|
कराची से आ रही आतंकी हमले की खबरों के बीच ही 11 जून को नवाज शरीफ ने हमारे प्रधानमंत्री को पत्र भेजा, जिसमें उन्होने अपनी हाल ही की भारत यात्रा और बातचीत को संतोषजनक बताया। गौरतलब है, कि इसी दौरान पाक के भारत विरोधी तत्व भारत सरकार के विरुद्घ विषवमन कर रहे थे। नवाज शरीफ का पत्र बताता है, कि वे पाकिस्तान में नया माहौल बनाना चाह रहे हैं, और भारत सरकार को भी भरोसे में लेना चाह रहे हैं। उनकी इस पहल का स्वागत होना चाहिए,परंतु इस पहल को पलीता लगाने वालों की पाक में कमी नहीं है। नवाज भारत के साथ व्यापार संबंध बढ़ाना चाहते हैं, परंतु पाकिस्तान में व्यापार के उन रास्तों की सुरक्षा की गारंटी लेने वाला कोई नहीं दिखता। भारत से बिजली लेने का मुद्दा और नदी जल संबंधी मामले भी लंबे समय से भारत विरोधियों के निशाने पर हंै। भारत विरोधी इस भानुमति के कुनबे को जोड़ने वाला गोंद भारत विरोध ही है। नवाज शरीफ की सबसे बड़ी चिंता भी यही दिखती है, कि यदि इस गिरोह ने भारत में फिर कोई खुराफात कर दी, तो कहीं सारे किए-कराए पर पानी न फिर जाए। इतना तो तय है, कि नवाज को आपसी सहयोग की राह पर आगे बढ़ने के लिए भारत सरकार के साथ आपसी समझ स्थापित करनी होगी।
क्या है 'इस्टैब्लिशमेंट'
पाकिस्तान में 'इस्टैब्लिशमेंट' है पाक सेना का नेतृत्व, जिसके अंतर्गत तीनों सेनाओं की कमान है। पाक सेना के अंतर्गत ही हैं पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां, जिनमें हैं – पाक आई़ बी़, एहतेसाब, आई़ एस़ आई, आई. एस. पी. आर., मिलिट्री इंटेलिजेंस, स्पेशल सर्विस ग्रुप, सर्वेयर जनरल ऑफ पाकिस्तान, फेडरल इन्वेस्टीगेशन और नारकोटिक्स कंट्रोल डिवीजन। फिर अनेक 'सिविलियन पार्टनरशिप' हैं, जो पाक सेना ने बरसों में विकसित की हैं। सैकड़ों एन. जी़ ओ़ हैं। साथ ही न्यायपालिका, शिक्षा जगत, मीडिया में और पाकिस्तान के अवाम पर गहरी पकड़ रखने वाली इस्लामिक संस्थाओं में खुफिया एजेंसियों के एजेंट हैं। पाकिस्तान में चौतरफा व्याप्त इस सवार्ेच्च सत्ता के सामने पाकिस्तान की सरकार भी नतमस्तक रहती है। पाकिस्तान के अंदर बाहर काम करने वाले आतंकी संगठनों की वास्तविक धुरी भी यही 'इस्टैब्लिशमेंट'ही है। इसके शीर्ष पर होता है, पाक सेना प्रमुख। दूसरे क्रमांक पर है डी जी, आई.एस.आई., और सेना के अन्य प्रमुख अधिकारी।
खिदमत में मुल्क
पाकिस्तानी सेना के अधिकारी मीडिया में कहते दिखते हैं, कि फौज मुल्क की खिदमत के लिए है, पर सच एकदम उलट है। वास्तव में पूरा मुल्क पाकिस्तानी फौज की खिदमत कर रहा है। 1971 की शर्मनाक पराजय के बाद पाक सेना नये सिरे से अपना प्रभुत्व जमाने में लगी थी। इसके लिए पाक सेना ने पाकिस्तान के आर्थिक क्षेत्र में कदम रखा और एक भ्रष्ट, जटिल फौजी व्यापार उद्योग जगत को जन्म दिया। आज पाक फौज का पाकिस्तान के स्टॉक एक्सचेंज में सबसे बड़ा हिस्सा है। साथ ही पाकिस्तान के हर बड़े उद्योग व्यापार में फौज की अहम भागीदारी हैं। फौज बंैक, एयरलाइन्स, स्टील, सीमेंट, टेलीकॉम, पेट्रोलियम, ऊर्जा, शिक्षा, खेल और स्वास्थ्य सेवाओं तक में व्यापार कर रही है। शक्कर, टेक्सटाइल्स, सड़क-परिवहन, संपत्ति और यहां तक कि किराना और बेकरी तक के व्यवसाय में भी हाथ डाले हुए है। फौज के दबदबे के कारण सारे बड़े ठेके फौजी प्रतिष्ठानों को ही मिलते हैं, जबकि कार्यक्षमता के मामले में ये सब प्राय: पिछड़े हुए हैं।
