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1989 में शुरू हुआ एकल अभियान जिसमें एक कार्यकर्ता की अगुआई में शुरू होते हैं परिवर्तनकारी प्रकल्प। यह अभियान आज भारत और नेपाल के 55, 016 गांवों तक पहुंच गया है। इस अभियान से देश के लाखों बच्चों का भविष्य संवरा है और वे नई जिन्दगी के लिए अच्छे तौर पर तैयार हो गए हैं। एकल के समर्पित कार्यकर्ता अपनी चिन्ता किए बिना दिन-रात समाज के पिछड़े और उपेक्षित वर्ग के लिए कार्य कर रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह पूरा अभियान समाज के सहयोग से चल रहा है।
-धनबाद से लौटकर अरुण कुमार सिंह
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के मानबाजार खण्ड के बाबनी मांझीडीहा पंचायत के हुलुंग ग्राम में एकल विद्यालय चलता है। उस गांव में कुल 85 परिवार हैं। विद्यालय में कुल 33 छात्र पढ़ते हैं। विद्यालय में संस्कार शिक्षा के कारण हर बच्चा विद्यालय जाते समय अपने माता-पिता को प्रणाम करता है। एक छात्र देवब्रत महतो के पिता गोष्ठ बिहारी महतो प्रतिदिन शाम को शराब पीकर घर आते थे और घर में झगड़ा करते थे। देवब्रत को पिता का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता था। उसने एक दिन तय किया कि वह अपने पिता को इस बुरी आदत से बचाएगा। इसके लिए उसने एक अनूठा तरीका अपनाया। पिता के सामने ही देवब्रत रोज केवल मां को प्रणाम करके विद्यालय जाने लगा। बेटे के इस व्यवहार से पिता को बड़ा दु:ख हुआ। आखिर में एक दिन पिता ने अपने बेटे से पूछा -क्या बात है? तुम प्रतिदिन अपनी मां को प्रणाम करते हो और मुझे नहीं। इस बात को सुनकर छोटे से बच्चे ने अपने पिताजी से कहा कि जिस दिन से आप शराब पीना बंद करंेगे उस दिन से मैं आपको भी प्रणाम करूंगा। इस बात को सुनकर पिता की आंखें भर आईं और उन्होंने उसी समय संकल्प लिया कि 'आज के बाद से मैं कभी नशा नहीं करूंगा।' उस दिन रात में गांव में एक बैठक बुलाई गई और इस घटना के बारे में सबको जानकारी दी गई और ग्रामवासियों को एकल विद्यालय के बारे में बताया गया।
यह कथा सुनाई तपन कुमार महतो ने। तपन कुमार महतो एकल अभियान के एक साधारण कार्यकर्ता हैं, लेकिन उनके इस अनुभव कथन से इस अभियान के असाधारण परिणाम का अनुमान लगा सकते हैं।
इस तरह के अनेक अनुभव 1, 2 और 3 मार्च को धनबाद (झारखण्ड) में आयोजित एकल अभियान के परिणाम कुंभ में मिले। इस कुंभ का आयोजन एकल अभियान के 25 वर्ष पूरे होने पर किया गया था। कुंभ में भारत के अलावा अमरीका, नेपाल, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, हांगकांग और न्यूजीलैण्ड में एकल अभियान से जुड़े लगभग 2000 कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। पहले दिन धनबाद के तीन स्थानों से शोभायात्राएं निकाली गईं। इसके बाद एक जनसभा हुई। इसमें 50 हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया और एकल अभियान को बल प्रदान किया।
