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भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 'मेक इन इंडिया' के प्रति प्रतिबद्ध केन्द्र सरकार इस दिशा में निरंतर आगे बढ़ रही है। विदेशों से भी रक्षा के क्षेत्र में सहभागिता बढ़ने लगी है। केन्द्र सरकार शुरू से ही हर क्षेत्र में स्वदेशी का आह्वान कर रही है। इस क्रम में भारत जहां दूसरे देशों के साथ मिलकर रक्षा की नई-नई तकनीक पर काम कर रहा है, वहीं स्वदेशी हथियारों के निर्माणों में तेजी से कार्य शुरू कर दिया गया है। भारतीय नौसेना में स्वदेशी युद्धपोतों को समुद्र में उतारकर भारत का डंका बजना शुरू हो गया है। विभिन्न योजनाओं पर भारत, अमरीका और दूसरे देशों के साथ समझौते कर आगे बढ़ रहा है। खास बात यह है कि जो भारत कभी 70 फीसद तक सेना के हथियारों और अन्य महत्वपूर्ण उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भर रहता था, उसने मात्र एक वर्ष में सकारात्मक प्रयासों से स्वावलंबी बनना शुरू कर दिया है। भारत करीब 22 देशांे में रक्षा संबंधी उत्पादों की आपूर्ति कर रहा है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक से लेकर फ्लाइट कंट्रोल पैनल तक शामिल हैं। इस दिशा में भारत अमरीका को फ्लाइट कंट्रोल पैनल, ब्रिटेन को ट्रांस्मिटिंग ट्यूब और रूस को एमआईजी और सुखोई 30 के पुर्जों की आपूर्ति कर रहा है। रक्षा उत्पादों में बड़े स्तर पर भारत अफगानिस्तान को चीतल हेलीकॉप्टर, नेपाल को धु्रव हेलीकॉप्टर और बुलेटप्रूफ जैकेट, मलेशिया को सुखाई 30 और एमआईजी के पुर्जे और ओमान को जगुआर के पुर्जों की आपूर्ति कर रहा है। भविष्य में इस क्रम को जारी रखने के लिए केन्द्र सरकार ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन को बढ़ावा दिया है।
हाल ही में अक्तूबर माह में रक्षा मंत्रालय द्वारा भारतीय वायु सेना में महिलाओं को लड़ाकू पायलट के रूप में शामिल करने की मंजूरी दे दी गई। यह प्रगतिशील कदम भारतीय महिलाओं की आकांक्षाओं को ध्यान में रखकर विकसित देशों के सशस्त्र बलों में समकालीन चलन के अनुरूप उठाया गया है। 'मेक इन इंडिया' के मद्देनजर नौसेना में जहाजों, पनडुब्बियों और वायुयानों में स्वदेशीकरण को बढ़ाने के लिए हर दिशा में प्रौद्योगिकी अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसके अनुपालन के लिए स्वयं रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर विभिन्न अवसरों पर निजी क्षेत्रों से देश की सुरक्षा के साथ-साथ देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान कर चुके हैं। वे कुछ समय पूर्व सरकारी व निजी क्षेत्रों के 'शिपयार्ड' को स्पष्ट कर चुके हैं कि नौसेना और तट रक्षक के लिए युद्धपोतों और अन्य आवश्यक उत्पादों की समय पर आपूर्ति की जाए। उल्लेखनीय है कि पिछले एक वर्ष में भारतीय नौसेना की आधुनिकीकरण योजना ने कई नई शुरुआत कर गति पकड़ी है। इस दौरान विभिन्न पोतों का जलावतरण व पनडुब्बी की शुरुआत भारत के लिए गौरवपूर्ण है। आंकड़ों के मुताबिक अभी स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए करीब 47 पोत और पनडुब्बी भारतीय 'शिपयार्ड' में तैयार किए जा रहे हैं। इसके लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) भी प्रयासरत है कि भारत को किस तरह से रक्षा और रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया जा सके। इसी क्रम में रक्षा मंत्री हाल ही मंे अमरीका में और उससे पूर्व रूस के रक्षा उद्योग में बड़े स्तर पर भागीदारी बढ़ाने के लिए वार्ता कर चुके हैं। इस मौके पर तीनों सेनाओं के हथियारों को लेकर भविष्य में एक-दूसरे को सहयोग देने की चर्चा भी की गई है। रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने युद्धक टैंकों का देश में उत्पादन शुरू कर दिया है। देश में डिजाइन करने के बाद विकसित कर 121 अर्जुन मार्क-1 सेना को सौंपे जा चुके हैं। डीआरडीओ इस युद्धक टैंक के डिजाइन और विकास पर 305 करोड़ रुपए, जबकि आयुध फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) अपनी विभिन्न इकाइयों पर टैंक निर्माण की सुविधा देने पर 86 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर चुकी है।
