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प. बंगाल में बकरा ईद के आते ही त्योहार के नाम पर लाखांे गोवंश अपनी जान से जाते हैं। जहां सौ करोड़ हिन्दुओं के लिए गाय पूज्य है वहीं गाय को बंगाल सरकार खुलेआम काटने के लिए स्थानीय लोगों को उकसाती है। और जो भी इनके संरक्षण की बात करता है उन्हें उठाकर संगीन धाराओं में जेल भेज दिया जाता है, ताकि इसे देखकर अन्य लोग डर जाएं। बंगाल में ममता सरकार मुसलमानों को खुश करने के लिए क्या से क्या कर सकती हैं,इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
यह दृश्य तब देखने को मिला जब 26 सितम्बर को कुछ गोरक्षकों को सूचना मिली कि बर्द्धमान जिले के इगरा गांव के पास रानीगंज राजमार्ग पर 42 से ज्यादा ट्रक गोवंश से लदे आ रहे हैं। सूचना मिलते ही तत्काल गोरक्षकों एवं अन्य हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता राजमार्ग पर पहुंच गए। तेज गति से आते ट्रक जब नहीं रुके तो कुछ कार्यकर्ताओं ने राजमार्ग पर जाम लगा दिया और तत्काल उन ट्रकों को अपने कब्जे में लिया। जिसके बाद ट्रकों में बेदर्दी से भरे 1500 से ज्यादा गोवंश को निकाल गया जिनमें लगभग 25 गायों की दम घुटने से मौत हो चुकी थी और 10 से ज्यादा गायों ने ट्रकों में ही बछड़ों को भी जन्म दिया। काफी संघर्ष के बाद कार्यकर्ताओं ने सभी गोवंश को पास के ही जंगल में सुरक्षित स्थान पर एकत्रित करा लिया। लेकिन जैसे ही इस घटना की खबर तृणमूल कार्यकर्ताओं को मिली वे सभी तत्काल मौके पर पहुंच गए और हिंसक होकर हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं पर पत्थरबाजी और वाद-विवाद करने लगे। पुलिस इस दौरान सिर्फ मूकदर्शक बनकर पूरा तमाशा देख रही थी।
इससे पहले कार्यकर्ता कुछ समझ पाते वहां अचानक अत्यधिक संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया। बंंगाल पुलिस ने राजनीतिक दबाव के चलते इगरा गांव के 8 एवं झारखंड राज्य के धनबाद जिले के 4 कार्यकर्ताओं को मौके से गिरफ्तार कर संगीन धाराओं में जेल भेज दिया। इस घटना की खबर जैसे ही क्षेत्र में फैली हिन्दुत्चनिष्ठ कार्यकर्ताओं ने पुलिस का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया। लेकिन गोहत्यारों से मिली पुलिस ने राजनीतिक दबाव के चलते कार्यकर्ताओं पर बल प्रयोग करके उन्हें खदेड़ दिया और पूरे क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी, जिससे कोई भी कार्यकर्ता उस स्थान पर नहीं जा सका। पुलिस ने स्वयं लगकर फिर से ट्रकों में गोवंश को भूसे की तरह भरकर गोतस्करों के हवाले कर दिया और उन ट्रकों को वहां से भगा दिया। बाद में पुलिस ने झूठे मामले में कार्यकर्ताओं पर संगीन धाराओं में मुकदमा पंजीकृत किया। जिसके बाद पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं को जिला सत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया जहां उनकी जमानत रद्द करते हुए न्यायालय ने बहस की तारीख 11 अक्तूबर नियत कर दी।
अदालत के आदेश की उड़ती धज्जियां
