तेल के दामघटी कीमत, बढ़ी अर्थव्यवस्था
May 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

तेल के दामघटी कीमत, बढ़ी अर्थव्यवस्था

by
Jan 27, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 27 Jan 2015 12:11:20

डॉ. भगवती प्रकाश
सत्तर के दशक से ही तेल की कीमतें भारत सहित अनेक वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के लिए अस्थिरता व आर्थिक संकटों का प्रमुख कारण रही हैं। आज तेल की कीमतों में गिरावट भारत सहित सभी बड़े तेल आयातक देशों के लिए आर्थिक बहाली का साधन बन सकती है। लेकिन इस हेतु तेल की इन गिरती हुईं कीमतों से अर्जित लाभों का समुचित समायोजन अत्यन्त आवश्यक है। कच्चे तेल की कीमतों में यह गिरावट हमारी अर्थव्यवस्था को संकटों के दौर से उबार सकती है, वर्तमान राजकोषीय एवं चालू खातों में घाटे के दबाव से मुक्ति दिला सकती है और आर्थिक वृद्धि व स्वावलम्बन की ओर बढ़ने के लिए एक महत्वपूर्ण कारण बन सकती है। इसका लाभ केवल पेट्रोल व डीजल के खुदरा दामों में गिरावट लाकर इनके प्रत्यक्ष उपभोक्ताओं को ही नहीं देना चाहिए, बल्कि इसका लाभ कर अर्थव्यवस्था में सन्तुलन बनाने व आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में भी लेना चाहिए।
जून में कच्चे तेल की कीमतें 115 डॉलर प्रति बैलर थीं। अब यह घटकर 46 डॉलर हो गई है। इस गिरावट का लाभ देश के हर नागरिक को मिलना चाहिए। उसका उपयोग कर-राजस्व में वृद्धि हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए अगस्त से अब तक पेट्रोल के दामों में 9 बार कमी करके 14़ 69 रुपए व डीजल के दामों में अक्तूबर से 5 बार में कमी करके 10़ 71 रुपए की राहत लोगों को दी गई है। इस राहत केे बाद कर-राजस्व में वृद्धि के लिए कच्चे तेल की कीमतों में आए अन्तर का आंशिक उपयोग बिना ब्राण्ड वाले पेट्रोल के उत्पाद शुल्क में 8़ 95 रुपए व डीजल के उत्पाद शुल्क में रुपए 7़ 96 की वृद्धि कर व्यापक जनहित की दिशा में एक समीचीन निर्णय लिया गया।
आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी़ डी़ पी़ ) में केन्द्रीय करानुपात (टेक्स-जी.डी.पी. अनुपात) लगभग 10़ 50 प्रतिशत ही है, जो विश्व में अत्यन्त कम है। हमें सर्वजन हिताय यदि शिक्षा पर जी़ डी़ पी. का 6 प्रतिशत, रक्षा पर 3-4 प्रतिशत, अन्य लोक कल्याणकारी सेवाओं यथा जलदाय, चिकित्सादि पर 4 प्रतिशत, कृषि पर 2-3 प्रतिशत, विज्ञान व अनुसंधान पर 2-2़ 5 प्रतिशत परिव्यय करने हैं तो सकल घरेलू उत्पाद का 16-19 प्रतिशत तक कर-राजस्व चाहिए। ऋण सेवा अदायगियों आदि अनेक व्यय के अन्य मद और भी हैं। इस वर्ष तो हमारा अपै्रल से नवम्बर तक 8 माह का राजकोषीय घाटा ही वर्ष भर के घाटे के 99 प्रतिशत तक पहुंच गया है। बजट में 5़ 3 लाख करोड़ रुपए के राजकोषीय घाटे के प्रावधान में से 5़ 25 लाख करोड़ का राजकोषीय घाटा तो अप्रैल-नवम्बर, 2014 के बीच में ही पूरा हो गया। दूसरी ओर इस आठ माह की अवधि में हम इस वित्तीय वर्ष 2014-15 में राजस्व भी बजट में बारह माह की अनुमानित राशि के आधे से कम 43़ 6 प्रतिशत ही जुटा पाए हैं और विदेश