|
.आचरण शिष्ट हो तो व्यक्ति जीवन पथ की ऊंचाइयों को छूता चला जाता है। शिष्टाचार एक दर्पण के समान होता है,जिसमें मनुष्य को उसका अपना प्रतिबिंव दिखाई देता है। इस संस्कार की नींव बचपन में ही पड़ जाती है। इस बात का आभास तब होता है,जब वह किसी संस्थान या समाज में कार्य करता है । सामान्यत: यह संस्कार उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने मात्र से जन्म नहीं लेता। बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने के बाद भी कुछ लोगों को समाज पढ़ा-लिखा मूर्ख कहता है। इस सबके पीछे हमारा स्वयं का ही दोष होता है क्योंकि हमने शिक्षा तो ली, लेकिन शिष्टाचार करना नहीं सीखा। सामान्यत: शिष्ट आचरण जीवन का आधार है। अगर हमारे व्यवहार में शिष्टाचार है,दूसरों का सम्मान करना आता है तो उसी से हमें समाज में सम्मान मिलता है। लेकिन प्रश्न उठता है कि आचरण शिष्ट कैसे हो ?
इसी से जुड़ी पुस्तक ह्यशिष्टाचारह्ण लेखक प्रो. पी.के आर्य की ऐसी ही पुस्तक है ,जिसमें कुल मिलाकर 7 अध्याय के माध्यम से उन चीजों को संकलित किया गया है,जिनसे शिष्टाचार में वृद्धि होती है।
अक्सर हम देखते हैं कि कुछ लोग शिष्ट व मीठी भाषा बोलकर लोगों को अपना बना लेते हैं और लोग उनके इस व्यवहार के कायल हो जाते हैं। ह्यशिष्टता की शक्ति! विनम्रताह्ण में लेखक ने मधुरवाणी के विषय में लिखा है कि- ह्यकागा काको धन हरै,कोयल काको देय ?,मीठी वाणी बोल के जग अपनौ कर लेय।ह्ण जिस प्रकार कौआ तथा कोयल रंग-रूप व आकार में प्राय: समान होते हैं,लेकिन कौए को कोई भी पसंद नहीं करता,जबकि कोयल सभी की प्रिय होती है। इसका अर्थ यह है कि वाणी ही विनम्रता ही आपके व्यक्तित्व की सबसे पहली निशानी है। भाषा ही शुत्र और मित्र बनाने में देर नहीं लगाती है। हमारे व्यक्तित्व की छाप हमारी वाणी के माध्यम से औरों के ह्दय पटल पर अंकित हो जाती है तथा इसी से हमें जो सम्मान मिलता है वह शायद ही किसी और से मिलता हो। कबीर का एक कथन प्रचलित है कि- शिष्टाचार ऐसे द्वार खोल सकता है,जिसे श्रेष्ठ शिक्षा भी नहीं खोल सकती। शिष्ट आचरण मानव जीवन का अनमोल रत्न है। उसे जिस मनुष्य ने खो दिया उसका मानव जीवन ही व्यर्थ है। ह्यमनुष्य का आभूषण: शिष्टाचारह्ण इस छोटी सी किताब का महत्वपूर्ण पाठ है,जो बताता है कि जिस प्रकार आभूषण पहनने से व्यक्ति की सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं,उसी प्रकार शिष्टाचार को अपने अंदर समाहित करने से हमारा व्यक्तित्व निखरने लगता है।
कुछ लोगों की आदत होती है कि वह स्वयं की ही बात को सत्य मानते हंै और दूसरों को असत्य। लेकिन यह भी एक अशिष्टता की ही निशानी है। ह्यऔरों को भी स्वाकारिएह्ण में लेखक ने इस अध्याय में ऐसे ही गुण-दोषों को चिन्हित करने का प्रयास किया है। अक्सर कुछ लोगों का सोचना होता है कि वे सामने वाले की आलोचना करके उसे ठीक कर लेंगे तो यह उनकी भूल है। क्योंकि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। वह मशीन नहीं है। वह भावनाएं,प्रतिक्रियाएं तथा विवेक रखता है ,उसे चाबुक से नहीं हांका जा सकता । प्रेम व शिष्टाचार से समझाया तथा प्रशंसा से प्रेरित किया जा सकता है। लज्जित करके हम किसी से अपनी बात को नहीं मनवा सकते हैं। इसलिए नेतृत्व करने वाले को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि वह औरों को स्वाकरते हुए प्रत्येक व्यक्ति के अच्छे काम के लिए उसकी तारीफ करे तथा अगर गलती हुई है तो उसे सुधारने के लिए प्रेरित करे। उसकी इस शिष्टता के सदैव सकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे। कुल मिलाकर पुस्तक का सार है कि शिष्ट,व नम्र व्यवहार समाज में सम्मान दिलाता है। आपकी वाकपटुता व भाषा की सहजता कार्य क्षेत्र में प्रभुत्व कायम करा सकती है। वाणी का शिष्टाचार,व्यवहार के शिष्टाचार को जन्म देता है। यदि आपका व्यवहार सभ्य है तो आप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।
पुस्तक का नाम -शिष्टाचार
लेखक – प्रो.पी.के.आर्य
प्रकाशक -प्रभात प्रकाशन 4/19 आसफ अली रोड,
नई दिल्ली-110002
मूल्य -125 ़रु., पृष्ठ – 104
टिप्पणियाँ