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मोबाइल फोन जब आए ही थे तब देश में इस बात को लेकर चर्चा होती थी कि यह तो बड़े और पढ़े-लिखे लोगों के लिए है। आज यह मजदूरी करने वाले भाइयों और कामवाली बाइयों के हाथ तक पहुंच चुका है और वे नम्बर मिलाते हैं, बात भी करते हैं। मोबाइल चलाने के लिए उन्होंने थोड़ा पढ़ना सीखा और उसकी तकनीक भी। अब कश्मीर से कन्याकुमारी तक ऐसे तमाम लोगों को प्रशासन का मालिक बनाने के सपने का नाम है डिजिटल इंडिया, जिसको साकार करने में पूरा देश जुटा है। आप इसे लोकतंत्र का अभिनय करते आए 67 साल के राजतंत्र का विदाई गीत भी मान सकते हैं, जिसमें मंत्री-अफसर आमजन के माई-बाप का दरवाजा रखते थे।
डिजिटल इंडिया एक ऐसी क्रांति का सूत्रपात है जिससे देश के सभी नागरिक प्रशासन और सरकार तक सीधी पहुंच रख सकेंगे और उसे लोगों की हर बात का न सिर्फ जवाब देना जरूरी होगा बल्कि हल भी मुहैया कराना होगा। दफ्तरों के चक्कर काटना, दरखास्त पर दरखास्त देते जाना और थोड़ी सी राहत के लिए अफसरों से लेकर मंत्री के दफ्तर तक चप्पलें घिसना तब बीते जमाने की बातें लगेंगी। अचानक परीकथा सरीखी लगने वाली ये बातें सुनकर हम सबके मन में आशंका उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है क्योंकि पिछले 67 साल तक लोकतंत्र का अनुभव हमें यही दर्शाता रहा कि एक राजतंत्र लोकतंत्र का प्रहसन मंचित करता आ रहा है। लेकिन पूरी दुनिया भारत में होने वाले इस बदलाव को देखने को बेताब है। फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग इसे लेकर इतने उत्साहित हैैं कि उन्होंने न केवल फेसबुक पर अपनी 'डिस्प्ले पिक्चर' को डिजिटल इंडिया के रंग में रंगा बल्कि फेसबुक पर इसका अभियान भी शुरू किया। देश के ग्रामीण इलाकों में 'वाईफाई हॉटस्पॉट' के लिए काम करने की प्रतिबद्धता जताते हुए उनका यह कहना भारत की इस क्रांतिकारी योजना के महत्व को रेखांकित करने के लिए काफी है, 'भारत के 23 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हैं जबकि एक अरब आज भी इससे वंचित हैं। यदि भारत अपने गांवों को 'कनेक्ट' करने में सफल रहता है तो दुनिया उसकी ओर ध्यान देने पर मजबूर होगी। दरअसल डिजिटल इंडिया कोरी परिकल्पना नहीं है यह देश की विरासत और उसके संसाधनों को ध्यान में रखकर जमीनी सच्चाइयों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
डिजिटल इंडिया की अवधारणा
मोबाइल और इंटरनेट की ताकत से देश के हर गांव-शहर को जोड़कर 'डिजिटलाइजेशन' के बाद हर किसी की पकड़ में देश का तंत्र होना चाहिए, उसी को डिजिटल इंडिया कहते हैं। इसके तहत 2019 तक देश के सारे काम कम्प्यूटरीकृत करने का लक्ष्य है। इसे भारत की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था और देश की जनता को ज्ञान आधारित भविष्य की ओर ले जाने के महत्वाकांक्षी प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इस योजना के कामों की निगरानी कर रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद इसे मूर्त रूप देने में जुटे हैं। मोटे तौर पर इससे सामान्य व्यक्ति भी प्रशासन और सरकार से जुड़े कामों, सेवाओं, बैंक खातों, आसपास की जानकारी के साथ बाजारों के रुख तक पर सीधी नजर रख सकेगा।
वर्तमान स्थिति
भारत की जानी-मानी कंपनियों के अलावा माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, क्वालकॉम, ओरेकल जैसी अनेक कंपनियों ने डिजिटल इंडिया में भागीदारी के लिए आगे आकर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। औद्योगिक क्रांति का हमें लाभ नहीं मिला। लेकिन जब आई टी (सूचना प्रौद्योगिकी) क्रांति आई, हम आजाद हैं। हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या युवा है और हमारे पास प्रतिभा है। एस्तोनिया, स्वीडन और डेनमार्क जैसे देश नकदीमुक्त (कैशलेस) समाज में बदलने जा रहे हैं जहां धन के भुगतान और लेनदेन में या तो प्लास्टिक कार्डांे का प्रयोग होगा या फिर ऑनलाइन माध्यमों का। वे अपने लक्ष्य के बहुत करीब भी पहुंच चुके हैं।
