। तब नीतीश कुमार ने जवाब दिया था कि- वे ऐसा नहीं करेंगे। लेकिन शीघ्र ही उन पर सत्ता का दंभ चढ़ने लगा और वही नीतीश, जो पिछले शासन में बिहार में बदलाव के लिए कटिबद्ध दिखे थे, इस बार भाजपा को धीरे-धीरे किनारे लगाना शुरू कर दिया। लालू प्रसाद बोलने में विश्वास करते हैं परंतु नीतीश कुमार की चाल महीन होती है। नीतीश के तमाम तबादलों की फेहरिस्त देखी जाए तो नीतीश लालू से कम जातिवादी नहीं दिखते। 2014 में बलात्कार की 1127 घटनाएं दर्ज की गईं। 2015 के अप्रैल माह तक में ही बलात्कार की 106 घटनाएं घट चुकी हैं, जबकि हत्या के 268, दंगों के 1155 और डकैती के 38 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। लालू-राबड़ी राज में पटना में लालू प्रसाद के दुलारे साले साधु यादव की सल्तनत चलती थी, अब उनका स्थान नीतीश कुमार के विशेष कृपापात्र मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने ले लिया है। सुशासन के नाम पर दु:शासन का बोलबाला है।
-संजीव कुमार / अरुण कुमार सिंह
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