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विकास पर विश्वास

by
Apr 26, 2014, 12:00 am IST
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दिंनाक: 26 Apr 2014 16:15:48

 

गुजरात के तराजू पर अमेठी की तरक्की

विश्व मानचित्र पर अमेठी की एक ही पहचान है कि यह बरसों से जवाहरलाल, संजय, राजीव, सोनिया और अब राहुल… यानी नेहरू-गांधी परिवार की कर्मभूमि रही है। इसे विकास के मामले में देश का नौलखा हार बताया जाता रहा है। न केवल घोषणाएं हुईं, बल्कि योजनाएं भी बनीं और केंद्र से बेशुमार पैसा अमेठी के विकास के लिए झोंका गया। उसके मुताबिक तो इसे विकास का सिरमौर होना ही चाहिए था। और दूसरी तरफ विकास की एक नई इबारत लिखी है भूकंप की भयानक तबाही के बाद दोगुने जोश से उठ खड़े हुए नरेंद्र मोदी के गुजरात ने। चुनाव के इस मौसम में राजग के खिलाफ खड़े दल भले अलग-अलग लड़ रहे हैं, लेकिन उनके मुख्य मुद्दे एक हैं- मोदी को हराओ और गुजरात मॉडल का विकास धोखा है। तो विकास के दो मॉडल हमारे सामने हैं- एक अमेठी, दूसरा गुजरात। देखें, कौन है असली, कौन है नकली। आज तक की टीम अमेठी पहुंची। उसमें शामिल प्रमुख महिला पत्रकार की पहली टिप्पणी थी, ह्यमैं लक्जरी बस से आई हूं। तब भी यह मालूम पड़ रहा था कि मैं अब गिरी और तब गिरी। क्या कमाल की सड़कें हैं।ह्ण उधर गुजरात में भुज के काफी आगे जाते समय आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने वाहन में सवार लोगों को बताया, ह्यमालूम है पहले यह इलाका बिल्कुल उजाड़ हुआ करता था। बियाबान ही बियाबान। अब देखो चारों तरफ कैसी हरियाली है। मकान हैं और शानदार सड़क। अब आंख के सामने है तो कैसे कहूं विकास नहीं हुआ।ह्ण चलिए पहले अमेठी चलते हैं फिर गुजरात को समझेंगे।
ल्ल आशीष कुमार एवं अजय विद्युत
इस देश में आज तक चुनाव साम्प्रदायिकता, जाति और धर्म के नाम पर ही लड़ा जाता रहा है। भय दिखाकर वोट लेने की कांग्रेस की पुरानी परंपरा रही है। 21वीं सदी में पहली बार देश एक ऐसा चुनाव देख रहा है, जिसमें उन शक्तियों को अधिक महत्व नहीं मिल रहा, जिन्हें साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़कर, जाति-धर्म के नाम पर समाज को बांटकर आजादी के बाद से ही सत्ता में रहने की आदत पड़ गई है। इस सत्ता को पाने के लिए वे किसी भी हद तक की नीचता करते रहे हैं। समाज को जाति और धर्म के नाम पर बांटने का काम आज तक सत्ता में रही इन्हीं ताकतों ने किया। पहली बार यह चुनाव पुरानी परम्परा से इतर विकास के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। देश को धर्म और मजहब के झगड़ों से अधिक रोटी और रोजगार में विश्वास है।
इसलिए धर्म के नाम पर और जाति के नाम पर समाज को पिछले साठ से अधिक वर्षों से बांटने में सफल रही पार्टी, जब रोटी और रोजगार के मुद्दे पर चुनाव लड़ने का वक्त आया तो वह समझ नहीं पाई कि उसे समय की चुनौती का मुकाबला कैसे करना है? लेकिन वह इतना समझ गई कि इस बार साठ साल से इस्तेमाल होने वाला साम्प्रदायिक और धर्म निरपेक्ष शक्तियों का जुमला काम नहीं आएगा सो यूपीए सरकार के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी 2014 के लोकसभा चुनाव में विकास के मुद्दे पर भाषण देते दिखे।
आप राहुल के पांच साल, सात साल पुराने भाषण निकाल कर देख सकते हैं? क्या उनमें विकास और समाज के लिए इस तरह की चिन्ता नजर आ रही थी, जो अचानक 2014 में नजर आने लगी। उनका वंचितों के घर सोने का नाटक बिल्कुल फ्लॉप शो साबित हुआ था।
