चुनाव समर में छूट ना जाएं आर्थिक सवाल
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चुनाव समर में छूट ना जाएं आर्थिक सवाल

by
Mar 25, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Mar 2014 12:09:20

-विवेक शुक्ला–

अब देश लोकतंत्र के पर्व में पूरी तरह से डूबने की स्थिति में है। नेता रणभूमि पर उतर चुके हैं। चुनाव प्रचार निरंतर गर्म हो रहा है। ये और गर्मा जाएगा आने वाले दिनों में। पर अफसोस् है कि सभी नेता पहले की तरह से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप ही लगा रहे हैं या झेल रहे हैं। उनकी रैलियों में आर्थिक मुद्दे गौण या नेपथ्य में ही हैं। आर्थिक विकास की रफ्तार कैसे बढ़ेगी, नए नौकरियां कैसे सर्जित होंगी,निवेश कैसे बढ़ेगा,नए उद्यमियों को लेकर उनके पास किस तरह की योजनाएं हैं? ऐसे और इस तरह के सवालों को उठाने का वक्त फिलहाल किसी के पास नहीं है।
दरअसल,लोकसभा चुनावों के बाद देश अस्थिरता के दौर से नहीं गुजर सकता। जो भी सरकार केंद्र में बनेगी,उसके सामने खासी चुनौतियां होंगी। नई सरकार को देश के सामने विकास का एजेंडा पेश करना होगा। देश में निवेश को कैसा बढ़ाया जाए,मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को किस तरह से गति मिले और ढांचागत क्षेत्र को कैसे पंख लग सकते हैं, इस बारे में सरकार को विस्तार से नीति बनाने के साथ उस पर अमल करना होगा। हालांकि नई सरकार के पास जादू की तो कोई छड़ी नहीं होगी, पर सभी दलों के नेताओं को चुनावी संग्राम में बताना चाहिए कि वे देश की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए किस तरह से सोच रहे हैं। उनका आर्थिक एजेंडा क्या है।
देश को फिर से आठ प्रतिशत की विकास दर को हासिल करने के लिए नई सरकार को उद्योगों के लिए नीतियां बनानी होंगी। राजनीतिक अस्थिरताओं के कारण उद्यमियों का भारत पर भरोसा घट रहा है। हिंदुजा समूह के मुताबिक भारत में संभावनाओं की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन व्यवस्था की वजह से भारत में निवेश करना काफी दिक्कत भरा है और अगर व्यवस्थाएं ठीक हो जाएं तो भारत काफी तेजी से विकास करेगा।
व्यवस्थाओं में सुधार जरूरी
भारत में व्यापार करना कोई बहुत आसान काम तो नहीं है। इसलिए पूरी व्यवस्था को सुधारना होगा। हिंदुजा समूह के ग्लोबल चेयरमैन जी.पी हिंदुजा के अनुसार भारत में काफी संभावनाएं हैं लेकिन भारत में निवेश करना काफी मुश्किल है। सही व्यवस्था न होने से भारत में काफी दिक्कतें हैं और भारत में व्यवस्था ठीक करने की जरूरत है। व्यवस्था ठीक होने पर भारत तेजी से तरक्की करेगा। हालांकि हिंदुजा को भारत पर पूरा भरोसा है और उनका कहना है कि वे भारत में निवेश जारी रखेंगे।
उधर, कॉरपोरेट इंडिया के मशहूर नाम एन. नारायणमूर्ति कहते हैं कि नई सरकार को विकास पर केंद्रित रहना होगा। आज देश को और मजबूत नेतृत्व की जरूरत है। फिलहाल हम कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। गरीबी और बेरोजगारी इनमें से प्रमुख समस्याएं हैं। नई सरकार को उद्देश्य तय करके काम करना होगा। सकल घरेलू उत्पाद विकास और वाणिज्यिक विकास पर प्रमुखता से ध्यान देना होगा। देश को विकास की पटरी पर लाने के लिए बहुत जरूरी है अच्छे नेतृत्व को सत्ता मिले। 
संक्रमण काल
आज भारत संक्रमण काल से गुजर रहा है। हमें उम्मीद रखनी चाहिेए कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद यूपीए सरकार के एक दशक तक चले शासन के बाद फिर से आशावादियों की जीत होगी। नई सरकार को ढांचागत क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी। इसके बाद ही रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इस बारे में अब हमारे पास प्रमाण हैं। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से राष्ट्रीय राजमार्ग के आसपास दस किलोमीटर के दायरे में बड़े स्तर पर रोजगारों का सृजन हुआ। नई सरकार को नई उद्यमियों के लिए ह्यसिंगल विंडो सिस्टमह्ण शुरू करना होगा। अभी नए उद्यमी को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए दर्जनों स्वीकृतियां लेनी होती हैं, इसे व्यवस्था को पूरी तरह बदलना होगा। व्यवसायियों को विभिन्न सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। इस व्यवस्था के कारण हमारे यहां पर अब बहुत से युवा उद्यमी आगे नहीं आ पाते। हमारे कई प्रतिस्पर्धी देश इस लिहाज से बेहतर प्रदर्शन करके आगे बढ़ रहे हैं। जब तक हमारे यहां उद्यमियों को आगे बढ़ने के मौके नहीं मिलेंगे देश का कल्याण नहीं होगा। ये ही नई नौकरियां भी सृजित करेंगे।
उद्यमिता को बढ़ावा मिले
