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संकल्प में बड़ी शक्ति है !
दृढ़ इच्छाशक्ति यदि हो तो जीवन में कोई भी लक्ष्य दुर्गम और दुष्कर नहीं होता। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र कोंडागांव के बड़ेकनेरा में गोशाला स्थापित करके इसी ध्येयवाक्य को चरितार्थ किया है श्रीमती बिन्दु शर्मा ने…।
जब व्यक्ति किसी विशेष ध्येय को लक्षित कर यात्रा आरंभ करता है तो कई अड़चने आती हैं। छोटी सी असफलता मिलते ही हंसी-ठिठोली करने वाले कम नहीं होते। लेकिन यदि इरादे नेक हों और केवल लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित हों तो प्रतिकूलता भी अनुकूलता में बदल जाती है। यह सार्वभौम सत्य है कि संकल्प का विकल्प नहीं होता। इसी संकल्प को जो पूरा करते हैं वे समाज के लिए प्रेरणा बनते हैं। इसी कड़ी में बिंदु शर्मा ऐसी ही महिला हैं, जिन्होंने गोरक्षा के क्षेत्र में कार्य करके समाज के सामने अद्वितीय प्रेरणा प्रस्तुत की है। उन्होंने ऐसे क्षेत्र में गोशाला स्थापित की जहां यह कार्य अत्यधिक कठिन है। छत्तीसगढ़ राज्य के कोंडागांव से 22 किमी. की दूरी पर बीहड़ में स्थित बड़ेकनेरा गांव है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एक है। यह क्षेत्र पूरी तरह से वनवासी क्षेत्र है। 2010 में इसी स्थान पर बिन्दु शर्मा ने गोरक्षा का संकल्प लेकर कामधेनु गो सेवा संस्थान का भूमि पूजन किया। शहर की चमक-दमक को छोड़कर उन्होंने गोरक्षा का रास्ता पकड़ा जो आज एक बड़ा रूप ले चुका है। गोवंश का संरक्षण और संवर्द्धन करके बिन्दु ने किसानों को एवं समाज को एक नई दिशा दी है।
कोंडागांव व उसके आस-पास के क्षेत्र में आए दिन होती गोतस्करी से आहत बिन्दु गोरक्षा एवं संवर्द्धन के लिए हरदम प्रयास में जुटी रहती हैं। उनसे जब हमने पूछा कि आज के समय जब लोग चकाचौंध में खोए हुए हैं तब आप गोवंश की रक्षा एवं संवर्द्धन के लिए सतत् क्यों लगी हुई हैं वह भी ऐसे क्षेत्र में जहां जीवन का भी संकट है? तो वे कहती हैं कि 'बचपन से ही गाय को घर में मां के समान माना। मां ने बताया कि हिन्दुओं के लिए गाय ही सबसे पूज्य है। भोजन बनाने के बाद माता जी पहली रोटी गाय को देने के लिए देती थीं। इस प्रकार के संस्कारों में पले-बड़े होने से मेरे मन में गोमाता के प्रति अगाध श्रद्धा आयी।
गोशाला का भाव हुआ जाग्रत
चूंकि यह पूरी तरह से वनवासी और बीहड़ क्षेत्र है। जिसके कारण मुख्य मार्ग से यह कटा हुआ है। आए दिन इसी का फायदा उठाकर गोतस्कर बड़ी ही आसानी के साथ इसी इलाके से गोवंश को कटने के लिए पड़ोसी राज्यों को ले जाते हैं। यह सब मुझे प्रतिक्षण द्रवित करता था। मैंने कई बार गोतस्करों से सैकड़ों गोवंश को छुड़वाया। लेकिन यह कार्य फिर भी बंद नहीं हुआ। जब आए दिन इस प्रकार की नूरा-कुश्ती होने लगी तो गोरक्षा से जुड़े- सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों ने सलाह दी कि इस प्रकार के कार्य से जान का खतरा है लेकिन अगर हम कुछ हटकर इस क्षेत्र के लिए कार्य करें तो गोवंश की रक्षा हो सकती है। जिन गायों को ये गोतस्कर खरीदते हैं क्यों न हम उनको ही खरीदंे जिससे गोवंश की भी रक्षा होगी और लोगों में जागरूकता भी आयेगी। यही प्रेरणा और संकल्प वर्ष 2010 में साकार हुआ।'
संस्थान की शुरुआत