कांग्रेस ने आजादी के बाद से ही देश को मूर्ख बनाने की राजनीति की है। वर्ष 2014 में जब देश ने देखा कि राहुल गांधी विभिन्न वर्गो और समुदाय के लोगों से मिल रहे हैं। यह सब देखते हुए, एक आम आदमी को यही लगा कि यह 44 वर्षीय युवा नेता सकारात्मक राजनीति करना चाहता है। उनके भाषणों में विकास शब्द उस वक्त अचानक आने लगा, जब पूरे देश में गुजरात के विकास और विकास के मॉडल की चर्चा होने लगी। राहुल गांधी की इस सकारात्मक राजनीति की चाह को देखकर ही हमारी अमेठी जाने की इच्छा हुई।
2014 के चुनाव में जब मुद्दा विकास बना तो अमेठी के विकास पर भी सवाल उठना लाजमी था। इस चुनाव में जब अमेठी चर्चा में आया तो वहां की समस्याएं भी चर्चा में आईं। यह नेहरू-गांधी परिवार के एकाधिकार वाली सीट मानी जाती रही है। यहां से पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, संजय गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, सोनिया गांधी और उनके सुपुत्र राहुल गांधी कम से कम एक बार चुने ही गए हैं। इस क्षेत्र पर 1966 से ही कांग्रेस का कब्जा रहा है। नेहरू गांधी परिवार के अलावा यहां से 1966 में विद्याधर बाजपेयी कांग्रेस से जीते थे। 1977-80 के चुनाव में जनता पार्टी से रविन्द्र प्रताप सिंह चुने गए थे। इसके अलावा यह सीट गांधी परिवार के पास ही रही।
यूं तकनीकी तौर पर अमेठी अधिक पुराना जिला नहीं है। अमेठी महज 14 साल पहले जिला बना। इसका जिला मुख्यालय गौरीगंज हैै। 5 तहसीलों-गौरीगंज, अमेठी, मुसाफिरखाना, सलोन और तिलोई को मिलाकर बना है अमेठी। इसमें 16 विकास खंड, 17 पुलिस स्टेशन, 401 लेखपाल क्षेत्र आते हैं।
लोकसभा क्षेत्र में रोजगार नहीं, सड़क नहीं और विकास नहीं। जो थोड़ा बहुत काम हुआ वह राजीव गांधी के समय में किया गया काम है।
हालांकि अमेठी में विकास कार्य संजय गांधी के समय में शुरू हो गए थे। राजीव के समय में उन्होंने रफ्तार पकड़ी। सैकड़ों फैक्ट्रियां डाली गईं और उन फैक्ट्रियों को काफी अनुदान भी दिया गया। इनमें ज्यादातर ने अनुदान का लाभ उठाकर फैक्ट्रियों को बंद कर दिया।
पंचवर्षीय योजनाओं में यहां काम करने के लिए राहुल गांधी ने केंद्र से बहुत सारे पैसे भेजे, इसमें कोई दो राय नहीं है। तमाम सड़कों का जाल भी बिछाया गया। अभी हाल ही में तमाम योजनाओं का शिलान्यास भी हुआ है, लेकिन यहां के ग्रामीणों में रोष इस बात को लेकर है कि सड़कों के निर्माण वगैरह के लिए पैसा तो भेजा गया, पर काम नहीं हो पाया। काम की स्थिति यह है कि सड़कों की जितनी बदतर और दयनीय स्थिति यहां पर है, शायद ही कहीं और हो। इसे लेकर मतदाताओं में रोष जरूर है। तमाम ऐसी और योजनाएं हैं जिनमें केंद्र से पैसा भेजा गया लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि वह काम कहीं दिखा नहीं।
दरअसल विकास का पहला चरण सड़क होती है। और जब उसी का इतना बुरा हाल हो तो विपक्षी पार्टियां जैसे भाजपा और आआपा इसी को प्रमुख मुद्दा बना रही हैं कांग्रेस के खिलाफ। सड़कों का विकास नहीं हुआ है यहां पर।
जो उद्योग लगे भी हैं उनमें रोजगार के क्षेत्र में स्थानीय लोगों को कुछ नहीं मिला। जैसे यहां मुंशीगंज के पास कोरबा में आयुध निर्माण फैकट्री बनाई गई थी। उसमें यहां के कई लोगों की जमीनें गईं। लेकिन स्थानीय लोगों का यह आरोप है कि उनको उसमें काम नहीं मिला। जबकि जमीन लेते समय कहा गया था कि जिसकी भी जमीनें जाएंगी उनमें जिसकी जो भी योग्यता होगी, उसे उसके अनुसार काम मिलेगा। यहां लोगों का खास गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि जब फैक्ट्रियां बनीं तो उन्हें अपेक्षा के अनुरूप रोजगार नहीं मिल पाया। और फिर बाद में फैक्ट्रियां बंद हो गईं, तो जिन मुट्ठीभर भाग्यशलियों को काम मिल भी पाया था, वे फिर से बेरोजगार हो गए। अब एक नया मुद्दा उभरकर आया है। फैक्ट्री बनाने के लिए किसानों से औने-पौने दाम पर जमीनें ली गई थीं और वे फैक्ट्रियां वर्षों से बंद पड़ी हैं। तो किसान अब अपनी जमीनें वापस मांग रहे हैं।