केन्द्र सरकार द्वारा डीआरडीओ को देश को रक्षा के क्षेत्र में विदेशी प्रौद्योगिकी से स्वतंत्र बनाने की दिशा मंे जिम्मेदारी सौंपी गई। प्राथमिक तौर पर डीआरडीओ सशस्त्र बलों के लिए सामरिक परिसरों और सुरक्षा संवदेनशील प्रणालियों के डिजाइन और विकास में कार्यरत है। डीआरडीओ द्वारा डिजाइन और विकसित की गई कई रक्षा प्रणालियों को उत्पादन एजेंसियों ने स्वीकार किया है और उन्हें सशस्त्र बलों में शामिल किया गया है। डीआरडीओ द्वारा कुछ विकसित उत्पादों को रडार इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों, मिसाइलों आदि जैसी प्रणालियों को मित्र देशों को निर्यात कर चुका है। इस पर कुछ देशों ने डीआरडीओ द्वारा विकसित प्रणाली प्राप्त करने मे रुचि भी दिखाई है। इसी को ध्यान में रखते हुए वर्तमान वित्त वर्ष में डीआरडीओ के बजट में भी वृद्धि की गई है। डीआरडीओ रक्षा से संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम, आयुध फैक्ट्री बोर्ड और भारतीय निजी क्षेत्र के सामूहिक प्रयासों से रक्षा उपकरणों के स्वदेशी विनिर्माण पर जोर दिया जा रहा है। सशस्त्र बलों को चौकस रखने के लिए स्वदेशी और विदेशी निर्माताओं से हथियार खरीदे जाते हैं। विगत पांच वर्षों में सेना, नौसेना और वायुसेना के लिए विदेशी निर्माताआंे से हुई खरीदारी पर 103535.52 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इसे ध्यान में रखते हुए रक्षा निर्माण नीति में रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इसीलिए सरकार ने रक्षा उत्पादन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 फीसद से बढ़ाकर 49 फीसद कर दी। साथ ही लाइसेंसिंग प्रणाली को भी उदार बना दिया। रक्षा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों का बढ़ता रुझान और उनकी साझेदारी न केवल भारत की रक्षा के क्षेत्र में ताकत को बढ़ाएगी, बल्कि विश्व में भारत रक्षा उत्पाद के निर्यातक के रूप में तेजी से उभरेगा। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि वह दिन दूर नहीं कि जब रक्षा के क्षेत्र में पूरा विश्व भारत का लोहा मानेगा। इसके संकेत मिलने शुरू हो चुके हैं।
जो भारत कभी 70 फीसद तक सेना के हथियारों और अन्य महत्वपूर्ण उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भर रहता था, उसने मात्र एक वर्ष में सकारात्मक प्रयासों से स्वावलंबी बनना शुरू कर दिया है। भारत करीब 22 देशांे में रक्षा संबंधी उत्पादों की आपूर्ति कर रहा है।
'विदेशी रक्षा कंपनियां 'मेक इन इंडिया' के लिए नये महत्वाकांक्षी प्रस्तावों के साथ भारत आ रही हैं। ये प्रस्ताव लड़ाकू जेट विमानों एवं हेलीकॉप्टरों से लेकर परिवहन विमानों एवं यूएवी तक और वैमानिकी से लेकर उन्नत सामग्री तक के विषय में हैं। सशस्त्र बल 'मेक इन इंडिया' अभियान की सफलता में काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे। मैं विशेषकर गहन पूंजी वाली नौसेना और वायु सेना की स्वदेशी योजनाओं से काफी उत्साहित हूं। हम चाहते हैं कि स्पष्ट लक्ष्य तय किये जाएं, विशिष्टताओं के बारे में अधिक स्पष्टता हो और नवाचार, डिजाइन एवं विकास कायोंर् में हमारे रक्षा बलों, विशेषकर जंग के दौरान हथियारों का इस्तेमाल करने वाले लोगों की कहीं ज्यादा भागीदारी हो। सबसे अहम बात यह है कि हम चाहते हैं कि हमारे सशस्त्र बल भविष्य के लिए स्वयं को पूरी तरह से तैयार रखें।
एक ही तरह के कदमों अथवा पुराने सिद्धांतों पर आधारित एवं वित्तीय वास्तविकताओं से परे योजनायें तैयार कर इसे कतई हासिल नहीं किया जा सकता। विगत वर्ष के दौरान हमने इस दिशा में प्रगति देखी है, लेकिन इसके साथ ही मेरा यह मानना है कि अपनी मान्यताओं, सिद्धांतों, उद्देश्यों एवं रणनीतियों में सुधार करने के लिए हमारे रक्षा बलों व हमारी सरकार को अभी कुछ और ज्यादा करने की जरूरत है। हमें बदलती दुनिया को ध्यान में रखते हुए अपने लक्ष्यों एवं अपने उपकरणों को निश्चित रूप से परिभाषित करना होगा।'
-नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री
