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शरीर की हजारों नस नाडि़यों का सम्बंध हमारे हाथों से रहता है। हाथों की विशेष मुद्राएं उन नस-नाडि़यों को प्रभावित करती हैं।
वास्तव में ये मुद्राए योग एवं आसनों के ही विशेष ज्ञान में सम्मिलित हैं। इन हस्तमुद्राओं का प्रयोग वज्रासन, पद्मासन या सुखासन में बैठ कर किया जाए तो अधिक लाभदायक होता है। किसी भी आसन में यदि आधे घंटे तक इनका अभ्यास करें तो हानि नहीं होगी, लाभ ही होगा। हस्तमुद्राओं की विशेषता यह है कि ये तुरन्त ही प्रभाव छोड़ने लगती हैं।
ज्ञान-मुद्रा
विधि- अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगा दें। शेष तीनों अंगुलियां चित्र के अनुसार सीधी रहेंगी।
लाभ- स्मरण-शक्ति का विकास होता है और ज्ञान की वृद्धि होती है, पढ़ने में मन लगता है, मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होते हैं, सिर-दर्द दूर होता है तथा अनिद्रा का नाश, स्वभाव में परिवर्तन, अध्यात्म-शक्ति का विकास और क्रोध का नाश होता है।
सावधानी- खान-पान सात्विक रखना चाहिये, पान-पराग, सुपारी, जर्दा इत्यादि का सेवन न करें। अति उष्ण और अति शीतल पेय पदार्थों का सेवन न करें।
वायु-मुद्रा
विधि-तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाकर हलका दबायें। शेष अंगुलियां सीधी रखें।
लाभ-वायु शान्त होती है। लकवा, साइटिका, गठिया, संधिवात, घुटने के दर्द ठीक होते हैं। गर्दन के दर्द, रीढ़ के दर्द तथा पारकिंसन्स रोग में फायदा होता है।
सावधानी- लाभ हो जाने तक ही करें।
आकाश-मुद्रा
विधि-मध्यमा अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से मिलायें। शेष तीनों अंगुलियां सीधी रखें।
लाभ-कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि, हड्डियों की कमजोरी तथा हृदय-रोग ठीक होता है।
सावधानी-भोजन करते समय एवं चलते-फिरते यह मुद्रा न करें। हाथों को सीधा रखें। लाभ हो जाने तक ही करें।
शून्य-मुद्रा
विधि-मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगायें एवं अंगूठे से दबायें।
लाभ-कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि दूर होकर शब्द साफ सुनायी देता है, मसूढ़े की पकड़ मजबूत होती है तथा गले के रोग एवं थायरायड-रोग में फायदा होता है।
पृथ्वी-मुद्रा
विधि-अनामिका अंगुली को अंगूठे से लगाकर रखें।
लाभ- शरीर में स्फूर्ति, कान्ति एवं तेजस्विता आती है। दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है, वजन बढ़ता है, जीवनी शक्ति का विकास होता है। यह मुद्रा पाचन-क्रिया ठीक करती है, सात्विक गुणों का विकास करती है, दिमाग में शान्ति लाती है तथा विटामिन की कमी को दूर करती है।
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