जनसभा को सम्बोधित करते हुए विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक श्री अशोक सिंहल ने कहा कि एकल अभियान एक ब्रह्मास्त्र है, जिसके सहारे हम अपनी खोई हुई शक्ति को पुन: प्राप्त कर सकते हैं। इस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हम भारत विरोधी हर तत्व का निर्मूलन कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अंग्रेज जब यहां आए थे उस समय भारत ज्ञान का भण्डार था। 1830 में अंग्रेजों ने एक सर्वेक्षण कराया था। उसकी रपट में कहा गया था कि भारत की शिक्षा यहां के लोगों को इतना पवित्र बना देती है कि लोग झूठ नहीं बोलते हैं, चोरी नहीं करते हैं और माता-पिता की पूजा करते हैं। इससे भटकाने के लिए हमें अंग्रेजी शिक्षा दी गई। इस शिक्षा के कारण जो लोग मालिक थे वे नौकर हो गए, जो लोग राजा थे वे गुलाम हो गए। अंग्रेजों ने हमारी भाषा, हमारा इतिहास, हमारी परम्परा, हमारी कृषि, हमारी चिकित्सा सब कुछ छीन लिया। एकल अभियान के जरिए हम इन सबको प्राप्त कर सकते हैं।
वात्सल्य ग्राम, वृन्दावन की संस्थापक दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि एकल अभियान मां भारती के अभियान को बढ़ाएगा। एकल के कार्यकर्ता हनुमान जी की भूमिका में हैं। ये कार्यकर्ता भारत में स्वर्ग उतारने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने कहा कि हनुमान जी के मार्ग में अनेक बाधाएं आई थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी थी और विजय प्राप्त की थी। इसी तरह एकल के कार्यकर्ता बाधाओं को परास्त करते हुए आगे बढ़ें। एक दिन विजय निश्चित मिलेगी।
इसी दिन सायं को एकल विद्यालय का प्रारंभ करने वाले स्व. मदनलाल अग्रवाल को उनके निवास पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, जी समूह के स्वामी श्री सुभाषचन्द्रा एवं अन्य गणमान्य लोगों ने पुष्पांजलि अर्पित की।
कुंभ का औपचारिक उद्घाटन 2 मार्च को सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि एकल अभियान के रूप में धनबाद से जो एक छोटी-सी धारा निकली थी वह अब विशाल रूप धारण कर चुकी है। अब 25 वर्ष के कार्यों पर आत्मचिन्तन के साथ सिंहावलोकन करने की जरूरत है। हमने काम किया है इसलिए आज यहां तक पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि सफलता मिलने के बावजूद हमें अहंकार नहीं करना चाहिए। विजय के बाद अगर अहंकार हो जाता है तो वह अधिक दिन तक नहीं टिकती है। विजय पर हर्ष करें, पर गर्व न करें। उन्होंने कहा कि विजय प्राप्त करने की पद्धति अलग होती है और उसे बनाए रखने के तरीके अलग होते हैं। इसलिए अब हमें रणनीति भी बदलनी पड़ सकती है। उन्होंने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाते हुए कहा कि आप बहुत आगे बढ़े हैं इसलिए आप लोग प्रशंसा के पात्र हैं। लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना है। चाहे जैसी भी परिस्थिति हो कार्य करते चलें, लेकिन अहं का भाव न पालें। उन्होंने कहा कि सबमें एक-दूसरे के प्रति आत्मीय भाव का जागरण होना चाहिए। यदि हम सुखी हैं, लेकिन हमारा पड़ोसी दु:खी है तो हमारे सुख का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। सब सुखी हों, यह भाव सबके अन्दर जगाना है। सब में एक आत्मा है। इसलिए सब में आत्मीय सम्बंध हों। उन्होंने यह भी कहा कि हम किसी की सेवा उपकार के भाव से न करें, बल्कि यह सोचें कि उसने सेवा का अवसर देकर हम पर उपकार किया है। किसी की सेवा नारायण मानकर करें, क्योंकि नारायण एक सेवित के रूप में हमारे सामने खड़ा है। इससे पहले विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चम्पत राय ने कहा कि लोग साक्षर होंगे तो संस्कार आएंगे और संस्कार आएंगे तो नैतिक मूल्य आएंगे। एकल अभियान इसी मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है। उद्घाटन सत्र के बाद देशभर से आए एकल के कार्यकर्ताओं ने अनुभव कथन सुनाए।
