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…अब है सिर्फ सूनापन
1947 में दो मुल्क क्या बंटे सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों को अपार नुकसान पहंुचा। आक्रमणों और विध्वंसों की बारम्बारता से अब भग्न मंदिरों के अवशेष ही अंतिम मूक गवाह रह गए हैं। आप सुनने को राजी हों तो वे यह बता पाते हैं कि लोगों को तो विस्थापित किया जा सकता है, पर साझी धरोहरों को नहीं। इनका खंडहर बन चुका वर्तमान इनके गौरवशाली इतिहास की कुछ खबर देता लगता है। पाकिस्तान के पंजाब सूबे के चकवाल जिले में कटासराज आस्था और श्रद्धा का एक ऐसा ही केंद्र है। कटासराज की भौगोलिक स्थिति और वहां उपलब्ध भग्न मंदिरों एवं स्तूप के अवशेषों को यदि पौरारिक-ऐतिहासिक स्रोतों से जोड़ने की गंभीर कोशिश की जाए, तो कटासराज की समृद्ध विरासत की बिखरी हुई कडि़यां जोड़ी जा सकती हैं। पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों की स्थिति काफी जर्जर है।
कटासराज में सबसे पुरानी संरचना है वहां का सरोवर, जिसे अमरकुंड भी कहा जाता है। कटास कटाक्ष का अपभ्रष्ट रूप है। संस्कृत शब्द कटाक्ष का अर्थ अश्रुधार या अश्रुपूरित आंख होता है। कहते हैं कि सती के अग्निप्रवेश कर प्राण त्याग देने से व्यथित भगवान शिव की आंखों से आंसू की दो बूंदें गिरीं। एक बूंद पुष्कर और दूसरी कटाक्षराज (कटासराज) के सरोवर के रूप में परिवर्तित हो गई। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से मानसिक शांति मिलती है और दुख-दरिद्रता से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा महाभारत में जिस यक्ष-युधिष्ठिर संवाद का संदर्भ आया है, उसे भी इस सरोवर के तट पर हुआ बताया जाता है।
कटासराज में प्राचीन शिव मंदिर के अलावा और भी मंदिरों की श्रृंखला है जो दसवीं शताब्दी के बताये जाते हैं। इनमें भगवान लक्ष्मीनारायण, हनुमानगढ़ी, सातघर मंदिर, सीतागढ़ी शिवमंदिर प्रमुख हैं। ये इतिहास को दर्शाते हैं। इतिहासकारों एवं पुरातत्वविदों के अनुसार, इस स्थान को शिव नेत्र माना जाता है। विभाजन से पूर्व ज्वालामुखी मंदिर के बाद हिन्दुओं का दूसरा सबसे बड़ा मेला पांडवकालीन तीर्थस्थल कटासराज में ही लगता था। महाभारत काल में पांडव वनवास के दिनों में इन्ही पहाडि़यों में अज्ञातवास में रहे और यहीं वह कुण्ड है जहां पांडव प्यास लगने पर पानी की खोज में पहुंचे थे। इस कुण्ड पर यक्ष का अधिकार था। सर्वप्रथम नकुल पानी लेने गया। जब वह पानी पीने लगा तो यक्ष ने आवाज दी कि इस पानी पर उसका अधिकार है पीने की चेष्टा मत करो। अगर पानी लेना है तो पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, लेकिन वह उसके प्रश्नों का उत्तर न दे सका और पानी पीने लगा। यक्ष ने उसको मूर्छित कर दिया। ठीक इसी प्रकार सहदेव, अर्जुन व भीम चारों भाई एक-एक करके पानी लेने गये लेकिन कोई भी यक्ष के प्रश्नों का उत्तर न दे सका और फिर भी पानी लेने का प्रयास किया तो यक्ष ने चारों भाइयों को मूर्छित कर दिया। अंत में चारों भाइयों को खोजते हुए युधिष्ठिर कुण्ड के किनारे पहुंचे और चारों भाइयों को मूर्छित पड़े देखा। वह बोले कि मेरे भाइयों को किसने मूर्छित किया है वह सामने आये। यक्ष आया और उसने कहा कि इन्होंने बिना मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए पानी लेना चाहा अत: इनकी यह दुर्दशा हुई। अगर तुमने भी ऐसा व्यवहार किया तो तुम्हारा भी यही हाल होगा। युधिष्ठिर ने नम्रतापूर्वक कहा कि तुम प्रश्न पूछो। मैं अपने विवेक से उनका उत्तर दूंगा। यक्ष ने कई प्रश्न पूछे। युधिष्ठिर ने अपने विवेक से यक्ष के सभी प्रश्नों का उत्तर दे दिया और यक्ष ने प्रसन्न होकर पांडवों को जीवित कर दिया तत्पश्चात ये पांडव अपने गंतव्य की ओर चले गए। बारह वर्ष के निर्वासन काल में पांडवों ने चार साल यहीं गुजारे थे। कटाक्ष सरोवर से 800 फीट नीचे कोतेहरा पहाड़ है। यहां कई गुफाएं हैं जिनमंे कभी साधु-संन्यासी तप किया करते थे। इतिहासकार अलबरूनी कटासराज में ठहरा था। यहीं उसने संस्कृत सीखी और पृथ्वी की परिधि का आकलन किया। इसका जिक्र ग्यारहवीं सदी में लिखी उसकी पुस्तक 'किताब उल हिन्द' में मिलता है।
