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लगता है कि मीडिया का एक तबका तथाकथित असहिष्णुता के मुद्दे को पूरी तरह निचोड़ लेना चाहता है। भले ही इसके बहाने उनकी पोल खुलती जा रही हो। बीते दिनों की खबरें देखकर कुछ ऐसा ही लगता है। संविधान दिवस पर चर्चा में विपक्ष के एक बड़े नेता ने देश में ‘रक्तपात’ की धमकी दी, लेकिन पक्षपाती मीडिया को उसकी बातों में कुछ भी गलत नजर नहीं आया। यह बयान बाद में सदन की कार्यवाही से निकाल दिया गया। लेकिन ‘आजतक’ चैनल पर कांग्रेस के प्रवक्ता ने इस बयान को सही ठहराया और एंकर चुप रही। हर छोटे-बड़े नेता के बयानों का छिद्रान्वेषण करने वाला मीडिया इस बयान के पीछे छिपे एक बड़े षड्यंत्र को समझने में नाकाम हो गया।
पहले झूठी खबर छापो, पकड़े जाओ तो ‘सफाई’ छापकर पल्ला झाड़ लेने के मीडिया के फार्मूले की एक बार फिर पोल खुली। ‘आउटलुक’ पत्रिका ने राजनाथ सिंह का फर्जी बयान छापा कि ‘800 साल बाद कोई हिंदू शासक आया है।’ इस आधार पर संसद में बयान देते एक वामपंथी सांसद ‘रंगे हाथ’ पकड़े गए। चोरी पकड़ में आ गई तो पत्रिका ने खेद जता दिया। वैसे तो यह खेल पुराना है, लेकिन पहली बार झूठ को संसद में स्थापित करने की कोशिश पकड़ी गई।
कांग्रेस और विपक्ष के दूसरे बड़े नेताओं के भड़काऊ बयानों का सिलसिला जारी रहा। इन पर मीडिया का एक तबका मानो किसी रणनीति के तहत चुप रहा। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा कि ‘वे हिंदी बोलने वाले नेताओं की पार्टी को असम में घुसपैठ नहीं करने देंगे।’ इक्का-दुक्का अखबारों में छपी यह महत्वपूर्ण खबर टीवी चैनलों के टिकर में भी जगह नहीं बना पाई। ट्विटर और फेसबुक के जरिए दिन-रात प्रवचन देने वाले किसी संपादक का ध्यान तरुण गोगोई के बयान की तरफ नहीं गया।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत का एक बयान लगभग सभी स्थानीय अखबारों में छपा, जिसमें उन्होंने कहा था कि गाय को मारने वाले को भारत में रहने का अधिकार नहीं है। सोचिए अगर ऐसा ही बयान किसी भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्री ने दे दिया होता तो कितना बड़ा कोहराम मचता। यूं तो हरीश रावत ने जो कुछ कहा वह एक हिंदू होने के नाते उनकी निजी भावना माना जा सकता है। लेकिन सेकुलर जमात ने मामला संभाल लिया। इंडिया टुडे टीवी के एक संपादक ने सिर्फ अपने चैनल ही नहीं, बल्कि ट्विटर एकाउंट पर भी हरीश रावत के लिए क्लीन चिट जारी की और बयान के सबूत लोगों से मांगने शुरू कर दिए। यह सक्रियता थोड़ी हैरान करने वाली रही। सभी जानते हैं कि गोहत्या पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी वैसी कोई बात नहीं कही थी, जैसा कि मीडिया ने दिखाया था। उधर, असहिष्णुता पर आमिर खान के बयान को भी मीडिया ने भरपूर उछाला। हालांकि कई चैनलों ने यह सहज-प्रश्न पूछा कि हर वक्त बाउंसरों से घिरे रहने वाला, फिल्म में हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करके 300 करोड़ रुपये कमाने वाला अभिनेता कहीं डरने का अभिनय तो नहीं कर रहा है। आमिर के साथ-साथ टीवी चैनलों ने इस मामले में भी जबर्दस्त अपरिपक्व ता का परिचय दिया। एक चैनल ने लिखा-‘आमिर खान ने कहा-रहने लायक नहीं है भारत।’ आमिर मामले में ही मीडिया का दोहरा रवैया फिर सामने आया। आमिर खान के बयान पर सवाल उठाने वाली अभिनेत्री रवीना टंडन सोशल मीडिया पर सेकुलर जमात का निशाना बनीं। यहां तक कि कुछ पत्रकारों ने भी ट््विटर के जरिए उन पर महिला-विरोधी टिप्पणियां कीं। किसी ने भी इस असहिष्णुता पर छोटी सी खबर भी नहीं दिखाई।
मदरसों के अंदर यौन शोषण की बात लिखने पर केरल की एक महिला पत्रकार का फेसबुक एकाउंट बंद करवा दिया गया। उसे जान से मारने की धमकियां दी गर्इं। लेकिन मुख्यधारा मीडिया इस महत्वपूर्ण खबर पर चुप्पी साधे रहा। किसी भी चैनल या अखबार ने इस वीभत्स समस्या की सचाई जानने की कोशिश नहीं की कि कैसे देशभर में फैले मदरसों में छोटे-छोटे बच्चे मौलवियों की मानसिक विकृति का शिकार बन रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान ने कानपुर में एक बलात्कार पीड़ित के लिए अत्यंत आपत्तिजनक टिप्पणी की। लेकिन लगभग सभी समाचार चैनलों ने इसे ‘ब्लैकआउट’ कर दिया। ऐसा क्यों हुआ यह उनके संपादक ही बेहतर जानते होंगे। अखबारों और समाचार चैनलों पर जो कुछ दिखाया जा रहा है वह पूरा सच नहीं है। तमाम नकारात्मकता के बीच ढेरों अच्छी बातें भी हो रही हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि मीडिया इन्हें छिपाने की कोशिश कर रहा है। अखबारों में तो बीच के पन्नों में छप भी जाती है, लेकिन टीवी पर तो ऐसी खबरों के लिए जैसे कोई जगह ही नहीं।
वर्षों से बंद पड़ी कोयला खदानों में उत्पादन शुरू हो चुका है। बिजली समस्या धीरे-धीरे खत्म हो रही है। बीएसएनएल, एयर इंडिया और दूरदर्शन जैसे सरकारी उपक्रम कई साल के बाद मुनाफा कमा रहे हैं। कुछ चीजों को छोड़ खाने-पीने की लगभग हर चीज या तो सस्ती हुई है या स्थिर है। लेकिन मीडिया को इसमें कोई रुचि नहीं है। यह पहला वर्ष था जब छठ पर बिहार जाने वालों को ज्यादा परेशानी नहीं हुई। इन परिस्थितियों में अगर मीडिया की विश्वसनीयता जनता की नजरों में कम हो रही है तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है। नारद
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