कुंभ का समापन समारोह 3 मार्च को आयोजित हुआ। इस अवसर पर श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि नए भारत के निर्माण में एकल अभियान की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। यह अभियान जीवन जीना सीखा रहा है। श्री अशोक सिंहल ने कहा कि एकल अभियान कोई साधारण अभियान नहीं है। इस अभियान से पूरे भारत में एक नई जागृति आ रही है। एकल अभियान की पूरी यात्रा की जानकारी एकल अभियान के संगठन प्रभारी और विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री श्री श्याम गुप्त ने दी। कुंभ में आए अतिथियों को एकल कार्यकर्ताओं द्वारा जैविक खेती से पैदा किए गए अन्न का भोजन कराया गया।कुंभ में एक दिन झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास भी पहुंचे। धनबाद से कार्यकर्ताओं ने इस संकल्प के साथ विदाई ली कि आने वाले समय में वे अधिक से अधिक कार्य करेंगे और समाज के वंचित एवं पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन में सुधार लाने का प्रयास करेंगे।
यूं बढ़ी एकल की यात्रा
एकल विद्यालय के तीन सूत्रधार हैं- श्री भाऊराव देवरस, श्री मदनलाल अग्रवाल ( तत्कालीन संघचालक, दक्षिण बिहार प्रान्त) और श्री श्रीशंकर तिवारी ( तत्कालीन सह प्रान्त प्रचारक, दक्षिण बिहार प्रान्त)। इस विषय पर ये तीनों मनीषी अनेक बार आपस में बैठे और अन्त में श्री मदनलाल अग्रवाल को विद्यालय प्रारंभ करने का दायित्व दिया गया। उन्होंने पहला एकल विद्यालय 1989 में झारखण्ड के धनबाद जिले के टुण्डी प्रखण्ड के सिंदवारी एवं लाइड़वारी गांव में प्रारंभ किया। एकल विद्यालय में एक ही शिक्षक होता है।
एकल की शुरुआत की कहानी भी बड़ी रोचक है। बात 1971 जून-जुलाई की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन उत्तर-पूर्व क्षेत्र प्रचारक श्री भाऊराव देवरस गुमला जिले के गारू एवं महुआटांड प्रखण्ड के 25 गांवों के ग्राम प्रमुखों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने हिन्दुत्व पर बहुत ही सुन्दर बौद्धिक दिया। तत्पश्चात् भाऊराव जी वनवासी बंधुओं से उनकी समस्याओं के बारे में पूछताछ करने लगे। इसी क्रम में महुआटांड (उरांव टोला) के ग्राम प्रमुख व किसान श्री भऊआ उरांव ने भाऊराव जी से कहा, 'हम हिन्दू तो हैं ही। आप सहयोग दे सकते हैं तो इस क्षेत्र के हमारे बंधुओं को शिक्षा दिलाइए, हमें मलेरिया से मुक्ति दिलाइए।' उन्होंने तत्काल मलेरिया से बचाव के लिए कुछ कीटनाशक उपलब्ध करवाए। तभी से भाऊराव जी इस सम्बंध में विचार करते रहे कि आखिर किस तरह वनवासियों को शिक्षा दी जाए। इस चिन्तन में कई वर्ष लग गए। इसके बाद गुमला में सितम्बर, 1986 में चिन्तन बैठक हुई। बैठक में भाऊराव जी ने कहा कि अनुकूलता का लाभ उठाकर पूरे वनवासी क्षेत्र के प्रत्येक गांव में 'एक शिक्षक, एक विद्यालय' खोला जाए। इसमें संस्कार पक्ष पर विशेष ध्यान दिया जाए और पाठ्यक्रम स्थानीय बोली, परम्परा, संस्कृति, गीत-कहानी, रामायण-गीता, योग-व्यायाम आदि पर आधारित हो।