रक्षा मंत्रालय के उपक्रम- फौजी फाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, शाहीन फाउंडेशन और बहरिया फाउंडेशन कई स्तरों पर धनोपार्जन कर रहे हैं। लाभ जाता है, सेना के अधिकारियों की जेब में। एक खास बात यह है, कि इन संस्थानों से फौजी तो कमा रहे हैं, पर ये संस्थान सदैव घाटे में रहते हैं। समय-समय पर सरकार इनको आर्थिक सहायता देती है और इनको बैंकों से कर्ज दिलाने के लिए बैंक गारंटी लेती है। सैन्य अधिकारी मनचाहे ऑडिट करवाते हैं, सरकार भरपाई करती रहती है।
पाकिस्तान में सेना सबसे बड़ी जमींदार है। लाखों एकड़ जमीन पर उसका कब्जा है, जिसे बेचकर, लीज पर देकर मोटा मुनाफा कमाया जाता है। सेना के अधिकारियों को भूमि देने के लिए 1912 का लैंण्ड एक्ट अब तक चल रहा है। इसके अंतर्गत फौजी अधिकारियों को 20 रुपये से 60 रुपये एकड़ के भाव से जमीन दी जाती है। मेजर जनरल या उसके ऊपर के अधिकारी 240 एकड़, ब्रिगेडियर कर्नल 150 एकड़, लेफ्टिनेंट कर्नल 124 एकड़ और जे़सी़ओ़ तथा एऩसी़ओ़ 64-32 एकड़ जमीन खरीद सकते हैं।
'इस्टैब्लिशमेंट' के अंतरराष्ट्रीय साझीदार
पाकिस्तान के इस वास्तविक सत्ता प्रतिष्ठान का इतना शक्तिशाली बने रहना संभव नही था, यदि तीन धाय माताओं ने उसे पोषित न किया होता, ये तीन हैं- अमरीका, चीन और सऊदी अरब।
अमरीका- शीत युद्घ और पाकिस्तान लगभग एक साथ ही अस्तित्व में आए, और प्रारंभ से ही अमरीका ने पाकिस्तान के महत्व को समझा। पाकिस्तान के एक ओर अरब सागर है, जहां से महत्वपूर्ण तेलमार्ग गुजरते हैं। ईरान, अफगानिस्तान, चीन और भारत उसके पड़ोसी हैं। रूस निकट है। ऐसी महत्वपूर्ण भू-सामरिक स्थिति वाला पाकिस्तान अमरीका की छाया में चलने को बहुत उत्सुक भी था। अमरीका ने पाकिस्तानी इस्टैब्लिशमेंट के साथ लगातार साझेदारी बनाए रखी। आई़एस़आई. का निर्माण सी़आई़ए. की सहायता से उसी की तर्ज पर हुआ। आई़एस़आई़ और सी़ आई़ ए़ ने दुनिया भर में अनेक संयुक्त ऑपरेशन भी किए।
अमरीका से हथियार और पैसा सदा मिलता आया। शीत युद्ध के समय पाकिस्तान अमरीकी खेमे में बना रहा। फिर अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ लड़ा गया छाया युद्ध पाकिस्तान की धरती से पाकिस्तानी प्यादों द्वारा संचालित हुआ। 9/11 को न्यूयार्क पर हुए हमले में आई़एस़आई. का भी हाथ सामने आया, जब तत्कालीन आई़एस़आई़ प्रमुख द्वारा विमान को डब्ल्यू़टी़सी़ टॉवर से टकराने वाले आतंकी मुहम्मद अट्टा तक धनराशि पहुंचाने के प्रमाण अमरीका को मिले। ये धन एक हीरा व्यापारी की फिरौती से आया था। इस प्रमाण को सामने रखकर अमरीका ने पाकिस्तानी तानाशाह मुशर्रफ को धमकाया कि या तो ''अमरीका का साथ दो, अथवा पाषाण युग में लौटने को तैयार हो जाओ।'' मुशर्रफ ने सौदा किया, और अफगानिस्तान में अमरीका का साथ देने को तैयार हो गया। इस सहायता के एवज में पाक सेना पिछले डेढ़ दशक से अमरीका का दोहन कर रही है।