यदि हम डिजिटल ढांचा खड़ा करने में सफल रहते हैं तो सेवाओं की आपूर्ति को सुगम और सस्ता बनाना संभव होगा तथा उस अदृश्य और अभेद्य सरकारी दीवार को ध्वस्त किया जा सकेगा जो ज्यादातर नागरिकों को सरकारी तंत्र तथा उसकी सूचनाओं से दूर रखती है। कुल मिलाकर डिजिटल इंडिया सरकारी विभागों और भारत के लोगों को एक दूसरे के पास लाने की भारत सरकार की ऐसी पहल है जिसका मकसद सरकारी विभागों को जनता से जोड़ना है।
प्रधानमंत्री ने कहा और युवाओं ने कर डाला
'आप आइए, इस चुनौती को स्वीकार कीजिए।' प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल इंडिया के माध्यम से युवाओं को नवरचना के लिए प्रोत्साहित करने वाले ये शब्द छत्तीसगढ़ के कवर्धा में रहने वाले आशीष सोनी और आशीष मित्तल के कानों में पड़े तो जैसे उनके सपनों को पंख लग गए। उन्होंने 'अपना कवर्धा' नाम का एक मोबाइल एप बना डाला जिसमें समाचार, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की जानकारी, सर्राफा भाव, बाजार भाव, मंडी भाव, मौसम, फिल्मों का शिड्यूल और टिकट के दाम समेत जिले से संबंधित लगभग सभी जानकारियां उपलब्ध हैं। कवर्धा में हर व्यक्ति के पास स्मार्टफोन है और वहां युवाओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है। इस ख्याल के साथ कवर्धा के बारे में समस्त जानकारी सभी तक पहुंचाने के लिए पीजी कॉलेज कवर्धा के दो स्नातकोत्तर युवाओं ने यह एप तैयार किया। आईटी की ओर इन दोनों का रुझान पहले से ही था। आशीष ने बताया कि प्रधानमंत्री की डिजिटल इंडिया अवधारणा से प्रेरित होकर हमने यह एप तैयार किया है।
ऐसा करिश्मा जिसका पूरी दुनिया को है इंतजार
डिजिटल इंडिया के सन्द
र्भ में सूचना प्रौद्योगिकी के समाजशास्त्रीय विश्लेषक बालेन्दु दाधीच से अजय विद्युत की बातचीत –
ल्ल आपको क्या लगता है, डिजिटल इंडिया कामयाब होगा?
'डिजिटल इंडिया' ने देश में औद्योगिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने, आयात पर निर्भरता घटाने, आधारभूत विकास और रोजगार सृजन के संदर्भ में बड़ी उम्मीदें जगा दी हैं। केंद्र सरकार की यह पहल भारत में सूचना क्रांति के दूसरे दौर का सूत्रपात कर सकती है। यह पहल इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकी, जिसे आईसीटी कहा जाता है, में निहित संभावनाओं, शक्तियों और सुविधाओं को भारत के गांव-गांव तक पहुंचाने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। वैसे देखें तो लक्ष्य बहुत महत्वाकांक्षी तथा चुनौतीपूर्ण है किंतु सन् 2019 तक पूरी होने वाली इस परियोजना को सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निगरानी में संचालित किया जाना है। डिजिटल तकनीकों के प्रयोग में उनकी दिलचस्पी और प्रवीणता पर कोई विवाद नहीं है।
ल्ल पैसा कहां से आएगा?
दर्जनों बड़े उद्योगपतियों ने 'डिजिटल इंडिया' अभियान को न सिर्फ विशालता और सार्थकता प्रदान की, बल्कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में करीब 4,72,000 करोड़ रुपए के निवेश के वायदे भी किए। कहा जा रहा है कि इस कार्यक्रम के तहत दीर्घकालीन आधार पर 25 लाख करोड़ रुपए तक का निवेश आकर्षित किया जा सकता है। यह काम तो बहुत जोरों से आगे बढ़ने वाला है जिसमें दुनिया के तमाम बड़े उद्योगपति और कंपनियां भागीदार बनने को उत्सुक हैं। यह ऐसा करिश्मा होगा जिसे साकार होते देखने की विश्व उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है।
ल्ल क्या होगा 'डिजिटल इंडिया' से?
