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बोफर्स के बाद लड़ाकू विमानों में 'दलाली' का सनसनीखेज खुलासा
विकिलीक्स ने अपने अमरीकी केबलों के नए खुलासों में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को लड़ाकू विमानों की खरीद में दलाली लेने वाले 'कारोबारी' बताकर कांग्रेस की नींदें उड़ा दी हैं। इस खबर के छपने के बाद कांग्रेसी नेताओं ने 'खुलासे' को झूठ और बेबुनियाद बताया है। वैसे यह स्वाभाविक ही था और कांग्रेस के नेता 'गांधी' खानदान पर लगने वाले किसी भी आरोप की तह में जाने से पहले ही उस पर लानतें भेजकर आलाकमान की नजरों में नंबर बढ़ाने की होड़ में जुट जाते हैं।
बहरहाल, 8 अप्रैल को किए अपने इस ताजे खुलासे में विकिलीक्स ने बताया कि 1970 के दशक में राजीव गांधी भारतीय वायुसेना को लड़ाकू जेट बेचने की कोशिश में जुटी स्वीडन की एक कंपनी के भारत में 'मध्यस्थ' यानी बिचौलिए यानी दलाल थे। वे इस बड़े विमान सौदे के एक 'मुख्य भारतीय वार्ताकार' थे। विकिलीक्स ने यह खुलासा अमरीकी कूटनीतिक केबल की खोजबीन के बाद किया है।
इस खुलासे पर भारत के तमाम अखबारों में छपी रपटों के अनुसार, राजीव गांधी 1970 के दशक में स्वीडन की 'साब स्केनिया' कंपनी की तरफ से उस वक्त वार्ताकार बने थे जब वह भारत को विग्गन लड़ाकू विमान बेचने की जुगत लगा रही थी। उल्लेखनीय है कि यह राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने से काफी पहले की बात है। एक और केबल के अनुसार, स्वीडन वालों ने यह साफ कर दिया था कि उन्हें अंतिम फैसले में 'परिवार के प्रभाव के बारे में पता' था। केबल कहता है, 'हमारे साथी राजीव गांधी के बारे में खूब बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वे उनके ऊंचे स्तर की तकनीकी दक्षता की गाथाएं गाते हैं। ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी। वैसे, हमें शायद लगे कि एक ट्रांस्पोर्ट पायलट बेहतरीन विशेषज्ञ नहीं हो सकता जिस पर एक लड़ाकू विमान के मूल्यांकन के मामले में निर्भर रहा जाए, लेकिन साथ ही, हम उस ट्रांस्पोर्ट पायलट के बारे में बात कर रहे हैं जिसकी एक दूसरी और शायद ज्यादा उपयुक्त योग्यता है।' उल्लेखनीय है कि राजीव उस वक्त इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे, लेकिन उनकी मां श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं। इससे साफ है कि राजीव गांधी को 'हथियारों का एक एजेंट' बताया गया था। आगे चलकर उस सौदे में से स्वीडन की उस साब कंपनी को अमरीका के दबाव में मजबूरन हटना पड़ा था और ब्रिटेन का 'सेपेकैट जगुआर' विमान चुना गया था।
विकिलीक्स के इस धमाके के बाद भारत में तीखी प्रतिक्रिया देखने में आई। कांग्रेस ने जहां इसे बेबुनियाद बताया वहीं विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ दल से सफाई मांगी। भाजपा ने बोफर्स के बाद इस सौदे में राजीव गांधी के बिचौलिए होने के खुलासे पर कांग्रेस से जवाब मांगा। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि इस जानकारी से एक बात तो साफ दिखती है कि 1970 के दशक में भारत के साथ कारोबार करने के इच्छुकों को परिवार विशेष की मार्फत ही आना होता था।
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