इसके बाद 1989 में सिंदवारी एवं लाइड़वारी गांव में 'एक शिक्षक, एक विद्यालय' प्रारंभ हुआ। पहले आचार्य श्री नारायण मरांडी बने। वर्ष 1989 में ही तय किया गया कि 'एक शिक्षक, एक विद्यालय' योजना वनवासी कल्याण केन्द्र के माध्यम से संचालित की जाए। योजना को विस्तार देने के लिए संघ के प्रचारक श्री श्याम गुप्त वनवासी कल्याण केन्द्र में भेजे गए। इसके बाद वे इस योजना को विस्तार देने में लग गए। उन्होंने कार्यकर्ताओं के साथ दिन-रात मेहनत की और उसका परिणाम भी निकला।
आज पूरे भारत और नेपाल में कुल 55,016 एकल विद्यालय हैं। 1991 में उन्होंने 'एक शिक्षक एक, विद्यालय' को बोलचाल की भाषा में 'एकल विद्यालय' के रूप में प्रचलित किया। 1991 तक झारखण्ड क्षेत्र में 900 गांवों में एकल विद्यालय प्रारम्भ किए गए। वनयात्रा को विद्यालय विस्तार का माध्यम बनाया गया। इसके अन्तर्गत नगरीय बन्धुओं को एकल विद्यालय गांव का दर्शन कराना एवं एकल योजना की कार्यसंकल्पना को समझाना था। प्रारम्भिक समय में एकल विद्यालय के प्रशिक्षण का कार्य धनबाद स्थित राजकमल सरस्वती विद्या मंदिर में होता था। उस समय प्रशिक्षण की कोई व्यवस्थित कार्य पद्धति नहीं बनी थी। डॉ़ राकेश पोपली ने एकल विद्यालय के लिए पाठयक्रम एवं प्रशिक्षण विषय पर पुस्तिका का प्रकाशन किया, जो एकल विद्यालय प्रशिक्षण का आधार बनी। एकल विद्यालय ने वर्ष 1996 में अखिल भारतीय स्वरूप प्राप्त किया तथा एकल विद्यालय योजना को एकल अभियान कहा जाने लगा। श्री मदनलाल अग्रवाल कहते थे कि एकल विद्यालय का उद्देश्य लोगों को सिर्फ साक्षर करना ही नहीं है, बल्कि संस्कारित करना भी है।
एकल के कार्यकर्ता हनुमान जी की भूमिका में हैं। ये कार्यकर्ता भारत में स्वर्ग उतारने की क्षमता रखते हैं।
– साध्वी ऋतम्भरा
संस्थापक, वात्सल्य ग्राम, वृन्दावन
एकल अभियान भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को शिक्षा दिलाने, उनमें विश्वास जगाने और आर्थिक स्वराज दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
– सुभाषचन्द्रा, स्वामी, जी समूह
एकल की समर्पित सिपाही
अंजू न्यौपाने सिक्किम के एक गांव की रहने वाली हैं और पिछले 15 वर्ष से एकल की पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं। बारहवीं करने के बाद घरेलू कार्यों में लगी थीं कि एक दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यकर्ता उनके घर गए। उन्होंने उन्हें श्रीहरि सत्संग समिति के बारे में बताया और कथा वाचिका का प्रशिक्षण प्राप्त करने को कहा। वह सहर्ष तैयार हो गईं और वृन्दावन आ गईं। यहां उन्होंने कथा वाचिका का प्रशिक्षण लिया और सिक्किम लौटकर गांव-गांव में कथा करने लगीं। इससे क्षेत्र में उनकी ख्याति बढ़ी और लोग उनके साथ जुड़ने लगे।