अभी यहां रेल नीर की फैक्ट्री डाली गई है, लेकिन रोजगार को लेकर उससे भी स्थानीय लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ। उसमें तो ज्यादा लोगों को रोजगार मिलने के अवसर ही नहीं हैं। उसमें भी तकनीकी रूप से प्रशिक्षित लोग ज्यादा खपते हैं लेकिन यहां तकनीकी और अन्य रोजगारपरक शिक्षा की कोई खास व्यवस्था
नहीं है। जैसे यहां आई.आई.आई.टी खुला है। उसमें शायद ही कोई छात्र अमेठी का हो, वरना कोई नहीं है। जैसे यहां एफएम रेनबो की सेवा शुरू की गई है लेकिन अभी वह संचालित लखनऊ से ही हो रहा है। यहां योजनाएं बनाने और पैसा भेजने को लेकर कोई कमी नहीं है, लेकिन धरातल पर वह हो नहीं पाया है, जो अमेठी की बदहाली का बड़ा कारण है।
जिला बनने के बाद भी कलेक्ट्रेट यहां तहसील में चल रहा है। मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय जिला महिला चिकित्सालय में चल रहा है। जिला महिला चिकित्सालय का अस्तित्व ही खत्म हो गया। यहां जो जिला अस्पताल है वह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चल रहा है।
यहां तो विकास के कार्य अभी क-ख-ग से शुरू करने हैं।
सच बात तो यह है कि अमेठी के विकास को लेकर जितनी योजनाएं बनीं और उन्हें प्रोत्साहन दिया गया, अगर वह मजबूती से अमल में लाया जा सका होता, तो अमेठी निश्चित ही भारत का वर्ल्ड क्लास सिटी बन गया होता, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन खराब प्रबंधन और लापरवाही के चलते वह अपनी दुर्दशा का शिकार बना हुआ है। अब हाल यह है कि आप यहां आएं तो पहला अनुभव यह होगा कि आप किस पिछड़े क्षेत्र में आ गए हैं।

आज देश थ्री जी युग में है और राहुल के लोकसभा क्षेत्र में टूजी का इस्तेमाल भी मुश्किल है। राजीव गांधी को देश कम्यूटर देने वाले नेता के तौर पर याद करता है और राहुल के लोकसभा क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क शहर से दस किलोमीटर बाहर निकलते ही, रह-रह कर दम तोड़ देता है। शहर से महज चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव नाड़ीपार के निवासी सूरज ने बताया कि उनके गांव में तीन टेलीविजन हैं और गांव में एक साथ दो घरों में टेलीविजन नहीं देखा जा सकता क्योंकि यदि दो टेलीविजन एक साथ चलाए जाएं तो बिजली चली जाती है। गौरतलब है कि इस गांव में बिजली चार साल पहले ही पहुंची है।
अब गुजरात के विकास मॉडल की बात
अमेठी के बाद अब गुजरात के विकास मॉडल की बात करते हैं। राजग के खिलाफ चुनाव लड़ रहे सभी दल गुजरात मॉडल का विरोध करते हुए यही कह रहे हैं कि गुजरात मॉडल हूबहू सभी जगह लागू नहीं किया जा सकता। वहां परिस्थितियां भिन्न हैं। दरअसल वे भी गलत नहीं हैं। गुजरात विकास का मॉडल सिर्फ एक सोच है कि हमें अपनी जनता का हित और समृद्धि चाहिए। इसके अलावा उसमें कुछ भी नहीं है। विकास का मॉडल लोग खुद तैयार करते हैं, सरकार उन्हें सुविधाएं देती है और उनकी तरक्की में साझीदार बनती है। वह कोई ऐसा नहीं है कि सरकार ने योजना बनाई और पैसा भेज दिया। वह लोगों को आश्रित नहीं बनाता, कर्जदार नहीं बनाता, नौकर नहीं बनाता बल्कि उनमें साहस और नेतृत्व की क्षमता पैदा करता है। वह कम्प्यूटर और इंटरनेट के जरिए ऐसा तंत्र विकसित करता है जिसमें भ्रष्टाचार की संभावना न के बराबर हो जाए, लोगों को लाभ तुरंत मिले और सरकार व अधिकारी उनकी बात तुरंत सुन सकें। शहर बनें, उद्योग पनपें, समृद्धि आए लेकिन पर्यावरण भी बचे। सड़कें, पानी, बिजली सब जगह हों। दरअसल जब 2001 में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली, तब न तो उनके पास ज्यादा कोई प्रशासनिक अनुभव था और न ही उन्होंने कभी कोई चुनाव लड़ा था। साथ ही, गुजरात में आये भयानक भूकम्प की वजह से वहां के आर्थिक हालत भी बहुत खराब थे और ऊपर से पूरा सरकारी तंत्र भी एक प्रकार से निरुत्साहित हो गया था। मोदी ने एक बड़ा सपना देखा और अनूठी शुरुआत की। सबसे पहले गुजरात के मंत्रियो से लेकर चपरासी तक को कार्य में कुशलता हासिल करने के लिए, उन्हें एकदम नए प्रकार की अत्याधुनिक ट्रेनिंग में भेजना शुरू किया। बार-बार हो रहे सरकारी आला-अफसरों के गैर-जरूरी तबादलों पर रोक लगाई गई और सरकार से जुड़े आला-अफसरों को अपनी काबिलियत का इस्तेमाल करने की खुली छूट दी।
