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संगम के दूसरे दिन मुख्य अतिथि थे विप्रो साफ्टवेयर के संस्थापक सुप्रसिद्ध उद्यमी श्री अजीम प्रेम जी। संगम में उपस्थित सेवाभावी कार्यकर्ताओं के सम्मुख उन्होंने एक प्रेरक वक्तव्य दिया। यहां हम श्री प्रेमजी के उसी उद्बोधन को ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं।
'मैंने देखा कि यहां लोग इसलिए एकत्रित हुए हैं कि वे आपस में विचार-विमर्श करके निष्कर्ष निकाल सकें कि देशहित में उनका ज्यादा से ज्यादा योगदान कैसे हो। मैं यहां पर आए बहुत से लोगों को नहीं जानता, लेकिन मेरे साथ काम करने वाले लोग आप में से बहुत से लोगों को जानते हैं, जो दिन-रात सेवा कार्यों में जुटे हुए हैं। यहां बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन सेवा को समर्पित कर रखा है।
मैं ऐसे लोगों के बीच बोलने का सौभाग्य खोना नहीं चाहता था। मेरी तरह बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अपने देश को ऊंचा उठाना चाहते हैं। जो सही मायनों में देश के विकास के लिए निस्वार्थ भाव से सोचते हैं। यदि हम अपने देश को एक महान देश बनाने की कल्पना करते हैं, सोच रखते हैं तो हमें बहुत से मोर्चों पर काम करने की आवश्यकता है। हमें अपने देश को महान बनाना है तो हमें अपने तंत्र को हर स्तर पर भ्रष्टाचार से मुक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें अपने अंदर ऐसी इच्छाशक्ति जगानी होगी जिससे हम बेहतर और सकारात्मक कार्यों में लगें ताकि देश और दुनिया का विकास हो सके। देश को सुरक्षित बनाने के लिए हमें विशेष ध्यान देने की जरूरत है। विशेषकर महिलाओं के संबंध में, उनकी सुरक्षा को लेकर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए और उस दृष्टि से कदम उठाने चाहिए।
हमें उन लोगों के लिए भी कार्य करने होंगे जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवन जी रहे हैं जिनके पास रहने के लिए घर नहीं हैं। उनके बच्चों के पास खाने के लिए पर्याप्त पोषक खाना नहीं हैं। हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि हर व्यक्ति को पौष्टिक भोजन मिले, अच्छी शिक्षा व बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलें। हमें बेहतर समाज, बेहतर देश बनाने की अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समाज में और अच्छे सेवाभावी व्यक्तियों को जोड़ना होगा। हमें जिन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा काम करने की जरूरत है उनमें सबसे महत्वपूर्ण है शिक्षा। मेरा मानना है कि यदि देश को और स्वयं को हर स्तर पर सुदृढ़ बनाना है तो शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि मेरा विश्वास है कि शिक्षित समाज ज्यादा बेहतर तरीके से अपनी देखभाल कर सकता है। हमें शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम करने की जरूरत है। सिर्फ आश्वासन देने से काम नहीं चलने वाला। हमें विशेष रूप से वंचित समाज के बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा व्यवस्था करने की आवश्यकता है। हमें शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने की जरूरत है। बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र में हम सभी को मिलकर सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र को मजबूत करना चाहिए। निजी शिक्षा संस्थान इसका विकल्प नहीं हो सकते। अच्छी और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से आत्मबल मिलता है बेहतर सोच और समझ विकसित होती है। शिक्षा व्यक्ति के जीवन का दृष्टिकोण बदलता है। मेरी नजर में हमें सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को और बेहतर और गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए जिन बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा, वे इस प्रकार हैं :
1 हमें पूरी शिक्षा व्यवस्था को परखते हुए इस बात की पुष्टि करनी चाहिए कि क्या वहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा रही है? हमारा उद्देश्य निजी विद्यालयों के साथ एक समानांतर तंत्र खड़ा करना नहीं, बल्कि सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को बेहतर से बेहतर बनाना है।
2 हमारे पास बहुत सी अच्छी नीतियां और मजबूत इरादे तो होते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनका क्रियान्वयन बहुत कम होता है। हमें जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है।
3 शिक्षा व्यवस्था को मजबूत और बेहतर करने के लिए हम सभी को अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी। हमारे शिक्षकों को चाहिए कि वे पूरी लगन से बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को देने का काम करें।
4 हमें 'टीचर्स एजुकेशन सिस्टम' को सुधारने की जरूरत है। इसके लिए हमें बीएड., डीएड. कॉलेजों की गुणवत्ता बढ़ानी होगी।
5 हमें बेहतर शिक्षण के लिए प्रभावी तंत्र का निर्माण करना होगा और विद्यमान क्षमताओं को विकसित करने के प्रयास करने होंगे।
6 अपने नौनिहालों जो पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए जाते हैं, की आवश्कताओं को पूरा करना होगा। हमें सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें पौष्टिक भोजन मिले। वर्तमान में हमारे पास 13 लाख से भी अधिक आंगनवाडि़यों का मजबूत तंत्र है, जिसमें हमें निवेश कर उन्हें अच्छा बनाने या सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इससे हम शैक्षिक रूप से मजबूत समाज की नींव रख सकेंगे। मैं यह कहना चाहूंगा कि शिक्षा में सार्वजनिक निवेश को और अधिक बढ़ाना होगा। विद्यालयीन शिक्षा के लिए हमारा बजट सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 2.8 प्रतिशत है, जबकि अन्य विकासशील देशों में यह 3.5 प्रतिशत है। विकसित देशों में एक अच्छे शिक्षा तंत्र पर सकल घरेलू उत्पाद का पांच से छह प्रतिशत खर्चा किया जाता है। ये राजनीतिक इच्छाशक्ति और शिक्षा की प्राथमिकता स्वीकारने से ही संभव हो सकेगा।'
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