दिल्ली में आआपा का धरना
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डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
अरविन्द की अराजकता का उद्देश्य भारत का अमरीका से ध्यान हटाना तो नहीं था?
इस्लामी-जिहादी और माओवादी-नक्सली ताकतों के लिए माहौल बनाना तो कहीं इसका उद्देश्य नहीं था?
कहीं यह सोनिया पार्टी का सत्ता से बाहर होने से पहले अराजक ताकतों को प्रोत्साहन देना तो नहीं था?
पिछले दिनों 20 जनवरी को दिल्ली के मुख्यमंत्री, आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल रेल भवन के सामने धरने पर बैठ गए थे। वे गृह मंत्रालय के आगे धरना देना चाहते थे लेकिन वहां तक पुलिस ने उनको पहुंचने नहीं दिया इसलिए उन्होंने रेल भवन के आगे ही अपना धरना जमाया। वैसे पुलिस ने उन्हें बता दिया था कि इस क्षेत्र में धारा 144 लगी हुई है इसलिए यहां धरना देना कानून के खिलाफ है। लेकिन इस प्रकार की धाराएं और इस प्रकार के कानून आम आदमी के लिए होते हैं। निश्चय ही अरविंद केजरीवाल अपने को आम कानून से ऊपर समझते हैं इसलिए उन्होंने इस छोटे-मोटे कानून की कोई चिंता नहीं की। अलबत्ता जब उन्हें यह याद दिलाया गया कि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के इस प्रकार के व्यवहार से अराजकता फैल सकती है तो उन्होंने अपनी पार्टी की नीति स्पष्ट करते हुए बता दिया कि देश में इस प्रकार की अराजकता फैलाना ही तो उनका उद्देश्य है।
इस स्वीकारोक्ति पर दिल्ली के मुख्यमंत्री का धन्यवाद दिया जाना चाहिए! लेकिन असली प्रश्न यह है कि यदि देश में अराजकता फैलेगी तो उसका लाभ किसको मिलेगा? पिछले कुछ दशकों से, जैसे जैसे भारत के भी एक क्षेत्रिय शक्ति बनने की चर्चा बढ़ती जा रही है वैसे वैसे कुछ देशी-विदेशी ताकतें भारत में अराजकता फैलाकर इस प्रगति को अवरुद्घ करना चाहती हैं। इस्लामी-तालिबानी ताकतें अराजकता पैदा करने के त्रिकोण का एक बिंदु हैं। देश में लाल गलियारा बनाकर अराजकता पैदा करने वाली माओवादी ताकतें अराजकता के इस त्रिकोण का दूसरा बिंदु हैं।
और अब आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने अराजकता फैलाने की सार्वजनिक घोषणा कर के अराजकता के इस त्रिकोण को पूरा कर दिया है। यदि वह दिल्ली के मुख्यमंत्री ना होते तो शायद अराजकता फैलाने की उनकी इस घोषणा को गंभीरता से न लिया जाता, लेकिन अब क्योंकि सोनिया गांधी की पार्टी ने सब कुछ जानते-बूझते हुए भी केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया है तो यह संशय भी गहराता है कि कहीं सोनिया गांधी की पार्टी भी सत्ता से बाहर होने से पहले अराजकतावादी ताकतों को प्रोत्साहन तो नहीं दे रही? अरविंद केजरीवाल की अराजकता फैलाने की घोषणा और सुरक्षा स्वीकार न करने की नीति को एक दूसरे के साथ जोड़कर देखना होगा।
गुप्तचर एजेंसियों को ऐसी आशंका है कि इस्लामी आतंकवादी केजरीवाल का अपहरण कर सकते हैं ताकि उसके बदले में कुख्यात आतंकवादी यासीन भटकल को छुड़वाया जा सके। इस्लामी आतंकवादी ऐसा एक प्रयोग जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और उस समय देश के गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी का अपहरण करके सफलतापूर्वक कर चुके हैं। इसके बावजूद केजरीवाल सुरक्षा को धता बता रहे हैं। सोचकर देखिए, इस माहौल में कल सचमुच इस्लामी आतंकवादी उनका अपहरण कर लेते हैं, तो एक राज्य के मुख्यमंत्री के अपहरण के बाद जो अराजकता फैलेगी और उसके जो परिणाम निकलेंगे उससे इस देश में किन ताकतों को लाभ होगा?
इस पूरे प्रकरण में अरविंद केजरीवाल के विधि मंत्री सोमनाथ भारती की एक चाल को भी उसके गहरे परिप्रेक्ष्य में समझना जरूरी है। भारती पर आरोप है कि उन्होंने कुछ अफ्रीकी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार ही नहीं किया बल्कि उनके चरित्र को लेकर उन पर लांछन भी लगाए। भारती इससे भी एक कदम आगे गए, उन्होंने कहा कि दिल्ली स्थित युगांडा दूतावास के एक अधिकारी ने बाकायदा उनको एक पत्र देकर यह कहा कि दिल्ली में युगांडा की लड़कियों को वेश्यावृति में धकेला जा रहा है।
युगांडा के दूतावास ने भारती की इस गलत बयानी का तुरंत खंडन किया। वैसे भी जिनको विदेशी दूतावासों के कामकाज की थोड़ी बहुत समझ है वे यह जानते हैं कि दिल्ली स्थित विदेशी दूतावास किसी भी राज्य से सीधे बातचीत नहीं करते वे भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के माध्यम से ही ऐसा करते हैं।
लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि अफ्रीकी महिलाओं को लेकर अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने यह सारा गैरकानूनी प्रकरण क्यों किया? इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे लौटना होगा। कुछ अरसा पहले न्यूयार्क में अमरीकी पुलिस ने भारत की डिप्टी कोंसुल जनरल देवयानी खोबरागाड़े को गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी के बाद उनके साथ बहुत ही आपत्तिजनक व्यवहार किया गया।
भारत में अमरीका के इस व्यवहार को लेकर बहुत तीखी प्रतिक्रिया हुई। मीडिया में भी अमरीका की किरकिरी ही नहीं हो रही थी बल्कि देश में अमरीका के विरोध में एक वातावरण भी बनता जा रहा था। इसलिए जरूरी हो गया था कि किसी तरह इस जनाक्रोश को अमरीका से हटाकर किसी दूसरे देश की ओर मोड़ दिया जाए। इस मामले में अफ्रीकी देशों को सरलता से शिकार बनाया जा सकता था और अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने भी बहुत ही चालाकी से जनाक्रोश को अफ्रीकी लोगों की ओर मोड़ने की असफल कोशिश की।
अरविंद केजरीवाल ने यह नहीं सोचा कि इससे अफ्रीकी देशों में भारतीयों के खिलाफ प्रतिक्रिया हो सकती है। किसी विदेशी नागरिक के किसी अपराध में लिप्त होने पर उस पर बाकायदा मुकदमा चलाना एक बात है लेकिन सभी अफ्रीकी महिलाओं को बदनाम करना और भीड़ को लेकर उनके खिलाफ हंगामा खड़ा करना बिल्कुल दूसरी बात है।
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