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हरियाणा में एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) का विस्तार किया गया है। प्रदेश के दो जिले महेंद्रगढ़ व भिवानी को इसमें शामिल किया गया है, साथ ही जींद और करनाल को भी शामिल करने की योजना को मंजूर कर लिया गया है। जब यह योजना पूरी हो जाएगी तो प्रदेश के कुल 21 जिलों में से 13 जिले एनसीआर का हिस्सा बन जाएंगे। यह निर्णय 'एनसीआर प्लानिंग बोर्ड' की दिल्ली में हुई 33वीं बैठक में लिया गया है। यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इस योजना को जिस उद्देश्य को लेकर बनाया गया है, उसमें पारदर्शिता जरूरी है।
हरियाणा दिल्ली से सटा एक मुख्य प्रदेश है जिसमें गुडगांव शिक्षा और रोजगार के रूप में विकसित हुआ है और आज उसकी अपनी एक पहचान है। इसी तरह यदि प्रदेश के और जिले भी विकसित हो जाएं तो हरियाणा में रोजगार के लिए युवाओं को भटकना नहीं पड़ेगा। एनसीआर में शमिल होने के बाद क्षेत्र में कई तरह की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। प्रदेश के 9 जिले- फरीदाबाद, गुड़गांव, मेवात, रोहतक, सोनीपत, रेवाड़ी, झज्जर, पानीपत और पलवल पहले से ही इसमें शामिल हैं। इसके अलावा दो अन्य शहर- हिसार और अम्बाला को काउंटर माइग्रेंट एरिया (सीएमए) के रूप में विकसित करने की योजना है। लेकिन जिस तरह से प्रदेश में राजनीतिक भेदभाव का वातावरण रहा है, उससे हर क्षेत्र का समान भाव से विकास नहीं हो पाया है। अब प्रदेश के आधे से ज्यादा जिले एन सी आर क्षेत्र में आ गए हैं। इस क्षेत्र में शामिल होने के बाद यहां उद्योगों को बढ़ावा, रीयल स्टेट के कारोबार में बढ़ोत्तरी के साथ बेहतर रोजगार के अवसर से जनजीवन स्तर में सुधार की संभावना है। लेकिन प्रदेश में इसका वास्तविक लाभ कितना होगा, यह एक विचारणीय बात है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी इस पर प्रश्नचिन्ह लगाया है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रामविलास शर्मा व अन्य विपक्षी दलों ने कहा कि एनसीआर के क्षेत्र में 24 घंटे बिजली और कई बुनियादी सुविधाएं देने की कोशिश होती है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के जो हिस्से पहले से ही एनसीआर में शामिल हैं, उनको भी इसका अभी तक पूरा लाभ नहीं मिला है। ऐसे में एनसीआर में और जिले शामिल करने का लाभ तभी है जब सुविधाएं मिलें और लोगों तक उनका लाभ पहुंचे।
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