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शिक्षा का प्रथम उद्देश्य किसी भी बालक को मानवीय गुणों से ओत-प्रोत करना है। वह बड़ा होकर सभ्य नागरिक बने ताकि देश और दुनिया की सेवा कर सके। इसलिए घर का वातावरण हो या फिर पाठशाला की शिक्षा वहां उसे इस प्रकार के संस्कार दिए जाने की बात कही जाती है जिससे मानवता का पुष्प पल्लवित हो सके। किन्तु किसी देश की सरकार यह चाहे कि उसकी भावी पीढ़ी हिंसा और अराजकता को अपना कर ही जीवन की दहलीज पर पांव रखे तो फिर समझ लीजिए आज नहीं तो कल वह देश रसातल में पहुंचने वाला है। पाकिस्तान में आतंकवाद क्यों फल-फूल रहा है? पाकिस्तान में राष्ट्रीयता नाम की कोई वस्तु क्यों नहीं है? पाकिस्तान दिन-प्रतिदिन अवनति की ओर क्यों अग्रसर हो रहा है? इन सबकी जांच-पड़ताल करनी हो तो पाकिस्तान में दी जाने वाली शिक्षा पर विचार करना अति अनिवार्य है। पाकिस्तान के 'नेशनल कमीशन फॉर जस्टिस एंड पीस' ने हाल ही में अपनी एक विस्तृत रपट में इस मुद्दे पर कई गंभीर टिप्पणियां की हैं। इस आयोग के अध्यक्ष हैं पीटर जैकब और इस सनसनीपूर्ण रपट का भंडाफोड़ किया है पाकिस्तान के दैनिक ट्रिब्यून एक्सप्रेस ने। उक्त रपट को यदि एक वाक्य में परिभाषित करना हो तो इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि बबूल का वृक्ष उगाकर कोई यह अपेक्षा करे कि उस पर आम जैसा स्वादिष्ट फल लगेगा तो यह भला किस प्रकार सम्भव होगा? जैकब पीटर पाकिस्तान के उच्च शिक्षा शास्त्री हैं। उन्होंने कहा है कि यदि पाक सरकार ने अपनी पाठ्य पुस्तकों में परिवर्तन नहीं किया तो हम भविष्य के पाकिस्तान के लिए डाकू और पिंडारियों का समूह तैयार करने वाले नागरिक कहलाएंगे। सभ्य और सुनहरा पाकिस्तान बनाना चाहते हैं तो पाकिस्तान की नई पीढ़ी को इस प्रकार शिक्षित करो कि वह दीन और दुनिया की सेवा कर सके। जैकब ने अपनी रपट में कहा है कि इन दिनों पाकिस्तान में जो कुछ पढ़ाया जा रहा है, उसमें अन्य मत-पंथों के प्रति जो घृणा की प्रेरणा होती है वह पाकिस्तान की भावी पीढ़ी को उग्रता और आतंकवाद की ओर धकेलती है। जैकब ने बड़े साहस के साथ यह कहा है कि भारत के प्रति जो घृणा सिखाई जाती है, वह पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी है। एक देश अपने पड़ोसी देश की सहायता से ही प्रगति कर सकता है। जब हम अपने पड़ोसी को ही अपना शत्रु मान लेंगे तो फिर जुनूनी मानस से छुटकारा मिलने वाला नहीं है। अपने मजहब की प्रशंसा और उसकी अच्छाइयों को अवश्य प्रदर्शित करना चाहिए इससे विद्यार्थियों में आत्मविश्वास पैदा होगा। लेकिन दूसरे मत-पंथ के प्रति नकारात्मक रवैया प्रतिशोध को जन्म देगा। पाकिस्तान में आज मुस्लिमों के अनेक पंथ और सम्प्रदाय हैं। भारत के प्रति नफरत की सीख एक दिन में अपने ही मजहब के किसी अन्य पंथ के लिए भी घातक सिद्ध होगी। जैकब कहते हैं यह कोई कल्पना नहीं है। आज हम पाकिस्तान के एक ही मजहब इस्लाम के भिन्न-भिन्न पंथों में जो संघर्ष और हिंसा देखते हैं वह इसी का नतीजा है। एक समय था कि पाकिस्तान का मुसलमान अहमदियों के प्रति घृणा व्यक्त करता था। इस मारकाट में सैकड़ों लोग मरते थे। अब अहमदिया को गैर-इस्लामी घोषित कर दिया गया है। उसके बाद सुन्नी और शिया के बीच आए दिन होने वाली मार-काट को हम देख रहे हैं। एक बार किसी को खून-खराबे की लत पड़ जाती है तो वह बाद में यह नहीं देखता है कि कौन अपना है और कौन पराया? इसलिए पहली आवश्यकता तो है कि सभी के साथ समान और न्यायिक व्यवहार होना चाहिए। जैकब का यह कथन