|
मनमोहन सरकार नाकारा
सरकार की चौथी वर्षगांठ मना रही यूपीए-2 के लिए देश की जनता ने खतरे की घंटी बजा दी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पसंद के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह लोगों को नापसंद हैं। जनता चाहती है कि डा. मनमोहन सिंह को जाना चाहिए। यह खुलासा हाल ही में सामने आए एक सर्वेक्षण में हुआ है। यह सर्वेक्षण शोध संस्था जीएफके ने एक निजी समाचार चैनल के लिए किया है। सर्वेक्षण में देश के 12 राज्यों-दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, चेन्नै, बेंगलुरु, अमदाबाद, लखनऊ, पटना, चंडीगढ़, भोपाल और जयपुर के लोगों ने भागीदारी की। इनमें पुरुष और महिला दोनों हैं। जनता का मानना है कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का प्रदर्शन 'औसत', 'खराब' और 'बहुत खराब' रहा है।
सर्वेक्षण में 65 प्रतिशत लोगों ने माना है कि प्रधानमंत्री कोयला खदान आवंटन घोटाले के लिए जिम्मेदार हैं। 64 प्रतिशत कहते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस सबमें लिप्त है। 54 प्रतिशत का मानना है कि उनका प्रदर्शन खराब या फिर बहुत खराब रहा। दिल्ली और चेन्नै के लोगों ने प्रधानमंत्री के प्रदर्शन को खराब कहा। जबकि बेंगलुरु के लोगों ने इसे औसत बताया। चंडीगढ़ और भोपाल के 40 प्रतिशत लोग उनके प्रदर्शन से संतुष्ट दिखे। बेंगलुरु के आधे लोग मानते हैं कि प्रधानमंत्री ईमानदार नहीं हैं, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है। चंडीगढ़ के करीब 40 प्रतिशत लोगों ने भ्रष्टाचार के प्रति अनिर्णायक रवैये को सरकार की सबसे बड़ी विफलता बताया है। लखनऊ के लोग मानते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय घोटालों पर पर्दा डालता है। जबकि चंडीगढ़ और बेंगलुरु के लोग लखनऊ के लोगों की राय से असहमत दिखे।
करीब दो-तिहाई लोग मानते हैं प्रधानमंत्री कार्यालय घोटालों पर सही रुख नहीं अपनाता। एक-तिहाई लोगों का मानना है कि यूपीए सरकार के पास कोई भी उपलब्धि नहीं है। चौथी वर्षगांठ पर यूपीए की दावत में सोनिया ने मनमोहन को 'सफल' बताया, लेकिन वह कितने सफल हैं वह तो देश की जनता ही जानती है। उसके मन में क्या है, उसकी एक झलक सर्वेक्षण ने दिखा दी है।
सच्चाई झुठला रही है यूपीए-2 के दावे
(1) दावा: सरकार ने आर्थिक विकास के लिए अच्छा काम किया। कृषि में 11वीं योजना में 3.7 फीसदी की वृद्धि की, 12वीं योजना में 4 फीसदी बढ़ोत्तरी हासिल करने का लक्ष्य।
सच्चाई: निवेश न होने से कृषि क्षेत्र में विकास की दर में तेज उतार-चढ़ाव। मानसून पर निर्भरता का विकल्प अब तक नहीं।
(2) दावा: खाद्य सुरक्षा विधेयक को लेकर सरकार प्रतिबद्ध। पिछले नौ साल में खाद्य सब्सिडी बढ़ी है।
सच्चाई: बमुश्किल लोकसभा में पेश हो पाया विधेयक। खाद्यान्न की उपलब्धता को लेकर चिंताएं।
(3) दावा: महंगाई घटी है।
सच्चाई: चौथे वर्ष में आकर सिर्फ थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई में कमी हुई। खाद्य उत्पादों और खुदरा मूल्यों पर आधारित महंगाई दर अभी भी दहाई अंक के करीब।
(4) दावा: गरीबों की संख्या घटी है।
सच्चाई: गरीबों की संख्या के आकलन को लेकर अभी सरकार खुद स्पष्ट नहीं है। गरीबी के आकलन के आधार को लेकर भी मतभेद हैं।
(5) दावा: भूमि अधिग्रहण विधेयक समेत लोकपाल को लेकर सरकार प्रतिबद्ध।
सच्चाई: भूमि अधिग्रहण विधेयक पर चौथे वर्ष में जाकर सहमति बन पाई, लेकिन अब तक विधेयक संसद में नहीं आया। लोकपाल विधेयक को संसद में पेश होने का इंतजार।
(6) दावा: शिक्षा का अधिकार कानून ने बदली तस्वीर।
सच्चाई: बीते मार्च में अमल की समय सीमा पूरी, फिर भी 12 लाख स्कूली शिक्षकों की कमी। पेयजल, छात्र-शिक्षक अनुपात और दूसरे मानकों पर खरा नहीं उतरा कानून।
(7) दावा: मिड डे मील से 10 करोड़ बच्चे लाभान्वित।
सच्चाई: खामियों को लेकर शिकायतों से अछूता नहीं रह पाया यह कार्यक्रम।
(8) दावा: समेकित बाल विकास योजना (आइसीडीएस) के लिए 12वीं योजना में 1,23,580 करोड़ रुपये का बजट।
सच्चाई: कार्यक्रम छह साल तक के बच्चों व गर्भवती महिलाओं को कुपोषण से बचाने के लिए पूरक पुष्टाहार का है। लेकिन कुपोषण लगातार बढ़ रहा है।
(9) दावा: मनरेगा से 4.8 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला।
सच्चाई: 2012-13 में मनरेगा से मिलने वाले रोजगार में 2009-10 के मुकाबले 36 प्रतिशत की कमी हुई। रोजगार बांटने को लेकर घोटाले के आरोप भी लगे।
(10) दावा: राजकोषीय घाटे कम करने में सफलता।
सच्चाई: 2जी स्पेक्ट्रम, विनिवेश, मंत्रालयों के योजना खर्च में भारी कमी से ही काबू हो पाया राजकोषीय घाटा। सोने के बढ़े आयात ने चालू खाते के घाटे पर दबाव बढ़ाया।
टिप्पणियाँ