भ्रष्टाचार की रोकथाम- मोदी सरकार ने ज्यादातर सरकारी कार्यो में कम्प्यूटर और इंटरनेट तकनीक का इस्तेमाल शुरू कराया। इससे भ्रष्टाचार तो कम हुआ ही, लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में पड़ रही कई दिक्कतें कम हो गईं। वर्षों से राशन कार्ड, खान-खदान, और टैक्स के क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार को ई गवर्नंेस के विभिन्न प्रारूपों को अमल में लाकर रोका गया है। तहसील, जिला और नगरपालिका दफ्तरों का भ्रष्टाचार वन-डे गवर्नंेस मॉडल की तर्ज पर बने जनसेवा केंद्रों के जरिये रोक दिया गया, सरकारी नौकरी की भर्ती में हो रहे भ्रष्टाचार को भी ऑनलाइन चयन प्रक्रिया के जरिये रोक दिया गया।
बहरहाल गुजरात की कसौटी पर अमेठी को कसना पत्रकारीय नजरिए से अलग पहल है लेकिन अब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी पड़ताल जरूरी लगती है। देश को विकास चाहिए और वह इसके एवज में वंशवाद के तर्क सुनने को राजी नहीं लगता। गुजरात में कई अमेठी थे। सरकार ने ईमानदारी और संकल्प के बूते बहुत कम खर्च में उनकी कायापलट दी। अमेठी में कई गुजरात बनाने की संभावनाएं थीं। पैसा पानी की तरह बहा। उद्योगों का जाल बना, लेकिन वे अनुदान लूटकर चलते बने। गरीब और गरीब हो गया। ल्ल
अमेठी में पहला चुनाव
अमेठी में इस बार पहली बार के चुनाव की तरह का चुनाव हो रहा है। जिसमें पार्टियों के उम्मीदवार हैं। अभी तक तो केवल गांधी परिवार एक तरह से निर्विरोध ही चुन लिया जाता था। ज्यादातर प्रत्याशी डमी किस्म के होते थे। कोई खास प्रचार वगैरह नहीं। जनता-जनार्दन भक्तिभाव से गांधी परिवार के व्यक्ति को वोट दे आता था। इस बार भाजपा की स्मृति ईरानी और आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास मुकाबले में खड़े हैं। दोनों ही जानी-मानी हस्ती हैं। राहुल गांधी के लिए एक तरह से यह पहला चुनाव है जब कोई उनके मुकाबला करने मैदान में उतरा है।
इसकी अहमियत इस बात से ही लगायी जा सकती है कि दस साल में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष अपने पुत्र के लिए वोट मांगने यहां आईं। गांधी परिवार अभी भी अमेठी को अपनी जागीर ही समझता है। सोनिया ने लोगों से कहा कि इंदिरा जी ने अमेठी राजीव जी को सौंपी थी और उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए मैंने आपको राहुल सौंपा है। हमारा आपका भावनाओं का नाता है।
अमेठी के एक दर्जन से अधिक गांवों में जाकर और लगभग 150 लोगों से बातचीत के बाद यह स्पष्ट हुआ कि राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्राफ अमेठी में इतना ऊंचा नहीं है, जितना अखबारों और टेलीविजन में दावा किया जाता है। वैसे 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी जीत तीन लाख से अधिक मतों से हुई थी। अमेठी में ऑटो चालक बुद्धराम यादव कहते हैं, ह्ययहां गरीबी बहुत है, इसलिए थोड़े-थोड़े पैसे लेकर मतदान करने की घटनाएं अधिक नहीं चौंकाती।ह्ण
गांव-गांव घूमते हुए यह जानकारी हुई कि वर्तमान सांसद राहुल गांधी पिछले दस वर्षों में अमेठी के अधिकांश गांवों में आज तक नहीं गए।
अमेठी में पहला चुनाव
