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मैं भी एक दलित लेकिन हिंदू हंू। मैं मंदिर जाना पसंद करती हूं। मैं द्वारका मंदिर गई थी। उस समय मैं केन्द्रीय मंत्री थी। वहां के पुजारी ने मेरी जाति पूछी थी।' ये घृणा एवं भेद उत्पन्न करने वाले शब्द और घडि़याली आंसू तो कांग्रेस नेता शैलजा कुमारी के थे, लेकिन इन आंसुओं और वक्तव्य के पीछे प्रायोजित मानसिकता किसी और की थी। यह मानसिकता थी सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए दावा पेश कर रहे भारत को वैश्विक स्तर पर नीचा दिखाने की। यह मानसिकता थी एक विशेष वर्ग में हीन भावना भरने की। यह मानसिकता थी देश की एकता को तोड़ने की। यह मानसिकता थी कन्वर्जन को प्रोत्साहन देने की और यह मानसिकता थी कांग्रेस की।
हमारी एकता को खंडित कर राष्ट्र की उन्नति को बाधित करने का यह षड्यंत्र भारत में पहली बार आरंभ नहीं हुआ है। इतिहास पर नजर डालें तो मोहम्मद बिन कासिम, औरंगजेब, टीपू सुल्तान और हैदराबाद के निजाम जैसे अत्याचारियों ने तलवार की धार पर कन्वर्जन करके हमारे देश के खण्डन का प्रयत्न किया था। न जाने कितने शीश काटे गए थे, कितना खून बहा था और कितने ही बलिदान लिए गए थे! परंतु हमारे राष्ट्रीय मूल्यों और अखंड सांस्कृतिक चेतना के आगे उन आततायियों को मुंह की खानी पड़ी थी। जब हिंसा देश को न तोड़ सकी और कन्वर्जन के सभी प्रयास विफल रहे तो इन पांथिक आक्रमणकारियों ने अपना हथियार मानसिक परिवर्तन को बनाया।
1498 ई. में वास्कोडिगामा के भारत पहुंचने के बाद से पुर्तगाली ईसाइयों के साम्राज्यवादी मत विस्तार की यात्रा आरंभ हुई थी और इन ईसाइयों ने भारत के गरीब और पिछड़े वनवासी समुदाय को मानसिक रूप से परिवर्तित करने का घिनौना खेल प्रारंभ किया था। ये पुर्तगाली ईसाई रात के समय कुएं में डबल रोटी के टुकड़े डाल देते थे और प्रात: सब के पानी पीने के बाद घोषणा कर देते थे जिसने यह पानी ग्रहण कर लिया है, वे सब ईसाई हो गए हैं। भोलेभाले भारतीय बिना कुछ सोचे-समझे इनके कुचक्र और झांसे में फंस जाते थे। जिसके बाद से ही वे ईसाई मतानुसार रहना शुरू कर देते थे। पुर्तगालियों द्वारा जेवियर (इसके नाम से पहले संत लगाना संत शब्द का अपमान है) नामक आततायी को भारत भेजा गया, जिसने हजारों-हजार भारतीयों का मानसिक परिवर्तन कर रातों-रात उन्हें ईसाई मत में कन्वर्ट कर लिया। यह मानसिक प्रताड़ना यहीं समाप्त नहीं हुई। जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने भी अपनी कुत्सित कुटिलता का परिचय देते हुए हिंदू धर्म के अनुयायियों को हिंदू धर्म के विरुद्ध भड़काना आरंभ किया। मैकाले द्वारा हिंदुस्थान के विद्यालयों के अंग्रेजीकरण के मूल में कन्वर्जन ही था। इन अंग्रेजी संस्थाओं में शिक्षा पाने वाले हिंदू को अहिंदू बनते देर नहीं लगती थी और यह अहिंदू ही आगे चलकर ईसाई मत की उत्कृष्टता का प्रचार करते थे और फिर स्वयं भी कन्वर्ट हो जाते थे। यह क्रम आज तक जारी है।
इस प्रकार भारतीय समुदाय में अपने देश और धर्म के प्रति हीन भावना का प्रसार किया गया और धीरे-धीरे गरीब तथा पिछड़े भारतीय समाज को यह पांथिक आक्रमणकारी अपनी गिरफ्त में लेते चले गए। भारत का गरीब और वनवासी समुदाय अपनी स्थिति का कारण अपने धर्म एवं अपने ही लोगों को मानने लगा। यूरोपीय ईसाई इतिहासकारों ने भारत में एक अन्य षड्यंत्र भी चलाया। उन्होंने दो भ्रांतियां भारतीय पिछड़े समाज में फैला दीं। पहली यह कि आर्य बाहर से आए थे; और दूसरी कि उन्होंने भारत के मूल निवासियों को अपना गुलाम बनाया। इस प्रकार इन उपनिवेशवादियों ने भारतीयों को ही एक उपनिवेशवादी आक्रांता सिद्ध कर दिया। इन तथ्यों का खंडन स्वयं बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर ने अपनी पुस्तक 'हू वर शूद्राज?' में किया है। परंतु आज इन्हीं तथ्यों को आधार बनाकर आए दिन कोई ना कोई व्यक्ति एक नए समूह की घोषणा करता है और अपने समर्थकों को हिंदू धर्म छोड़कर किसी अन्य मत अपनाने की सीख देता है। देश की धुरी के रूप में कार्य कर रहे हिंदुत्व की विचारधारा सदैव से ही वसुधैव कुटुंबकम् का उद्घोष करने वाली रही है। श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश हमारे जीवन का आदर्श रहा है। हिंदुत्व केवल मनुष्यों के प्रति ही नहीं वरन समस्त जीवों के प्रति भी बंधुभाव रखने की सीख देता है। ऐसे हिंदू धर्म के विरोध में इन पथ भ्रष्ट लोगों द्वारा आज तक न जाने कैसी-कैसी कुत्सित धारणाओं का प्रसार किया जाता रहा है। गौरतलब बात यह है कि ये धारणाएं सिर्फ वंचित वर्ग में ही नहीं, बल्कि उच्च वर्ग में भी भरी गईं जिससे भारत का सामाजिक व्यवहार इन पांथिक आक्रमणकारियों के अनुरूप होता चला गया। उन्होंने जैसा चाहा भारतीय सामाजिक व्यवस्था वैसी ही होती गई।