आज उनकी प्रेरणा से 150 कथा वाचिकाएं तैयार हो गई हैं। ये सभी कथा के द्वारा लोगों में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करती हैं। इससे हिन्दुओं का कन्वर्जन कम हुआ है। अंजू ने नेपाल, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और असम में एकल के कार्य को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुछ समय पहले उन्हें कैंसर हुआ था। चिकित्सकों ने कहा था कि ठीक होने की उम्मीद कम है, लेकिन अब वह ठीक हैं। उनका कहना है कि एकल का काम भगवान का काम है। शायद इसलिए भगवान की कृपा मुझ पर बरसी और मैं ठीक हो गई।
एक डॉलर, एक दिन, एक गांव, एक विद्यालय
विदेशों में रहने वाले अनेक भारतवंशी एकल अभियान को आर्थिक मदद करते हैं। ये लोग एक एकल विद्यालय को प्रतिदिन एक डॉलर के हिसाब से मदद करते हैं। इनका नारा है 'एक डॉलर, एक दिन, एक गांव, एक विद्यालय।' ऐसे भारतीय सबसे अधिक अमरीका में हैं। वहां भारतीयों ने एकल अभियान हेतु धन इकट्ठा करने के लिए 'एकल विद्यालय फाउण्डेशन ऑफ यूएसए' का गठन किया है। इससे जुड़े रमेश भाई शाह एकल के काम के लिए छह माह भारत में रहते हैं, तो छह माह अमरीका में। अपने खर्चे से ही पूरे भारत की यात्रा करते हैं और अन्य लोगों को भी वन यात्रा करवाते हैं। वे कहते हैं कि भारत के आम लोगों का जीवन स्तर सुधरे इसके लिए हम लोग लगे हैं।
अपने माता-पिता के साथ न्यूजर्सी में रहने वाली 16 वर्षीया अंजली शर्मा 11वीं की छात्रा हैं। वह अपने दोस्तों के साथ एकल के लिए धन इकट्ठा करती हैं। इस कुंभ के लिए वह अपने पिता के साथ विशेष रूप से अमरीका से आई थीं। अंजली कहती हैं कि उनके पिता ने बड़ी कठिनाई से अपनी पढ़ाई की थी। आर्थिक अभाव में लोग नहीं पढ़ पाते हैं, यह बात उनके पिता बार-बार बताते हैं। इसलिए जो लोग अपने खर्च से नहीं पढ़ पाते हैं, उनकी मदद करके बहुत ही अच्छा लगता है। अंजली अपने घर के आसपास के घरों में जाती हैं और लोगों से एकल विद्यालय के लिए सहयोग देने की अपील करती हैं।
एकल के चमत्कार
गो अर्क से भागी बीमारी
मैं मेहनत मजदूरी कर जीवन गुजारती थी। परिवार में 7 सदस्य हैं। सभी परिश्रम से जीवन गुजार रहे थे। एकाएक मेरी तबियत खराब रहने लगी। मुझे घेंघा रोग हो गया, मेहनत करना मेरे लिए संभव नहीं रहा। मैंने बिहारशरीफ में डा़ॅ श्यामनारायण से इलाज शुरू करवाया। वे 300 रु़ प्रतिमाह की दवाई देते थे। एक दिन हमने पूछा कि डॉ़ साहब कब तक दवा खानी पडे़गी? उन्होंने कहा जीवनभर। मैं भी दवा खाते-खाते थक गई थी। तभी 2007 में एकल अभियान में आचार्या के रूप में जुड़ गई। वहां प्रशिक्षण वर्ग में गोमूत्र के विषय में बताया गया कि गोमूत्र के अर्क से 108 तरह की बीमारियां ठीक हो जाती हैं। पहले 2 महीने हमने गोमूत्र का प्रयोग किया। इसके बाद हमारे संच में गोमूत्र से अर्क बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। मैंने भी प्रशिक्षण लिया और गोमूत्र से अर्क बनाया तथा स्वयं प्रयोग किया। मैं प्रतिमास 80 लीटर अर्क बनाकर बेच लेती हूं जिससे 4000 रु़ प्रतिमाह कमा लेती हूं। इसी से हमारे घर का खर्च चलता है। अब तो हमारे अंचल में कई और लोग गोमूत्र से अर्क बनाने लगे हैं एवं गांव के लोगों को भी इस पर भरोसा हो गया है। गांव के लोग भी गो अर्क खरीद रहे हैं।
-मालती देवी , आचार्या, नालंदा (बिहार)
जैविक खेती से जीवन खुशहाल