अमेठी में इस बार पहली बार के चुनाव की तरह का चुनाव हो रहा है। जिसमें पार्टियों के उम्मीदवार हैं। अभी तक तो केवल गांधी परिवार एक तरह से निर्विरोध ही चुन लिया जाता था। ज्यादातर प्रत्याशी डमी किस्म के होते थे। कोई खास प्रचार वगैरह नहीं। जनता-जनार्दन भक्तिभाव से गांधी परिवार के व्यक्ति को वोट दे आता था। इस बार भाजपा की स्मृति ईरानी और आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास मुकाबले में खड़े हैं। दोनों ही जानी-मानी हस्ती हैं। राहुल गांधी के लिए एक तरह से यह पहला चुनाव है जब कोई उनके मुकाबला करने मैदान में उतरा है।
इसकी अहमियत इस बात से ही लगायी जा सकती है कि दस साल में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष अपने पुत्र के लिए वोट मांगने यहां आईं। गांधी परिवार अभी भी अमेठी को अपनी जागीर ही समझता है। सोनिया ने लोगों से कहा कि इंदिरा जी ने अमेठी राजीव जी को सौंपी थी और उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए मैंने आपको राहुल सौंपा है। हमारा आपका भावनाओं का नाता है।
अमेठी के एक दर्जन से अधिक गांवों में जाकर और लगभग 150 लोगों से बातचीत के बाद यह स्पष्ट हुआ कि राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्राफ अमेठी में इतना ऊंचा नहीं है, जितना अखबारों और टेलीविजन में दावा किया जाता है। वैसे 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी जीत तीन लाख से अधिक मतों से हुई थी। अमेठी में ऑटो चालक बुद्धराम यादव कहते हैं, ह्ययहां गरीबी बहुत है, इसलिए थोड़े-थोड़े पैसे लेकर मतदान करने की घटनाएं अधिक नहीं चौंकाती।ह्ण
गांव-गांव घूमते हुए यह जानकारी हुई कि वर्तमान सांसद राहुल गांधी पिछले दस वर्षों में अमेठी के अधिकांश गांवों में आज तक नहीं गए।
आधुनिक खेती
खेती की गुणवत्ता को जाँच परखने के लिए सोशल हेल्थ कार्ड योजना कामयाब रही है। पानी की बचत को बढ़ावा देने और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए फव्वारा और टपक सिंचाई योजनाओं को 50 से 70 प्रतिशत तक की सब्सिडी देकर प्रोत्साहित किया जा रहा है। अनाज मंडियों में हो रहे घपलों पर रोक के लिए ऑनलाइन प्रणाली है। किसानों को अपने ही गांव में खेती के विशेषज्ञों से मिलाने का मौका दिया जा रहा है। इसके अलावा बंजर जमीन तक पानी पहुंचाने की योजना तो इतनी कामयाब रही कि विदेशी विशेषज्ञ तक उसे देखने आए।
गरीबों को सब्सिडी का आश्रित बनाने के बजाय उन्हें 55 प्रकार के मुफ्त ट्रेनिंग कोर्स करवाए जाते हैं। ट्रेनिंग कोर्स पूरा कर चुके लोगों को गुजरात सरकार खुद अलग-अलग शहरों में रोजगार मेला लगा कर, उन्हें उद्योग में नौकरी दिलवाने में मदद करती है। महिलाओं को उनके ही गॉव-मोहल्ले में रोजगार दिलाने के लिए तीन से चार महिलाओं के समूह को अपना खुद का धंधा शुरू करने के लिए आर्थिक मदद की जाती है और उनके द्वारा तैयार चीजों को बेचने के लिए भी अलग-अलग शहरों में सरकार के प्रयास से प्रदर्शनी लगायी जाती है।
भरोसा है इस बार कुछ अवश्य बदलेगा : पं. छन्नू लाल मिश्र
किराना घराने की गायकी को लेकर पंडित छन्नू लाल मिश्र की धाक बनारस की गलियों से लेकर अमरीका तक में है। कई घरों में सुबह पंडित जी के गाये भजनों से शुरू होती है। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी और वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी के प्रस्तावक बनकर पद्मभूषण पंडित छन्नू लाल जी प्रसन्न हैं। उन्हें भी लगता है कि अच्छे दिन आएंगे, गंगा मां की चंचल, निर्मल धारा के साथ शांति और समृद्धि का भारत वो देख पाएंगे। गाना ही उनका रक्त है और श्वास भी। दुनियादारी की बातों में ज्यादा नहीं पड़ते। प्रस्तुत है इस मौके पर पाञ्चजन्य से उनकी विशेष बातचीत।
ल्ल कैसा है बनारस का हाल?
