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सम्पादकीय 1: टोपी का गांधी से रिश्ता तो है!
गांधी उपनाम को लहराने वाले और गांधी टोपी को चमकाने वाली पार्टियों में अंदरखाने कोई रिश्ता है, इस बात पर कयास लगते रहे हैं मगर इस बार पहली बार संभवत: चीजें साफ हो गईं।
कांग्रेस की प्रमुख विरोधी, भारतीय जनता पार्टी को उकसाने के लिए आम आदमी पार्टी (आआपा) का उसके कार्यालयों पर हमला बोलना इस बात का संकेत है कि पर्दे के पीछे बड़ा खिलाड़ी कोई और है, जो सुरक्षित दूरी बनाए रखते हुए पूरा तमाशा देख रहा है।
यह अचानक नहीं हुआ कि आआपा ने अपना निशाना बदल लिया। भ्रष्टाचार की पर्याय बनी कुनबा कांग्रेस से देश को मुक्त कराने की विलंबित ताल जब बीच-बीच में बेवजह भाजपा नाम गुनगुनाने लगी तब ही साफ हो गया था कि यह राग क्यों छेड़ा गया है। आज मुख्य मुद्दा गौण है और व्यवस्था से भागने वालों ने भ्रष्टाचार को नेपथ्य में छिपाते हुए पूरा जोर उस ओर लगा दिया है जहां कांग्रेस चाहती थी।
दिल्ली में कांग्रेस के भ्रष्टाचारी शासन के खिलाफ बने माहौल को मोड़ और मतों को विभाजित कर आआपा ने भ्रष्टाचार पर प्रहार किया या सिर्फ भाजपा को रोकने का काम, आज यह सवाल फिर से ताजा हो गया है।
केजरीवाल दो सौ पन्नों से ज्यादा का जो पुलिंदा शीला दीक्षित के खिलाफ लहराते हुए दिल्ली के मंदिर मार्ग थाने जाने की बात करते दिखते थे वह कहां खो गया और भ्रष्टाचार विरोध की डफली बजाने वाले गिरोह कैसे कांग्रेस की तरफ पीठ फेर गुजरात को आगे रख अंतत: भाजपा विरोध के तौर पर संगठित होने लगे, यह देखने लायक है।
मंशा संभवत: यही थी भी। अरविंद केजरीवाल को पुलिस द्वारा आचार संहिता की याद दिलाना भी यदि पत्थरमार हुड़दंगियों को न्योतना है तो लोगों को यह सोचना होगा कि सीधे-सच्चे इंसान का नकाब समाज में किस अराजक पागलपन को पोस रहा है। शालीन चेहरे के साथ व्यवस्था विरोध के नारे उछालने और साल भर अलग-अलग मंचों और महानुभावों का लाभ उठाकर जो लोग सामने आए उन्होंने बौराए लोगों की भीड़ तैयार करने के अलावा क्या और कितना किया है, यह हिसाब अब लगना ही चाहिए
सम्पादकीय 2: परिवार की रीत
शर्मिंदगी और कांग्रेस दो अलग अलग चीजें हैं। हां, अपनी करतूतों से नैतिक पतन के नए प्रतिमान गढ़ने वाले लोगों का भरपूर सम्मान यहां होता है।
परिवार की यही रीत है।
अवैध सम्बन्धों को लेकर दो साल से ज्यादा की थुक्का-फजीहत के बाद जब पार्टी के सबसे पुराने नेता नारायण दत्त तिवारी ने रोहित शेखर को अपना बेटा माना उस वक्त उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी के चेहरे पर शर्मिंदगी की बजाय मासूमियत का अद्भुत भाव था। इससे पहले वे आन्ध्र प्रदेश के राजभवन को भी अपनी ऐसी ही ह्यमासूम करतूतोंह्ण से कलंकित कर चुके हैं और अपनी ऐसी ही छवि के साथ सदा पार्टी में पद और प्रतिष्ठा की सीढि़यां चढ़ते रहे हैं।
बहरहाल, बात कांग्रेस के एक अन्य दागी नाम की। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम राष्ट्रमंडल खेलों से पहले और बाद भी भ्रष्टाचार का समानार्थी रहा, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने उन्हें भी महामहिम के पद से विभूषित किया है।
वैसे, आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले केरल के राज्यपाल पद के लिए शीला दीक्षित के नाम पर मुहर लगाना उन्हें पार्टी की सेवा के लिए उपकृत करना मात्र नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के आरोपों से बचाने के लिए अग्रिम तौर पर संवैधानिक कवच उपलब्ध कराना भी है।
आंध्र प्रदेश प्रकरण की शर्मनाक घटना पर धूल डाले जैसे आज तिवारी निर्दोष नजर आते हैं, यदि कल शीला भी उसी तरह खेल घोटाले की छाया से भी दूर निश्छल मंद मुस्कान बिखेरती दिखें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। आखिर यही तो परिवार की रीत है।
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