स्थानीय लोगों की प्रेरणा से बड़ेकनेरा गांव के ही एक वनवासी क्षेत्र के परिवार की जमीन को संस्था ने गोशाला के लिए लगभग 2 लाख रु. में खरीदा जो 3 एक ड़ के लगभग है। इस भूमि को खरीदने के लिए पैसे कहां से आएं? तो बिन्दु ने अपने सभी जेवरात बेच दिए और भी कुछ रुपये उनके पास थे वह भी इसमें लगा दिए, तब जाकर इस जमीन को खरीदा जा सका। वर्ष 2010 में कामधेनु गो सेवा संस्थान का श्रीगणेश हुआ। शुरुआत में सबसे पहले लाचार,बीमार और अपंग 10 गायों को खरीदा गया। इस प्रकार एक संकल्प की शुरुआत हो गई जो आज तक जारी है।
असल में बड़ेकनेरा क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आता है। उसकी सीमा ओडिशा की सीमा से सटती है। जहां से गोतस्कर बड़े ही आराम से गोवंश को बीहड़ के रास्ते निकाल ले जाते हैं। इस पूरे क्षेत्र से गोतस्कर बूढ़ी और अपंग या फिर लाचार गायों को खरीदते हैं जो कि उन्हें एक तरह से मुफ्त या बहुत ही कम दामों में मिल जाती हैं, क्योंकि जिनके पास ये गायें होती हैं वे एक तरह से उन्हें बोझ समझते हैं क्योंकि वे दूध नहीं देती हैं। इसलिए उन्हें जैसे ही कोई ग्राहक मिलता है वे फौरन उनको बेच देते हैं। लेकिन इस संस्थान के खुलने के बाद क्षेत्र के लोगों में जागरूकता आई और लोगों ने गोतस्करों को गोवंश देना भी बंद कर दिया है जिससे इस क्षेत्र से गोतस्करी की घटनाओं में भी कमी आई है। साथ ही जिस गोवंश गोतस्कर खरीदते थे उस गोवंश को संस्थान ने खरीदना शुरू कर दिया।
वनवासी महिलाओं का लिया सहयोग
बिन्दु शर्मा कहती हैं कि 'यहां के वनवासी लोग गोरक्षा को लेकर पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं। उन्हें गाय के संरक्षण से कोई भी मतलब नहीं है। वे बस भोजन और मदिरा में ही व्यस्त रहते हैं। जब मैंने यहां के लोगों की मानसिकता को जाना और समझा कि इनमें जागरूकता की कमी है तो मैंने उनको गोरक्षा और उसके संवर्द्धन के लिए प्रेरित किया। मैंने महिला समूह बनाकर लोगों को क्षेत्र में जागरूक किया और बताया कि गोवंश उनके लिए कैसे लाभकारी है। किसान और गोवंश का एक घनिष्ठ रिश्ता है। लोगों को इस प्रकार की बातों से कुछ समझ में आया और क्षेत्र के लोगों ने भी सहयोग प्रारम्भ किया। साथ ही संस्थान ने आस-पास के क्षेत्र में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम शुरू किया। मैंने क्षेत्र के लोगों से आग्रह किया कि जो गायें वे कुछ लालच के कारण या ऊबकर बेचते हैं वे मुझे दें मैं उन्हें खरीदूंगी और इसमें मैं सफल भी हुईं। आज मेरे पास 200 से ज्यादा गोवंश हैं।'
देशी खाद से बदल रहा जीवन
इस गोशाला में जो भी गोबर की खाद तैयार होती है उसको बहुत ही कम कीमत पर स्थानीय किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। उनसे गोवंश के चारे के लिए दो ट्राली धान का 'पैरा' ले लिया जाता है और उसके बदले उनको 1 ट्राली देशी खाद उपलब्ध करा दी जाती है। क्षेत्र के किसानों को यह खाद रासायनिक खाद से बहुत ही सस्ती पड़ती है जिससे किसान इसी खाद को प्रयोग करने लगे हैं और रासायनिक खाद को छोड़ रहेहैं।
सहयोग का अभाव
चूंकि जिस स्थान पर गोशाला है वहां अधिकतर स्थानीय निवासी किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं कर सकते हैं। इसलिए अनेक रूपों में प्रशासन के सहयोग की अपेक्षा रहती है। एक महिला होकर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कार्य करना कठिन होता है। मैं बराबर इस कठिनाई से गुजरती हूं। मैंने कई बार गोरक्षा के संदर्भ में स्थानीय प्रशासन के सामने बात रखी लेकिन उसका असर नहीं हुआ।
खलती है पैसे की कमी !
