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बोधगया में इस्लामी आतंकवादियों ने एक के बाद एक नौ बम विस्फोट करके अपनी भविष्य की रणनीति का साफ संकेत दे दिया है। स्पष्ट संकेत तो यही है कि वे कहीं भी, कभी भी, अपनी योजना के अनुसार विस्फोट कर सकते हैं। सरकारी एजेंसियों के पास विस्फोट से पूर्व ही उनकी योजना को ध्वस्त करने का तंत्र नहीं है। असली सफलता वह मानी जाती है जब आतंकवादी गिरोह को विस्फोट करने से पूर्व ही पकड़ लिया जाए।
सफलता भारत में ही क्यों?
बड़ा प्रश्न यह है कि इस्लामी आतंकवादियों को अपने मकसद में सबसे ज्यादा सफलता भारत में ही क्यों मिलती है? दुनिया भर के आतंकवादी हिन्दुस्थान में ही आकर विस्फोट करने में सफल क्यों हो जाते हैं? इसका एक मुख्य कारण यह है कि यहां के शासक दल सोनिया कांग्रेस सहित अन्य अनेक राजनीतिक दलों के एजेंडे में आतंकवादी कृत्य अपराध कर्म नहीं है। उनकी दृष्टि में यह ऐसी सामाजिक- सांस्कृतिक गतिविधि है जिसका समर्थन या विरोध राजनीतिक लाभ-हानि के आधार पर किया जाना ज्यादा उचित है। इसीलिये आतंकवाद और आतंकवादी घटना के बाद सरकार की प्रतिक्रिया भी राजनीतिक होती है। आतंकवादी सरकार की इस नीति को अच्छी तरह समझ गये हैं। यही कारण है कि इस्लामी आतंकवादियों को इस देश में भरपूर राजनीतिक समर्थन मिलता है, जिसका वे अपनी अगली रणनीति बनाने में उपयोग करते हैं ।
पुलिस द्वारा विस्फोट से पूर्व आतंकवादियों को पकड़ना अब संभव नहीं है। ऐसा नहीं है कि देश की पुलिस या जांच एजेंसियां ऐसा नहीं कर सकतीं। लेकिन पुलिस के लिये किसी भी मुस्लिम आतंकवादी को यह कहकर पकड़ लेना कि वह विस्फोट करने की तैयारी कर रहा था, अपने लिये 'आ बैल मुझे मार' वाली कहावत चरितार्थ करना ही होगा। सोनिया कांग्रेस समेत अधिकांश राजनीतिक दल ऐसे पुलिस अधिकारियों की सार्वजनिक रूप से बलि की मांग करेंगे।
सोनिया कांग्रेस की धारणा
भारत में इस्लामी आतंकवाद पनपने का दूसरा कारण और भी खतरनाक है। सोनिया कांग्रेस का यह मानना है कि इस देश में मुसलमानों के साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाता है। उनके साथ भेदभाव किया जाता है, उन्हें नौकरियां नहीं मिलतीं। वे मजहबी कारणों से प्रताड़ित किये जाते हैं। विकास के समान अवसर उन्हें नहीं दिये जाते, जिसके कारण वे पिछड़े हुए हैं। सोनिया पार्टी मोटे तौर पर यह मानती है कि इन्हीं कारणों से मुसलमान युवक आतंकवाद की ओर चला जाता है। इस धारणा को यहाँ के मुस्लिम दिमाग में अच्छी तरह बिठाने के लिये सोनिया कांग्रेस ने बहुत चतुराई से काम किया है। राजेन्द्र सच्चर और रंगनाथ मिश्र जैसे आयोगों की स्थापना इसी अवधारणा को स्थापित करने के लिये की और इन दोनों आयोगों ने सरकार को वही रपट दी जो मुसलमानों को पीड़ित सिद्ध करने के लिये चाहिये थी। अब सोनिया की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद भारतीय संसद से, साम्प्रदायिक दंगा निरोधक कानून के नाम पर एक ऐसा कानून पारित करवाना चाहती है, जिसमें मौटे तौर पर किसी भी हिन्दू-मुस्लिम दंगे में सिर्फ हिन्दू को ही अपराधी माना जायेगा। सोनिया पार्टी का संदेश साफ है कि भारत में इस्लामी आतंकवाद यहाँ की सामाजिक समस्या है, न कि आपराधिक समस्या, इसलिये इससे सामाजिक स्तर पर ही निपटना होगा। पुलिस की दखलंदाजी से यह सामाजिक समस्या और भी उग्र हो सकती है। पार्टी के इस संदेश को और कोई समझे या न समझे, इस्लामी आतंकवादी अच्छी तरह समझ गये हैं।