व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर से भी आगे चला गया है। इस परिस्थिति में देश को वर्तमान आर्थिक संकट से उबारना, कार्बनिक ईंधन के प्रत्यक्ष उपभोक्ता मात्र को अन्तरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट के सम्पूर्ण लाभ देने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। विगत वषोंर् में किए गए कथित सुधारों के अधीन अर्थव्यवस्था को आयातों व विदेशी निवेश पर अवलम्बित कर देने से अर्थव्यवस्था इन 4 वषार्ें में से स्वाधीनता के बाद के सर्वाधिक प्रबल आर्थिक गतिरोध के दौर से निकल रही है। निर्माण क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर स्वाधीनता के बाद कभी भी 4.3 प्रतिशत से नीचे नहीं गई है और 50 व 60 के दशकों में भी यह 5़ 5 प्रतिशत वार्षिक रही है। वहीं 2010-11 में यह 2़ 7 प्रतिशत वार्षिक की दर पर आने के बाद पिछले वित्तीय वर्ष 2013-14 में तो ऋणात्मक अर्थात् -0़ 7 पर चली गई थी।
आज दुनिया के उत्पादन क्षेत्र में भारत का अंश मात्र 2़ 04 प्रतिशत है, जबकि हमारे यहां विश्व की 16 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। वहीं चीन का वैश्विक उत्पादन में 23 प्रतिशत योगदान होने से वह क्रमांक एक पर है और अब अमरीका भी उत्पादन क्षेत्र में 17़ 4 प्रतिशत योगदान के साथ दूसरे स्थान पर है। स्मरण रहे कि 1992 में चीन का योगदान भी भारत की तरह मात्र 2़ 4 प्रतिशत था। चीन का सकल घरेलू उत्पाद में करानुपात भारत से कहीं अधिक होने से वह वर्ष 2015 में अपना रक्षा बजट दोगुना अर्थात् 238़ 2 अरब डॉलर करने जा रहा है। ऐसा अन्तरराष्ट्रीय रक्षा संस्थान आई़ एच़ एस. का कहना है। यह व्यय भारत, जापान व प्रशान्त क्षेत्र के 10 देशों के संयुक्त रक्षा बजट 232़ 5 अरब डॉलर से भी अधिक होगा। भारत का रक्षा बजट मात्र 40 अरब डॉलर ही है, जो हमारे सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत से न्यून 1़ 8 प्रतिशत स्तर पर होने से आज 1963 से भी पूर्व के स्तर पर चला गया है। वर्ष 1962-63 में हमारा रक्षा बजट हमारे जी.डी.पी. का 1़5 प्रतिशत ही था और 1962 के युद्ध के कटु अनुभव के बाद इसे 1963-64 में 2़3 प्रतिशत किया गया, जो 1987-88 तक बढ़कर 3़ 7 प्रतिशत पर पहुंच गया था। आर्थिक सुधारों के दौर में सकल घरेलू उत्पाद में अप्रत्यक्ष करानुपात 9़ 6 प्रतिशत से घट कर अब 5 प्रतिशत से भी न्यून हो जाने से आज रक्षा, अवसंरचना विकास, लोक कल्याण, सामाजिक सुरक्षा, कृषि एवं अनुसंधान व विकास आदि सभी मदों पर व्यय का हमारा करानुपात प्रभावित हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद में घटते करानुपात से सभी क्षेत्रों में घटते बजटीय समर्थन से हमारा निष्पादन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। वर्ष 2007 के बाद संसाधन संकट के चलते जहाज निर्माण में बजटीय सहायता बन्द कर देनेे से 2008 में विश्व में जहाज निर्माण में भारत का अंश जो 1़ 3 प्रतिशत था वह घट कर मात्र 0़ 01 प्रतिशत हो गया है। यही स्थिति खाद्य अनुदान, कृषि में सार्वजनिक निवेश आदि क्षेत्रों में हो रही है।