बंगाल में अत्यधिक मात्रा में खुलेआम कटती गायों पर बंगाल उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त असीम कुमार रॉय शामिल थे ने वर्ष 2011 में गोवध के संबंध में एक आदेश दिया था। हिन्दू संहति संगठन के अध्यक्ष तपन घोष के अनुसार न्यायालय ने कहा कि किसी भी धार्मिक त्योहार के कारण गोवंश का वध न किया जाए। अगर किसी भी उद्देश्य को लेकर गोवंश का वध किया जाता है तो 'वेस्ट बंगाल ऐनिमल स्लाटर कंट्रोल एक्ट' का पालन करते हुए किया जाए। इस संबंध में प्रमुख बात यह थी कि किसी भी गोवंश को काटने से पहले जानवरों के चिकित्सक से गाय सत्यापित हो कि वह 14 साल से ऊपर का व अनुपयोगी है और पूरी तरह से स्वस्थ है। बीमार जानवर नहीं काटा जायेगा। उसके बाद अगर ग्राम पंचायत से है तो वहां की ब्लाक समिति और अगर शहरी क्षेत्र से हैं तो नगर निगम का चेयरमैन उसी गोवंश को सत्यापित करेगा कि यह वही गोवंश है जिसे जानवरों के चिकित्सक ने कटने के लिए स्वस्थ और 14 साल के ऊपर का घोषित किया है। साथ ही एक आदेश और भी है कि सरकार द्वारा जिन बूचड़खानों को वैध घोषित किया गया वहीं पर इन्हें काटा जाये, लेकिन न्यायालय के आदेश की यहां खुलेआम धज्जियां उड़ायी जाती हैं। हर गली मुहल्ले में गोवश को खुलेआम काटा जाता है। हजारों की मात्रा में यहां अवैध बूचड़खाने हैं। साथ ही सवाल है कि यह पता कैसे चलेगा कि जिन गोवंश को काटा जा रहा है वे 14 साल के हैं और अनुपयोगी हैं? जबकि गोरक्षकों द्वारा बंगाल में या बंगाल सीमा में जितना भी गोवंश पकड़ा जाता है वह पूर्ण रूप से दुधारू और कृषि योग्य होता है। वह अनुपयोगी कैसे हो सकता है? कुल मिलाकर सरकार की शह गोतस्करों को प्राप्त है और जानबूझकर ममता सरकार हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ कर गोतस्करी और गोहत्या को बढ़ावा दे रही है।
प्रतिदिन पहुंच रहा बीस हजार से ज्यादा गोवंश
बकरा ईद के चलते देश के अन्य प्रान्तों राजस्थान,मध्यप्रदेश,हरियाणा, उत्तर प्रदेश व बिहार से प्रतिदिन बीस हजार से ज्यादा गोवंश तस्करी करके बंगाल में कटने के लिए आ रहा है। गोरक्षा मिशन के संयोजक योगेश शास्त्री की मानें तो प्रतिदिन बिहार के राजमार्ग से धनबाद होते हुए 700 से ज्यादा ट्रक बंगाल में गोवंश को लेकर प्रवेश करते हैं और उन्हीं में से कुछ ट्रक बंगाल में व अन्य ट्रक बंगलादेश चले जाते हैं।
पूरे खेल में तृणमूल कार्यकर्ताओं का हाथ
जिस राज्य का राजा जैसा होता है प्रजा भी वैसी ही होती है। स्वयं बंगाल की मुख्यमंत्री ने कुछ समय पहले संसद में गोरक्षा पर हो रही बहस में बोला था कि मैं गाय का मांस खाती हूं अगर इस पर प्रतिबंध लगता है तो मेरे मौलिक अधिकार का क्या होगा? ऐसे में जब बंगाल की मुख्यमंत्री स्वयं गोहत्या को प्रोत्साहित करती हैं तो उनके कार्यकर्ता इसमें कहां पीछे रह सकते हैं? नाम न छपने की शर्त पर बर्द्धमान जिले के लोगों ने पाञ्चजन्य से बातचीत में कहा कि असल में बंगाल में खुलेआम हो रहे गोवध में तृणमूल के कार्यकर्ताओं का हाथ है। एक तरफ कमजोर कानून तो दूसरी ओर इन कार्यकर्ताओं का दबाव जो वहां पर खुलेआम गोवध को प्रोत्साहित करता है।
आखिर कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई क्यों?