बड़ी गहमागहमी है चुनाव की। चुनाव का माहौल है। सभी अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। सब लोग जीतने की उम्मीद में हैं। सभी प्रत्याशी चाहते हैं कि हमारी विजय हो। और ऐसी उम्मीद सभी को होनी भी चाहिए। अब देखिए जिसके भाग्य में जो होना है वही होगा- होइहिं सोइ जो राम रचि राखाह्ण यह आध्यात्मिक नगरी है। भगवान जिसको चाहेंगे उसी की विजय होगी और भगवान जिसे नहीं चाहेंगे उसकी विजय नहीं होगी। कहा भी है- ह्यहानि लाभ, मरण जीवन, जस अपजस बिधि हाथह्ण यह ईश्वर के हाथ में है, आदमी की वजह से नहीं होता है कुछ।
ल्ल लोग खुश हैं?
इस समय वाराणसी की ही बात करें तो समाज में हर वर्ग का मनुष्य जो मेहनतकश है और ईमानदारी का जीवन जीता है, बहुत परेशान है। कहीं बिजली नहीं है, कहीं पानी नहीं है। सड़कें देखिए यहां कितनी खराब हैं। गंदगी और प्रदूषण का आलम देखिए। और पूरे नगरवासी परेशान हैं कि माता गंगा को कैसे स्वच्छ कराया जाए। युवा पढ़ जाते हैं तो काम-धंधे कहां हैं। बड़ी बेचैनी होती है यह सब देखकर।
ल्ल आप क्या चाहते हैं?
बनारस को बनारस बनाना है। यह भगवान शंकर की बसाई हुई नगरी है। इसे इतना सुंदर बनाया जाए कि लगे काशी, काशी है। यह आध्यात्मिक नगरी है इसलिए यहां उसी पवित्र भावना के साथ हर चीज का ध्यान रखना पड़ेगा।
हमारी उम्मीद है कि यहां एक अकादमी बनाई जाए जिसमें मुफ्त में संगीत सिखाया जाए, सिर्फ बनारसी संगीत। ठुमरी, दादरा, चैता, चैती, होली, लावनी आदि सभी की शिक्षा दी जाए। वरना हमारी समृद्ध परंपरा का लोप हो जाएगा। अभी इसके शिक्षण की कहीं भी माकूल व्यवस्था नहीं है। लोग शास्त्रीय संगीत सीख रहे हैं। शास्त्रीय संगीत सीखकर वे नौकरी करने लग जाते हैं और उनकी कला समाप्त हो जाती है। चैती, कजरी, होली हमारी काशी की धरोहर हैं। हमारे नौजवानों को काम-धंधा मिलना चाहिए।
ल्ल आपकी दुनिया कैसी है?
हम तो अपने ही कमरे में मस्त रहते हैं इसलिए बाहर के माहौल पर ज्यादा नहीं बोल सकते। बाहर निकलने पर तो पता चले कि क्या-क्या मुसीबतें बढ़ गई हैं। यहां के और बाहर के मिलाकर करीब सौ एक लोग रोज मिलने आते हैं, उन्हीं से तमाम हाल मिल जाते हैं। हम तो एक शेर कहते हैं- ह्यअपने लिए-इलाही कोई तमन्ना नहीं जमाने में, मैंने सारी उम्र गुजारी है अपने गाने में।ह्ण
ल्ल तो इस बार आपको क्या हुआ… अचानक नरेन्द्र मोदी के प्रस्तावक बन गए… आपको भी लगता है- अबकी बार मोदी सरकार!
वाराणसी से चुनाव लड़ रहे नरेन्द्र मोदी का प्रस्तावक बनकर अच्छा लग रहा है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे उनका व्यक्तित्व अच्छा लगा। उनसे बातचीत करने पर भी लगा कि अच्छे आदमी हैं, ईमानदार आदमी हैं। इसीलिए हमने उनकी उम्मीदवारी का प्रस्ताव किया है।
सबसे बड़ी बात यह कि जो हमको याद करेगा, हमारा सम्मान करेगा, उसका हम जरूर सम्मान करेंगे। यह हमारी सनातन भारतीय परंपरा भी है। आजकल सही लोगों को याद करने और सम्मान करने की बात तो वैसे ही गायब होती जा रही है जैसे अब चिट्ठी लिखना गायब हो गया है। अमित शाह खुद आए थे हमारा सम्मान किया, शाल ओढ़ाई, माला पहनाई। यह बनारस की संगीत परंपरा का सम्मान है। महापौर भी हमसे मिले थे। जब मुझे प्रस्तावक बनकर चुनाव में मोदी जी का सहयोग करने का मौका मिला तो मुझे बहुत खुशी हुई। इसलिए भी कि एक अच्छे व्यक्ति को कम से कम एक अवसर तो मिलना चाहिए देश संभालने का।
ल्ल बनारस के मन में क्या है…?
