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… लेकिन यूपीए की चोरी-छुपे बिल पास करने की हरकत से सब नाराज
-नागराज राव-
आंध्र प्रदेश के विभाजन से जुड़े तेलंगाना बिल को लोकसभा में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के समर्थन के बाद पास कर दिया गया। बिल को मंजूरी के लिए राज्यसभा में भेजा गया। जहां दो दिन लटकने के बाद हंगामे और शोर शराबे के बीच बिल को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद तेलंगाना देश का 29 वां राज्य बन जाएगा। इस बिल से जुड़े कुछ संशोधन भी पास किए गए हैं। खबर है कि किसी भी संशोधन बिल एवं तेलंगाना बिल पर मतविभाजन नहीं कराया गया और सभी बिल ध्वनिमत से पारित किए गए। हालांकि बिल पर मतदान से पहले लोकसभा अध्यक्ष के निर्देश पर सदन की कार्यवाही का टेलीविजन प्रसारण रोक दिया गया था। फिलहाल हैदराबाद में तेलंगाना समर्थक जश्न मना रहे हैं! वहीं, राज्य में इस बिल के पास होने का विरोध भी दिखाई दे रहा है। आंध्रप्रदेश को अखंड रखने को लेकर हो रहे सख्त विरोध के बावजूद विभाजन को लेकर आगे बढ़ने की केंद्र की प्रतिबद्घता को देखते हुए राज्य के मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डी ने गत 19 फरवरी को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। साथ ही उन्होंने केंद्र के फैसले के खिलाफ कांग्रेस पार्टी भी छोड़ दी।
तेलंगाना बिल का विरोध करने वाले एक सांसद वेणुगोपाल ने कहा कि सीमांध्र के 25 में से 14 सांसदों को निलंबित कर बाहर कर दिया गया है और ऐसे में बिना सीमांध्र के तेलंगाना बिल पर बहस कैसे संभव है। वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगनमोहन रेड्डी ने कहा है कि तेलंगाना बिल के पास होने की वजह से आज का दिन देश के इतिहास में काला दिन बन गया है। सीमांध्र में उनके पार्टी ने बंद का एलान किया
इससे पहले राज्य के विभाजन के विरोध में धरना दे रहे जगनमोहन रेड्डी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर राजनीतिक लाभ के लिए राज्य को बांटने का आरोप लगाया। जंतर मंतर पर अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठे जगन ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ दल ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के एकमात्र उद्देश्य के साथ राज्य को विभाजित करने का विचार पेश किया, क्योंकि उसे उम्मीद है कि तेलंगाना में टीआरएस के सहयोग से वह कुछ सीटें जीत सकता है। सोनिया गांधी के ह्यइतालवी ह्ण मूल का संदर्भ देते हुए जगनमोहन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को ह्यइतालवी राष्ट्रीय कांग्रेसह्ण करार दिया और कहा कि अंग्रेजों ने भी वह नहीं किया, जो उन्होंने आंध्र प्रदेश राज्य में किया। उन्होंने कहा कि राज्य के विभाजन के विरोध में कांग्रेस के एक सांसद द्वारा संसद में काली मिर्च के पाउडर का प्रयोग किया जाना वास्तव में सीमांध्र के सांसदों को निलंबित करने के लिए कांग्रेस का षड्यंत्र था।
उससे पहले इस बिल को लोकसभा में रखने से पहले सरकार ने भारतीय जनता पार्टी की सीमांध्र के लिए विशेष पैकेज की मांग को स्वीकार किया।
भाजपा पहले ही बिल के समर्थन का ऐलान कर चुकी थी। कांग्रेस ने अपने सभी सांसदों को लोकसभा में मौजूद रहने का व्हिप भी जारी कर दिया था। बीजेपी ने भी सैद्घांतिक रूप से बिल को अपना समर्थन दे दिया। पार्टी ने पहले ही कहा था कि अगर सीमांध्र के लोगों की चिंताओं का ध्यान रखा गया तो वह बिल का समर्थन करेगी। गत 13 फरवरी को सरकार ने संसद में इस बिल को पेश करने का दावा किया था, हालांकि विपक्ष ने बिल को पेश करने के तौर तरीके को कठघरे में खड़ा कर दिया था, लेकिन, उस दौरान लोकसभा में जो हुआ वह संसदीय इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। विजयवाड़ा के सांसद एल राजगोपाल ने सदन में पैपर स्प्रे का उपयोग कर दिया जिससे कई सांसदों की तबियत खराब हो गई । इसके चलते 16 सासंदों को निलंबित कर दिया गया था।
वर्तमान में भारतीय राजनीति में तेजी से बदलती घटनाएं यह बताती हैं कि आम चुनावों को देखते हुए एक तरफ जहां विपक्ष सरकार को अलग-अलग मुद्दों पर घेरने की तैयारी में लगा हुआ है, वहीं सत्ता पक्ष अपने लुभावने वादों और जनहित संबंधित निर्णय लेकर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में जुटा है। विरोध करने वालों में वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगनमोहन रेड्डी भी हैं। अलग तेलंगाना के विरोध में जगन ने इस फैसले के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस राज्य को बांटने के साथ-साथ लोगों को भी बांटने का काम का रही है। आंध्रप्रदेश को यदि बांटा जाता है तो इसके दो भाग होंगे एक तेलंगाना दूसरा सीमांध्र, फिलहाल इस समय आंध्र प्रदेश के 294 विधानसभा सीटों में से 119 तेलंगाना में हैं जबकि 175 सीमांध्र में हैं। वहीं 42 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें तेलंगाना में और 25 सीटें सीमांध्र में हैं। वर्तमान आंध्रप्रदेश के 23 जिलों में 10 जिले तेलंगाना में शामिल हैं।