सोनिया कांग्रेस की सरकार ने जब इस्लामी आतंकवाद को अपने राजनीतिक एजेंडा में शामिल कर लिया है तो जाहिर है कोई भी जाँच एजेंसी इन घटनाओं की जाँच पेशेवर तरीके से नहीं कर सकती। अब जाँच अपराध शास्त्र के नियमों पर आधारित न होकर, राजनीति शास्त्र के नियमों पर आधारित होगी। सोनिया कांग्रेस ने एक बार फिर बहुत ही चतुराई से देश की प्रमुख जाँच एजेंसियों को आपस में ही लड़ा दिया है। सी. बी. आई, आई.बी को झूठा बता रही है। उसकी दृष्टि में आई.बी. मुसलमानों को झूठी आतंकवादी घटनाओं में फँसा रही है। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) की मानें तो सी.बी.आई. मुसलमानों के खिलाफ झूठे आतंकवादी मामले बना रही है। सीबीआई इससे भी एक कदम आगे निकल गई है। उसके अनुसार, 'आतंकवाद से जुड़े मामलों में आतंकवादी होना मुख्य मुद्दा नहीं है। असल मुद्दा है कि पुलिस ने किसी आतंकवादी को किस तरीके से मारा है।' इशरत जहां वाले मामले में सीबीआई का यही रवैया है। अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया कांग्रेस और उसकी सरकार किसी भी तरीके से इस देश में आतंकवादी जाल की जाँच कर रहे राष्ट्रीय जाँच तंत्र को ध्वस्त करने में लगी हुई है और उसको इस मामले में कुछ हद तक सफलता भी मिल गई है। जाँच एजेंसियाँ इसी उलझन में फँस गईं हैं कि सरकार आतंकवादियों को पकड़ने के लिये जाँच करवा रही है या उनको बचाने के लिये? इस्लामी आतंकवादी सोनिया सरकार की इस नीति को जान ही नहीं गये हैं, बल्कि इसके आधार पर पूर्वानुमान लगाना भी सीख गये हैं। इसलिये वे बिना किसी भय के जब चाहें आतंकी वारदात कर सकते हैं और बच कर निकल सकते हैं।
घातक नीति
इस्लामी आतंकवादी संगठनों ने पिछले कुछ साल से भारत सरकार की आतंकवाद से लड़ने की कार्यपद्धति का गहराई से अध्ययन किया ही होगा। उस कार्यपद्धति के कुछ निष्कर्ष इतने स्पष्ट हैं कि उसका अर्थ समझने के लिये ज्यादा दिमाग लड़ाने की जरूरत नहीं है। पिछले वर्षों में जिन जाँबाज पुलिस अधिकारियों ने जान हथेली पर रखकर आतंकवादियों को मार गिराया या फिर उनको पकड़ने में सफलता पाई, वे आज सभी आतंकवादियों को मारने के अपराध में जेल के सींखचों के पीछे हैं और उन पर इसी अपराध में अनेक मुकदमे चल रहे हैं। अब कौन ऐसा पुलिस अधिकारी होगा जो आतंकवादियों से भिड़कर अपनी जान और कैरियर दोनों ही जोखिम में डाले? आदमी कर्तव्य पूर्ति के लिये जान भी दांव पर लगा सकता है, यदि उसे विश्वास हो कि देश की सरकार उसकी पीठ पर है, लेकिन यदि उसे यही डर सताता रहे कि यदि मेरी गोली से कोई आतंकवादी मारा गया, तो मुझे ही जेल जाना होगा, तो वह आतंकवादी गिरोहों से कैसे लड़ सकता है? लड़ाई के मैदान में मुकाबला करने के लिये शत्रु पक्ष की रणनीति देख कर अपनी नीति बनानी पड़ती है, लेकिन सोनिया कांग्रेस की सरकार दिल्ली के वातानुकूलित भवनों में बैठ कर यह नीति बनाती है और आग्रह करती है कि दरिंदे आतंकवादियों से युद्धभूमि में लड़ते समय सशस्त्र बल इसका पालन करें । ए के 47 लेकर घूम रहा आतंकवादी कोई बकरी का बच्चा नहीं है कि पुलिस का सिपाही उसे चुपचाप जाकर पकड़ लेगा और फिर न्यायालय के आगे पेश कर देगा। आतंकवादी गिरोह सरकार की इस नीति को समझ गये हैं, इसलिये वे जानते हैं कि भारत में कोई भी पुलिस अधिकारी अब उनको मारने से पहले हजार बार सोचेगा।
ऐसा भी कहा जाता है कि बोधगया में बम विस्फोट बर्मा के रोहिंगिया मुस्लिम आतंकवादी संगठनों ने किये हैं, क्योंकि वे बौद्धों से बदला लेना चाहते थे। यदि उनको बदला ही लेना था, तो वे बर्मा, श्रीलंका या फिर थाईलैंड में ही किसी ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर को निशाना बना सकते थे, उसके लिये उन्होंने भारत का ही चयन क्यों किया? उत्तर भी स्पष्ट ही है। दुनिया भर के इस्लामी आतंकवादी संगठन यह बात अच्छी तरह समझ गये हैं कि इस्लामी आतंकवादियों को कार्य करने की जो सुविधाएं और उचित माहौल भारत में सोनिया गांधी की सरकार मुहैया करवाती है, वह और कोई सरकार नहीं करवा सकती। इस बार बोधगया निशाने पर था, अगला निशाना क्या होगा, यह शायद सोनिया कांग्रेस के महासचिव ठीक तरह से बता पायेंगे। सतर्कता आयोग को उनके सम्पर्क में रहना चाहिये। डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
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