हिंगलाज देवी
दुर्गा चालीसा में उल्लेख मिलता है-
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी।।
जब सती के शव को लेकर भगवान शिव तांडव कर रहे थे और किसी भी प्रकार उन्हें सती के शव से अलग करना संभव नहीं लग रहा था तो उन्हें शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव के अंगों को काटना शुरू किया। सती के अंग जिन-जिन स्थानों पर गिरे वे शक्तिपीठ के नाम से जाने गए। इसी प्रकार का एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ हिंगलाज भी है। हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य की राजधानी कराची से उत्तर-पश्चिम में हिंगोल नदी के तट पर है। यह ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय क्षेत्र हिंगलाज में स्थित मंदिर है। इक्यावन शक्तिपीठों में से एक इस मन्दिर के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था।
एक लोककथा यह भी : हिंगलाज चारणों की प्रथम कुलदेवी थीं। उनका निवास स्थान पाकिस्तान के बलूचिस्तान में था। हिंगलाज देवी से सम्बन्धित कुछ छंद व गीत प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि सातों द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती हैं और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती हैं।
ननकाना साहिब
गुरु नानक जी का जन्म स्थान है 'ननकाना साहिब'। इस कारण यह स्थान सिख मत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यह स्थान पाकिस्तान में लाहौर के पास है। गुरुनानक देव जी सिख मत के पहले गुरु थे। सिख मत में नानक जी के बाद नौ गुरु और हुए हैं।
यहां भव्य एवं दिव्य गुरुद्वारा है। गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाश स्थान के चारों ओर लम्बी चौड़ी परिक्रमा है। गुरुग्रंथ साहिब को मत्था टेककर श्रद्धालु इसी परिक्रमा में बैठकर शबद-कीर्तन का आनन्द लेते हैं। परिक्रमा में गुरु नानकदेव जी से संबंधित कई सुन्दर पेंटिग्स लगी हुई हैं। मन में उल्लास, होठों पर वाहेगुरु का जाप। ननकाना साहिब में सुबह तीन बजे से ही श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमग करता ननकाना साहिब एक स्वर्गिक नजारा प्रस्तुत करता है। पवित्र सरोवर में स्नान करने वालों का सैलाब उमड़ पड़ता है। रागी साहिबान द्वारा गुरुवाणी के शबद कीर्तन का प्रवाह रात तक चलता रहता है। हॉल में बैठकर श्रद्धालु लंगर छकते हैं। पहले पंगत फिर संगत की शानदार प्रथा ढेरों गुण समेटे हुए है।
गुरु पर्व पर छटा निराली
दुनियाभर से हजारों हिन्दू, सिख गुरु पर्व से कुछ दिन पहले ननकाना साहिब पहुंचते हैं और दस दिन यहां रहकर विभिन्न समारोहों में भाग लेते हैं। शानदार नगर कीर्तन निकाला जाता है।
महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु नानकदेव के जन्म स्थान पर गुरुद्वारा का निर्माण कराया था। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां कई सराय हैं। यह पाकिस्तान के सबसे तेज गति से विकसित होने वाले स्थानों में से एक है। गुरु नानकदेव के जन्म के समय इस जगह को 'रायपुर' के नाम से भी जाना जाता था। उस समय राय बुलर भट्टी इस इलाके का शासक था और बाबा नानक के पिता उसके कर्मचारी थे। गुरु नानकदेव की आध्यात्मिक रुचियों को सबसे पहले उनकी बहन नानकी और राय बुलर भट्टी ने ही पहचाना। राय बुलर ने तलवंडी शहर के आसपास की 20 हजार एकड़ जमीन गुरु नानकदेव को उपहार में दी थी, जिसे 'ननकाना साहिब' कहा जाने लगा।
नौ गुरुद्वारे
ननकाना साहिब के आसपास 'गुरुद्वारा जन्मस्थान' सहित नौ गुरुद्वारे हैं। ये सभी गुरु नानकदेव जी के जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित हैं। जिस स्थान पर नानकजी को पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा गया, वहां आज पट्टी साहिब गुरुद्वारा शोभायमान है। ल्ल
कटासराज तीर्थ
पाकिस्तान के चकवाल शहर से 40 किमी. की दूरी पर स्थित इस तीर्थ पर जाने के लिए वीजा जरूरी है। यह लाहौर से 270 किमी. दूर है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित इस तीर्थ में भगवान शिव का मन्दिर है। नजदीकी हवाई अड्डा- लाहौर
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