ऐसे में तेल की घटती कीमतों का पूरा लाभ पेट्रोल-डीजल के प्रत्यक्ष उपभोक्ताओं को ही नहीं देकर उसके एक अंश का उपयोग कर-राजस्व वृद्धि में कर लेना, समेकित राष्ट्रीय हित के आलोक में आवश्यक है। राज्यों के परिप्रेक्ष्य में भी आज हमारे जी़ डी़ पी़ मंें केन्द्र व राज्यों के संयुक्त करानुपात को देखें तो यह मात्र 17 प्रतिशत ही है। आज औद्योगिक देशों में यह 25-35 प्रतिशत तक है। अतएव तेल की कीमतों में इस कमी का क्रमश: 14़ 69 रुपए व 10़ 71 रुपए प्रति लीटर का लाभ उपभोक्ता को प्रदान करने के बाद इन दोनों के उत्पाद शुल्क में क्रमश: मात्र 8़ 95 रुपए व 7़ 96 रुपए की व्यापक जनहित में की गई कुल वृद्धि समीचीन है। कई समालोचक इस बात को भी भूल जाते हैं कि कच्चे तेल खरीदने के बाद उसके हमारे बन्दरगाह तक पहुंचने, उसके परिशोधन व पेट्रोल पम्प पर पहुंचने में भी 4-6 सप्ताह का अन्तराल रहता है। इसलिए कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट व उसे उपभोक्ता तक अन्तरित करने में समय लगना भी स्वाभाविक है। इसमें ही तेल कम्पनियों की स्कन्ध क्षति (इन्वेटरी लॉस) ही 15,000 करोड़ रुपए होता है।
अतीत में तेल की कीमतों में वृद्धि से देश के विदेश व्यापार के घाटे व चालू खाता घाटे में हुई विस्फोटक वृद्धि से रुपए की विनिमय दर में गिरावट राजस्व क्षति व महंगाई का भार देश के प्रत्येक वर्ग ने समान रूप से वहन किया है। उसे देखते हुए इस गिरावट का लाभ भी सभी वगार्ें को देेने की दृष्टि से इसके बहुतांश का उपयोग उत्पाद शुल्क वृद्धि में किए जाने में भी राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कहीं अनुचित नहीं ठहराया जाना चाहिए। बढ़ती ऊर्जा लागतों पर अंकुश लगने और मुद्रास्फीति से अनियंत्रित हुई महंगाई केे थम जाने से अब बढ़ी हुई ब्याज दरों को भी नीचे लाने में सफल होने से देश की आर्थिक वृद्धि दर को पुन: 7-8 प्रतिशत पर ले जाना हमारे लिए सम्भव होगा। हमारी आर्थिक वृद्धि चीन की तरह निर्यात आधारित न होकर बहुतांश में घरेलू मांग आधारित होने से चीन की तुलना में हमारी विकास व वृद्धि की दर में बेहतर सुधार होगा। इसी सारे घटनाक्रम और थोक मूल्य सूचकांक वृद्धि दर अर्थात् थोक भावों में महंगाई दर लगभग शून्य पर ले आने में हमारी हाल की सफलता को देखकर ही अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई़ एम.एफ़) ने भी अपने पिछले सप्ताह के वैश्विक आर्थिक अनुमानों में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2016 में, चीन से उच्च व विश्व में सवार्ेच्च हो जाने का आकलन प्रस्तुत किया है। वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ने जिस प्रकार खनन व औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में पुन: सहज व स्वस्थ वृद्धि दर की बहाली के जो परिणामदायी प्रयास किए हैं, उसी क्रम इलेक्ट्रॉनिक्स, विद्युत-संयंत्र निर्माण, सौर व पवन ऊर्जा के विस्तार, सड़क निर्माण व जलयानों के निर्माण से पर्यटन विकास-पर्यन्त अर्थव्यवस्था के विविध क्षेत्रों में नव संचार, वित्तीय समावेश के प्रयासों के साथ अनौपचारिक क्षेत्र और कृषि व किसान को संकट से उबारने या लोक कल्याण की नई योजनाओं के सूत्रपात की पहल की है। उस हेतु जो राजकोषीय या बजटीय समर्थन आवश्यक है, उसके लिए अर्थव्यवस्था में करानुपात में अविलम्ब व अनिवार्य वृद्धि आवश्यक है। इसलिए तेल की कीमतों में गिरावट के लाभ को एक छोटे से पेट्रोल-डीजल के परोक्ष उपभोक्ताओं के वर्ग में ही वितरित न कर बजट के विविध मदों पर व्यय प्रावधानों के माध्यम से राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप समग्र जनता के व्यापक हित में वितरण हमारे संविधान के, धन के समान वितरण सम्बन्धी नीति निर्देशक सिद्धान्तों के अनुरूप ही होगा।
वस्तुत: 1970 के दशक से ही हमारे अर्थतंत्र, उद्योगों एवं वृहद लोक कल्याण में सबसे बड़ी बाधा ही तेल की कीमतें, उससे उपजा व्यापार घाटा, मुद्रा अवमूल्यन और महंगाई रहे हैं। वर्ष 1967 के अरब-इस्रायल युद्ध के बाद तेल उत्पादक देशों द्वारा अमरीका व विश्व पर दबाव हेतु जो तेल आपूर्ति रोकी थी उससे 1973 में कच्चे तेल की कीमतें 3 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 12 डॉलर हो गई थीं। 1979 में ईरान मंे खोमैनी क्रान्ति के समय 12 महीनों में कच्चे तेल की कीमतें 17 डॉलर से बढ़कर 36 डॉलर प्रति बैरल हो गई थीं। पुन: 1990 के इराक संकट के समय, तेल की कीमतें 3 माह में 17 से 26 व अन्तत: 46 डॉलर प्रति बैरल हो गई थीं। वर्ष 2008 में तेल की कीमतें 145़ 29 डॉलर तक भी पहुंची थीं। जून, 2014 में भी ये 115 डॉलर प्रति बैरल थीं।
आज कच्चे तेल की कीमत 46 डॉलर प्रति बैरल पर आ चुकी है। 1910 व 1914 में तेल की कीमतें क्रमश: 0़ 61 व 0़ 81 डॉलर प्रति बैरल थीं। वैश्विक मुद्रास्फीति के अनुरूप आज की कीमत देखें तो आज तेल की कीमत 25 डॉलर प्रति बैरल से अधिक नहीं होनी चाहिए। 20 जनवरी को ईरान ने कहा है कि यदि 'ओपेक' यानी तेल निर्यातक देशों ने उत्पादन में कटौती नहीं की तो शीघ्र ही तेल की कीमत 25 डॉलर प्रति बैरल आ सकती है। वहीं अपने देश व विश्व की बहुसंख्य मानवता के हित में ऐसी सामान्य दर होगी जिससे भारत सहित सभी तेल आयातक देश अपनी आर्थिक प्रगति में वांछित वृद्धि कर सकेंगे।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