प्रशासन को जिनके खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए थी,उनको छोड़कर पुलिस ने उल्टे गोरक्षकों पर कार्रवाई की। इसे तुष्टीकरण व राजनीतिक द्वेष ही कहेंगे क्या 40 ट्रकों में भूसे की तरह भरे गोवंश कृषि के लिए जा रहे थे? यह सवाल कहीं न कहीं पूरी पुलिस मशीनरी पर सवाल खड़ा करता है। ट्रकों में जानवरों को ले जाने की एक सीमा होती है लेकिन किसी ट्रक में 25 से 30 जानवर कैसे आते होंगे और उनका क्या होता होगा ? यह बंगाल सरकार को अच्छी प्रकार से पता है। साथ ही जिन कार्यकर्ताओं को पकड़ा गया उन्होंने ऐसा कौन सा अपराध किया कि उन पर 147,148, 186, 223,307, 353, 295(ए), 153, 153(ए), 427,447,506 एवं 120 (बी) जैसे संगीन अपराधों में उन्हें जेल भेज दिया गया। जब इस बाबत संबंधित थानाध्यक्ष से बात की तो उन्होंने इस मामले पर उच्च अधिकारियों से बात करने व स्वयं कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। जिसके बाद पाञ्चजन्य ने बर्द्धमान जिले के पुलिस अधीक्षक से संपर्क करने का कई बार प्रयास किया पर उनका फोन ही नहीं उठा। कानून इनके ठेंगे पर !
बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य होगा जहां लगता है पूरी सरकार गोवध कराने के लिए ही लगी हो। बकरीद के एक महीने पहले ही गोवंश के बाजार लगते हैं और वहीं से कटने के लिए गोवंश को खरीदा जाता है। प्रदेश के हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं की मानंे तो अकेले बंगाल में बकरीद के दिन पांच लाख से ज्यादा गोवंश खुलेआम काटा जाता है। और इस कार्य के लिए पुलिस गोहत्यारों को सहयोग करती है। सभी गली-मुहल्लों में बूचड़खाने खुल जाते हैं और खुलेआम गोवंशों को काटा जाता है।
हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता जब गोवंश को बचाने का प्रयास करते हैं तो प्रशासन द्वारा यह बोल दिया जाता है कि यह किसानों का है और कृषि के लिए जा रहा है। लेकिन सवाल है कि जिन ट्रकों को बंगाल सीमा या बंगाल में पकड़ा जाता है उन ट्रकों में 25 से 30 पशु भूसे की तरह भरे होते हैं,जबकि पशु कू्ररता निवारण अधिनियम-1960 की धारा 11 डी.ई.एफ. व पशुओं के परिवहन संबंधी नियम 1978 के अंतर्गत ट्रक में 6 से 8 पशु ही होने चाहिए। गर्भवती गाय को परिवहन नहीं कराया जाना चाहिए। पशुओं को ले जाते समय हवा,पानी व खाने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए व वाहन चारों ओर से बंद नहीं होना चाहिए। पशु किसी भी रोग से पीडि़त न हो। वाहन के इंतजार में उनको रोके रखना अपराध है। उक्त अधिनियम भारत के सभी प्रदेशों में लागू है। लेकिन सवाल है कि बंगाल में कार्यकर्ताओं द्वारा जिन ट्रकों को रोका गया,उन ट्रकों में 10 से ज्यादा गाएं गर्भवती थीं, जिन्हांेने ट्रकों के अंदर ही बछड़ों को जन्म दिया, क्या यह कानून का उल्लंघन नहीं है? क्या कानून के मुताबिक ट्रकों में कुल 6 से 8 ही पशु थे? क्या यह अधिनियम की धारा 91 का उल्लंघन नहीं है जिसमें कहा गया है कि अपेक्षित पशु से अधिक ले जाना अपराध है? कुल मिलाकर इन सवालों पर बंगाल सरकार और पुलिस मौन साधकर तुष्टीकरण में लगी है और कानून का मजाक उड़ा रही है। -अश्वनी कुमार मिश्र / बासुदेब पाल
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