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इस सप्ताह का साक्षात्कार
श्री विजेन्द्र गुप्ता दिल्ली प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष हैं। इनका मानना है कि दिल्ली में बिजली वितरित करने वाली निजी कम्पनियों का दिल्ली सरकार के साथ साठगांठ है। इस कारण बिजली उपभोक्ताओं को लूटा जा रहा है। बिजली के मुद्दे पर उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं–
आपको लगता है कि बिजली का निजीकरण अपने उद्देश्य में सफल रहा है?
दिल्ली में बिजली का निजीकरण 2002 में शीला सरकार ने किया था। उस समय कहा गया था कि लोगों को 24 घंटे निर्बाध रूप से बिजली मिलेगी इसलिए बिजली वितरण का काम निजी कम्पनियों को दिया जा रहा है। यह भी कहा गया था कि दिल्ली में 51 प्रतिशत बिजली चोरी हो जाती है। निजी कम्पनियां चोरी पर लगाम लगा सकती हैं और बकाया भी वसूल सकती हैं। इससे आम उपभोक्ता को लाभ होगा।
क्या आपको लगता है कि बिजली की चोरी रुक गई है?
अनुमान है कि करीब 30 प्रतिशत बिजली की चोरी रुक गई है। 1 प्रतिशत बिजली चोरी रुकने से सालाना लगभग 180 करोड़ रु. मिलते हैं। इस तरह बिजली कम्पनियों को एक साल में करीब 600 करोड़ रु. मिल रहे हैं फिर भी ये कम्पनियां बिजली का दाम बढ़ा रही हैं।
बिजली कम्पनियां कहती हैं कि उन्हें घाटा हो रहा है, बिजली का दाम बढ़ाओ। आप इसे किस रूप में देखते हैं?
दरअसल, इन बिजली कम्पनियों और दिल्ली सरकार के बीच गहरे रिश्ते हैं। दोनों ने मिलकर जनता पर बिजली का बोझ बढ़ाया है। घाटे की आड़ में बिजली कम्पनियां और दिल्ली सरकार जनता को लूट रही हैं। इन बिजली कम्पनियों ने अपने हित को सबसे ऊपर रखा है और उपभोक्ताओं की उन्हें कोई चिंता नहीं है।
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