प्रतीकात्मक तस्वीर

Fact Check: विदेश मंत्री एस जयशंकर का माफी मांगने का फर्जी वीडियो किया जा रहा वायरल

जो कहते थे पहले कि बदला कब, बदला कब, वे ही अब कह रहे रहे, युद्ध नहीं, युद्ध नहीं!

भारत ने तबाह किए आतंकियों के ठिकाने

सही समय पर सटीक प्रहार

अब अगर आतंकी हमला हुआ तो माना जाएगा ‘युद्ध’ : पाकिस्तान को भारत की अंतिम चेतावनी

प्रतीकात्मक तस्वीर

घर वापसी: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से प्रेरित होकर मुस्लिम लड़की ने अपनाया सनातन धर्म

पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार

पाकिस्तान का सरेंडर! लेकिन फिर बड़ी चालाकी से झूठ बोले पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

प्रतीकात्मक तस्वीर

Fact Check: विदेश मंत्री एस जयशंकर का माफी मांगने का फर्जी वीडियो किया जा रहा वायरल

जो कहते थे पहले कि बदला कब, बदला कब, वे ही अब कह रहे रहे, युद्ध नहीं, युद्ध नहीं!

भारत ने तबाह किए आतंकियों के ठिकाने

सही समय पर सटीक प्रहार

अब अगर आतंकी हमला हुआ तो माना जाएगा ‘युद्ध’ : पाकिस्तान को भारत की अंतिम चेतावनी

प्रतीकात्मक तस्वीर

घर वापसी: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से प्रेरित होकर मुस्लिम लड़की ने अपनाया सनातन धर्म

पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार

पाकिस्तान का सरेंडर! लेकिन फिर बड़ी चालाकी से झूठ बोले पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार

Operation Sindoor: भारतीय सेना ने कई मोस्ट वांटेड आतंकियों को किया ढेर, देखें लिस्ट

बैठक की अध्यक्षता करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा मंत्री, एनएसए, तीनों सेना प्रमुखों के साथ बैठक की, आगे की रणनीति पर चर्चा

Operation Sindoor

सेना सीमा पर लड़ रही, आप घर में आराम चाहते हैं: जानिए किस पर भड़के चीफ जस्टिस

India opposes IMF funding to pakistan

पाकिस्तान को IMF ने दिया 1 बिलियन डॉलर कर्ज, भारत ने किया विरोध, वोटिंग से क्यों बनाई दूरी?

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies