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इतने बड़े देश की राजधानी दिल्ली में एक स्व-विस्थापित मुख्यमंत्री को रहने के लिए सर पर आसानी से छत नसीब नहीं हो रही है। अविश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि ऐसी ही एक गंभीर आवासीय समस्या को लेकर आजकल दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी बेहद उद्विग्न हैं। उन्हें एक साधारण शिक्षक की तरह एक ऐसे भवन में रहना पड़ रहा है जिसको विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए नितांत अनुपयुक्त घोषित कर दिया जाना चाहिए। उनके आवास में बड़ा सा ड्राइंग रूम, भोजन का कमरा, कई सारे शयन कक्ष हैं। इनके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार स्नानघर, प्रसाधन, किचेन, स्टोर आदि सब कुछ हैं पर एक बड़ी भारी कमी है उपकुलपति के आवास में। सब कुछ है पर एक कोपभवन नहीं है।
रानी कैकेयी को पति से अपना रोष प्रकट करना था। क्या आराम से कोपभवन में जाकर विराजमान हो गईं। मंथरा आदि दासियों ने वहीं पर भोजन इत्यादि सुविधाएँ उपलब्ध करा दीं। राजा दशरथ को लम्बे चौड़े शब्दों में बताने की कोई आवश्यकता नहीं पडी कि रानी जी रूठी हुई हैं। बस कह दिया गया कि वे कोपभवन में विराजमान हैं और सारी स्थिति पानी की तरह साफ हो गयी। इतना सरंजाम अपना रोष केवल एक व्यक्ति से प्रकट करने के लिए था। अन्य सब से निपटने के लिए जैसे मंथरा आदि दासियों को डाँटने फटकारने के लिए, या चारों राजपुत्रों में से किसी से खेल खेल में कोई खिड़की झरोखा आदि टूट गया तो वे साधारण तरीके से जहां रहीं वहीं से डांट-डपट कर काम चला लेती होंगी। तभी तो रामायण में कोप भवन का किसी अन्य अवसर पर उपयोग करने का उल्लेख नहीं मिलता है।
पर एशिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालय का उप कुलपति जो अपने छात्रों से नाराज है, अधिकाँश अध्यापकों से परेशान है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से जिसकी सरासर कुट्टी है यानी जो सारी दुनिया से दुखी है उसके आवास में एक कमरा भी ऐसा नहीं जिसमे वह घुस कर बैठ जाये तो लोग समझ जाएँ कि भाई, बन्दा परेशान है, नाराज है, अभी उसे मत छेड़ो।
वे 1981 में इम्पीरियल कोलेज , लन्दन से पीएचडी की उपाधि लेकर,1999 में अमरीका के ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में गणित के सह प्राध्यापक रह चुके हैं। ऐसे शिक्षाशास्त्री का क्या मन नहीं करेगा कि वैसे ही उच्चस्तर का विश्वविद्यालय वह अपनी प्रिय डी यू ( मेरा विचार है, वह इसे दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे देसी नाम से नहीं संबोधित करते होंगे।) को भी बना दे। कितने अच्छे होते हैं वे विदेशी विश्वविद्यालय जिनके छात्र ज्ञानार्जन के लिए लाखों डॉलर बिना उफ किये खर्च कर सकते हैं या फिर उस महंगी शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति लेने के लिए जीतोड़ मेहनत करते हैं। पर यहाँ तो जाने कहाँ कहाँ से गरीब बेसहारा छात्र आकर जमा हो गए हैं जिन्हें अच्छी शिक्षा के लिए जीवन का एक साल खर्च करना इतना भारी लग रहा है। ऐसों से बात करने का मन नहीं करता। कोपभवन होता तो उसमे घुस जाते । छात्र भी समझ जाते और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग भी कि भाई का मूड ठीक नहीं। एक साल और निकल जाने दो, अगले साल देख लेंगे।
इस एक अतिरिक्त साल में वे छात्र जीवन के कितने गूढ़ रहस्य समझ लेते। प्राणायाम से मन-मस्तिष्क- शरीर में सामंजस्य पैदा करना सीख लेते, इतिहास, भूगोल की सामान्य जानकारी प्राप्त कर लेते, वाणिज्य की जानकारी हो न हो, बैंक पासबुक की प्रविष्टियों जैसी बारीक बातें समझ लेते। जो कुछ आठवीं कक्षा में पढ़कर भूल चुके हैं उन्हें दुहरा लेते तो फिर न भूलते। पर नहीं , उन्हें तो जल्दी से जल्दी डिग्री लेकर बेकारों की संख्या में वृद्घि करने की पड़ी हुई है। गणित की गुत्थियां सुलझाने में प्रवीण उपकुलपति क्या ऐसी छोटी-छोटी बातें छात्रों को समझाने जाएगा? उधर पिछले साल से लागू इस चतुर्वर्षीय कोर्स की कोई उपयोगिता नहीं समझ में आने पर इन नादानों ने गला फाड़ कर रोना शुरू कर दिया है कि ये उनके पैसे की बर्बादी है, उनके भविष्य से खिलवाड़ है। शुक्र है भगवान का, उपकुलपति महोदय के बंगले में एक हाथी दांत की मीनार या आइवरी टॉवर भी है जहां उन्होंने अपने आप को छुपा लिया। ऐसा बढि़या ध्वनिप्रतिरोधक अर्थात साउंडप्रूफ कमरा जिसकी दीवारों से टकराकर इन चीखते, छटपटाते छात्रों की सारी चिल्ल-पों वापस लौट जाती थी। आइवरी टावर दोनों तरफ से साउंड प्रूफ है। उपकुलपति जी की प्रतिक्रिया भी बाहर नहीं आती थी। कभी लगता था कि वे अपने त्यागपत्र की घोषणा कर रहे हैं, कभी लगता था कि नहीं उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के हस्तक्षेप से जब लगभग सभी कॉलेज सहमत हो गए थे तब भी उप कुलपति ने बस इतना जताया कि उच्चशैक्षिक संस्थानों की स्वायत्तता और उपकुलपति का अहम् एक ही बात है। जबरदस्त का ठेंगा सर पर होता है। आखीर अनुदान आयोग ने कह दिया कि अपने मन की ही करनी है तो अनुदान भूल जाओ। अब जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग केवल छात्रों के हित की बात सोचकर पैसा खर्च करना चाहता है उससे कैसे आशा की जाए कि उपकुलपति के बंगले में एक कोप भवन बनवाने के लिए वह अनुदान देगा।
अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
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