नई सरकार को नए उद्यम शुरू करने की चाहत रखने वाले प्रतिभावान युवाओं को खुला माहौल उपलब्ध कराना होगा, जिससे वे नई संभावनाओं को तलाश कर उसे साकार रूप दे सके। इस तरह के कदम उठाने से देश में हजारों-लाखों नए उद्यमी सामने आएंगे। देश के आकार और जनसंख्या के हिसाब से यहां करोड़ों प्रतिभाएं हैं। इन्हीं नौजवानों में से अगर कुछ सियासत करें तो उसका स्वागत होना चाहिए। जब ये अपनी संपत्ति का ब्यौरा दें तो उसको लेकर शक करने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए। दरअसल उद्यमिता को केवल व्यवसाय से ही जोड़कर देखा जाता है। जबकि इसकी जरूरत हर क्षेत्र में है। आज हमारे पास नए विचारों के साथ प्रशिक्षित लोग हैं, जो अपनी सोच को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। समस्याओं के बीच संभावनाओं को तलाशते लोगों को अगर मौका दिया जाए तो वे असंभव को संभव करने की ताकत रखते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, समाजसेवा सहित अनेक ऐसे कार्यक्षेत्र हैं जहां युवाओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। बेहतर होगा कि राजनीतिक दल नए विचारों से लबरेज युवा उद्यमियों को भी अपने साथ जोड़ें। देश के निजी क्षेत्र ने उद्यमिता को प्रोत्साहित करने की ओर कदम बढ़ाया है। कई बड़ी कंपनियों ने ह्यवेंचर कैपिटलह्ण के जरिए उद्यमिता को आगे बढ़ाने की पहल की है। साथ ही शोध के जरिए नए विचारों को मौका दिया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारतीय युवा प्रतिभाएं रीढ़ की हड्डी की तरह हैं। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ बने भारतीय मूल के सत्या नाडेला इसका बेहतरीन उदाहरण हैं, लेकिन क्या कारण है कि हमारे देश में सभी संसाधन होते हुए भी हम अपने देश में नए उद्यमियों के लिए अवसर पैदा नहीं कर पा रहे हैं जिसके चलते प्रतिभाशाली युवाओं को मजबूरी में देश के बाहर जाना पड़ता है। उन्हें यहां पनपने और विकसित होने का मौका नहीं मिलता। कुल मिलाकर साफ है कि नई सरकार को इस तरह का माहौल तैयार करना होगा ताकि उद्यमशीलता का माहौल बने।
बेशक, देश के अंदर जो भी नए उद्यमी हैं, वे अपने प्रयास के कारण हैं। जबकि व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि वे नए उद्यमियों को प्रोत्साहित करें, उन्हें हर संभव मदद करें।
अब अफ्रीका की सोचो
लोकसभा चुनावों के बाद जो भी सरकार सत्तासीन होगी,उसे अफ्रीकी देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को और गंभीरता से लेना होगा। अभी राजधानी में इंडिया-अफ्रीका प्रोजेक्ट पार्टनरशिप सम्मेलन हुआ। इसमें अफ्रीकी देशों के चोटी के सीईओ आए। हालांकि अभी भी भारत और अफ्रीकी देशों के बीच 32 प्रतिशत दर से आपसी व्यापार बढ़ रहा है, पर इसके और बेहतर होने की संभावना है। हमारा ध्यान अमरीका,चीन और अन्य विकसित देशों के साथ-साथ अफ्रीकी देशों पर भी केंद्रित होना चाहिए। इस लिहाज से चीन हमसे पहले से वहां पर बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। हालांकि कुछ बड़ी भारतीय कंपनियां जैसे टाटा, महिन्द्रा, भारती एयरटेल का भी अफ्रीकी देशों में काफी निवेश है। पर अभी इस दिशा में और आगे जाने की संभावना है।
अगर भारत अफ्रीकी देशों से आपसी व्यापार बढ़ाता है तो इसका लाभ भारत को होगा। नई सरकार की विदेश नीति में अफ्रीका पीछे नहीं छूटना चाहिए। समूचे अफ्रीका में चीन के बढ़ते निवेश की रोशनी में भारत की चाहत है कि भारत व अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार को 2020 तक बढ़ाकर 200 अरब डॉलर तक किया जाए। 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को 90 अरब डॉलर करना सामान्य लक्ष्य है।
भारती एयरटेल ने अफ्रीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डॉलर का निवेश किया है। भारतीय कंपनियों ने कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी अपनी गहरी रुचि जताई है। इसी तरह भारतीय कंपनियां दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों से यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की राह देख रही है दूसरी ओर अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग व कोल्ड चेन, पर्यटन व होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं। इसके अलावा अफ्रीकी बैंकों, बीमा और वित्तीय सेवा कंपनियों ने भारत में अपने आने का रास्ता बनाने और उपस्थिति बढ़ाने के लिए भारत केंद्रित रणनीतियां तैयार की है। देश में नई बनने वाली सरकार को अफ्रीका पर और ज्यादा ध्यान केंद्रित रखना होगा। इसके लिए बेहतर होगा कि नेता अपनी आर्थिक नीतियों का अपनी सभाओं में खुलासा करें। वे अर्थिक नीतियों से संबंधित विषयों पर उनसे पूछे जाने वाले सवालों के जवाब दें। लेखक वरिष्ठ विश्लेषक हैं

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