शत-प्रतिशत सही है। हिन्दुओं और शियाओं से जो नफरत करना पाठ्य पुस्तकों में सिखाया गया उसका ही आज नतीजा है कि सुन्नी मुसलमानों के दो पंथ बरेलवी और देवबदी आपस में भिड़ रहे हैं। इतना ही नहीं इन दोनों के भीतर भी अलग-अलग मौलाना और मदरसे वाले आपस में रक्तरंजित युद्ध में लीन हैं। मस्जिदों में नमाज पढ़ते हुए नमाजियों पर जिस तरह से गोलियां चल रही हैं क्या यह उस देश और मजहब के लोगों के लिए चिंतन का अवसर नहीं है? लेकिन अब पाकिस्तान की यह दूरियां इतनी बढ़ गई हैं कि वे देश को न जाने कितने भागों में बांट देंगी? जैकब ने अपनी इस रोंगटे खड़े कर देने वाली रपट में अनेक गम्भीर और सनसनीपूर्ण मामलों पर से पर्दा उठाया है। वे लिखते हैं कि पाकिस्तान में एक विभिन्न और दु:खद बात यह है कि पहली से दसवीं कक्षाओं के बच्चों के लिए जो पाठ्य पुस्तक तैयार की जाती हैं उनमें घृणास्पद सामग्री को अधिक महत्व दिया जाता है। इस सम्बंध में सर्वेक्षण की रपट का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2012-13 के शिक्षण सत्र के लिए जो पाठ्य पुस्तकें तैयार की गईं हैं उसके अंतर्गत 22 पुस्तकों के 55 अध्यायों में घृणास्पद सामग्री को शामिल किया गया है। जैकब ने अपनी रपट का शीर्षक दिया है 'शिक्षा या फिर घृणा की खेती।' इन अध्यायों में न केवल अन्य देशों के लिए, बल्कि अपने ही देश में रहने वाले अन्य मत-पंथ, जाति और सम्प्रदाय के लोगों के लिए विषवमन किया गया है। इन पुस्तकों में अल्पसंख्यकों के लिए जो कुछ कहा गया है वह किसी सभ्य देश को शोभा नहीं देता। दिलचस्प बात तो यह है कि सरकार ने अपनी मान्यता प्राप्त संस्थाओं के लिए उक्त आयोग की स्थापना की है। यदि निजी शालाओं के लिए यह होती तो इस बात को समझा जा सकता था कि सरकार की उन पर कोई पकड़ नहीं है। पंजाब और सिंध प्रांत के पाठ्यक्रम में जिन पुस्तकों का समावेश किया गया है उन्हें पढ़ने से ऐसा लगता है कि यह पाकिस्तान के प्रांत नहीं, बल्कि एक-दूसरे के दुश्मन देश हैं। ऐसा भी नहीं है कि जैकब कमेटी की रपट इस मामले में पहली हो, बल्कि समय-समय पर इस प्रकार की रपटें प्रकाशित होती रही हैं। स्वयं सरकार इस प्रकार के आयोग को नियुक्त भी करती है और फिर उनकी सिफारिशों को लागू करने के लिए कुछ नहीं करती। इसका सीधा अर्थ यह है कि सरकार उन तत्वों से भयभीत रहती है जो इस प्रकार की पुस्तकें लिखवाते हैं और अपने ताकतवर माध्यमों से इन्हें लागू करवाते हैं। इसके बावजूद इस प्रकार की घटिया और असभ्य परम्पराएं जारी रहना सरकार के ऊपर कलंक है। सरकार देश को जोड़ने के लिए है या फिर तोड़ने के लिए? जनता के बीच सौहार्द पैदा करने के लिए है या फिर आपस में लड़वाने और झगड़े कराने के लिए? दिलचस्प बात यह है कि 2009 की तुलना में 2012-13 में इस प्रकार की पुस्तकों में वृद्धि हुई है। 2009 की पाठ्य पुस्तकों में इस प्रकार की सामग्री की संख्या 45 थी, जो 2012 और 2013 के पाठ्यक्रम में बढ़कर 122 हो गई। सिंध प्रांत में 2009 से 2011 के बीच इस प्रकार की पुस्तकों की संख्या 11 थी जो 2012 और 2013 में बढ़कर 22 हो गई। इससे पहले तो तानाशाहों को इसके लिए उत्तरदायी माना जा सकता है लेकिन पिछले 5 वर्षों से तो राज्य और केन्द्र में निर्वाचित सरकारें थीं। फिर उनके कार्यकाल में ऐसा क्यों हुआ? इस समय तो कोई यह नहीं कह सकता है कि तानाशाही की यह सब हरकतें हैं। इससे तो यह जान पड़ता है कि सिक्षा विभाग में जानबूझ कर ऐसे लोगों की भर्ती की गई है जो पाकिस्तान में एक राज्य को दूसरे से और एक सम्प्रदाय को अन्य से लड़वाने में दिलचस्पी रखते हैं।