चीन – 1965 में भारत पाक युद्घ के समय अमरीका से पाकिस्तान को हथियार मिलने बंद हो गए। फौजी तानाशाह अयूब खां दिक्कत में आ गए। तब चीन आगे आया और तब से चीन और पाकिस्तान पक्के यार बन गए। भारत को घेरने के लिए चीन ने पाकिस्तान को हथियार, मिसाइलें, टैंक, लड़ाकू विमान और अपने परमाणु बम का डिजाइन भी दिया। बदले में पाकिस्तान ने अरब सागर के तेलमार्ग तक पहंुचने का रास्ता और अपने संसाधन उपलब्ध करवाए। चीन और पाक आज हर मौसम के साथी हैं। चीन पाक के कश्मीर एजेंडे का भी समर्थन करता आ रहा है।
सऊदी अरब- जुल्फिकार अली भुट्टो ने मुस्लिम जगत का नेतृत्व थामने की आकांक्षा में सऊदी अरब की ओर हाथ बढ़ाया। 'घास खाकर जिएँगे पर परमाणु बम बनाएँगे' ये नारा दिया। उन्हांेने इस्लामिक जगत का आह्वान किया कि, ईसाई देशों और कम्युनिस्ट देशों दोनों के पास बम हैं, इसीलिए मुसलमानों के लिए पाकिस्तान परमाणु बम बनाएगा। सऊदी अरब ने पैसा और उसकी कट्टर वहाबी विचारधारा दोनों को पाकिस्तान में निर्यात शुरू किया। इस्लामिक जगत में चलाई जा रही इस मुहिम से अमरीका के तेल हित प्रभावित होते थे। अत: हरी झंडी मिलने पर पाक फौज ने भुुट्टो का तख्ता पलट दिया। फिर जब पाक की धरती से अफगानिस्तान में रूस के विरुद्ध छाया युद्ध लड़ा गया, तब सऊदी अरब का पैसा और उसकी गुप्तचर सेवा दोनों उसमें शामिल हुए। उसके बाद से सऊदी अरब अपना दायरा बढ़ाता जा रहा है।
ये तीनों साझीदार आज भी पाक सेना प्रतिष्ठान की रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं।
क्या है 'इस्टैब्लिशमेंट'
पाकिस्तान में 'इस्टैब्लिशमेंट' है पाक सेना का नेतृत्व, जिसके अंतर्गत तीनों सेनाओं की कमान है। पाक सेना के अंतर्गत ही हैं पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां, जिनमें हैं – पाक आई़ बी़, एहतेसाब, आई़ एस़ आई, आई. एस. पी. आर., मिलिट्री इंटेलिजेंस, स्पेशल सर्विस ग्रुप, सर्वेयर जनरल ऑफ पाकिस्तान, फेडरल इन्वेस्टीगेशन और नारकोटिक्स कंट्रोल डिवीजन। फिर अनेक 'सिविलियन पार्टनरशिप' हैं, जो पाक सेना ने बरसों में विकसित की हैं। सैकड़ों एन. जी़ ओ़ हैं। साथ ही न्यायपालिका, शिक्षा जगत, मीडिया में और पाकिस्तान के अवाम पर गहरी पकड़ रखने वाली इस्लामिक संस्थाओं में खुफिया एजेंसियों के एजेंट हैं। पाकिस्तान में चौतरफा व्याप्त इस सवार्ेच्च सत्ता के सामने पाकिस्तान की सरकार भी नतमस्तक रहती है। पाकिस्तान के अंदर बाहर काम करने वाले आतंकी संगठनों की वास्तविक धुरी भी यही 'इस्टैब्लिशमेंट'ही है। इसके शीर्ष पर होता है, पाक सेना प्रमुख। दूसरे क्रमांक पर है डी जी, आई.एस.आई., और सेना के अन्य प्रमुख अधिकारी।
टिप्पणियाँ