जब ईसाई मिशनरियां अफ्रीका आईं तब उनके हाथ में बाईिबल थी और हमारे पास जमीन। उन्होंने कहा आओ साथ में प्रार्थना करते हैं। हमने आंखें बंद कर लीं और जब आंखें खुलीं तो हमारे हाथ में बाईिबल थी और उनके पास जमीन।
— डेसमन्ड टूटू, अफ्रीका के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता
अफ्रीका के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डेसमंन्ड टूटू कहते हैं, 'जब मिशनरी अफ्रीका आए तब उनके हाथ में बाईिबल थी और हमारे पास जमीन। उन्होंने कहा आओ साथ में प्रार्थना करते हैं। हमने आंखें बंद कर लीं और जब आंखें खुलीं तो हमारे हाथ में बाईिबल थी और उनके पास जमीन।' कुछ ऐसे ही कुचक्रों से भारत में कन्वर्जन का कार्य किया जा रहा है।
पहले केवल वनवासी क्षेत्रों तक सीमित रहने वाले ये पांथिक आक्रांता अब कुछ देशद्रोही मुखौटों के पीछे छुप कर पूरे देश में फैल चुके हैं। न जाने कितने ही ऐसे लोग हैं, जो वंचित समाज के उद्धार की बात कहकर ईसाई मिशनरियों एवं मुस्लिम संगठनों की उद्देश्य पूर्ति में लगे हुए हैं। न जाने कितने ही मिशनरी स्कूल देश की संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं! न जाने कितने ही राजनीतिक चेहरे इस मानसिक परिवर्तन के खेल में शामिल हैं। ढाल कांग्रेस का तो इतिहास ही कन्वर्जन को बढ़ावा देने वाला रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ईसाई मिशनरी संगठनों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25अ के अंतर्गत मत प्रचार की स्वतंत्रता दी थी। यह मत प्रचार हजारों बेसहारा गरीबों के कन्वर्जन के रूप में आज हमारे सामने है। इसके अलावा स्वतंत्रता के बाद जब देश में खाद्यान्न का अभाव हो गया था तब रूस ने भारत को खाद्यान्न आपूर्ति की परंतु अमरीका ने गेहूं बेचने के लिए कुछ शर्तें रखी थीं। इनमें एक थी-ईसाई मिशनरियों को भारत में मत प्रचार की छूट दी जाए। इस पर पूरे देश से विरोध के स्वर उठे और नेहरू ने न्यायाधीश भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। समिति ने अपनी रपट में कहा कि समस्या केवल मत प्रचार की नहीं, अपितु उसके द्वारा होने वाले कन्वर्जन की भी है। परंतु इस रपट को दर-किनार कर नेहरू ने यह शर्त स्वीकार की।
भारतीय हिंदू समाज की स्वतंत्रता एवं मानवीय अधिकारों का हनन आज भी किया जा रहा है। उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जा रहा है। निजी स्वार्थ के लिए किसी विशेष समुदाय की भावनाओं को किसी के खिलाफ उत्तेजित किया जाना पूरी तरह से मानव अधिकारों का उल्लंघन है। परंतु आज कांग्रेस अपने कुछ नेताओं की सहायता से यही कर रही है। कांग्रेस भारतीय समाज को मत एवं जाति के नाम पर उस गहरे गर्त में धकेल रही है, जहां सिर्फ अंधकार ही अंधकार है। भारत की प्रगतिशील गति को कांग्रेस असहिष्णुता, मत-संप्रदाय एवं जातिवाद की आग में झोंककर बाधित कर देना चाहती है। और इसीलिए आज भारतीय समाज की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। इसलिए किसी के भी प्रति घृणा के इस भाव को हमें त्यागना होगा। मात्र एकता ही है, जो देश के उत्थान को बढ़ावा देगी। देश की अखंडता को खंडित करने का प्रयास करने वाली सभी फिरका-परस्त ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। भारत की संस्कृति और भारत के जीवन दर्शन को पुन: स्थापित करना होगा। देश की सहिष्णुता, सामंजस्य और सभी प्राणियों के प्रति प्रेम की अनोखी सीख को विश्व पटल पर पुन: दैदीप्यता प्रदान करनी होगी। हमें विश्व के समक्ष शांति का, समृद्धि का, एकता का और सहिष्णुता का उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। प्रस्तुति-कीर्तिका मिश्रा
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