रक्षा उत्पादन से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में नया उत्साह आया है और सरकार स्वदेशीकरण तथा तेजी से समय पर आपूर्ति के लिए निरंतर प्रयासरत है। हम प्रवाही युद्धक जहाजों के स्वदेशीकरण में काफी सफल हुए हैं, लेकिन उच्च क्षमता के लड़ाकू घटक के स्वदेशीकरण का कार्य अभी बाकी है। सरकार देश की रक्षा आवश्यकताओं तथा सशस्त्र सेनाओं के आवश्यक वित्तीय समर्थन को लेकर गंभीर है। इसमें नौसेना का आधुनिकीकरण तथा योजनाओं का विकास शामिल है।-मनोहर पर्रीकर, रक्षामंत्री
रक्षा क्षेत्र में आई नई रफ्तार
पूर्ववर्त्ती केन्द्र सरकार ने पिछले 10 वर्षों में रक्षा संबंधी मामलों को ठंडे बस्ते में डालकर रखा। इस क्षेत्र में विदेशों की तुलना में जिस गति से कार्य किया जाना चाहिए था, उस तरह से नहीं किया गया। वर्तमान केन्द्र सरकार की 'मेक इन इंडिया' के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए भारत जल्द ही स्वदेशी हथियार और रक्षा उत्पादन में स्वयं को मजबूत स्थिति में खड़ा कर पाएगा। विदेशी रक्षा उत्पादन कंपनियों को सहभागिता के लिए बढ़ावा देना भी सकारात्मक कदम है। हम जब विदेशी कंपनियों पर पूरी तरह से निर्भर होते हैं तो कई बार रक्षा उत्पादन से जुड़े उपकरण व हथियार हमें समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं और कई बार उपकरण खराब होने पर उसे पूरी तरह से बदलने या सुधार के लिए दूसरे देश की तकनीक पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत में ही कई नामी निजी कंपनियां हैं, जो कि विदेशी कंपनियों की तरह सेना संबंधी आवश्यक वस्तुओं का निर्माण करती हैं। स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देने और विकसित करने से न केवल भारत को समय पर रक्षा उत्पाद उपलब्ध हो पाएंगे, बल्कि हम दूसरे देशों में इनका उत्पादन करने की दिशा में भी आगे बढ़ सकेंगे। -मेजर जनरल (सेवानिवृत्त), धु्रव. सी. कटोच
आयात नहीं अब निर्यात की बारी
स्वतंत्रता के बाद भारत में हथियारों व रक्षा उपकरणों के विकास तथा उत्पादन सम्बन्धित आत्मनिर्भरता में हालांकि महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा 'मेक इन इंडिया' के तहत हेलीकॉप्टरों का निर्यात इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। तेजस लड़ाकू विमान, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज प्रक्षेपास्त्र, अर्जुन मुख्य युद्धक टैंक जैसी जटिल व उन्नत प्रणालियों के निर्यात की भी प्रबल सम्भावनाएं हैं। भारत सरकार द्वारा हाल ही में भारत-निर्मित रक्षा-उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के लिए उठाए गए उचित कदम न केवल इनसे जुड़े उपक्रमों को सस्ता और सुलभ बनाने, गुणवत्ता बढ़ाने व लागत कम रखने में सहायक सिद्ध होंगे अपितु मित्र देशों के साथ आपसी सम्बन्धों को कहीं अधिक अर्थपूर्ण बनाने में भी सहायक होंगे। आशा है कि रक्षा उत्पादों के निर्यात की विशाल सम्भावनाओं का उचित रूप में दोहन भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ-साथ देश को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थिर होने में भी सहायक होगा।
-रवि कुमार गुप्ता, पूर्व निदेशक जनसंपर्क निदेशालय, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन।
47 जहाजों का हो रहा है भारतीय पोत कारखानों में निर्माण
30 सितम्बर, 2015 : स्वदेशी डिजाइन से निर्मित आईएनएस कोच्ची का जलावतरण। इस पर 40 अधिकारी और 350 नौसैनिक रह सकते हैं।
21 मई, 2015 : वायुसेना ने मिराज 2000 लड़ाकू विमान को राष्ट्रीय राजमार्ग ग्रेटर नोएडा में उतारा।
'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिए रक्षा क्षेत्र में उत्पादन के लिए 46 लाइसेंस जारी किए गए।
एचएएल को वायुसेना ने 14, डीओ-228 विमानों की आपूर्ति का दिया ऑर्डर जिसके लिए 1090 करोड़ रुपए का अनुबंध किया गया। इनका निर्माण कानपुर में किया जाएगा। इस डिविजन में 125, एचएएल डीओ-228 विमान बने हैं। इनका निर्यात सेशेल्स और मॉरीशस को किया गया।
राहुल शर्मा
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