एक समय था जब बनारसी ठेठ बनारसी होते थे। गुस्सा और प्यार साफ पढ़ा जा सकता था। लेकिन आजकल बहुत सी जनता थाली के बैंगन जैसी हो गई है। कभी इधर, कभी उधर। निर्णय तब होगा जब चुनाव हो जाएगा। बदलाव होना चाहिए। एक बार मोदी जी को मौका मिलना चाहिए आगे बढ़ने का। तब न पता चलेगा कि क्या हुआ।
ल्ल नरेंद्र मोदी में आपको क्या अच्छा लगा?

नरेन्द्र मोदी का हमें स्वभाव बहुत अच्छा लगा। मुझे उनके विचार बहुत अच्छे लगे। वह भारत के धर्म, संगीत और कलाकारों की इज्जत करने वाले व्यक्ति हैं। जो व्यक्ति अपने देश का, देशवासियों का, धरोहर का, परंपराओं का सम्मान करे वह किसे अच्छा नही लगेगा। मुझे भी यही अच्छा लगा। और यही वजह है कि आज मैं मोदी जी के पक्ष में खड़ा हूं। हम 78 साल के हैं। मोदी जी से काफी बड़े हैं।
ल्ल लगता है वह जो कहते हैं, उसे निभाएंगे?
मुझे बिल्कुल लगता है कि मोदी जी जो कह रहे हैं, उसे पूरा करेंगे। वैसे अभी तक तो हमारा अनुभव ऐसा ही रहा है चुनाव में लोग खड़े होते हैं और बड़े-बड़े वादे करते हैं कि गद्दी पर बैठेंगे तो यह करेंगे, वो करेंगे। पर करते कहां हैं? हां, मोदी जी के ऊपर हमें विश्वास लग रहा है कि वो करेंगे।
ल्ल काफी करीब से जानते हैं नरेन्द्र मोदी
को आप?
नरेन्द्र मोदी इससे पहले भी कई बार हमारा गाना सुन चुके हैं कार्यक्रमों में। अमदाबाद में भी हम तीन-चार बार गा चुके हैं। मोदी जी हमें पहले से जानते हैं। लेकिन उन्हें इतना करीब से जानने का मौका हमें अभी ही मिला और मैं प्रभावित हुआ। (इसके साथ ही पंडित छन्नू
लाल मिश्र ठहाका लगाकर हंसते हैं- तो अब किस्सा खतम और पैसा हजम। हम तो किसी से ज्यादा बोलते भी नहीं हैं। यह तो आपसे इतना बोल दिया हमने। अभी एक मिलने वाले बाहर खड़े हैं) ल्ल
ह्यमैं नहीं आया, मां गंगा ने बुलायाह्ण
नरेन्द्र मोदी को आशीर्वाद देने सड़कों, छतों पर उमड़ी भोलेनाथ की नगरी
वाराणसी में एक दिन में जैसे सारे हालात बदल गए। अब लोग यह नहीं कह रहे कि मोदी कितने वोटों से जीतेंगे, अब यह पूछ रहे हैं कि किसी की जमानत बचेगी भी या नहीं
24 अप्रैल को नरेन्द्र मोदी जैसे ही भाजपा प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरने पहंुचे, भोलेनाथ की नगरी मोदीरंग में रंग गई। एक दिन पहले तक तो आआपा के अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के अजय राय भी थोड़ी बहुत चर्चा में थे, पर अब जैसे बनारस अपने ठेठ रंग में रंग गया है- मोदी…मोदी… और मोदी। न कोई और कुछ सुनना चाह रहा था, न कहना चाह रहा था।
ओज-तेज से भरपूर बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी इस दिन एक अद्भुत यात्रा की साक्षी बनी, जब भाजपा प्रत्याशी के तौर पर नरेंद्र मोदी ने अपना पर्चा भरा। बीएचयू में मदनमोहन मालवीय, सरदार वल्लभभाई पटेल और स्वामी विवेकानंद की मूर्तियों पर माल्यार्पण कर दो किलोमीटर लंबे रोड शो का नेतृत्व करते हुए मोदी वाराणसी की सड़कों से गुजरे, तो उत्साह से सराबोर नर-नारी-बाल-युवा-वृद्ध, सब के सब जैसे सड़कों और छतों पर उमड़ आए थे उन्हें स्नेह और आशीर्वाद देने। बताते हैं, काशी में ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा गया। पूरी काशी भगवा रंग में रंगी थी।
