'71 के 54 युद्धबंदियों की सुध कब लेगी सरकार? युद्धबंदियों के परिजनों की पीड़ा पर क्या कभी मलहम लगेगा? और कितने सरबजीत सरकार की अनदेखी का शिकार बनेंगे?
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'71 के 54 युद्धबंदियों की सुध कब लेगी सरकार? युद्धबंदियों के परिजनों की पीड़ा पर क्या कभी मलहम लगेगा? और कितने सरबजीत सरकार की अनदेखी का शिकार बनेंगे?

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May 11, 2013, 12:00 am IST
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सरबजीत पर सोते रहे, इनकी तो सुध लो

दिंनाक: 11 May 2013 14:02:21

 

लक्ष्मीकांता चावला

सन् 1971 के बाद से लगातार पूरे देश से यह आवाज उठ रही है कि हमारे जो युद्धबंदी पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं उनके विषय में देश को सही स्थिति बताई जाए और यह भी बताया जाए कि उन्हें आज तक वापस क्यों नहीं लाया गया। हम सब जानते हैं कि पाक जेलों में भारतीय सेना के कुछ जवान '71 के युद्ध के बाद से बंद हैं। अच्छा हो भारत सरकार एक बार आधिकारिक तौर पर यह स्थिति स्पष्ट करके देश को बता दे। अगर भारत के बेटे वहां बंद हैं तो उन्हें आज तक वापस क्यों नहीं लाया गया? सवाल यह भी है कि जब पाकिस्तान के 93 हजार कैदी हमने '71 में वापस किए थे तो अपने सभी युद्धबंदी सैनिक पाकिस्तान से क्यों नहीं लिए गए? क्या यह राष्ट्रीय अपराध नहीं? पाकिस्तान सरकार कहती है कि उसकी जेलों में कोई भारतीय सैनिक बंद नहीं, पर इंग्लैंड और अमरीका जैसे देशों के पास ऐसे कई प्रमाण हैं जिनसे पिछले चालीस वर्षों में उन जेलों में 1965 और '71 के अनेकों युद्धबंदियों के यातनापूर्ण जीवन की पुष्टि होती है। कुछ वर्ष पहले कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन सौरभ कालिया के साथ अमानवीय व्यवहार की दु:खद घटना तो पूरी दुनिया जानती है। कौन नहीं जानता कि पाकिस्तानी सेना मेंढर सेक्टर में भारतीय सैनिकों के सिर ही काटकर ले गई थी।

यह सर्वविदित है कि जापान, जर्मनी, उत्तर कोरिया और चीन के साथ पाकिस्तान भी उन देशों में शामिल है जहां की जेलें किसी नरक से कम नहीं। पाकिस्तान के लिए जासूसी करने को मजबूर करना, यहां तक कि छोटी सी बात पर हत्या कर देना पाकिस्तानी जेल के लिए आम बात है। सबसे ताजा मामला चमेल सिंह और सरबजीत सिंह का है। अभी-अभी भारत-पाक संयुक्त न्यायिक समिति ने कोट लखपत जेल का निरीक्षण करके जो रपट दी है वह हृदयविदारक है। बताया गया है कि वहां ऐसे बीस कैदी हैं जो पागल हो गए हैं, शेष के साथ भी ऐसा बुरा व्यवहार किया जाता है कि वे पागल भी हो सकते हैं और मृत्यु के मुख में भी जा सकते हैं। एक जानकारी के अनुसार भारतीय मछुआरों के अतिरिक्त लगभग 260 अन्य लोग  पाकिस्तान की जेलों में        बंद हैं।

भारत सरकार देश को उन भारतीयों के विषय में  सही जानकारी दे जो आज भी पाकिस्तान सहित दूसरे देशों की जेलों में बंद हैं।

जो लोग भी पाकिस्तान की जेल से छूट कर आए हैं उनकी गाथा दर्द भरी है। पाकिस्तान से आए कैदी वासुदेव का कहना सही है कि मीडिया जिनकी कहानी जनता तक पहुंचा देता है सरकारें केवल उन्हीं की चिंता करती हैं।  अभी जनवरी, 2013 में ही पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में पीट-पीट कर मार दिए गए चमेल सिंह का शव गुमनामी में ही भारत आया और किसी भी सरकारी आंसू, वक्तव्य और सम्मान के बिना पंचतत्व में विलीन हो गया। अब चमेल सिंह की पत्नी का कथन अनुचित नहीं है कि अगर उसके पति को भी 'शहीद' का दर्जा नहीं दिया जाता तो वह आत्महत्या कर लेगी। प्रश्न यह है कि उसे यह सम्मान क्यों न दिया जाए? और प्रश्न यह भी है कि पाकिस्तान जेल में 35 वर्ष नरक भोगकर आए कश्मीर सिंह, 27 वर्ष की नारकीय यातना सहकर लौटे गोपाल दास और 30 वर्ष की अकथनीय पीड़ा भोग कर भारत आए सुरजीत सिंह को क्यों न सरकार संरक्षण और सहायता दे? पुरुषोत्तम 14 वर्ष बाद आए और बिशनदास 10 वर्ष का कारावास सहकर लौटे।

पाकिस्तानी जेल से पच्चीस साल बाद रिहा हुए कैदी रूपलाल का कहना है कि पाकिस्तानी जेलों में बंद भारतीय कैदियों को न ढंग से खाने को मिलता है, न बीमार होने पर इलाज। ज्यादातर कैदियों को मनोचिकित्सकीय इलाज की जरूरत है। पाकिस्तानी जेल से वापस आया स्वर्ण लाल कहता है कि उल्टा लटका देना, बदन पर कूदना, तब तक दौड़ाना जब तक कैदी गिरकर बेहोश न हो जाए, आम यातना है। हिन्दुस्थानी कैदियों की हालत जानवरों से भी बदतर है, उन्हें किराए के गुण्डों से भी पिटवाया जाता है। बारह साल पहले लाहौर की कोट लखपत जेल से छूटे विनोद साहनी ने एक साक्षात्कार में बताया कि कैदियों को जेल के भीतर मारकर उनकी लाशें फेंक दी जाती हैं। उनके शवों को अंतिम संस्कार के लिए अस्पतालों में लंबा इंतजार करना पड़ता है।

पाक जेल में बंद कैदी इस आशा से सारी यातनाएं सह लेते हैं कि भारत पहुंचकर उनकी शेष जिंदगी सुख-शांति से भरी होगी, पर अमृतसर के छेहरटा इलाके में वृद्ध रिक्शाचालक महिंदर सिंह को देखकर कोई भी राष्ट्रभक्त नागरिक पीड़ा से भर उठता है, जब उसे यह ज्ञात होता है कि महिंदर सिंह पंद्रह वर्ष पाकिस्तानी जेल में नरक भुगतकर आया है। अमृतसर का ही बलविंदर सिंह वे चोटें दिखाता है जो पाकिस्तानियों ने उसके तन-मन को दी थीं। उसके घाव अभी भी शेष हैं।

भारत सरकार को अपने नागरिकों की पूरी संभाल करनी चाहिए। सजा की अवधि पूरी होने के बाद पाकिस्तान सरकार से संपर्क करके अपने नागरिकों को वापस लाना और जो लोग किसी राष्ट्रधर्म का पालन करने के लिए भेजे गए थे उनको उचित आर्थिक सहायता एवं सम्मान देकर जीवन बसर करने की सुविधा देनी ही चाहिए। आखिर भारत के इन बेटों के प्रति देश और सरकार अपना कर्तव्य क्यों पूरा नहीं करती? यद्यपि बहुत वर्ष पूर्व केंद्र ने तीन माह के भीतर ऐसे लोगों की याचिकाओं से उठे विवाद पर फैसला करने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है कि हम अपनी केंद्र और प्रांतीय सरकारों को विवश करें कि वे उनके घावों पर मरहम लगाएं, जो पाकिस्तान की जेल में नारकीय यातना सहकर वापस आए हैं। जो अभी तक घर वापस नहीं आ सके उनको लाने का कानून सम्मत प्रबंध किया जाए।

 

सरबजीत की मौत के विरोध में भाजपा का वाघा सीमा पर प्रदर्शन

सरबजीत की पाकिस्तान की जेल में   'हत्या' के खिलाफ पंजाब भाजपा की तरफ से प्रांतीय अध्यक्ष कमल शर्मा के नेतृत्व में हजारों कार्यकर्ताओं तथा नेताओं ने पाकिस्तान के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया और नारे लगाए। पुलिस ने प्रदर्शन रोकने के लिए प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार की और श्री शर्मा सहित अनेक वरिष्ठ नेताओं को हिरासत में ले लिया, जिन्हें कुछ समय बाद रिहा कर दिया गया।

धरने को संबोधित करते हुए भाजपा अध्यक्ष ने अपने भाषण में कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ भारत सरकार नरम रुख अपना रही है, पर भारत का आम आदमी उस मुल्क को सबक सिखाने के लिए तैयार है। उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तान सरकार को न तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की कोई परवाह है, न मानवाधिकारों की। इसी कारण कभी युद्धबंदियों की आंखें निकाल ली जाती हैं तो कभी भारतीय सैनिकों के सिर काट लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता।

धरने में राज्य सरकार में मंत्री श्री अनिल जोशी, विधायक श्री मनोरंजन कालिया, मुख्य संसदीय सचिव श्री के. डी. भंडारी, उपाध्यक्ष राजिंद्र मोहन सिंह सहित प्रांत के अनेक वरिष्ठ नेता  शामिल ½ÖþB* |ÉÊiÉÊxÉÊvÉ

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