विदेशियों का रहस्यमय आगमन
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सबसे ज्यादा संख्या में बर्मा और पाकिस्तान से भारत की सीमा में घुस रहे हैं विदेशी
पिछले कुछ वर्षों में करीब पांच हजार लोग जम्मू महानगर के बाहरी क्षेत्र में आकर बस चुके हैं
जम्मू-कश्मीर में रहस्यमय तरीके से विदेशियों का आगमन जारी है। इनमें सबसे ज्यादा तादात बर्मा, पाकिस्तान और दूसरे देशों से आने वालों की है। पिछले कुछ वर्षों में करीब पांच हजार बर्मा के मुसलमान शरणार्थी जम्मू महानगर के बाहरी क्षेत्रों में आ चुके हैं। ये लोग बर्मा से यहां कैसे पहंुचे यह रहस्य बना हुआ है।
इन विदेशियों के लिए मदरसे खोले गए हैं और केवल इतना ही नहीं जिन बस्तियों में उन्हें ठहराया गया है उनके नाम तक बदल दिए गए हैं। चिंता की बात यह है कि पाक अधिकृत कश्मीर के कई भागों में विशेषकर छम्ब क्षेत्र में भी ऐसे लोगों को बसाया गया है। इसके अलावा सैकड़ों उग्रवादी भी पाकिस्तान तथा अधिकृत कश्मीर से इस राज्य में वापस लौट रहे हैं, जो उस पार प्रशिक्षण तथा शस्त्र लाने गए थे। सरकारी रूप से यह बताया गया है कि गत 2-3 वर्षों में 300 के लगभग उग्रवादी वापस लौटे हैं। वह अपने साथ पाकिस्तानी पत्नी और बच्चे भी लाए हैं। इनकी संख्या 600 के करीब बताई गई है। इनमें केवल पांच महिलाएं अपने 10 बच्चों समेत आई हैं जिनका पति कौन है, इस बारे में किसी को कुछ भी नहीं मालूम है। विचार करने योग्य बात यह है कि इस राज्य के संविधान के अनुसार विदेशी नहीं, बल्कि भारतीय भी यहां के नागरिक नहीं बन सकते हैं।
इस संबंध में उल्लेखनीय है कि 1947 में हुए बंटवारे के कारण हजारांे हिन्दू-परिवार पाकिस्तान के समीपवर्ती क्षेत्रों से आकर यहां बस गए थे, लेकिन उन्हें जम्मू-कश्मीर की नागरिकता प्राप्त नहीं हुई है। सत्ताधारी कांग्रेस तथा नेशनल कांफ्रेंस उस पार से आने वाले तत्वों की नागरिकता संबंधी किसी प्रकार की चर्चा से कतराते हुए चुप्पी साधे हुए हैं।
जम्मू प्रतिनिधि
केन्द्रीय कृषि मंत्री व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार आये दिन भाजपा शासित राज्यांे में हुई प्रगति पर विपरीत टिप्पणी करने से नहीं चूकते। साथ ही उन्हंे अपने निर्वाचन क्षेत्र पर बड़ा गर्व रहता है।
शरद पवार हर बार यही दावा करते हैं कि उन्होंने अपने गृहनगर तथा निर्वाचन क्षेत्र बारामती का जिस तरह से विकास किया है, उस तरह का विकास किसी भी राष्ट्रीय नेता ने नहीं किया है। इस दावे के समर्थन में शरद पवार बारामती में लगी औद्योगिक इकाइयां, वस्त्र उद्योग, कृषि उद्योग, चीनी कारखाने, दूध उत्पाद और हवाई अड्डे तक का जिक्र करना नहीं भूलते हैं। इन्हीं कारणों से वे बारामती से वर्ष 1968 के विधानसभा चुनाव से लेकर पिछले लोकसभा चुनाव को जीतने का दावा करते रहे हैं।
इस बार इन सभी दावों की पोल खालते हुए महाराष्ट्र भाजपा ने खुलासा किया है कि विकास का ढोल पीटने वाले पवार के शहर से सटे 23 गांवों में वर्ष 1960 से यानी महाराष्ट्र राज्य के स्थापना वर्ष से पानी की किल्लत है, जो अभी भी जारी है। भाजपा प्रवक्ता माधव भंडारी के अनुसार पानी की समस्या को लेकर गांव के लोगों ने नवम्बर माह में अनशन तक किया। मजबूरन गांव के लोग पांच किलोमीटर पैदल चलकर पानी लेकर आते हैं। पवार परिवार के खोखले दावों पर तीखे प्रहार करते हुए महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के बारामती के कार्यकर्ता राजेन्द्र पाटणकर भी कहते हैं कि विकास की बात कई मायनों में तथ्यहीन है। उनके अनुसार पवार परिवार ने बारामती में केवल ऐसी औद्योगिक इकाइयां लगवाने में पहल की है जिनमें उन्हें तथा उनके परिजनों की रुचि है। बारामती के हवाई अड्डे से मात्र पवार परिवारों की ही यात्री होती है और उन्हीं के परिजन वहां से उड़ान भरते हैं। इससे उलट बारामती अभी तक रेल की मुख्य पटरी पर नहीं आ सकी। अब जब भाजपा पवार परिवार के दावों की पोल खोल रही है तो शरद पवार के भतीजे एवं राज्य के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने पुणे में संवाददाताओं को यह बताते हुए राजनीतिक तरीके से रिझाने की कोशिश की है कि उन्हें पानी की समस्या से जूझ रहे किसानों से सहानुभूति तो है पर भाजपा वाले इस मुद्दे को राजनीतिक तौर पर भुना रहे हैं। वहीं शरद पवार और उनकी सांसद बेटी सुप्रिया ने इस पर चुप्पी साध रखी है। द. वा. आंबुलकर
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