गोशाला को चलाने के लिए बड़ी मात्रा में पैसे की जरूरत होती है, एक अनुमान के मुताबिक वर्षभर में लगभग 20 लाख रुपये गोशाला पर खर्च होते हैं। जिसमें गाय के चारे-दाने, गायों की दवाई, बिजली-पानी एवं गोशाला के कर्मचारियों का वेतन भी शामिल है। इतनी बड़ी रकम को एकत्र करना कठिन होता है। संस्था के सभी सदस्य आर्थिक रूप से इतने सशक्त नहीं हैं कि वे इस खर्चे को वहन कर सकें। इसलिए बिन्दु रात-दिन इस खर्चे को पूरा करने के लिए लोगों से संपर्क में रहती हैं। वे कहती हैं कि 'कुछ समय से गोशाला चलाने में पैसे की कमी आड़े आ रही है जिससे समस्या हो रही है। मैंने नर्सरी एवं केंचुए की खाद का व्यवसाय कर रखा है वहां भी समय देती हूं। यहां से भी जो पैसा अर्जित करती हूं वह भी इसको समर्पित कर देती हूं। लेकिन फिर भी पैसे की कमी रहती है। जो मन को कभी-कभी चिंतित करता है। वे कहती हैं कि भारतीय गोवंश रक्षण-संवर्द्धन परिषद के छत्तीसगढ़-म.प्र के प्रभारी व केन्द्रीय मंत्री उमेश पोरवाल से उनको अत्यंत सहयोग मिला। उनको जब इस गोशाला के विषय में जानकारी हुई तो वे यहां आए और गोशाला की जरूरत को देखते हुए उन्होंने अपने संपर्क से गायों के चारे आदि की व्यवस्था करवाई, साथ ही इसके लिए कई लोगों को प्रेरित भी किया। उनकी पहल का असर हुआ कि गो विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, नागपुर के सचिव सुरेश डाब्ले का यहां आना हुआ और उन्होंने गोशाला की पूरी मदद का भरोसा भी दिया।'
'गोवंश ही सब कुछ'
सुबह उठना और रात तक गोवंश की ही चिंता करना- यह मेरी प्रतिदिन की दिनचर्या में है। बिन्दु बताती हैं कि 'मैं प्रात: 5 से 6 के बीच कोंडागांव से गोशाला पहुंच जाती हूं और दोपहर 12 के बाद तक रहती हूं। इस बीच गोशाला के सभी 8 कर्मचारियों के साथ गायों को देखना, उनके खाने-पीने की समुचित व्यवस्था करना, अगर कोई बीमार गाोवंश है तो उसका इलाज कराना, उसके बाद भी जरूरत महसूस होती है तो गोशाला पहुंचती हूं। किसी दिन यदि मुझे किसी कार्य से बाहर जाना भी होता है तो मुझे एक ही चिंता रहती है कि येे गोवंश मेरे भरोसे ही हैं। उनके प्रति मेरा स्नेह शायद शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता।' ऐसे बीहड़ क्षेत्र में कार्य करने व वहां उपस्थित समस्याओं पर वे कहती हैं 'कि मन में एक दृढ़ संकल्प होना चाहिए। वह संकल्प ऐसा हो जो कठिन से कठिन परिस्थिति में डटा रहे। जब उन्होंने गोशाला का कार्य शुरू किया तो कुछ क्षेत्रीय लोगों ने कहा कि यह कैसी महिला है। अधिकतर महिलाएं तो सिलाई, कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर या अन्य कुछ ऐसे ही कार्यों को करती हैं पर यह गोरक्षा एवं गोसंवर्द्धन का कार्य कर रही है। वह कहती हैं कि मैंने स्थानीय वनवासियों और क्षेत्रवासियों की किसी भी बात को तरजीह नहीं दी क्योंकि मेरा लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ गोरक्षा करना और उसका संवर्द्धन करना है और आज मैं इस कार्य में बराबर सफल हो रही हूं।'
मैं राज्य सरकार एवं गोसेवा आयोग से बराबर संपर्क में हूं। मैंने गोसेवा आयेाग से बात की है और उनका आश्वासन भी मुझे मिला है कि वे इस संस्थान को पूरी सहायता उपलब्ध कराएंगे। मेरा सदैव यह प्रयास रहता है कि इस प्रकार का कार्य जहां भी होता हो और जो भी लोग नि:स्वार्थ भाव से गोरक्षार्थ जुटे हैं उनको समुचित सहयोग मिले।
-उमेश पोरवाल, केन्द्रीय मंत्री, भारतीय गोवंश रक्षण – संवर्द्धन परिषद
गोसेवा आयोग राज्य में गायों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए निरंतर प्रयासरत है। राज्य में कुछ नियम बने हुए हैं । उन नियमों को जो पूरा करता है उसको आयोग गोसेवा के लिए पूरी सहायता उपलब्ध करा रहा है।
-अजय सिंह, प्रभारी गोसेवा आयोग, छत्तीसगढ़
मेरे एक छोटे से प्रयास से यहां के किसानों में जागरूकता का भाव आया है। वे रासायनिक खाद को छोड़कर जैविक खाद पर निर्भर हो रहे हैं और उनमें गोरक्षा का भाव जागृत हुआ है। मेरा प्रयास है कि मैं गोशाला के कार्य के साथ ही साथ जल्द ही छत्तीसगढ़ की प्रमुख गाय की नस्ल ' कोसली' को भी संरक्षित करने का काम आरंभ करूंगी।
प्रस्तुति: अश्वनी मिश्र
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