हैदराबाद के वही निजाम थे जो हैदराबाद राज्य को एक स्वतन्त्र देश बनाना चाहते थे़ इसलिए उन्होंने भारत में हैदराबाद के विलय को स्वीकृति नहीं दी़, लेकिन आजादी के बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब की हेकड़ी दूर करने के लिए 13 सितम्बर, 1948 को सैन्य कार्यवाही आरम्भ की जिसका नाम ह्यऑपरेशन पोलोह्ण रखा गया। भारतीय सेना के समक्ष निजाम की सेना टिक नहीं सकी और उन्होंने 18 सितम्बर, 1948 को समर्पण कर दिया। हैदराबाद के निजाम को विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा।
वर्तमान में तेलंगाना क्षेत्र आंध्रप्रदेश राज्य का हिस्सा है लेकिन बहुत ही जल्द वह एक स्वतंत्र राज्य हो जाएगा। लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश में अलग तेलंगाना राज्य बनाने का मन बना लिया, एक तरह जहां इस फैसले से तेलंगाना के क्षेत्रवासी काफी खुश हैं वहीं दूसरी तरह बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो आंध्रप्रदेश को विभाजित करने के फैसले से आहत हैं। माना जा रहा है केंद्र सरकार के इस फैसले के विरोध में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता और विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं।
कांग्रेस के इस फैसले से लोकसभा और विधान सभा के चुनाव में पार्टी को तेलंगाना के मसले पर बुरी तरह घिरी कांग्रेस को जोर का झटका लग सकता है और तेलंगाना में भी कुछ खास फायदा दिखायी नहीं दे रहा है। तेलंगाना राष्ट्र समिति ने पहले एलान किया था कि विभाजन के बाद अपने पार्टी को कांग्रेस में विलय करेंगे। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस को लोकसभा या विधानसभा के चुनाव में चंद सीटों पर जीत हासिल हो सकती है, लेकिन सीमांध्र का नुकसान तेलंगाना क्षेत्र के राजनैतिक फायदे से दोगुना है । वैसे अलग तेलंगाना की मांग कोई नई नहीं है। यह मांग तीन दशक से भी अधिक पुरानी है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश के विभाजन से उत्तराखंड बना। बिहार से अलग होकर झारखंड और पुराने मध्य प्रांत या आज के मध्य प्रदेश से विभाजित होकर छत्तीसगढ़ का उदय हुआ। इतिहास गवाह है तब भी प्रदेशों में दिलों का बंटवारा नहीं हुआ था। लोकसभा में हंगामा और हिंसा और,यह नजारा कांग्रेस के वोट बैंक की राजनीति के अतीत और वर्तमान का जीता-जागता उदाहरण है। वोट बैंक की राजनीति ने एक राज्य का ऐसा बंटवारा किया जिसने नफरत की आग ही नहीं सुलगाई बल्कि राज्य के लोगों के दिलों को भी बांट दिया। संप्रदाय के आधार पर देश का बंटवारा होने के बाद यह संभवत: दूसरी घटना होगी जब किसी प्रदेश की जनता के दिल इतने बंटे हों।
कुल मिलाकर बता दें कि दिग्विजय सिंह तो अलग तेलंगाना के पक्ष में ही नहीं थे। स्थिति यह है कि आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के समर्थक और विरोधी सभी सांसद कह रहे हैं कि कांग्रेस ने हमें ठगा है।
विधानसभा से लेकर संसद तक नेताओं ने भंग की मर्यादा
ह्ण उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायकों ने अर्धनग्न होकर किया प्रदर्शन
ह्ण जम्मू-कश्मीर विधानसभ में विधायक ने मार्शल को थप्पड़ मारे
ह्ण राज्यसभा में सांसद ने महासचिव से धक्का मुक्की की
लोकसभा में तेलंगाना बिल का का विरोध कर रहे विजयवाड़ा के सांसद लगदापति राजगोपाल द्वारा सांसदों के ऊपर काली मिर्च पाउडर का स्प्रे किए जाने और गत 10 फरवरी को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विधायकों के धक्का मुक्की किए जाने के मामले अभी तक ठंडे भी नहीं हुए थे कि एक बार फिर विधानसभा से लेकर संसद तक में नेताओं ने अपना आपा खोकर सदन की मर्यादा को तार-तार कर दिया। गत 19 फरवरी को राज्यसभा में तेलंगाना बिल के विरोध में टीडीपी सांसद सीएम रमेश ने राज्यसभा महासचिव के हाथ से कागज छीनने की कोशिश की। इस दौरान वे धक्कामुक्की पर उतर आए। सभापति ने कार्रवाई की धमकी दी तो रमेश ने सदन से माफी मांग ली, लेकिन सदन से बाहर आते ही उन्होंने कहा, जो किया सही किया। वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा में राष्ट्रीय लोकदल के विधायकों ने कपड़े उतार कर प्रदर्शन किया। रालोद के दो विधायक वीरपाल राठी और सुदेश शर्मा अर्धनग्न होकर विधानसभा में मेजों पर चढ़ गए। उनका आरोप था कि यूपी सरकार की नीतियों से गन्ना किसान और कपड़ा मिल के मजदूर अपमानित हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में हंगामे से परेशान होकर विधानसभा अध्यक्ष ने मार्शलों को पीडीपी विधायक सईद बशीर अहमद को बाहर निकालने का आदेश दिया। इस पर सईद अपना आपा खो बैठे और उन्होंने मार्शल पर थप्पड़ बरसाने शुरू कर दिए। ल
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