पहली बार लोगों को लग रहा है कि गंगा मां स्वच्छ, निर्मल, पावन होगी और उसकी चंचल सी धारा होगी। मोदी भी इतना प्रेम देख भावुक हो गए, ह्यमैं कहीं से आया नहीं हूं, मुझे मां गंगा ने बुलाया है। मैं गंगा को साबरमती की तरह साफ करवाऊंगा। बुनकर भाइयों की भलाई के लिए काम करूंगा।ह्ण काशीवासी पुलक से भर गए, जब मोदी बोले, ह्यमहात्मा गांधी साबरमती में बसे वहीं के संत हो गए। आप सब आशीर्वाद दें कि मैं ऐसा कुछ करूं ताकि दुनिया में काशी का नाम हो।ह्ण
मोहल्ला अस्सी और काशी के अस्सी में पप्पूजी और उनकी चाय की दुकान का जिक्र है। पप्पूजी की चाय की दुकान बनारस में वामपंथियों के लिए बैठकी का एक अड्डा हुआ करती थी। बनारस के तमाम बड़े वामपंथी इस दुकान की चाय पी-पीकर राजनीति करते रहे हैं। पप्पूजी बताते हैं कि 1967 में जब उनका नाम पहली बार वोटर लिस्ट में शामिल हुआ था, तो उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी को वोट किया। लेकिन जिसे पप्पूजी ने वोट किया, उन्होंने बनारस की जनता को निराश किया। उसके बाद पप्पूजी ने अलग-अलग पार्टियों को आजमाया। अब उन्होंने भाजपा पर यकीन करने का निर्णय किया है। पप्पूजी कहते हैं-सबको देख लिया, अब भाजपा को देखते हैं।
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यूं तो यहां से आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के अजय राय के अलावा सपा के कैलाश चौरसिया, माकपा के हीरालाल यादव, एआईटीएमसी से इंदिरा तिवारी और बसपा से विजय प्रकाश जायसवाल भी मैदान में हैं। लेकिन वाराणसी में रमे पत्रकार रामकृष्ण वाजपेयी बताते हैं कि उनके खाते में बस यही श्रेय जाने वाला है कि उन्होंने नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था।
यहां पहले तीन कोने वाला संघर्ष माना जा रहा था- मोदी, अजय राय और केजरीवाल। लेकिन मुस्लिम वोटरों के केजरीवाल के साथ जाने और यादव मतदाताओं के मोदी के पक्ष में मन बनाने की अटकलों के बीच राय दूसरे से तीसरे नंबर पर चले गए बताए जा रहे हैं। अखबारों-चैनलों में सुर्खियां बटोरने में माहिर अरविंद केजरीवाल के साथ दिल्ली और अन्य स्थानों से कार्यकर्ताओं की लम्बी चौड़ी फौज है। स्थानीय लोग उनके साथ ज्यादा नहीं दिख रहे। पर वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोग उनके पक्ष में खुलकर आ रहे हैं। पर कोई उलटफेर की संभावना नहीं है। विधायक और स्थानीय तौर पर बाहुबली का रुतबा रखने वाले अजय राय दूसरे नंबर पर दिख रहे थे, लेकिन उनकी उम्मीदों की डोर मुस्लिमों के साथ आने पर निर्भर थी।
यहां विरोधियों के पास एक ही मुद्दा है- मोदी हराओ। वाराणसी के लिए उनके पास कोई ठोस योजना नहीं है। पर्चा भरते ही जिस तरह से मोदी ने गंगा सफाई, बुनकरों, पतंगसाजों से लेकर युवाओं तक के लिए तर्कसंगत आंकड़े देते हुए अपनी योजनाओं का खुलासा किया है उससे उनके विरोधी काफी पीछे चले गए हैं। अब तो वाराणसी में चाहे-जहां चले जाएं, चर्चा इसी बात पर हो रही है कि मोदी के सामने जमानत कौन बचा पाएगा। मोदी में वाराणसी अपने नायक को देख रही है। घर-घर मोदी वाला जो नारा दिया गया था, आप चाहे किसी भी विचारधारा के हों, यहां आएंगे तो पाएंगे कि वह अब तेजी से जमीनी हकीकत बन चुका है।
वाराणसी की सीट 1991, 1996, 1998, 1999 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के पास ही रही है। बीच में 2004 में कांग्रेस के राजेश मिश्र इस सीट पर काबिज हुए और फिर 2009 में भाजपा के डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने यह सीट वापस जीत ली। 

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