एकल विद्यालय संचालित होने से पहले हमारे गांव के सभी किसान शहरों से रासायनिक खाद एवं दवा खरीद कर रासायनिक खेती करते थे और हमारी जमीन धीरे-धीरे बंजर होती जा रही थी। तभी हमारे गांव में एकल विद्यालय के कार्यकर्ता जीवन सिंह यादव का प्रवास हुआ और हमारे गांव के सभी किसानों की बैठक बुलाई गई। बैठक में हमें रासायनिक खेती के दुष्परिणामों के बारे में बताया गया और जैविक कृषि करने के लिए केंचुआ खाद लाकर दिखाया और स्वयं इस खाद को बनाने का प्रायोगिक तरीका बताया। अब हमारे गांव के 15 किसान जैविक खेती ही करते हैं। ऐसा हो जाने पर हमारे गांव में प्रशिक्षण केन्द्र बन जाएगा एवं दूसरे गांव के लोग प्रशिक्षण लेने आएंगे। इसका पूरा श्रेय एकल विद्यालय अभियान को जाता है।
-बलराम नेताम, ग्राम-नर्मदा, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
सुख और शान्ति
हमारे गांव में सन् 1988 में एकल विद्यालय प्रारम्भ हुआ। मेरा 1999 में एकल के विद्यार्थी के रूप में नामांकन हुआ। मैं एकल विद्यालय में 3 वर्ष तक विद्यार्थी रहा। 2009 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसी वर्ष मुझे गांव का विद्यालय चलाने का दायित्व दिया गया। मैंने अपनी पढ़ाई करते हुए एकल विद्यालय को तन-मन से चलाया। मुझे एकल का काम बहुत अच्छा लगता है एवं आज जो भी सीखा सब एकल विद्यालय की देन है। मुझे इस काम से बहुत संतोष प्राप्त होता है। यदि एकल विद्यालय का सहारा नहीं मिला होता तो मैं आज कॉलेज तक की पढ़ाई नहीं कर पाता। एकल विद्यालय में मिले संस्कार आज बहुत काम आते हैं।
-जलदेव वेरीहा, गांव-डुंगरीपाली (ओडिशा)
गांव का चरवाहा बना देश का सैनिक
बात सन् 2001 की है। उन दिनों मैं महाकौशल भाग के छिन्दवाड़ा अंचल के पगारा उपसंच का उपसंच प्रमुख था। पगारा उपसंच में 9 एकल विद्यालय ठीक से संचालित हो रहे थे। मैं दसवां विद्यालय संचालित करने के लिए प्रयासरत था। मैं बहुत परेशान था। इन्हीं परेशानियों के साथ तुरसी नामक गांव पहंुचा। ग्रमीणों से बात की तो लोगों ने सुरेश उइके का नाम लिया। तभी 17-18 वर्ष का सुरेश गाय-बकरी चराकर जंगल से वापस आ रहा था। वह 8वीं कक्षा में फेल होने के कारण जंगल में गाय-बकरी चराने जाता था। उसे एकल विद्यालय की तरफ से प्राथमिक प्रशिक्षण दिया गया। उसके बाद वह अपने गांव में एकल विद्यालय चलाने लगा। कुछ समय बाद उस गांव में बरसात के समय उल्टी-दस्त की बीमारी फैली। पता चला कि लोग नदी का गन्दा पानी पीने को विवश थे। पानी की समस्या स्थाई रूप से दूर हो इस हेतु दूसरे दिन ग्राम समिति की बैठक रखी गई। बैठक में आचार्य सुरेश उइके ने प्रस्ताव रखा कि गांव में सभी लोग एक घंटा श्रमदान करके कुआं खोदेंगे। सभी ग्राम वासियों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। दूसरे दिन से गांव के सभी लोग कुएं के लिए एक घंटे का श्रमदान करने लगे। देखते ही देखते 17 दिन में कुआं खुदकर तैयार हो गया। बाद में एकल के सहयोग से सुरेश ने दसवीं की परीक्षा पास की। 2010 में सुरेश की नौकरी सशस्त्र बल (एस़ ए़ एफ़ ) में लगी। यानी एकल के कारण ही एक चरवाहा सैनिक बना।
-दया शंकर डेहरिया, महाकौशल भाग
एकल विद्यालयों की संख्या
55016
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