जैकब आयोग ने इस ओर भी इशारा किया है कि वास्तव में तो यह सारी गलती के लिए स्वयं सिक्षा विभाग ही दत्तरदायी है। क्योंकि बहुसंख्यक समाज के विद्यार्थियों के लिए तो इस्लाम की शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य रूप से की गई है, लेकिन गैर-मुस्लिमों के लिए सरकार ने इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं की है। आयोग की इस बैठक में सभी राजनीतिक दल के प्रतिनिधि भी शामिल थे, जिन्होंने जैकब के सम्बोधन के पश्चात् अपनी-अपनी पार्टियों की शिक्षा नीति पर विस्तार से प्रकाश डाला। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि जमीअतुल ओलेमा, जो अन्य पार्टियों की तुलना में अधिक उदार और प्रगतिशील मानी जाती है, ने भी अपनी पार्टी की तथाकथित उदारवादी शिक्षा नीति पर प्रकाश डाला। जिस पर वहां के अखबारों ने लिखा कि इससे बढ़कर और अच्छा मजाक क्या हो सकता है? सभी राजनीतिक दलों ने अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की लेकिन किसी ने इस बात की जिम्मेदारी नहीं ली कि वे अब शिक्षा के क्षेत्र में मजहब के हस्तक्षेप को स्थान नहीं देंगे। उक्त आयोग की बैठक में शिक्षा और अहमदिया सम्प्रदाय के लोगों को भी आमंत्रित किया गया था। लेकिन प्रतिनिधियों ने क्या कहा इसका किसी अखबार ने उल्लेख नहीं किया। कुल मिलाकर शिक्षण संस्थाओं में अराजकता और हिंसा बढ़ेगी। अल्पसंख्यक, जो गैर-मुस्लिम हैं भविष्य में उन्हें करो या मरो की नीति अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। 2011-12 में बहुसंख्यक शिक्षण संस्थाओं में 1,818 बार कर्फ्यू लगा और बहुसंख्यक एवं अल्पसंख्यक संस्थाओं की भिंड़त में 3000 बार पुलिस को हस्तक्षेप करके कर्फ्यू लगाना पड़ा। आतंकवादियों के हस्तक्षेप से अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाएं पिछले तीन साल में 128 दिन बंद रहीं। जैकब आयोग की रपट ने जो पर्दा उठाया है उससे आने वाले दिनों में पाक सरकार कुछ सीख लेगी तो यह देश के लिए उसकी सर्वोत्तम सेवा होगी।
सबसे अधिक राष्ट्रीय राजमार्ग राजग के काल में बने
देश में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में चली राजग सरकार के समय केवल 5 वर्ष में 23,894 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बने हैं। यह पिछले 32 वर्षों में कुल राजमार्गों का 50 प्रतिशत है, जबकि संप्रग सरकार के 10 साल में सिर्फ 16000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बने हैं। यह भाजपा नहीं कह रही है, बल्कि वर्तमान केन्द्र सरकार खुद कह रही है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक शपथपत्र दाखिल किया है। इसी शपथपत्र में ये सारी बातें लिखी गई हैं। इस शपथपत्र के अनुसार देश में 1980 तक राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई 29,023 किलोमीटर थी। 2012 तक यह आंकड़ा 76,818 किलोमीटर तक पहुंच गया है।
मालूम हो कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना की शुरुआत की थी। इस कारण देश के कुछ बड़े नगरों को आठ लेन वाली सड़कों से जोड़ने का काम तेजी से शुरू हुआ था। काश, वर्तमान सरकार इस काम को तेजी से निपटाती तो आज देश में विकास का पहिया तेज गति से घूमता। अटल जी का सपना था देश के सभी बड़े शहरों को राष्ट्रीय राजमार्गों से जोड़ना। ऐसा होने से देश के एक कोने से दूसरे कोने तक आवाजाही और सुगम हो सकती है।
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