इंटरनेट को दोतरफा संपर्क, आग्रह और संप्रेषक के माध्यम के रूप में इतनी बड़ी आबादी तक ले जाया जा सके तो ई-प्रशासन, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा और ई-बैंकिंग जैसे क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाएगा। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद को यकीन है कि देश में डिजिटल क्रांति और मोबाइल क्रांति के सुपरिणाम घटित होने के कगार पर हंै। महत्वपूर्ण यह है कि यह 'कनेक्टिविटी' प्रशासन और जनता के बीच मौजूद अवरोधों को ध्वस्त करने में भी योगदान देगी और हमारे प्रशासनिक तंत्र को ज्यादा पारदर्शी तथा जवाबदेह बनाएगी।
ल्ल इसमें आगे क्या चुनौतियां हो सकती हैं?
सबसे पहली समस्या बिजली है। माना कि हम गांव-गांव के लोगों को डिजिटल इंडिया के जरिए सेवाओं, सूचनाओं और सुविधाओं की ऑनलाइन डिलीवरी के नेटवर्क के अंतिम छोर पर तैनात कर देंगे। लेकिन बिजली ही नहीं होगी तो आम आदमी इन सेवाओं का उपभोग कैसे करेगा। डिजिटल इंडिया की कामयाबी के लिए मजबूत डिजिटल तंत्र की स्थापना से पहले पर्याप्त और भरोसेमंद बिजली प्रणाली की व्यवस्था ज्यादा जरूरी है। दूरसंचार स्पेक्ट्रम की बड़े पैमाने पर जरूरत होगी। लेकिन बिजली की ही तरह इस मोर्चे पर भी भारत में खासा संकट है।
आज जिस समस्या को लेकर सर्वाधिक चिंता और चर्चा है, वह है बार-बार मोबाइल कॉल ड्रॉप होने (टूटने) की समस्या। इसकी मूल वजह है- पर्याप्त स्पेक्ट्रम का अभाव। जब निर्बाध टेलीफोन कॉल ही सुनिश्चित नहीं है तो निर्बाध इंटरनेट कनेक्टिविटी और वह भी तेज गति से कैसे उपलब्ध हो पाएगी। सरकारी दस्तावेजों और सेवाओं के डिजिटलीकरण की मौजूदा स्थिति बहुत आश्वस्त करने वाली नहीं दिखाई देती। इसका ऑडिट कराने और डिजिटलीकरण में तेजी लाने की जरूरत है। चुनौती कई दिशाओं से आ रही है। पर इन्हें संकल्पशक्ति से दूर किया जा सकता है और किया जाएगा, ऐसा हमारा पूरा विश्वास है।
अजय विद्युत
खास ध्यान
डिजिटल इंडिया के तहत इन क्षेत्रों पर खास ध्यान दिया जाएगा-
ब्राडबैंड हाईवे- सड़क राजमार्ग की तर्ज पर ब्रॉडबैंड हाईवे से शहरों को जोड़ा जाएगा।
टेलीफोन सेवाओं तक सभी नागरिकों की पहुंच को सुनिश्चित किया जाएगा।
सार्वजनिक 'इंटरनेट एक्सेस' कार्यक्रम चलाकर इंटरनेट सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी।
ई-गवर्नंेस के अंतर्गत तकनीक के माध्यम से शासन-प्रशासन में सुधार लाया जाएगा।
ई-क्रांति के तहत विभिन्न सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लोगों को मुहैया करवाया जाएगा।
इन्फॉर्मेशन फॉर ऑल यानी सभी को जानकारियां मुहैया करवाई जाएंगी।
इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन- सरकार का लक्ष्य भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए कलपुर्जांे के आयात को शून्य करना है।
'आईटी फॉर जॉब्स' यानी सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए अधिक नौकरियां, पैदा की जाएंगी।
'अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम' चलाया जाएगा जिसका संबंध विद्यालय-महाविद्यालयों में विद्यार्थियों और शिक्षकों की उपस्थिति से है।
प्रधानमंत्री मोदी का कहना है, 'सारा कारोबार, सारी आवश्यकताएं, सारी व्यवस्थाएं मोबाइल के ईद-गिर्द… पूरी सरकार आपके मोबाइल फोन में मौजूद होने वाली है, वह दिन दूर नहीं है।' …यह बात कोई और कहता तो शायद लोग कपोलकल्पित समझते, लेकिन प्रधानमंत्री कह रहे हैं तो कर भी सकते हैं, लोगों को यह भरोसा है।
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