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सर्वोच्च न्यायालय ने 24 सितम्बर को कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में अहम फैसला सुनाते हुए 218 में से 214 कोयला ब्लॉक के आवंटन रद्द कर दिए। शेष चार ब्लॉक को छह माह की छूट दी गई है जिन्हें उत्पादन पर प्रति टन 295 रुपए का जुर्माना भी देना होगा। साथ ही ब्लॉक लेने वाली कंपनियों को तीन माह के भीतर रकम का भुगतान करना होगा।
कोयला घोटाला में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा, न्यायमूर्ति मदन. बी. लोकुर व कुरियन जोसफ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 1993 में आवंटित किए गए 214 कोयला ब्लॉक रद्द कर दिए। जिन चार ब्लॉक को राहत दी गई है उनमें एनटीपीसी, सेल और मध्य प्रदेश के अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट शामिल हैं। जिन कंपनियों के कोयला ब्लॉक रद्द हुए हैं, उन्हें छह सप्ताह में अपना काम समेटने का समय दिया गया है।
पीठ ने कहा है कि जो कंपनियां अभी खदान से कोयला निकाल रही हैं, वे 31 मार्च, 2015 तक इसे जारी रख सकती हैं, लेकिन इन्हें 295 रुपए प्रति टन के हिसाब से जुर्माना देना होगा। साथ ही पहले निकाले जा चुके कोयले पर इसी दर से जुर्माने की रकम देनी होगी। इससे सरकार को 7900 करोड़ रुपए मिलने की संभावना जताई जा रही है। इन खदानों में करीब दो लाख करोड़ रुपए का निवेश होने का अनुमान जताया जा रहा है। आवंटन रद्द होने से खनन कंपनियों को बड़े स्तर पर नुकसान होने की आशंका है।
पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि कोयला घोटाले की जांच कर रही सीबीआई की कार्रवाई जारी रहेगी। इस फैसले का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सीबीआई अभी तक कोयला घोटाला मामले में कुल 27 एफआईआर दर्ज कर चुकी है। पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि अवैध प्रक्रिया से कोयला खदान पाने वालों से सहानुभूति नहीं रखी जा सकती है। उन्हें इसका नतीजा भुगतना होगा। इस सूरत में केन्द्र सरकार कोल इंडिया को कोयला ब्लॉक सौंप सकती, या फिर इनकी नीलामी प्रक्रिया भी शुरू कर सकती है। गौरतलब है कि गत 25 अगस्त को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने इन आवंटन को गैरकानूनी और मनमाना घोषित कर दिया था।
उस समय कोयला आवंटन की स्क्रीनिंग समिति की 36 बैठकों में अपनाई गई प्रक्रिया की भी सर्वोच्च न्यायलय ने कड़ी निंदा की थी। इस संबंध में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने कोयला ब्लॉक आवंटन रद्द होने का विरोध करते हुए कंपनियों के दो लाख करोड़ रुपए के निवेश की बात कही थी। – प्रतिनिधि
पूर्व महाधिवक्ता मोहंती गिरफ्तार
भुवनेश्वर। ओडिशा के पूर्व महाधिवक्ता अशोक मोहंती को सीबीआई ने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने और अर्थतत्व समूह से कथित सम्बंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया है। मोहंती ने दस दिन पूर्व ही अपने पद से इस्तीफा दिया था। सीबीआई ने गत 22 सितम्बर को पूर्व महाधिवक्ता मोहंती को उनके कटक स्थित निवास स्थान से उन्हें चिट फंड घोटाले के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। अर्थ तत्व समूह का मामला पश्चिम बंगाल के सारदा चिट फंड घोटाले से जुड़ा हुआ है।
गिरफ्तारी से पूर्व मोहंती से सीबीआई ने दो चरणों में पूछताछ की थी। गत 13 सितम्बर को भी उनसे पूछताछ की गई थी। मोहंती को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दो दिन के रिमांड पर सीबीआई को पूछताछ के लिए सौंप दिया गया। आरोप है कि मोहंती ने अर्थ तत्व समूह में निवेशकों को करोड़ों रुपए का चूना लगाया है। मोहंती ने मीडिया के समक्ष अर्थ तत्व समूह के मुख्य प्रबंध निदेशक प्रदीप सेठी से कटक में मकान लेने की बात का खंडन किया। कटक विकास प्राधिकरण के इस भूखंड की कीमत करोड़ों में बताई जा रही है।
सीबीआई का दावा है कि सेठी को 20 दिनों के भीतर इस भूखंड को देने का अनापत्ति प्रमाणपत्र मिल गया था और बिना किसी भुगतान के यह मोहंती को मिल गया था। इसके अलावा एक निजी टीवी चैनल मालिक मनोज दास की जमानत याचिका न्यायालय ने गत 24 सितम्बर को खारिज कर दी। दास पर सेठी से 40 लाख रुपए लेने का आरोप है। – पंचानन अग्रवाल
तृणमूल सांसद से पूछताछ
सारदा चिट फंड घोटाले में सीबीआई ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद शुभेन्दु अधिकारी से पूछताछ की है। इस घोटाले में सीबीआई तृणमूल कांग्रेस के निलंबित सांसद कुणाल घोष को गिरफ्तार कर चुकी है।
गत 23 सितम्बर को सुदीप्त सेन के चालक अरविंद सिंह चौहान ने कहा था कि वर्ष 2013 में सारदा चिट फंड घोटाले का पर्दाफाश होने से पूर्व शुभेन्दु अधिकारी ने सारदा समूह के प्रमुख सुदीप्त सेन से मुलाकात की थी। हालांकि शुभेन्दु ने सीबीआई पूछताछ के बाद पत्रकारों को बताया कि सुदीप्त सेन को वे दूसरे लोगों की तरह ही जानते हैं। उन्होंने अरविंद सिंह चौहान के बारे में कुछ भी बोलने से मना कर दिया। चौहान को गत वर्ष अप्रैल माह में जम्मू-कश्मीर के सोनमर्ग से गिरफ्तार किया गया था। – प्रतिनिधि
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