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थप्पड़ पर स्वतंत्र शोध

by
May 17, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 May 2014 17:20:47

-विजय कुमार-

लोकसभा के चुनावों का घमासान शांत हो गया है। कुछ दिन में इसकी धूल भी बैठ जाएगी। लोग अब आगे की चिन्ता में लगे हैं; पर शर्मा जी का मत है कि आगे बढ़ते समय पिछली बातों को नहीं भूलना चाहिए। चूंकि पुरानी नींव के ऊपर ही नया निर्माण होता है।

भारत के चुनावों में जिन्दाबाद, मुर्दाबाद, डंडे, झंडे और फूलमाला का प्रयोग पुराना है; पर इस बार कुछ नये प्रयोग भी हुए हैं। दिल्ली में अचानक उदित हुए ह्यझाड़ूदलह्ण के मुखिया केजरीवाल का हवा की तरह आना और तूफान की तरह रण छोड़ जाना इतिहास बन गया; पर इससे भी उनका मन नहीं भरा, तो वे असली महाभारत में कूद पड़े। अत: लोगों ने स्याही, चप्पल, चांटे और मुक्कों से उनके प्रति भरपूर स्नेह दिखाया। वे समझ नहीं पाये कि यह आम आदमी के विरुद्घ खास प्रतिक्रिया थी या खास आदमी के विरोध में आम आदमी का आक्रोश। शर्मा जी ने इस विषय पर कुछ अध्ययन किया है। उनके निष्कर्ष इसप्रकार हैं।

ऐतिहासिक पहलू – देश और विदेश के इतिहास में ऐसे प्रसंग कम ही मिलते हैं। यद्यपि रामायण और महाभारतकालीन मल्लयुद्घ में घूंसों का प्रयोग होता था; पर खेल का हिस्सा होने के कारण उन्हें अवैध नहीं कह सकते; लेकिन कुछ समय से स्याही, जूते, चप्पल, चांटे और घूंसे का फैशन बहुत बढ़ गया है। अमरीकी राष्ट्रपति बुश और फिर ओबामा से लेकर हिलेरी क्लिंटन तक, सभी पर जूते फेंके गये हैं। दिल्ली न्यायालय में ह्यसहाराश्रीह्ण पर भी एक दुखिया ने स्याही फेंकी थी। केजरीवाल भाग्यशाली हैं, इसलिए उन्हें काशी में जिन्दा और मुर्दाबाद के बीच स्याही के साथ अंडे भी नसीब हुए।

प्रचारात्मक पहलू – इसमें बिना कुछ खर्च किये चांटा खाने और मारने वाले, दोनों को भरपूर प्रचार मिलता है। जिस जरनैल सिंह ने गृहमंत्री चिदम्बरम् पर जूता फेंका था, उसे ह्यझाड़ूदलह्ण ने लोकसभा का टिकट दे दिया। जिस ऑटो चालक लाली ने माला पहनाकर पूरे विधि-विधान से केजरीवाल की पूजा की थी, उसका फोटो भी खूब छपा। टी़वी़ वाले तो दिन भर उस चांटे की जुगाली करते रहे। इससे केजरीवाल के साथ ही लाली को भी खूब लोकप्रियता मिली।अगले चुनाव में आप उसका टिकट भी पक्का समझें।

आर्थिक पहलू – केजरीवाल को मिल रहे इस अभूतपूर्व प्यार से उनके देशी और विदेशी चंदे में भारी वृद्घि हुई है। शर्मा जी का मत है कि ये हमले चंदा जुटाने की एक योजना मात्र है। यह सच इसलिए भी लगता है कि दिल्ली में जिस युवक ने केजरीवाल पर स्याही फेंकी थी, वह उनके कार्यालय में ही काम कर रहा है।

चांटे और मुक्के से हुई चंदावृद्घि को देखकर ह्यझाड़ूदलह्ण के कुछ और नेताओं ने भी इस प्रयोग में रुचि दिखायी; पर केजरीवाल ने अनुमति नहीं दी। उनका कहना था कि ये दल मेरा है। इसलिए इस प्यार का सौ प्रतिशत हकदार भी मैं ही हूं। कोई मुझसे बड़ा न बने। धन्य है उनका चांटा प्रेम। कुछ लोग इस योजना को क्रांतिकारी ही नहीं, बहुत क्रांतिकारी बता रहे हैं। कुछ लोग उन्हें मिले चांटे, सीट और वोट प्रतिशत के बीच समीकरण तलाश रहे हैं।

राजनीतिक पहलू – चुनाव आयोग का कहना है कि चुनाव चिन्ह के रूप में अब तक चप्पल और जूता कोई नहीं लेता था; क्योंकि लोग इन्हें देखना या दिखाना अच्छा नहीं मानते; पर इनकी प्रसिद्घि को बढ़ता देख अब कुछ लोगों ने इनकी भी मांग की है। चांटा चुनाव चिन्ह तो पहले से ही ह्यमैडम कांग्रेसह्ण को आवंटित है। हां, मुक्का उपलब्ध है। यदि कोई दल या प्रत्याशी चाहे, तो अगले चुनाव में इसके लिए आवेदन कर सकता है।

शर्मा जी ने इस विषय की जाति, भाषा, राज्य, क्षेत्र और रोजगार के आधार पर भी समीक्षा की है; पर वे निष्कर्ष काफी खतरनाक हैं। इसलिए उन्होंने अनुमति के लिए वह फाइल चुनाव आयोग के पास भेज दी है। लोकसभा के बाद अब दिल्ली विधानसभा के चुनाव फिर होने हैं। उसमें केजरीवाल जी अपने इसी प्रयोग को दोहराते हैं या कोई नयी क्रांतिकारी चीज निकालकर लाते हैं, ये देखना बहुत रोचक होगा। आपके साथ मुझे भी इसकी प्रतीक्षा है*

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