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कोई बात नहीं, जो हमने भी इसके बाप की कब्र न खोदी तो खरी जाटनी के न किसी …. का जाया कह दीजियो। हीरामन जाट ने आवेश में आकर कहा। चेहरा तमतमा उठा। आंखों में खून उतर आया और भुजाएं फड़कने लगीं। अगर बादशाह सामने होता तो एक ही लट्ठ से उसका सिर फोड़ दिया होता। जो होवे सो होवे। जाट परिणाम की कब चिंता करे हैं।
हीरामन जाट मथुरा-आगरा के आसपास की जाट खाप पंचायतों का प्रमुख था। कई वर्षों से जैसे ही इलाके की फसल पककर खड़ी होती, मुगल सिपाही आकर उसे लुट लेते थे। कई बार दिल्ली में जहांगीर के दरबार में जाकर शिकायत की गई लेकिन सुनवाई तो तब होती जब मुगलों का भारतभूमि से मिट्टी और खून का रिश्ता होता। मुगल साम्राज्य उनकी कब सुनने वाला था! लुटेरों के मन में दया दर्द कब होने लगा! हर साल अपनी कड़ी मेहनत को यूं लुटता देख बहुत खून जलता था लेकिन हर बार गांव के बड़े-बूढ़ों की बात मान कर हीरामन छाती पर पत्थर रख लेता था। इस वर्ष भी फसल बहुत अच्छी हुई थी। इंद्रदेव की विशेष कृपा थी, पानी खूब बरसा था। हरी- हरी फसल देख कर सभी जाटों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। अपने खून-पसीने की मेहनत का नतीजा देखकर किसको खुशी नहीं होती लेकिन मन के किसी कोने में हीरामन के एक डर भी था कि जो गत वर्ष हरिया जाट के साथ हुआ वह कहीं किसी और किसान के साथ न हो जाए।
पिछले वर्ष हीरामन और गांव के तमाम युवा और बूढ़े मथुरा से कोई दस कोस दूर पपरिया गांव में एक पंचायत में गए थे। हरिया की तबियत खराब थी, इसलिए गांव में ही रह गया था। बैलगाडि़यों से दस कोस का सफर पूरा करने में भी दो तीन घंटे का समय लगता है। सुबह-सुबह सब युवक अपने स्वभाव के अनुसार हुड़दंग करते हुए, स्थानीय गीत गाते हुए पपरिया गांव की तरफ निकल पड़े थे। किसी को कोई अंदेशा नहीं था कि पीछे कितनी बड़ी अनहोनी उनका इंतजार कर रही थी।
इधर से जाटों का बैलगाडि़यां लेकर गांव से बाहर निकलना हुआ कि उधर से घोड़ों पर सवार, मुगल सिपाहियों के झुंडों ने फसलों पर धावा बोल दिया था। हरिया ताऊ और शांती ताई ने जब विरोध किया तो उनकी गर्दन उतार दी गयी। बेशर्मों ने हरिया की उम्र का भी ख्याल नहीं किया। अगर घर की जवान महिलाएं आंगन में बने कुएं में नहीं छिपतीं तो पता नहीं क्या अनर्थ हो जाता। हीरामन ने मन ही मन कसम ली कि उसके जीतजी अब ऐसा नहीं होगा। अब कोई और हरिया नहीं मरेगा। अब घर की बहन-बेटियों की आन पर कोई नजर डाले, इससे पहले ही पुख्ता प्रबंध करना पड़ेगा।
गत वर्ष की तरह मुगल सिपाही इस वर्ष भी पकी हुई फसल को देखकर लूटने आ गए थे। इस बार तो कोई विरोध भी नहीं हुआ, जैसे सिपाहियों के आने की खबर सुनकर सभी लोग गांव छोड़कर भाग खड़े हुए हों। पकी फसल को काटकर गाडि़यों में लाद विजय के उन्माद में झूमते हुए सिपाहियों ने वापस दिल्ली का रुख किया ही था कि एकाएक 'हर हर महादेव' के नारों से इलाके का चप्पा-चप्पा गूंज उठा। इस से पहले कि मुगल सिपाही कुछ समझकर म्यान से तलवार निकाल पाते, गांव के जाटों ने अपने तेल पिलाये लट्ठों से कई सिपाहियों के सिरों की कपाल क्रिया कर दी। जो सिपाही प्राण बचाने के लिए इधर उधर भागे, उन पर पेड़ों से धमाधम कूदकर जाटछोरों ने ऐसे लट्ठ बरसाये कि शरीर में कोई हड्डी साबुत नहीं बची। जब मुगल बादशाह जहांगीर को पता चला तो शराब के नशे में झूमते हुए बादशाह ने घोषणा की कि मैं …जाटों की कब्र खोद दूंगा।
आज लूटी हुई फसल मुगल सियारों से वापस छीन ली थी। हरिया ताऊ की मौत का बदला भी ले लिया था, लेकिन हीरामन शांत नहीं था। खुश होने के बजाय उसका खून उबल रहा था। मैं जाटों की कब्र खोद दूंगा, बादशाह के कहे गए ये शब्द बार-बार उसके मस्तिष्क में वार पर वार कर रहे थे। एक विदेशी-विधर्मी लुटेरे की इतनी हिम्मत कि वह हमारी कब्र खोदने की बात कहे। मन में उठे हुए तूफान को नियंत्रित करने का प्रयास करते हुए हीरामन ने सामने एकत्रित गांव के सभी लोगों को देखा, फिर अपना मजबूत लट्ठ उठाया और कंधे पर रखते हुए सिंह गर्जना की कि चलो सिकंदरा।
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इतना सुनने के साथ ही एक बार फिर बोल 'पूंछरी के लौठा की जय' और हर हर महादेव के उद्घोष होने लगे। बैलगाडि़यों में लगे बैलों को भी जैसे हीरामन की भाषा समझ आ गयी थी। सुनना था कि सिकंदरा जाने वाले रास्ते पर सरपट दौड़ने लगे। रात होते- होते जाटों ने सिकंदरा को घेर लिया। फड़ाक एक आवाज हुई और लट्ठ के एक वार से ही मकबरे के सुरक्षा करने वाले सिपाही की गर्दन ढेर हो गई। कई युवक मकबरे के अन्दर घुस गए। जाटों का भुजा-बल और फावड़े, हथौड़े, गैंतियों का कमाल यह था कि क्षण भर में ही मीना बाजार के नायक अकबर की ठठरी निकाल कर लाठियों से कूट कूट कर जला डाली गयी और चूरा मैदान में बिखेर दिया गिया। हीरामन ने जो कहा था वह कर डाला। मुगल सम्राट अकबर की कब्र खोद डाली जिस पर अब जानवरों ने कब्जा कर लिया था। समाचार पाकर शाही दरबार सन्न रह गया। यह हुआ तो क्या हुआ। दरबार में उपस्थित कुछ मुगल सरदार जाटों को नेस्तनाबूद करने की कसमंे खाने लगे। लेकिन कुछ समझदार और जाटों के स्वाभाव से परिचित लोगों ने परामर्श दिया कि कब्र का पुनर्निर्माण कर मौन साधने में ही कल्याण है, अगर खबर फैल गयी तो अच्छा नहीं होगा। लोग भिन्न-भिन्न बातें करेंगे, जो शहंशाह अपने अब्बा की कब्र की हिफाजत नहीं कर सका वह औरों की हिफाजत क्या करेगा? सल्तनत की किरकिरी हो जाएगी। जहांगीर क्या करता? वह बेचारा खून का घूंट पीकर हरम में जा ठहरा। ल्ल बाल चौपाल डेस्क
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