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बिहार में सत्ता के लिए संघर्ष चरम पर है। सामाजिक ताना-बाना बुनने के लिए जिन जीतनराम मांझी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था, वही अब पूर्व मुख्यमंत्री तथा जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार के गले की फांस बनते जा रहे हैं। दरअसल मुख्यमंत्री मांझी भी राजनीति के पुराने धुरंधर हैं। वे बड़ी ही होशियारी से नीतीश को अपनी शैली में जवाब दे रहे हैं। नीतीश कुमार के लिए आगे कुआं पीछे खाई की स्थिति है। उनके प्रधानमंत्री बनने की चाहत बार-बार कुलांचे भर रही है। पहले तो उन्होंने श्री नरेन्द्र मोदी के समकक्ष स्वयं का कद खड़ा करना चाहा परंतु चुनाव के बाद वे जमीन पर आ गए। बुरी तरह पिट जाने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सत्ता की लंबी चाल को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़कर वंचित समाज के जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया। जदयू के अंदर बिहार के चुनाव को लेकर जबरदस्त गहमा-गहमी है। पार्टी में अनुशासनहीनता चरम पर है। पार्टी छोड़ने की होड़ मची हुई है। एक-एक करके सभी पुराने लोग पार्टी से अलग हो रहे हैं। गत 21 जनवरी को बिहार सरकार के मंत्री एवं लालू प्रसाद यादव के पुराने सहयोगी श्याम रजक के घर एक भोज का आयोजन हुआ जिसमें आगे की रणनीति पर नीतीश कुनबे की ओर से विचार किया गया। श्याम रजक राजद के कार्यकाल में लालू के नौ रत्नों में से एक रत्न माने जाते थे, लेकिन जदयू के सत्ता में आने के बाद उन्होंने लालू से किनारा कर उन्हें अपशब्द भी कहे थे। आज राजनीति की बिसात पर वे अपनी मोहरें बिठाने में लगे हैं। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि अब बिहार के नए मुख्यमंत्री श्याम रजक ही होंगे। इधर राजद के सांसद पप्पू यादव ने यह कहकर और खलबली मचा दी है कि मांझी को अपमानित करने का प्रयास नीतीश के सबसे घनिष्ठ ललन सिंह के दिमाग की उपज है। नीतीश से खार खाए कई विधायक भाजपा नेतृत्व पर भी डोरे डालने में लगे हैं। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भी कहा है कि 50 से अधिक जदयू विधायक भाजपा के संपर्क में है। बिहार में जदयू की राजनीति आज चौराहे पर दिख रही है। लालू, नीतीश की दुविधा समझते हैं। उन्होंने अपनी शतार्ें पर जदयू के साथ विलय के संकेत दिये हैं। वैसे तथाकथित समाजवादियों के बारे में एक पुरानी कहावत है कि 'तीन महीने तक साथ नहीं और चार महीने तक अलग नहीं।'नीतीश की मजबूरी उनके चेहरे पर साफ झलकती है। अब देखना होगा कि बिहार की राजनीति कौन सी करवट लेती है?
राज्य समाचार- सुशासन की डफली, वंदेमातरम् से दिक्कत
बिहार बवाल का पर्याय बनता जा रहा है। इस बार वंदेमातरम् पर बवाल मच गया। 14 दिनों तक गोपालगंज के मांझा प्रखंड के अंतर्गत उत्क्रमित मध्य विद्यालय दुलदुलिया में वंदेमातरम् को लेकर तनाव की स्थिति बनी रही। घटना की शुरुआत गत 13 जनवरी को हुई।
13 जनवरी को प्रात: काल वंदेमातरम् का पूर्वाभ्यास शिक्षकों द्वारा कराया जा रहा था, लेकिन विद्यालय शिक्षा समिति के अध्यक्ष मो़ मुमताज ने इस पर असंतोष जाहिर करते हुए वंदेमातरम् गायन रुकवा दिया। उनका कहना था कि इससे मुसलमानों की भावनाओं को ठेस लगती है। शीर्षस्थ लोग भी वंदेमातरम् गायन नहीं करते हैं, इसलिए जरूरी नहीं कि हर किसी पर वंदेमातरम् थोपा जाए।
वंदेमातरम् का विरोध करते हुए कुछ मुस्लिम उपद्रवी लोग विद्यालय में घुस गए और उन्होंने शिक्षकों से लेकर बच्चों तक से अभद्र व्यवहार किया। इस बात की जानकारी मिलने पर हिन्दू संगठनों के लोग भी विद्यालय पहुंचे। माहौल तनावपूर्ण होते ही शिक्षकों ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी। विद्यालय में उस समय गणतंत्र दिवस की तैयारी चल रही थी, जिसे लेकर कुछ समय से चेतना-सत्र में प्रार्थना के बाद वंदेमातरम् गीत गाया जाता था।
राष्ट्रगीत से उत्पन्न हंगामे की सूचना प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी तारा सिंह को भी ज्ञात हुई। गत 14 जनवरी को उन्होंने हंगामे को शांत न कराते हुए राष्ट्रगीत के गायन पर ही मौखिक रोक लगा दी। 15 जनवरी को प्रमुख सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठनों के कार्यकर्ता सड़कों पर आ गए।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवं बजरंग दल ने प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के तुगलकी फरमान के विरोध में पुतला दहन किया। परिषद के क्षेत्र संगठन मंत्री निखिल रंजन ने इस संबंध में बताया कि परिषद शैक्षिक परिसर में राष्ट्रीयता का माहौल बनाने के लिए कृत संकल्प हैं। वंदेमातरम् इस देश की अस्मिता से जुड़ा हुआ है। इसे गाते-गाते हजारों क्रांतिकारी फांसी के फंदे को हंसते-हंसते चूम गए, उसके गायन को रोकना एक निंदनीय एवं घृणित
कार्य है।
माहौल को बिगड़ता देख गोपालगंज के भाजपा सांसद जनक राम एवं बरौली के विधायक तथा पूर्व मंत्री राम प्रवेश राय ने पहल की। उन्होंने शिक्षा समिति के अध्यक्ष मो़ मुमताज तथा अन्य लोगों के साथ एक पंचायत की जिसमें यह निर्णय लिया गया कि 26 जनवरी एवं 15 अगस्त को ही सिर्फ वंदेमातरम् का गायन होगा। इसका अभ्यास नहीं कराया जाएगा। साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि जो बच्चे वंदेमातरम् नहीं गाना चाहते उन्हें छूट रहेगी।
विद्यालय भले ही बंद हो गया परंतु यह विवाद नहीं थम रहा है। गत 24 जनवरी को स्थानीय प्रशासन ने पहल करते हुए वंदेमातरम् गायन के लिए सभी को तैयार कराया। गत 26 जनवरी को सामूहिक वंदेमातरम् का गायन भी हुआ। स्थानीय निवासी राकेश कुमार ने इस संदर्भ में बताया कि सबकी नजर अब आगामी स्वतंत्रता दिवस के समय होने वाले पूर्वाभ्यास पर रहेगी। क्या उस समय वंदेमातरम् का अभ्यास बच्चों को कराया जायेगा या नहीं? स्थानीय लोगों के चेहरे पर अभी भी चिंता की लकीरें साफ दिख रही हैं कि स्वतंत्र देश में वंदेमातरम् का गायन क्या गुनाह है?-पटना से संजीव कुमार
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